नई दिल्ली : देश में आज करगिल विजय दिवस की 20वीं वर्षगांठ मनाई जा रही है. आज हिंदुस्तान के लिए गर्व का दिन है, आज से ठीक 20 साल पहले सरहद पर भारत ने पाकिस्तान को करारा जवाब दिया था और भारतीय जवानों ने पाकिस्तान पर जीत हासिल की थी.
दिप्रिंट उन पांच सैनिको के बारे में बता रहा जिनको पकड़े जाने के बाद क्रूर यातनाएं झेलनी पड़ी थीं. वे वापस कभी घर लौट कर नहीं आ सके.
भारतीय सेना के 24 वर्षीय कैप्टन विक्रम बत्रा ने कारगिल में अपने बहादुर पराक्रम के लिए ‘शेर शाह’ का उपनाम अर्जित किया था. 22 साल के कैप्टन सौरभ कालिया, जिनके बारे में कहा जाता है कि उन्होंने नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर पाकिस्तानी सेना द्वारा बड़े पैमाने पर घुसपैठ का पर्दाफाश किया था. सौरभ और उनके साथ पांच सैनिकों को दूसरी तरफ से पकड़े जाने के बाद क्रूर यातनाएं झेलनी पड़ी थीं.
भारतीय वायु सेना (आईएएफ) के 26 वर्षीय ग्रुप कैप्टन कंबम्पति नचिकेता राव को भी पकड़ लिया गया था. उन पर अत्याचार भी किया गया, लेकिन वे किसी तरह जीवित बच निकले.
20 साल पहले कारगिल युद्ध के दौरान भारत ने आखिरी ‘युद्ध’ लड़ा था. युद्ध में 527 भारतीय रक्षा बल के कर्मियों की मौत हो गई थी. अनियमितताओं के कारण भारत से पाकिस्तानी सैनिकों को बेदखल करते हुए अपनी जान गवाई थी.
भारतीय वायु सेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल बीएस धनोआ ने पिछले सप्ताह मिग-21 और एमआई -17 V5 हेलिकॉप्टर से उड़ान भरकर युद्ध में जान गवां चुके वायु सैनिकों को श्रद्धांजलि अर्पित की थी.
भारतीय सेना के ’ऑपरेशन विजय’ और भारतीय वायु सेना के ‘ऑपरेशन सफेद सागर’ को हुए दो दशक का समय बीत चुका है, दिप्रिंट कुछ ऐसे नायकों को याद कर रहा है जो भारतीयों के लिए कारगिल युद्ध का प्रतीक बन गए हैं.
कैप्टन विक्रम बत्रा
‘चाणक्य…….. शेर शाह इज रिपोर्टिंग !! हमने पोस्ट पर कब्जा कर लिया है! ये दिल मांगे मोर!’
ये कैप्टन विक्रम बत्रा के शब्द थे. जब वे अपने कमांडिंग ऑफिसर को एक वायरलेस के माध्यम से रिपोर्ट कर रहे थे कि ‘पॉइंट 5140’ टाइगर हिल को वापस कब्ज़ा कर लिया गया है. यह दिन था 20 जून 1999, कार्रवाई में मारे जाने से लगभग एक सप्ताह पहले.
उन्हें 13 जम्मू और कश्मीर राइफल्स का जिम्मा दिया गया था और लड़ाई के दौरान कैप्टन के पद पर पदोन्नत किया गया था.
19 जून 1999 को कैप्टन बत्रा और उनकी डेल्टा कंपनी ने ‘पॉइंट 5140’ पर कब्जा करने के लिए पाकिस्तानी सेना की ओर से भारी गोलाबारी का सामना करते रहे. हालांकि, बत्रा ने घायल होने के बावजूद करीबी मुकाबले में तीन सैनिकों को मार गिराया.
‘पॉइंट 5100’, ‘प्वाइंट 4700’, जंक्शन पीक और थ्री पिम्पल्स पर जीत हासिल करने से पहले 20 जून को उन्होंने ‘पॉइंट 5140’ पर कब्जा कर लिया.
लगभग एक हफ्ते बाद एक और खतरनाक मिशन ‘पीक 4875’ को फिर से कब्ज़ा लिया. बत्रा और उनके सैनिकों पर पाकिस्तान के सैनिकों ने हमला किया. वह अपने मिशन को अंजाम देने ही वाले थे कि इसी बीच वे घायल जूनियर अधिकारी को बचाने के लिए अपने बंकर से बाहर निकलें और तभी उन्हें एक बुलेट लगी.
