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Friday, 22 November, 2024
होमदेशलैब-डायमंड बूम ने सूरत को बांट दिया, 'अगर सबके पास कोहिनूर होता, तो क्या वह अब भी कीमती होता?'

लैब-डायमंड बूम ने सूरत को बांट दिया, ‘अगर सबके पास कोहिनूर होता, तो क्या वह अब भी कीमती होता?’

भारत ने वित्तीय वर्ष 2017-18 में 216.07 मिलियन डॉलर मूल्य के लैब निर्मित हीरों का निर्यात किया. नवीनतम संख्या – अप्रैल 2022 और फरवरी 2023 के बीच – 1568.55 मिलियन डॉलर है.

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भारत के सबसे पुराने हीरे के शहर सूरत में एक नए तरह का हीरा चलन में आ रहा है. और यह सारा खेल बदल के रख देगा.

प्रयोगशाला में विकसित हीरों को डिजाइन करने और काटने में उतने ही घंटे और मजदूह लगते हैं, लेकिन यह खनन किए गए हीरों की कीमत से बहुत सस्ता है, सिर्फ उसका दसवां हिस्सा. उद्योग पुराने और नए के बीच, जिसका कीमती होना सिद्ध है जिसकी कीमत अभी सिद्ध होनी है उसके बीच विभाजित है.

और भारत प्रयोगशाला में तैयार किए गए हीरों के बारे में वैश्विक स्तर पर काफी उत्साहित और मांग को लेकर पूरी तरह तैयार है. यह संयुक्त राज्य अमेरिका, संयुक्त अरब अमीरात और चीन को निर्यात करने वाला बड़ा मार्केट लीडर है. उद्योग 2018 में बढ़ना शुरू हुआ, और तब से सात गुना बढ़ गया है. कोविड-19 महामारी के कारण आई आर्थिक मंदी की वजह से भारत ने 2021-22 में 1.3 बिलियन डॉलर के लैब-विकसित हीरे भेजे, जो 2020-21 में 636.44 मिलियन डॉलर के व्यापार की तुलना में 106.46 प्रतिशत की वृद्धि थी.

सूरत स्थित ग्रीनलैब डायमंड्स के निदेशक संकेत पटेल ने समझाया, “जब हम प्रयोगशाला में विकसित हीरे के बारे में बात करते हैं, तो हम भविष्य के हीरे के बारे में बात कर रहे हैं.” .“लोग खर्च करना चाहते हैं, लेकिन वे बुद्धिमानी से खर्च करना चाहते हैं; प्रयोगशाला में विकसित हीरा इसका एक विकल्प है.’ “प्राकृतिक मोती हुआ करते थे और फिर कल्चर्ड मोती [लेकिन] अभी, कोई भी वास्तव में इस बात की परवाह नहीं करता है कि नेचुरल या कल्चर्ड मोती क्या है क्योंकि वे दोनों समान हैं – भौतिक रूप से भी और देखने में भी.”

A tray with lab-grown diamonds made at Greenlab Diamonds | Photo: Monami Gogoi | ThePrint
ग्रीनलैब डायमंड्स में बने प्रयोगशाला में विकसित हीरे के साथ एक ट्रे | फोटो: मोनामी गोगोई | दिप्रिंट

जबकि एक “लड़की का सबसे अच्छा दोस्त” होने का पॉप कल्चर अभी भी हावी है, खनन किए गए हीरे का ‘बहुत मुश्किल से मिलना’  अब अतीत की बात हो सकती है. पश्चिम में प्रयोगशाला में उगाए गए मांस के फैशन में आ जाने की तरह, नैतिक उपभोक्ता व्यवहार भी प्रयोगशाला में बने हीरे को बाजार में बढ़ावा देने का एक प्रमुख कारण है.

स्पेशली डिजाइन किए हीरे के लिए, मार्केटिंग हुक लाइन्स पहले से कुछ अलग होंगी. जैसे पहले की रोमांटिक लाइन्स ‘हमेशा के लिए’ की जगह – ‘मुझे पता है कि मैं प्रभाव डाल सकता हूं’ और ‘हीरा जो बना है, खनन से नहीं’.

