जम्मू: आज विश्व अंतर्राष्ट्रीय शरणार्थी दिवस है, पूरे विश्व में इस दिन को शरणार्थियों की समस्याओं को उजागर करने के रूप में मनाया जा रहा है. मगर, जम्मू कश्मीर में ऐसे भी लाखों शरणार्थी हैं जिन्हें आज तक दुनिया ने ‘शरणार्थी’ ही नही माना. लगभग 70 वर्षों से अपने अधिकारों के लिए संघर्षरत इन शरणार्थियों की लड़ाई आज भी जारी है.
शरणार्थियों की बात करते समय यह तथ्य भी सामने आता है कि जम्मू कश्मीर में रह रहे शरणार्थियों को तो ठीक से परिभाषित भी नहीं किया गया. जम्मू कश्मीर में कई तरह के शरणार्थी हैं. इनमें पश्चिमी पाकिस्तानी शरणार्थी, पाक अधिकृत कश्मीर से आने वाले शरणार्थी और 1965-1971 के भारत-पाक युद्धों के कारण बने शरणार्थी. सभी अलग-अलग परिस्थितियों के कारण शरणार्थी बनने पर मजबूर हुए. इन सभी के पलायन की यहां परिस्थितियां अलग थीं तो वहीं समस्याएं भी पूरी तरह से अलग हैं.
एक पंक्ति में कहा जाए तो मुख्य तौर पर आम लोग शरणार्थी उन्हें ही मानते रहे हैं जो 1947 में देश विभाजन के समय अपने घरों से उजड़ कर इस ओर आने को मजबूर हुए. मगर, जम्मू कश्मीर के मामले में ऐसा नही है. जम्मू कश्मीर में केवल 1965 व 1971 के शरणार्थियों को ही शरणार्थी माना गया, जबकि ऐसे शरणार्थियों की संख्या बहुत कम है.
लेकिन, पाक अधिकृत कश्मीर से उजड़ कर जम्मू कश्मीर में आए शरणार्थियों और पश्चिमी पाकिस्तान के शरणार्थियों को जम्मू कश्मीर में शरणार्थी का दर्जा नहीं दिया गया है. जबकि इन शरणार्थियों की संख्या आज लाखों में है.
पाक अधिकृत कश्मीर के शरणार्थी
उल्लेखनीय है कि 1947-1948 में हुए क़बायली हमले की वजह से पाक अधिकृत कश्मीर से बड़ी संख्या में लोग उजड़ गए और पलायन करने पर मजबूर हुए. अधिकृत रूप से इन उजड़े परिवारों की पंजीकृत संख्या 36,384 परिवार है.
हालांकि, पाक अधिकृत कश्मीर से आए शरणार्थियों के नेता राजीव चूनी सहित कई लोग इस संख्या को सही नहीं मानते हैं.
विडम्बना यह रही है कि विभाजन के समय पाकिस्तान से आने वाले शरणार्थियों के लिए जो मानक देश के अन्य हिस्सों में तय किए गए, उनको जम्मू कश्मीर में लागू नहीं किया गया. इस वजह से पाक अधिकृत कश्मीर से आने वाले शरणार्थियों को कभी ‘शरणार्थी’ माना ही नहीं गया और न ही उन्हें ‘शरणार्थी’ का औपचारिक दर्जा दिया गया.
दरअसल, पाक अधिकृत कश्मीर को भारत हर तरह से आज भी अपना हिस्सा मानता है. इस वजह से पाक अधिकृत कश्मीर से पलायन करके आने वाले लोगों को शरणार्थी की जगह ‘विस्थापित’ माना जाता है. इन शरणार्थियों को जम्मू कश्मीर के ही है एक हिस्से से पलायन करके आए ‘विस्थापितों’ के रूप में देखा जाता है.
पाक अधिकृत कश्मीर के शरणार्थियों के नेता राजीव चूनी बताते हैं कि ‘सरकार यह मानती है कि पाक अधिकृत कश्मीर हर तरह से भारत का ही क्षेत्र है और देर-सवेर वह इलाक़ा वापस भारत में शामिल होगा, इसलिए वहां से आने वाले लोगों को ‘शरणार्थी’ का औपचारिक दर्जा नहीं दिया जा सकता.’ सरकार वर्तमान स्थिति को एक अस्थाई व्यवस्था मानती है इसलिए पाक अधिकृत कश्मीर से आए लोगों को औपचारिक रूप से ‘शरणार्थी’ स्वीकार नहीं किया जाता है.
औपचारिक रूप से शरणार्थी का दर्जा नहीं मिलने से शरणार्थियों को मिलने वाले कई लाभ तो पाक अधिकृत कश्मीर से आए लोगों को मिल नहीं सके हैं, साथ ही साथ ये लोग अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भी अपनी आवाज़ उठा नहीं पाते हैं.
शरणार्थी नेता राजीव चूनी बताते हैं कि अपने अधिकारों के संरक्षण के लिए उन्होंने संयुक्त राष्ट्र के शरणार्थी प्रकोष्ठ से भी संपर्क किया मगर संयुक्त राष्ट्र के प्रतिनिधि ने यह कह कर उनके आवेदन को स्वीकार नहीं किया कि जब भारत सरकार ही उन्हें ‘शरणार्थी’ नहीं मानती तो संयुक्त राष्ट्र कैसे उन्हें शरणार्थी मान सकता है.