जिसने भी उन्हें मरता हुआ देखा, बताता है कि अंतिम सांस लेने से पहले वे, ‘जय माता दी’ के नारे लगा रहे थे. उनकी टीम ‘4875’ पर कब्जा करने में सफल रही.
बत्रा को मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च वीरता पुरस्कार, परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया. सार्वजनिक रूप से उपलब्ध उनकी कई तस्वीरें और वीडियो कि वजह से वह कारगिल युद्ध के सबसे योग्य चेहरा बनकर उभरे.
वे जेपी दत्ता की 2003 की फिल्म एलओसी कारगिल के महत्वपूर्ण पात्रों में से एक थे. जबकि एक बायोपिक अकेले उनके ऊपर केंद्रित है जिस पर अभी काम चल रहा है.
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कैप्टन सौरभ कालिया
4 जाट बटालियन के कैप्टन सौरभ कालिया को उनके 23वें जन्मदिन से 20 दिन पहले ही मार दिया गया. पाकिस्तानी सेना की कैद में लगभग एक महीने तक बंद रहे कालिया और पांच अन्य भारतीय सैनिकों की बर्बरता से हत्या कर दी गई थी.
मई 1999 के पहले दो हफ्तों में, कालिया को करगिल में नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर पाकिस्तानी सेना द्वारा बड़े पैमाने पर घुसपैठ की सूचना दी गई थी.
15 मई को, नियमित गश्त के दौरान उन्हें 5 जाट बटालियन के सैनिक अर्जुन राम, भंवर लाल बागरिया, भीका राम, मूल राम और नरेश सिंह को एक साथ जिंदा पकड़ लिया गया था.
कालिया और उसके साथियों को लगभग 22 दिनों तक बंदी बनाकर रखा गया था, और पाकिस्तानी सेनाओं के हाथों यातना झेलनी पड़ी थी. उन्हें सिगरेट के बटों से जलाने के अलावा उनकी आंखों को कूच दिया गया.
उनके कटे हुए शरीर 9 जून 1999 को वापस भारतीय सेना को सौंप दिए गए थे. ऐसा कहा जाता है कि उनको कब्जे में लेने के कारण सैकड़ों पाकिस्तानी सैनिकों की खोज हुई जो नियंत्रण रेखा (एलओसी) और उसके आसपास की ओर चोटियों पर तैनात थे.
कब्जे के समय, कालिया यूनिट में लेफ्टिनेंट के रूप में शामिल हुए थे और उनको युद्ध के दौरान ही कैप्टन के पद पर पदोन्नत किया गया था. पिछले साल जून में ऐसी रिपोर्ट आईं हैं कि उनके जीवन पर जल्द ही एक फिल्म बनाई जाएगी.
कैप्टन विजयंत थापर
चौथी पीढ़ी के सैनिक, 22 वर्षीय कैप्टन विजयंत थापर के लिए भारतीय सेना में शामिल होना हमेशा एक सपना था. अपने परिवार को लिखे अंतिम पत्र में, थापर ने अपनी मृत्यु की भविष्यवाणी की थी. उन्होंने लिखा था, ‘अगर मैं फिर से एक इंसान बनूं तो मैं सेना में शामिल हो जाऊंगा और अपने राष्ट्र के लिए लड़ूंगा.’
कारगिल के युद्ध की शुरुआत में, उनकी बटालियन को पहली बार सुविधा टोलोलिंग पर कब्जा करने का काम सौंपा गया, जो थापर और उनकी टीम के लिए एक महत्वपूर्ण जीत साबित हुई.
28 जून 1999 को, 2 राजपुताना राइफल्स को थ्री पिम्पल्स, नॉल और लोन हिल क्षेत्र पर कब्जा करने का काम दिया गया था. थापर नॉल में अपनी टीम का नेतृत्व करते हुए आग के एक विस्फोट से मारे गये थे, जिसे अंततः 29 जनवरी 1999 को जीता गया था.
