लखनऊ: सन् 1632 की गर्मियों में शाहजहां की सबसे प्यारी बीवी जिन्हें मुमताज महल के नाम से भी जाना जाता है उनके जनाज़े ने अपनी अंतिम यात्रा की शुरुआत की. मुगल इतिहासकार लिखते हैं कि उनके जनाज़े को अकबराबाद यानी आज के आगरा ले जाया गया. उस समय उनके जनाज़े में उनके दूसरे बेटे और सुल्तान शाह शुज़ा बहादुर, सरहिंद के सूबेदार वज़ीर खां और उनकी सबसे प्रमुख दासी सत्ती खानम मौजूद थीं.
दरअसल, जिस जगह को हम ताजमहल कहते हैं, वहां महारानी का मकबरा होना एक तीखे विवाद का विषय बना हुआ है, जिसके बारे में कुछ प्रभावशाली हस्तियों का दावा है कि स्मारक कभी हिंदू मंदिर था.
गुरुवार को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने भारतीय जनता पार्टी की अयोध्या इकाई के मीडिया प्रभारी रजनीश सिंह की एक याचिका पर सुनवाई करते हुए इस मुद्दे पर अपना समय बर्बाद करने की अनिच्छा जताई. जस्टिस डी.के. उपाध्याय और जस्टिस सुभाष विद्यार्थी ने कथित तौर पर कहा, ‘ये सारी बहस ड्राइंगरूम में चर्चा के लिए तो ठीक हैं लेकिन अदालतों के लिए नहीं.’
ताज परिसर में सीलबंद कमरों को निरीक्षण के लिए खोलने की रजनीश सिंह की मांग के जवाब में न्यायाधीशों ने मजाकिया लहजे में कहा, ‘कल आप आकर हमें इस अदालत के माननीय न्यायाधीशों के कक्ष में जाने के लिए कहेंगे!’
जयपुर के पूर्व शाही परिवार की सदस्य और राजस्थान के राजसमंद निर्वाचन क्षेत्र से लोकसभा सांसद दीया कुमारी ने बुधवार को इस मुद्दे पर दावा किया था कि जिस जमीन पर ताज महल खड़ा है वह उनके पूर्वजों की है. उन्होंने कहा, ‘मैंने सुना है कि तब कोई मुआवजा नहीं दिया गया था. लेकिन उस समय ऐसा कोई कानून नहीं था जिसके तहत आप अपील कर सकें. यह निश्चित तौर पर शाही परिवार की भूमि थी.’
दीया कुमारी ने कहा, ‘अगर अदालत आदेश देती है तो हम दस्तावेज उपलब्ध कराएंगे.’
यह भी पढ़ेंः हिंदू मूर्तियों की पूजा के लिए याचिका- क्या है काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी विवाद का सबसे नया कानूनी पचड़ा
क्या कहते हैं मुगल दस्तावेज
संयोग से, दस्तावेजों को देखने के लिए किसी अदालती आदेश की जरूरत नहीं है. इतिहासकार डब्ल्यू.ई. बेगली ने मुगलकालीन तमाम फरमान या आदेश संकलित किए थे और जियाउद्दीन देसाई द्वारा अनूदित ये दस्तावेज 1989 से उपलब्ध हैं. दस्तावेज हमें बताते हैं कि सांसद का दावा आंशिक तौर पर सही हैं. जिस जमीन पर ताज खड़ा है, वह उनके पूर्वज आमेर के राजा जय सिंह प्रथम की थी. लेकिन इन दस्तावेजों में साथ ही यह भी दर्ज है कि जय सिंह को अपनी हवेली छोड़ने के बाद अच्छा-खासा मुआवजा मिला था, और जिस संगमरमर से ताजमहल बनाया गया था, उसकी आपूर्ति में भी उन्होंने ही की थी.
