नई दिल्ली: विपक्षी दलों के नेताओं ने गुरुवार को स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के भाषण को लेकर आरोप लगाया कि वह लोगों को एकजुट करने, प्रेरित करने और राष्ट्र के महत्वपूर्ण मुद्दों को संबोधित करने में विफल रहे.
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री मोदी ने यह कह कर संविधान निर्माता बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर का घोर अपमान किया है कि आज़ादी के बाद से अब तक देश में ‘‘सांप्रदायिक नागरिक संहिता’’ है.
रमेश ने दावा किया कि आंबेडकर, हिंदू पर्सनल लॉ में जिन सुधारों के बड़े पैरोकार थे, उनका राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनसंघ ने पुरजोर विरोध किया था.
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) के महासचिव डी राजा ने कहा कि भारत के 78वें स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री के भाषण में लोगों को एकजुट करने और प्रेरित करने की कोई बात शामिल नहीं थी.
राजा ने कहा, ‘‘उन्होंने जो कुछ भी बोला, वह आरएसएस के भयावह, विभाजनकारी एजेंडे के अनुरूप है.’’
उन्होंने आरोप लगाया, ‘‘प्रधानमंत्री 2047 के बारे में बोलते हैं, लेकिन वह देश की बहुलता और विविधता के मुद्दों को संबोधित करने में विफल रहे. वह देश पर एकरूपता थोपने की कोशिश कर रहे हैं.’’
राष्ट्रीय जनता दल के नेता मनोज झा ने कहा कि प्रधानमंत्री को इस बात का एहसास नहीं है कि देश में केवल एक ही प्रधानमंत्री है.
उन्होंने कहा कि जिन लोगों ने विपक्ष को वोट दिया, उनका कोई अलग प्रधानमंत्री नहीं है.
उन्होंने कहा, ‘‘सबसे महत्वपूर्ण और चिंताजनक बात यह है कि 11वीं बार भी नरेन्द्र मोदी यह समझने में विफल रहे हैं कि वह देश के प्रधानमंत्री हैं.’’
झा ने कहा, ‘‘आज उन्होंने धर्मनिरपेक्ष नागरिक संहिता के बारे में बात की. धर्मनिरपेक्षता एक प्रक्रिया है, इसे आत्मसात करना होगा. हर बार जब हम उम्मीद करते हैं कि प्रधानमंत्री संकीर्ण मानसिकता छोड़ देंगे और व्यापक सोच रखेंगे, तो वह निराश करते हैं.’’
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गुरुवार को स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से अपने संबोधन में देश में धर्मनिरपेक्ष नागरिक संहिता (एससीसी) की जोरदार पैरवी करते हुए भारत को ‘विकसित राष्ट्र’ बनाने का संकल्प व ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ का सपना साकार करने का आह्वान किया.
उन्होंने कहा, ‘‘देश का एक बहुत बड़ा वर्ग मानता है कि जिस नागरिक संहिता को लेकर हम लोग जी रहे हैं, वह सचमुच में साम्प्रदायिक और भेदभाव करने वाली संहिता है. मैं चाहता हूं कि इस पर देश में गंभीर चर्चा हो और हर कोई अपने विचार लेकर आए.’’
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