महिलाओं के खिलाफ अपराध प्रचलित सामाजिक पदानुक्रम और मानदंडों से अलग-थलग नहीं है- सभी जाति और वर्ग के आधार से जुड़े हुए हैं. जब उन्नाव में 23 वर्षीय महिला को जिंदा जलाए जाने की खबर सामने आई, तो इसके बाद अफवाहों का सिलसिला चलने लगा. मुझे लगता है कि ऐसा करना तब आसान हो जाता है जब घटना कहीं दूर घटित हुई हो.
ऐसे में, उन्नाव की यात्रा और पीड़ित के परिवारों के साथ-साथ अभियुक्तों के साथ समय बिताना जरूरी हो गया. जातीय नाटकीयता और पारिवारिक प्रतिद्वंदिता की राजनीति ने इस कहानी को जटिल बना दिया था.
इसलिए इसे संवेदनशीलता से देखना और गांव वालों से खुलकर उनके पूर्वाग्रहों पर बात करना जरूरी था. लेकिन ग्रामीणों से बात करते समय, यह स्पष्ट हो गया कि कहानी सिर्फ इस एक अपराध के बारे में नहीं थी, बल्कि और भी जटिल थी, जिस कारण बीते कुछ सालों में उन्नाव की महिलाओं के साथ अपराध हुए.
अपराध को समझने के लिए यह स्टोरी गहरी पड़ताल करती है और जाति, जेंडर और गांव में राजनीतिक समीकरण को विस्तार से समझाती है. हम शुक्रगुजार हैं कि पाठकों के मन तक ये कहानी उतरी.
उन्नाव: 7 दिसंबर 2019 को देर रात लगभग 9 बजे उन्नाव बलात्कार पीड़िता और हत्या की शिकार युवती का शव फूल बरसाते हुए हिंदू नगर स्थित उसके घर पर लाया गया. परिवार की बड़ी-बूढ़ी महिलाओं ने पूरी दृढ़ता के साथ घोषणा की, ‘कोई रोएगा नहीं!’ और वहां मौजूद सभी लोगों ने इस संकल्प को मौन स्वीकृति भी दे दी लेकिन शायद ही कोई बचा हो जो अपने इस वादे पर टिका रह पाया.
राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में छाई बलात्कार के कथित मामले को लेकर उन्नाव के छोटे से गांव में पीड़िता को जिंदा जला दिए जाने की इस घटना के करीब 50 घंटे बाद उसके भाई ने फैसला कर लिया था कि शव का अंतिम संस्कार नहीं किया जाएगा.
राष्ट्रीय राजधानी स्थित सफदरजंग अस्पताल से शव को घर लाने के बाद भाई ने कहा, ‘हम उसका अंतिम संस्कार नहीं कर सकते. उसका शरीर 90 फीसदी जल चुका है, इसलिए उसमें बहुत कुछ बचा भी नहीं है. हम उसे दफनाएंगे और उसका एक स्मारक बनाएंगे.’
पांच लोगों, जिसमें उच्च जाति के एक स्थानीय दबंग परिवार से ताल्लुक रखने वाले उसके दो कथित बलात्कारी भी शामिल थे, द्वारा गुरुवार सुबह 4 बजे जिंदा जलाए जाने के बाद युवती को एयरलिफ्ट कर दिल्ली के अस्पताल पहुंचाया गया था. दो दिन तक दिल्ली में इलाज चलने के बाद पीड़िता ने आखिरकार दम तोड़ दिया.
23 वर्षीय युवती के शव का अगले दिन रविवार को उसके घर के पास दादा-दादी के नजदीक ही अंतिम संस्कार किया जाना था. उसे अंतिम विदाई देने के लिए गांव के रोते-पीटते लोगों का हुजूम जमा था, जिनके लिए यह समझ पाना मुश्किल हो रहा था कि आखिर यह सब कैसे हो गया.
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बदहवाश गांव में कैसे चलती रही राजनीति
इससे महज 24 घंटे पहले पूरे देश को हिलाकर रख देने वाली इस घटना को लेकर एक तरफ जहां संसद में विपक्ष का प्रदर्शन-हंगामा चल रहा था, वहीं उन्नाव के हिंदू नगर गांव स्थित पीड़िता का जर्जर झोपड़ीनुमा घर अलग ही तरह के राजनीतिक नाटकों का गवाह बन रहा था.
अपनी बेटी के साथ घटित घटना से सुध-बुध गंवा चुका परिवार पीड़िता के शव का इंतजार कर रहा था. परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था और उसके साथ संवेदनाएं जताने के लिए विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं का वहां तांता लगा हुआ था.
कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा, उन्नाव से भाजपा सांसद साक्षी महाराज और उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार में मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य और कमल रानी वरुण ने परिवार से मुलाकात की. अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी और सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी के सदस्य भी एकजुटता दिखाने में पीछे नहीं रहे.
इस सबके बीच जमकर राजनीति चलती रही. स्थानीय कांग्रेस नेताओं ने भाजपा के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया और साक्षी महाराज के काफिले को अवरुद्ध करने का प्रयास भी किया. आखिरकार सांसद को पीड़िता के घर तक पहुंचने के लिए अपनी कार से उतरकर कुछ मीटर पैदल चलना पड़ा. जब वह परिजनों से मिले तो उन्होंने मुआवजे के रूप में 25 लाख रुपये देने का वादा किया.
अंतिम संस्कार हो जाने के बाद लखनऊ के मंडलायुक्त मुकेश मेश्राम ने परिवार को एक हस्तलिखित दस्तावेज सौंपा जिसमें प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत दो घर देने का वादा किया गया था— परिजनों ने दावा किया कि किफायती आवास योजना के तहत एक सूची में उनके नाम थे लेकिन उन्हें ये मिले नहीं थे.
मेश्राम ने पीड़िता की बहन को 24 घंटे सुरक्षा के लिए एक महिला कांस्टेबल तैनात करने और भाई को आत्मरक्षा के लिए बंदूक का लाइसेंस देने का वादा भी किया.
‘वह तो चली गई’
हालांकि, परिवार ऐसी घोषणाओं की बहुत परवाह करता नज़र नहीं आ रहा. पीड़िता की भाभी को अपने कंधे का सहारा देकर सांत्वना दे रही पीड़िता की एक चाची ने दिप्रिंट से कहा, ‘हमारे यहां आज (शनिवार को) आए एक भी राजनेता ने हमारे लिए भोजन की व्यवस्था करने की जहमत नहीं उठाई.’
पीड़िता की भाभी, जिसकी 12 साल पहले उसके बड़े भाई से शादी हुई थी, ने तो उसे पलते-बढ़ते काफी करीब से देखा है. उसने एकदम मां जैसी भावना के साथ कहा, ‘एक छोटी, मासूम सी बच्ची मेरी आंखों के सामने ही बड़ी हुई थी…’
सुबह से ही खाली पेट बैठी मीडिया के सवालों का जवाब दे रही भाभी ने कहा, ‘और अब, बस ऐसे ही, वह चली गई.’
पांच बहनों और दो भाइयों के परिवार में सबसे छोटी पीड़िता हर किसी की आंख का तारा थी. अस्पताल में भाई के साथ मौजूद रही उसकी बड़ी बहन ने बताया कि युवती बहुत कुछ करना चाहती थी. वह चटपटे खाने और अच्छे कपड़ों की शौकीन थी. कानून की पढ़ाई की इच्छा जताने वाली युवती शुरू में पुलिस बल में भर्ती होना चाहती थी. उसने अंतत: एक बैंक में नौकरी के लिए आवेदन किया था. उसकी बहुत सारी आकांक्षाएं थीं.
अपने कथित बलात्कारियों के साथ एक साल से जारी लड़ाई के बाद गुरुवार तड़के जब वह अपने गांव से करीब 500 मीटर दूर सड़क पर आग की लपटों से घिरी बचने के लिए इधर-उधर दौड़ रही थी, उसके सारे सपने एक झटके में खत्म हो चुके थे.
वह अभागी सुबह
23 वर्षीय यह युवती गुरुवार तड़के अपने गांव से 50 किलोमीटर दूर रायबरेली जाने के लिए निकली थी. वह इस बात से आक्रोशित थी कि मार्च में दर्ज बलात्कार मामले के मुख्य आरोपी शिवम त्रिवेदी को 25 नवंबर को जमानत पर छोड़ दिया गया था. त्रिवेदी, जिस उच्च जाति के युवक के साथ उसका अफेयर था, और उसके चचेरे भाई शुभम ने 12 दिसंबर 2018 को उसके साथ कथित तौर पर बलात्कार किया था.
शिवम को सितंबर में गिरफ्तार किया गया था लेकिन उसे 30 नवंबर को जमानत मिल गई थी.
पिछले हफ्ते सुबह पीड़िता अपने वकील के साथ इस मामले पर चर्चा करने जा रही थी.