अर्जुमंद बानो का जनाजा ले जा रहा जुलूस एक राजकीय अवसर था. मुगल इतिहासकार अब्द अल-हामिद लाहौरी के रिकॉर्ड के मुताबिक शाहजहां ने आदेश दे रखा था कि ‘हर दिन, प्रचुर मात्रा में भोजन और असंख्य चांदी और सोने के सिक्के जरूरतमंदों और गरीबों के बीच बांटे जाएं.’
एक अन्य इतिहासकार मुहम्मद अमीन काजविनी लिखते हैं, जय सिंह ने ‘अपनी गंभीरता और निष्ठा जताने के प्रतीक के तौर पर उक्त भूमि को दान कर दिया और ऐसा करके उन्हें काफी खुशी हुई. हालांकि, शहंशाह ने इसके बदले में राजा को एक विशाल घर दे दिया जो कि शाही संपत्ति का हिस्सा था.’
28 दिसंबर 1633 को जारी एक फरमान राजा जय सिंह की उस हवेली के बदले दिए गए मुआवजे का सटीक ब्योरा देता है जो ‘उन्होंने मकबरा बनाने के लिए पूरे होशो-हवाश में और स्वेच्छा से उपहार स्वरूप प्रदान की थी.’
रिकॉर्ड में शाही संपत्ति का हिस्सा रही उन हवेलियों का भी जिक्र है जो मुगल शासक के भरोसमंद साथियों और जागीरदारों ने सम्मान स्वरूप उन्हें भेंट कीं और फिर उनका मालिकाना हक राजा जय सिंह को सौंप दिया गया.
अकबराबाद हवेली के बदले राजा सिंह को राजा भगवानदास, माधो सिंह, रूपसी बैरागी और सूरज सिंह के बेटे चांद सिंह की हवेलियां मिलीं. राजा जय सिंह ने मुमताज़ महल की मृत्यु के कुछ ही समय बाद संभवत: दिसंबर 1631 तक अपनी संपत्ति दान कर दी होगी लेकिन इसके बदले में शाहजहां की तरफ से शाही संपत्ति के अनुदान को पूरा करने में लगभग दो साल लग गए.
उन हवेलियों में से कम से कम एक को रूपसी बैरागी ने अपनी भतीजी और राजा भारमल की बेटी, मरियम-उज-जमानी (जिन्हें जोधाबाई के नाम से जाना जाता है) की जनवरी 1562 में मुगल सम्राट अकबर से शादी के अवसर पर उपहार में दी थी.
फरमान में किया गया उल्लेख यह भी पुष्ट करता है कि राजा को पहले एक दूसरी शाही संपत्ति मिली थी जो दिवंगत शहजादा खानम की हवेली थी, जिसकी पहचान अज्ञात है. लेकिन इसमें यह नहीं बताया गया है कि क्या ये भी परस्पर सहमति से बदले में दी जाने वाली संपत्ति का हिस्सा थी.
उसी समय के आसपास जारी फरमानों से यह भी पता चलता है कि शहंशाह की तरफ से राजा जय सिंह को यह सुनिश्चित करने को कहा गया था कि उनकी खदानों का संगमरमर केवल ताज महल के निर्माण के लिए भेजा जाएगा और किसी अन्य ग्राहक को नहीं दिया जाएगा.
यह भी पढ़ेंः मंदिरों और मस्जिदों ने धीमी की लाउडस्पीकर की आवाज, हाथों में डेसिबल मीटर लिए जांच कर रही UP पुलिस
ताजमहल पर उलझाते दावे
ताज कभी हिंदू मंदिर था, यह दावा कम से कम 1965 से किया जा रहा है जब कभी सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के कर्मचारी पुरुषोत्तम नागेश ओक ने यह दावा करते हुए एक किताब प्रकाशित की थी, जो प्रिंट वर्जन में उपलब्ध नहीं है, लेकिन अभी भी ऑनलाइन है. ओक इसके अलावा ये दावे करने के लिए भी ख्यात हैं कि मक्का स्थित काबा और वेटिकन भी कभी हिंदू मंदिर थे और पोपसी एक प्राचीन वैदिक पुजारी थे.