सूरत के चहल-पहल भरे क्षितिज, हलचल भरी सड़कों और लाखों की भीड़ से दूर गुजरात हीरा बोर्स स्थित है, जो एक विशाल ज्वैलरी पार्क है, जहां कंपनियां शहर के सबसे महत्वपूर्ण हीरे का कारोबार करती हैं.

इसके खजूर के पेड़-पंक्तिबद्ध परिसर के अंदर हरे-भरे परिदृश्य आगंतुकों को यह सोचने में लगभग धोखा दे सकते हैं कि उन्होंने एक गोल्फ कोर्स में प्रवेश किया है. डायमंड मनी अपने शानदार बुनियादी ढांचे के माध्यम से चकाचौंध करता है – सौर पैनलों से सुसज्जित अत्याधुनिक इमारतें, गर्मियों में फूलों से खिले हरे-भरे बगीचे, और ‘कोई फिश’ और पानी के लिली से भरे पूल.


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हालांकि, एक ठोस बात इस हीरे को लेकर हीरा कंपनियों को डिवाइड करती है. एक ऐसा विभाजन जो किसी खास क्षेत्र तक ही सीमित नहीं है बल्कि हर उस क्षेत्र को छूता है जहां-जहां हीरा है. ऐसे ही हीरा पैदा हुआ है. सूरत में, हीरा निर्माण का वैश्विक केंद्र, कंपनियों का एक बॉलपार्क – 5 बड़ी और 20 छोटी – सिंथेटिक हीरे बनाने के व्यवसाय में हैं, जिनमें से अधिकांश विदेशों में निर्यात किए जाते हैं.

A view of the Greenlab Diamonds compound located at Gujarat Hira Bourse in Surat | Photo: Monami Gogoi | ThePrint
सूरत के हीरा बोर्स में स्थित ग्रीनलैब डायमंड्स परिसर का एक दृश्य | फोटो: मोनामी गोगोई | दिप्रिंट

1950 के दशक में उनके सामान्य जन्म से, प्रयोगशाला में विकसित हीरे बड़ी घड़ी और आभूषण कंपनियों द्वारा अपनाए जाने लगे हैं. इसमें डी बीयर्स भी शामिल है, जो प्रतिष्ठित ज्वैलरी ब्रांड है, जो हमेशा से लोकप्रिय स्लोगन, ‘डायमंड्स इज़ फॉरएवर’ को तैयार करने के लिए जाना जाता है. 2018 में, कंपनी ने अपने निर्मित हीरे के लेबल लाइटबॉक्स के माध्यम से बढ़ते हुए स्थान में प्रवेश किया. भारत से जो आंकड़े सामने आ रहे हैं वो भी इस तेजी के सबूत हैं. जेम ज्वैलरी एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल (GJEPC) – आभूषण निर्यात पर नज़र रखने वाली उद्योग की सरकार समर्थित सर्वोच्च संस्था – के अनुसार भारत ने वित्तीय वर्ष 2017-18 में $216.07 मिलियन मूल्य के लैब-विकसित हीरे का निर्यात किया. नवीनतम संख्या (अप्रैल 2022 से फरवरी 2023 के बीच) $1.5 बिलियन थी, जो कि पिछले छह वर्षों में सात गुना वृद्धि को दिखाती है.

भविष्य के हीरे

यह वैज्ञानिक रूप से सिद्ध हो चुका है कि खनन किए गए और प्रयोगशाला में विकसित हीरे के बीच का अंतर न के बराबर है, लेकिन ओरिजिनल ‘अति सुंदर’ और ‘मुश्किल से मिलने वाले’ हीरे की तुलना में लैब हीरे की कीमत दसवें हिस्से के बराबर है. बहरहाल, उत्पादकों का कहना है कि यह इन रत्नों के लिए सिर्फ शुरुआती चरण है और इसकी कम कीमत ही इसकी ताकत है.