नॉल हमले से 2 घंटे पहले अपने माता-पिता को लिखे अंतिम पत्र में उन्होंने लिखा था, ‘जब तक आप इस पत्र को प्राप्त करते हैं, मैं आकाश से आप सभी का अवलोकन करूंगा और अप्सराओं के आतिथ्य का आनंद उठाऊंगा.’
उन्हें मरणोपरांत वीर चक्र से सम्मानित किया गया.
स्क्वाड्रन लीडर अजय आहूजा
भारतीय वायु सेना (आईएएफ) के स्क्वाड्रन लीडर अजय आहूजा का उनके 36वें जन्मदिन के पांच दिन बाद 27 मई 1999 को निधन हो गया था. वे अपनी पत्नी और युवा बेटे को पीछे छोड़ गए हैं.
जब मई-जून 1999 में कारगिल संघर्ष छिड़ा था, तब आहूजा ने 17 स्क्वाड्रन की कमान संभाली थी. वह भारतीय क्षेत्र के भीतर एक मिग-21 उड़ा रहे थे, जब उनके विमान को पाकिस्तानी सेना के एफआईएम-92 स्टिंगर सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल के साथ मार गिराया था.
बेदखल होने से पहले, उन्होंने एक रेडियो कॉल जारी किया, ‘हरक्यूलिस, मेरे विमान से कुछ टकराया है, मिसाइल के हिट होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता, मैं इसे (स्थान) बाहर निकाल रहा हूं.’ इसके तुरंत बाद ही, वायुसेना ने अपने विमान का ट्रैक खो दिया.
वे पाकिस्तानी क्षेत्र में उतर गए. जब उनका पार्थिव शरीर 29 मई को भारत को सौंपा गया, तो उनका शरीर गंभीर रूप से छत-विछत पाया गया.
ऑटोप्सी से पता चला कि उनकी बाईं और दाहिनी जांघों पर घाव थे, दाहिना फेफड़ा टूटा था, उनकी गर्दन व छोटी आंत और लिवर में चोट आई थी. उसके कान के पास घाव थे.
पैराशूटेड होने से पहले स्क्वाड्रन लीडर के बाएं घुटने में एक फ्रैक्चर था लेकिन गोलियों के घाव से पता चला कि उन्हें जीवित सौंपा गया था और उनकी मौत बाद में हुई थी.
उन्हें मरणोपरांत वीर चक्र से सम्मानित किया गया था, जो कि तीसरा सबसे बड़े वीरता सम्मान है.
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कंबम्पति नचिकेता राव
26 साल के कंबम्पति नचिकेता राव को आहूजा से कुछ मिनट पहले ही पकड़ गया था.
26 मई 1999 को, नचिकेता एक आईएएफ टीम के हिस्सा थे जिसने बटालिक सेक्टर में पाकिस्तानी पोस्टों पर हड़ताल की. ऑपरेशन के दूसरे दिन, उन्होंने लक्ष्य के खिलाफ 80 मिमी रॉकेट और 30 मिमी तोप तैनात किया, उसके इंजन में आग लग गई और उन्हें बेदखल कर दिया गया.
नचिकेता को जानने वाले एक अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘ऑपरेशन सफदर सागर में घुसपैठ की स्थिति के खिलाफ उड़ान भरने के दौरान वो इंजन एक पाकिस्तानी स्टिंगर मिसाइल से टकराया था.’
#RememberingKargil #OpSafedSagar 27 May 99, Second day of Air Ops: IAF continued attacking enemy targets with considerable success. During a strike mission, the aircraft of F/L K Nachiketa Rao suffered an engine flame out and he was forced to eject. 1/3
— Indian Air Force (@IAF_MCC) May 27, 2019
ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने तत्काल कब्जा जमा लिया, लेकिन पाकिस्तानी सेना के एक गश्ती दल ने 2 से 3 घंटे तक चलने के बाद उन्हें हिरासत में ले लिया, जिससे वह युद्ध के पहले भारतीय कैदी बन गए.
उन्हें हिरासत में क्रूरतापूर्वक प्रताड़ित किया गया. उनके मुताबिक उनकी हालत और खराब हो सकती थी लेकिन पाकिस्तानी सेना के वरिष्ठ अधिकारी की मध्यस्थता के कारण उनकी जान बच गई. नचिकेता को पाकिस्तान की हिरासत में आठ दिन बिताने के बाद रिहा किया गया था.
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