2000 में, जस्टिस एस.पी. भरूचा और जस्टिस रूमा पाल की सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने ओक के दावों को ‘गलत’ करार देकर खारिज कर दिया. न्यायाधीशों ने कथित तौर पर टिप्पणी की, ‘यह किसी का दिमागी फितूर है.’ वहीं भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की तरफ से भी 2017 में कहा गया कि उसके पास यह मानने का कोई कारण नहीं है कि जहां आज ताजमहल खड़ा है, वहीं कभी कोई मंदिर था.
हालांकि, ओक के विचार काफी गहरे साबित हुए. ऑनलाइन समूह अभी भी वास्तुकार मार्विन मिल्स का एक पत्र सर्कुलेट करते हैं. 1992 में द न्यूयॉर्क टाइम्स में छपे इस पत्र में स्मारक की कार्बन-14 और थर्मोल्यूमिनेशन डेटिंग का आह्वान किया गया था.
हालांकि, विशेषज्ञों ने इस मांग पर कोई खास ध्यान नहीं दिया. उदाहरण के तौर पर थर्मोल्यूमिनेसेंस से मोटे तौर पर तभी कुछ पता लगा सकता है जब सिरेमिक को निकाल दिया जाए. लेकिन ये स्पष्ट नहीं है कि यह तथ्य कैसे साबित होगा कि वहां पर कभी कोई मंदिर था जहां अब ताज है. सामान्य तौर पर, विद्वान इतिहासकार ओक के सिद्धांतों को खारिज करते रहे हैं.
प्रेम कहानी का अंत
हर भारतीय स्कूली बच्चा जानता है—या उसे जानना चाहिए—कि इस कहानी का अंत कैसे हुआ. शाहजहां को उसके बेटे औरंगजेब ने कैद कर लिया था, उसे केवल अपनी जेल की सलाखों से ताजमहल को निहारने की ही अनुमति थी. जैसा कि इतिहासकार निकोलाओ मनुची लिखते है, हालांकि कारावास में मिली यह सुविधा भी उनके मन को चैन देने के लिए नाकाफी थी.
इतिहासकार ने आगे लिखा कि बादशाह की पत्नी औरंगाबादी के पास दो खूबसूरत दासियां थीं, जिसमें एक का नाम आफताब यानी ‘सूर्य’ और दूसरी का महताब यानी ‘चंद्रमा’ था. ‘यह देखने के बाद शाहजहां उनकी तरफ आकृष्ट हैं उन्होंने मनोरंजन के लिए उन्हें उनके हवाले कर दिया.’
मनुची ने आगे लिखा, ‘एक दिन शाहजहां शीशे के सामने खड़े होकर अपनी मूछें संवार रहे थे, और ये दोनों महिलाएं उनके पीछे खड़ी थीं. बुजुर्ग बादशाह का मजाक बनाते हुए एक ने दूसरी को इशारे-इशारे में कहा कैसे वह खुद को युवा दिखाने की कोशिश कर रहे हैं. शाहजहां ने ये इशारा देख लिया और इसने उनके आत्मसम्मान को ठेस पहुंचा दी और उन्होंने अपनी आदतों पर काबू पाने के लिए खुद को शराब के नशे में डुबो दिया.’
‘इससे उनका मूत्राशय इतना कमजोर हो गया था कि पेशाब होना ही रुक गया. इसका कोई इलाज नहीं खोजा जा सका.’ और अंतत: सम्राट की मृत्यु हो गई—लेकिन उनकी बनाई इमारत पर बहस आज भी जारी है.
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)
यह भी पढ़ेंः काशी विश्वनाथ ट्रस्ट के पूर्व प्रमुख बोले- ‘सस्ते प्रचार’ के लिए दायर की गयी है ज्ञानवापी की याचिका