मुजफ्फरनगर: उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर से करीब 20 किलोमीटर दूर कांवड़ यात्रा मार्ग पर स्थित लोकेश भारती नामक ढाबे ने पिछले हफ्ते चार मुस्लिम कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया.
हिंदू भगवान शिव के भक्तों द्वारा की जाने वाली वार्षिक तीर्थयात्रा कांवड़ यात्रा सोमवार से शुरू होने वाली है. यात्रा के हिस्से के रूप में, भक्त गंगा से जल लाते हैं और नंगे पैर चलकर विभिन्न शिव मंदिरों में शिवलिंग पर चढ़ाते हैं.
इस हफ्ते की शुरुआत में मुजफ्फरनगर पुलिस ने यात्रा शुरू होने से पहले मार्ग पर स्थित दुकानों और होटलों को मालिकों के नाम लिखने का निर्देश देते हुए एक आदेश जारी किया, जिससे क्षेत्र के सैकड़ों ढाबा मालिकों में बेचैनी बढ़ गई जिसने विपक्ष को भी मामले को भुनाने का मौका दे दिया. गुरुवार को मालिकों से अपने नाम “स्वेच्छा से” लिखवाने के लिए एक नई सलाह जारी की गई, लेकिन बेचैनी बनी हुई है.
साक्षी टूरिस्ट ढाबा के मालिक भारती का कहना है कि पुलिस के निर्देश के समय ने संदेह पैदा किया है कि एक खास समुदाय को निशाना बनाया जा रहा है. उन्होंने कहा कि अगर मालिकों के नाम लिखने का यह आदेश पहले आया होता, तो कोई नाराज़गी नहीं होती.
51-वर्षीय भारती ने बताया कि तकरीबन 10 दिन पहले कुछ पुलिसकर्मी ढाबे पर आए थे और सावन के महीने में कांवड़ यात्रा के लिए सभी मुस्लिम कर्मचारियों को हटाने के लिए कहा था.
भारती ने दिप्रिंट को बताया, “चार कर्मचारियों को नौकरी से निकालना मेरे लिए बहुत मुश्किल था. वो सभी सालों से यहां काम कर रहे थे और पिछले सालों में कांवड़ यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं की मदद भी की थी. नौशाद, मुंशी, वकार और सफाकत का व्यवहार बहुत अच्छा था. उनमें से तीन खतौली (उत्तर प्रदेश) से थे, एक बिहार से था.”
भारती 2012 से अपना ढाबा चला रहे हैं. उनका कहना है कि यहां के ज़्यादातर ढाबे ठेके पर चलते हैं और ज़्यादातर ठेकेदार मुसलमान हैं. उन्होंने कहा, “हिंदू और मुसलमान मिलकर यहां काम करते रहे हैं. कभी कोई समस्या नहीं आई. पुलिस का यह आदेश हिंदुओं और मुसलमानों के बीच दरार पैदा करेगा.”
फिलहाल भारती ने कर्मचारियों की कमी को पूरा करने के लिए नए हिंदू कर्मचारियों को काम पर रखा है, लेकिन उनका दावा है कि यात्रा खत्म होने के बाद वे निकाले गए कर्मचारियों को फिर से काम पर रखेंगे.
उन्होंने कहा, “सबसे बड़ी समस्या यह है कि ये लोग 20-25 दिन घर पर बैठे रहेंगे. उनकी आजीविका इसी काम पर निर्भर थी.”
पुलिस प्रशासन के निर्देश पर भारती ने अब ढाबे के बाहर मालिक का नाम लिख दिया है.
दिप्रिंट ने जब स्थानीय पुलिस से संपर्क किया तो उन्होंने आदेश पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.
हालांकि, मुजफ्फरनगर के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया कि पारदर्शिता के लिए ऐसा फैसला लिया गया है, ताकि कांवड़ यात्रियों को किसी तरह की “असुविधा” का सामना न करना पड़े.
उन्होंने कहा कि अब इसे स्वैच्छिक बना दिया गया है.
पिछले साल दिप्रिंट ने रिपोर्ट की थी कि यूपी पुलिस ने बिना किसी लिखित आदेश के कांवड़ यात्रा के लिए संभल में मुस्लिम रेस्टोरेंट बंद कर दिए थे.