पिछले साल, कंपनी ने 27.27 कैरेट का एक मार्कीज़ स्टेप-कट हीरा बनाया, इसे दुनिया का सबसे बड़ा लैब-ग्रो पॉलिश किया हुआ हीरा कहा. ग्रीनलैब इस क्षेत्र में फर्स्ट मूवर्स में से एक था, जो खनन किए हुए हीरे के कारोबार में अपने पांच दशक के अनुभव के कारण आया था. पटेल कहते हैं कि उन्होंने लैब निर्मित स्टोन्स की तरफ बढ़ने का फैसला किया क्योंकि उन्हें विश्वास था कि उपभोक् जरूर इस तरफ खिंचेंगे.

इसने 2016 में लैब में तैयार किए गए हीरों को खरीदना शुरू किया और 2018 की शुरुआत में इसे खुद के रिएक्टर के जरिए ग्रो और कल्टीवेट करने लगे.

“हमने ग्रीनलैब में आठ रिएक्टरों के साथ शुरुआत की, और अब हम 1,250 रिएक्टरों पर बैठे हैं. 2018 में, हम मोटे तौर पर एक महीने में लगभग 6,000-7,000 कैरेट के कच्चे हीरे का उत्पादन कर रहे थे, और अब हम 2,60,000 कैरेट कर रहे हैं. यही हमारी ग्रोथ है. जाहिर है, यह बिक रहा है [और] इसलिए हम बढ़ रहे हैं.” वह कहते हैं, अमेरिका को निर्यात की जाने वाली 10 में से सात अंगूठियां, प्रयोगशाला में विकसित सॉलिटेयर से मिलकर बनती हैं.

घर के करीब, तस्वीर थोड़ी अलग है. पटेल का कहना है कि भारतीय बाजार में पारंपरिक हीरों की तुलना में कल्टीवेटेड हीरों का हिस्सा “बहुत, बहुत, बहुत छोटा ” है.

वे कहते हैं, लोग बदलाव के साथ आगे बढ़ रहे हैं. वे इसे [प्रयोगशाला में विकसित हीरे] स्वीकार करेंगे लेकिन बहुत धीरे-धीरे. यह तीव्र गति से नहीं होने वाला है. अमेरिका हमेशा पूरी दुनिया के लिए ट्रेंडसेटर रहा है, इसलिए अमेरिका छह साल में जो करता है वह यूरोप, चीन और फिर भारत तक पहुंच जाएगा. इसलिए, मुझे लगता है कि यह बढ़ना शुरू हो गया है,”.

हालांकि, अब उद्योग के लिए एक चिंता का विषय है. चीन लैब में तैयार अपने हीरों को भारत में डंप कर रहा है, जिससे कीमतों में गिरावट आ रही है. पटेल कहते हैं, “कीमत वास्तव में बहुत तेजी से गिर गई, लेकिन फिर से, दूसरी तरफ, खपत बहुत तेजी से बढ़ी. लेकिन हुआ यह कि भारी मात्रा में खरीददारी करने वाले खुदरा विक्रेता और थोक व्यापारी इसको लेकर क्रेजी हो गए हैं.”

भारत में बढ़ता हीरों का बाज़ार

पटेल भाई-बहनों में बड़े स्मित जीजेईपीसी के प्रयोगशाला में विकसित हीरे के पैनल के संयोजक हैं. उद्योग विस्तार पर अधिक रोशनी डालते हुए, स्मित ने टिप्पणी की कि हीरे को काटने और चमकाने का अनुभव इंजीनियर्ड डायमंड के उत्पादन में काफी लाभ पहुंचाता है – विशेष रूप से सूरत जैसे शहर में, जहां ऐसे कारीगरों की कोई कमी नहीं है.

“जो लोग लैब-ग्रोन में शिफ्ट हो गए थे, उनके पास पहले से ही अनुभव था,” वह बताते हैं कि, लैब-ग्रोन सॉलिटेयर में शिफ्ट होने से पहले उनकी कंपनी ने कैसे 55 साल तक कैसे कटिंग एंड पॉलिशिंग का काम किया था.

जबकि कुछ नए चेहरे भी मैदान में आ रहे हैं, यह मौजूदा कंपनियों द्वारा अपनाई जाने वाला जनरल रिक्रूटमेंट प्रोसेस है. “अधिकांश लोग हीरा उद्योग में पहले से ही अनुभवी हैं और शिफ्ट कर रहे हैं क्योंकि उन्हें इसमें क्षमता दिखती है.”