पीड़िता द्वारा पुलिस को दिए बयान के मुताबिक, ट्रेन पकड़ने के लिए जाते समय सुबह 4 बजे गौरा चौक के पास पांच युवकों ने पीछा करके उसे घेर लिया.
बयान में कहा गया है कि आरोपियों ने उसके शरीर पर मिट्टी का तेल डालकर आग लगाने से पहले चाकुओं से वार किए और लाठी-डंडों से भी पीटा.
हालांकि, उत्तर प्रदेश पुलिस ने गुरुवार को कहा कि चाकू मारे जाने और अन्य चोटों की पुष्टि नहीं हुई है.
स्थानीय बिहार पुलिस थाने के प्रभारी निरीक्षक अजय कुमार त्रिपाठी ने कहा कि उन्होंने जैसे ही पीड़िता को देखा उसे कंबल से ढका. त्रिपाठी ने दिप्रिंट को बताया कि एक राहगीर का फोन लेकर पुलिस को कॉल करने से पहले पीड़िता एक किलोमीटर तक निकटतम पुलिस स्टेशन की ओर दौड़ती रही थी.
त्रिपाठी उसे नजदीकी अस्पताल पहुंचाने के बाद उसके द्वारा इस आपराधिक घटना के जिम्मेदार बताए गए सभी पांच लोगों शिवम त्रिवेदी, शुभम त्रिवेदी, राम किशोर त्रिवेदी (शिवम के पिता), हरिशंकर त्रिवेदी (शुभम के पिता) और उमेश बाजपेई (त्रिवेदी के पड़ोसी) को गिरफ्तार करने रवाना हो गए.
पांचों लोग तब से गिरफ्तार हैं.
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पहले प्यार के जाल में फंसाया, फिर वीडियो बनाया और बंदूक की नोक पर बलात्कार
इस घृणित अपराध को अंजाम दिए जाने से महीनों पहले ही पीड़ित युवती ने बिहार थाना स्टेशन में अपने बलात्कार के मामले में विस्तृत एफआईआर दर्ज कराई थी और 5 मार्च को रायबरेली के लालगंज स्टेशन में भी रिपोर्ट लिखाई थी.
एफआईआर के अनुसार, शिवम त्रिवेदी ने पहले तो उसे ‘प्यार’ का झांसा दिया लेकिन बाद में शादी करने से पीछे हट गया.
एफआईआर के मुताबिक, कई बार वह उसे रायबरेली सहित विभिन्न शहरों में लेकर गया और उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए. यहां तक कि उसने इस सबका वीडियो भी बना लिया. बाद में उसने धमकी दी कि अगर उसने शिकायत की तो वह ये वीडियो जारी कर देगा.
युवती की तरफ से शादी के लिए बहुत दबाव डालने पर उसने 9 जनवरी 2018 को रायबरेली सिविल कोर्ट में विवाह पंजीकरण संबंधी अनुबंध तैयार कराया. हालांकि, यह शादी कभी हुई नहीं. एफआईआर के मुताबिक, आखिरकार, उसने और ज्यादा दबाव डाले जाने पर युवती और उसके परिजनों को मार डालने की धमकी दे डाली.
लड़की फिर रायबरेली के लालगंज इलाके में अपनी चाची के साथ रहने लगी. प्राथमिकी के अनुसार शिवम 12 दिसंबर 2018 को चचेरे भाई शुभम के साथ वहां पहुंचा था. उसे पास के मंदिर ले जाने के बहाने वे लोग उसे एक खेत में ले गए और बंदूक की नोक पर बलात्कार किया.
शिवम को आखिरकार 19 सितंबर को गिरफ्तार कर लिया गया, जबकि शुभम ‘फरार’ हो गया.
शुरुआत में पुलिस ने कथित तौर पर मामला दर्ज करने से इनकार कर दिया था, फिर रायबरेली की अदालत में आवेदन दायर करने और जांच की मांग किए जाने के बाद मामले में तेजी आई.
पीड़िता के पिता अब यह कहते हुए अपराधियों के खिलाफ ‘हैदराबाद जैसी मुठभेड़’ की मांग कर रहे हैं कि अगर कानून व्यवस्था ठीक से काम करती तो उनकी बेटी आज जीवित होती. उनका कहना है, ‘यदि केवल समय पर शिकायत दर्ज कर ली जाती, उन लोगों को समय पर गिरफ्तार लिया जाता और फिर छोड़ा नहीं जाता तो यह सब नहीं होता.’
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त्रिवेदी परिवार
ब्राह्मण बहुल गांव के ‘भयग्रस्त’ त्रिवेदी परिवार ने सभी आरोपों से इनकार किया है— यहां तक कि प्रेम संबंधों की बात से भी.