जिला प्रशासन के एक अधिकारी द्वारा दिए गए अनुमान के अनुसार, हर साल करीब 4 करोड़ कांवड़िए हरिद्वार से कांवड़ लेकर आते हैं और इनमें से 2.5 करोड़ से ज्यादा कांवड़िए मुजफ्फरनगर से गुज़रते हुए हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों में जाते हैं.
मुजफ्फरनगर के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक अभिषेक सिंह ने मीडियाकर्मियों से कहा, “कांवड़ यात्रा के दौरान कानून-व्यवस्था बनाए रखना ज़रूरी है. ऐसे में किसी तरह की उलझन से बचने के लिए होटल संचालकों से कहा गया है कि वे अपने नाम की पट्टिका लगाएं. कांवड़िये कुछ खाद्य पदार्थों से परहेज करते हैं.”
पुलिस के बयान में कहा गया है, “इस आदेश का उद्देश्य किसी भी धार्मिक आधार पर भेदभाव करना नहीं है, बल्कि मुजफ्फरनगर से गुज़रने वाले श्रद्धालुओं की सुविधा सुनिश्चित करना, आरोपों और कानून व्यवस्था की स्थिति से बचना है.”
मिली-जुली प्रतिक्रियाएं
मुजफ्फरनगर और हरिद्वार के बीच सड़क किनारे स्थित अनगिनत ढाबों और दुकानों के मालिकों और प्रोपराइटरों के बीच यह आदेश चर्चा का विषय बना हुआ है. कुछ लोग इसे सही बता रहे हैं, तो कुछ ने इसकी आलोचना भी की है.
शिवा पंजाबी टूरिस्ट ढाबा चलाने वाले राजू ने बताया कि सरकार लोगों के कल्याण के लिए काम करती है.
उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “हमें नाम लिखने में कोई दिक्कत नहीं है. हमें अपना नाम खुद लिखना है. अगर सरकार यही चाहती है, तो हमें कोई दिक्कत नहीं है.”
ढाबा मालिकों ने इसका पालन करना शुरू कर दिया है. कई ढाबों के डिस्प्ले बोर्ड पर मालिकों के नाम लिखे गए हैं, जिसके लिए उन्हें 500-1,000 रुपये खर्च करने पड़े हैं. हालांकि, कई छोटी दुकानों ने अभी तक ऐसा नहीं किया है.
प्रवीण कुमार ने दिप्रिंट को बताया कि पुलिस करीब 10 दिन पहले उनके ढाबे पर आई थी और उनसे सभी कर्मचारियों के नाम भी लिखने को कहा था.
कुमार ने कहा, “उन्होंने हमारे सभी कर्मचारियों के नाम नोट कर लिए. उन्होंने पेटीएम पर मेरा नाम भी चेक किया. पुलिस के ऐसा करने के कहने के एक हफ्ते के अंदर ही हमने सभी 10 कर्मचारियों के नाम के पोस्टर बाहर लगा दिए.”
कुमार ने सरकार के फैसले का स्वागत किया है. उन्होंने कहा, “यहां हर कोई पैसे कमाने के लिए सड़क किनारे बैठा है. कोई विवाद नहीं खड़ा करना चाहता. हमें जो कहा गया, हमने वही किया. हम इसे गलत नहीं मानते हैं.”
कांवड़िए यात्रा के लिए निकल चुके हैं. रास्ते में उन्हें देखा जा सकता है.
गोमुख जा रहे कांवड़िए सड़क किनारे ढाबे पर नाश्ता कर रहे अरुण ने कहा, “सरकार का फैसला गलत है. हम 15 साल से यात्रा में हिस्सा ले रहे हैं, लेकिन ऐसा फैसला कभी नहीं देखा. इससे दो समुदाय बंट जाएंगे. हमें कोई दिक्कत नहीं है कि दुकान हिंदू की है या मुसलमान की. कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए.”
उन्होंने आगे कहा, “हमने रास्ते में यह भी देखा कि लोगों ने दुकानों पर नाम लिख रखे हैं. ऐसा पहली बार हो रहा है. यात्रा के दौरान मुसलमान भी हमें सम्मान देते हैं. हमने कई बार उनके ढाबों पर खाना खाया है.”