राजीव चूनी कहते हैं कि शरणार्थी होने के बावजूद इंद्र कुमार गुजराल और मनमोहन सिंह तो देश के प्रधानमंत्री तक बन गए, मगर उन जैसे अन्य कई शरणार्थियों को जम्मू कश्मीर में आज तक मौलिक अधिकार तक नहीं मिल सका.
चूनी के अनुसार पाक अधिकृत कश्मीर से आए लोगों को जम्मू कश्मीर सरकार ने जम्मू के बक्शी नगर इलाक़े में जो क्वार्टर और प्लाट दिए थे, आज तक उनका मालिकाना हक़ नही दिया गया है. यह संपत्ति पाक अधिकृत कश्मीर से आए लोगों को पट्टे पर दी गई है.
पाक अधिकृत कश्मीर के मुज़्ज़फराबाद से आए एक विस्थापित 70 वर्षीय पूर्ण लाल सहगल अपना दर्द बताते हुए कहते हैं कि ‘पलायन के समय मैं दो साल का था, मगर आज तक किसी भी सरकार ने मेरे जैसे विस्थापितों की सुध नहीं ली और हमें हमारे वह अधिकार भी नहीं दिए जिनके हम हकदार थे.’
पश्चिमी पाकिस्तानी शरणार्थी
पाक अधिकृत कश्मीर से आए विस्थापितों से अलग पश्चिमी पाकिस्तानी शरणार्थियों का मामला और भी विकट है. पश्चिमी पाकिस्तानी शरणार्थियों को ‘शरणार्थी’ मानना तो दूर उन्हें तो जम्मू कश्मीर सरकार आज तक अपना नागरिक तक नहीं मानती. पश्चिमी पाकिस्तान से आए यह 25000 से अधिक शरणार्थी परिवार ऐसे हैं जो देश के नागरिक तो है पर इनके पास जम्मू कश्मीर की नागरिकता नहीं होने के कारण इन्हें जम्मू कश्मीर का स्थाई नागरिक नहीं माना जाता है.
यही नहीं पश्चिमी पाकिस्तान से आए यह शरणार्थी लोकसभा चुनाव में तो भाग ले सकते हैं पर विधानसभा चुनाव में वोट डालने का उन्हें कोई अधिकार नहीं है. जम्मू कश्मीर की स्थाई नागरिकता नहीं होने के कारण जम्मू कश्मीर में पश्चिमी पाकिस्तानी शरणार्थियों को राज्य सरकार की नौकरी नहीं मिल पाती, यही नहीं सरकारी स्कूलों व कालेजों में दाख़िला लेने में भी परेशानी का सामना करना पड़ता है. कई अन्य सुविधाएं भी इन शरणार्थियों को नहीं मिल पातीं. केंद्रीय नौकरियों में भी नौकरी हासिल करना इन लोगों के लिए आसान नहीं है. राज्यवार कोटा तय होने के बाद से पश्चिम पाकिस्तानी शरणार्थियों की मुश्किलें बढ़ गईं हैं. यही साफ नहीं है कि यह लोग किस राज्य के नागरिक हैं.
विभाजन के समय पश्चिम पाकिस्तानी शरणार्थी पाकिस्तान के पंजाब प्रांत विशेषकर सियालकोट और लाहौर के साथ लगते कुछ क्षेत्रों से पलायन कर जम्मू कश्मीर की सीमा में दाखिल हो गए थे. हालात को देखते हुए जम्मू कश्मीर के तत्कालीन शासक महाराजा हरी सिंह ने इन लोगों को मानवीय आधार पर जम्मू के सीमावर्ती इलाकों में शरण दी. पाकिस्तान के सियालकोट और लाहौर से आए इन परिवारों की संख्या 1947 में आधिकारिक रूप से 5,764 थी, जो आज बढ़ कर 25000 परिवारों के करीब हो चुकी है.
पश्चिम पाकिस्तानी शरणार्थियों के पास जम्मू कश्मीर का नागरिक प्रमाण पत्र (स्टेट सब्जेक्ट) नहीं होने के कारण उन्हें राज्य का नागरिक नहीं माना जाता है. दरअसल विभाजन से काफी पहले ही 20 अप्रैल 1927 को महाराजा ने जम्मू कश्मीर के तमाम नागरिको के लिए नागरिक प्रमाण पत्र (स्टेट सब्जेक्ट) आवश्यक कर दिया था. स्टेट सब्जेक्ट के रूप में प्रचलित इस प्रमाण पत्र के न होने के कारण कईं लोगों को विभाजन के समय जम्मू कश्मीर का नागरिक नही माना गया. हालांकि ऐसे लोग भी थे जो विभाजन से पैदा हुए हालात में जम्मू कश्मीर के नागरिक होने के साक्ष्य जुटा नहीं पाए.
उल्लेखनीय है कि जम्मू कश्मीर में सिर्फ उन्ही शरणार्थियों को जम्मू कश्मीर का नागरिक माना गया जो पाक अधिकृत कश्मीर से पलायन करके आए थे और जिनके पास जम्मू कश्मीर का नागरिक होने का प्रमाण पत्र (स्टेट सब्जेक्ट) था.
(लेखक जम्मू कश्मीर के वरिष्ठ पत्रकार हैं.)