शुभम की मां सावित्री देवी, जो पिछले 15 सालों से हिंदू नगर में ग्राम प्रधान की जिम्मेदारी निभा रही हैं, इस बात से साफ इनकार करती है कि उनके बेटे का इस मामले से कोई लेना-देना है.
सावित्री देवी ने दिप्रिंट को बताया, ‘जिस दिन कथित बलात्कार की बात कही जा रही उस दिन उसकी हाइड्रोसिल की सर्जरी हुई थी, जिसका मतलब है कि उस समय उसके कहीं जाने का सवाल ही नहीं उठता है. यही कारण है कि उसे गिरफ्तार नहीं किया गया.’
उसके घर पर परिवार के अन्य सदस्य भी एक सुर में ‘शुभम भैया’ का बचाव करते हैं.
वहीं, शिवम की मां सरोज त्रिवेदी ने कहा कि वह अपने बेटे और 23 वर्षीय युवती के बीच के रिश्ते के बारे में कुछ नहीं जानती. उन्होंने कहा, ‘मेरा बेटा हर दिन रात में घर आकर सोता था. उसकी तो इस लड़की से दोस्ती भी नहीं थी, फिर कोई संबंध होना तो दूर की बात है.’
आरोपियों के परिजन इस मामले में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) से जांच की मांग कर रहे हैं.
हालांकि, शिवम त्रिवेदी के पड़ोस में रहने वाले एक दोस्त, जो कथित अपराध के दिन सुबह जॉगिंग के लिए गया था, ने दिप्रिंट को बताया, ‘हमें जॉगिंग शुरू किए करीब 20 मिनट ही हुए होंगे, तभी उसे एक फोन कॉल से इस घटना के बारे में जानकारी मिली. मैं अपने घर लौट गया और वह अपने घर चला गया.’
बाद में पुलिस ने उससे पूछताछ की थी. उसने बताया, ‘मैंने उन्हें बताया कि पिछले कुछ समय से हम जॉगिंग पर जाते हैं. शुक्र है कि उन्हें समझ आ गया कि मेरा इस सबसे कोई लेना-देना नहीं है.’
हालांकि, गांव के अन्य लोगों ने प्रधान के बारे में बात करते हुए ‘तानाशाही’ और ‘दबंगई’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया.
अपना नाम न बताने को तैयार एक दलित ग्रामीण ने कहा, ‘हर कोई उनसे डरता है. वह अपने आदमियों से किसी को भी पिटवा सकती हैं, खासकर अगर वो निचली जाति का है. उनकी धमकी कोरी नहीं होती है.’
23 वर्षीय पीड़िता ‘निचली जाति’ लोहार समुदाय की थी. ग्रामीणों ने दिप्रिंट को बताया कि उन्नाव में एक अंतरजातीय विवाह की तो कल्पना भी नहीं की जा सकती, और इसलिए ‘शिवम के उस लड़की से शादी करने का सवाल ही नहीं उठता था.’
त्रिवेदी परिवार ने इस आरोप को भी खारिज किया कि बलात्कार का मामला दर्ज होने के बाद उसकी तरफ से युवती के परिवार को कोई धमकी दी गई थी.
शुभम की बहनों में से एक ने दिप्रिंट से कहा, ‘(युवती की) मां पिछले कई सालों से स्थानीय सरकारी स्कूल में खाना पकाने का काम कर रही है. अगर वह (सावित्री देवी) वास्तव में उन्हें डराना-धमकाना चाहती तो उसकी मां यह काम नहीं कर सकती थी.’
‘यह सिर्फ हमारी बेटी की बात नहीं’
कई ग्रामीणों के लिए युवती के साथ यह त्रासद घटना आगाह करने वाली है. नाम न बताने की शर्त पर एक ग्रामीण ने कहा, ‘जब किसी को बहुत ज्यादा स्वतंत्रता मिलती है तो यही सब होता है.’
हालांकि, बाकी सभी लोग इससे सहमत नहीं नज़र आए. रविवार को युवती को दफनाए जाने के दौरान गांव के कई बच्चों के बीच धक्का-मुक्की चलती रही.
पीड़िता की भाभी ने कहा, ‘यह सिर्फ हमारी बेटी की बात नहीं है. यह इस गांव या इस देश की सभी लड़कियों के भविष्य का सवाल है.’
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(इस रिपोर्ट के लिए फातिमा खान को जेंडर सेंसिटिविटी कैटेगरी में लाडली मीडिया एंड एडवरटाइजिंग अवार्ड मिला है)
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