राजनीतिक आक्रोश
विपक्ष ने मुजफ्फरनगर पुलिस के आदेश पर सवाल उठाए हैं.
समाजवादी पार्टी (सपा) के प्रमुख अखिलेश यादव ने सोशल मीडिया पर इस मामले में अदालत से हस्तक्षेप करने की मांग की. उन्होंने कहा कि ऐसे आदेशों को पूरी तरह से खारिज किया जाना चाहिए.
मुज़फ़्फ़रनगर पुलिस ने जनता के भाईचारे और विपक्ष के दबाव में आकर आख़िरकार होटल, फल, ठेलोंवालों को अपना नाम लिखकर प्रदर्शित करने के प्रशासनिक आदेश को स्वैच्छिक बनाकर जो अपनी पीठ थपथपायी है, उतने से ही अमन-औ-चैन पसंद करनेवाली जनता माननेवाली नहीं है। ऐसे आदेश पूरी तरह से ख़ारिज होने…
— Akhilesh Yadav (@yadavakhilesh) July 18, 2024
भाजपा के मुजफ्फरनगर जिला अध्यक्ष सुधीर सैनी ने कहा कि 2017 में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली सरकार के सत्ता में आने के बाद से हर साल कांवड़ यात्रा सौहार्दपूर्ण तरीके से आयोजित की जाती रही है.
सैनी ने दिप्रिंट से कहा, “जो लोग तुष्टीकरण करके सत्ता पाना चाहते हैं, वे इस फैसले का विरोध कर रहे हैं. सिर्फ मुसलमानों को ही नहीं, सभी को अपना नाम लिखने के लिए कहा गया है. कांवड़ एक धार्मिक यात्रा है. किसी को भी दुकान बंद करने के लिए नहीं कहा गया है. सिर्फ इतना कहा गया है कि सभी को अपनी पहचान सार्वजनिक करनी होगी.”
यहां तक कि वरिष्ठ भाजपा नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने भी एक्स पर एक पोस्ट में टिप्पणी की, “कुछ अति उत्साही अधिकारियों के आदेश जल्दबाजी और गलत हैं. इससे छुआछूत की बीमारी को बढ़ावा मिल सकता है. आस्था का सम्मान किया जाना चाहिए, लेकिन छुआछूत को संरक्षण नहीं दिया जाना चाहिए.”
कुछ अति-उत्साही अधिकारियों के आदेश हड़बड़ी में गडबड़ी वाली ..अस्पृश्यता की बीमारी को बढ़ावा दे सकते हैं…आस्था का सम्मान होना ही चाहिए,पर अस्पृश्यता का संरक्षण नहीं होना चाहिए…."जनम जात मत पूछिए, का जात अरु पात।
रैदास पूत सब प्रभु के,कोए नहिं जात कुजात।।🙏🙏🙏— Mukhtar Abbas Naqvi (@naqvimukhtar) July 18, 2024
भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में शामिल जनता दल (यूनाइटेड) के प्रवक्ता के.सी. त्यागी ने इस आदेश पर आपत्ति जताते हुए सरकार से इस पर पुनर्विचार करने को कहा.
मुजफ्फरनगर से समाजवादी पार्टी के सांसद हरेंद्र मलिक ने कहा, “प्रशासन हिंदू और मुसलमानों को बांटना चाहता है. ऐसा फैसला पहले कभी नहीं लिया गया. ऐसा पहली बार हो रहा है.”
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने एक्स पर लिखा, “अब हर खाने-पीने की दुकान या ठेले वाले को अपना नाम बोर्ड पर लिखना होगा, ताकि कोई कांवड़िए गलती से भी मुस्लिम दुकान से कुछ न खरीद ले. इसे दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद कहा जाता था और हिटलर के जर्मनी में इसे जुडेनबॉयकॉट कहा जाता था.”
गीतकार जावेद अख्तर ने भी इस आदेश की तुलना नाजी जर्मन नीतियों से की.
उन्होंने एक्स पर लिखा, “नाजी जर्मनी में वे केवल खास दुकानों और घरों पर ही निशान लगाते थे.”
(इस ग्राउंड रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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