विभिन्न देश हीरे के उत्पादन के लिए विभिन्न तकनीकों का उपयोग करते हैं, लेकिन स्मित का कहना है कि उन सभी में सबसे उन्नत – रासायनिक वाष्प जमाव (सीवीडी) – का उपयोग भारत द्वारा किया जा रहा है.

उन्होंने कहा, “भारत आज सीवीडी [हीरे] का सबसे बड़ा उत्पादक है,”.

लैब में बने रत्न की वैश्विक स्वीकृति के अधिक डेटा और स्टोरीज़ को शेयर करते हुए, उन्होंने 2020 में यूएस में खुदरा स्टोरों में 33 प्रतिशत सीवीडी डिस्प्ले करने के बारे में बात की – यह आंकड़ा दिसंबर 2022 तक बढ़कर 77.8 प्रतिशत हो गया.

स्मित ने इन कल्टीवेटेड रत्नों के ‘प्राइस-फैक्टर’ पर जोर देते हुए कहा, “हम अब भारत में एक समान पैटर्न देखते हैं. बहुत सारे क्षेत्र लैब में बने हीरों के लिए खुलने लगे हैं. बहुत सी जानकारी इसके बारे में पता चली है [और] खुदरा विक्रेता इस प्रोडक्ट को स्वीकार कर रहे हैं. इसलिए, मेरा मानना है कि आने वाले भविष्य में भारत के पास एक जैसी ट्रैजेक्टरी होगी,”.

कुछ स्वीकार करते हैं, कुछ विरोध करते हैं

खनन किए हुए हीरे का व्यापार करने वाली हीरा कंपनियों के मालिक इस बात से इनकार नहीं करते हैं जिस तरह से सीवीडी बाजार वैश्विक स्तर पर बढ़ रहा है. लेकिन इस नए हीरे की स्वीकृति हीरा उद्योग पिरामिड में स्पष्ट रूप से भिन्न है. जबकि हीरे की आपूर्ति श्रृंखला में निचले स्तर के लोग इंजीनियर्ड वेरिएंट का जमकर विरोध करते हैं, एक्सपोर्ट-क्वालिटी वाले स्टोन्स का सौदा करने वाले बड़े व्यापारी बेफिक्र हैं.

बड़े प्राकृतिक हीरों का व्यापार करने वाली एक कंपनी के मालिक कहते हैं, ‘लैब में तैयार किए गए हीरों की कीमतें कम हुई हैं, लेकिन यह एक नया उद्योग होगा क्योंकि ग्राहक और टारगेटेड उपयोगकर्ता अलग-अलग हैं. यदि आप 2 लाख रुपये के हीरे और सीवीडी पहनना चाहते हैं, तो आपको [वे] 25,000 रुपये में मिल रहे हैं, 100 ग्राहकों में से केवल 10 ही 2 लाख रुपये से 25,000 रुपये [हीरे] लेंगे. नब्बे लोग रहेंगे क्योंकि वे असली हीरा पहनना चाहेंगे,”.

वह प्रोडक्ट के लिए उभर रहे एक नए कस्टमर बेल्ट की उम्मीद करते हैं, और भले ही कुछ कॉमन ग्राहक हो सकते हैं, लेकिन इससे “मूल हीरा उद्योग को खतरे” की संभावना नहीं है.

हालांकि, दृष्टिकोण स्मित की समझ के विपरीत है. प्रारंभ में, जीजेईपीसी के संयोजक ने माना कि सीवीडी केवल उन लोगों द्वारा खरीदे जाएंगे जो खनन किए गए हीरे का खर्च नहीं उठा सकते.

स्मित कहते हैं, “लेकिन यह सच नहीं है. जो लोग खनन किए गए हीरे पहन रहे हैं वे भी प्रयोगशाला में बने हीरों की तरफ खिंच रहे हैं,” वह कहते हैं कि जो ग्राहक “वर्षों से हीरा पहन रहे हैं” वे रत्नों की ‘समझ’ के कारण बदलाव को स्वीकार करने वाले पहले व्यक्ति हैं. “एक बार जब वे इस उत्पाद को देखते हैं, तो वे देखते हैं कि इसमें समान गुण हैं, और वे इसकी तरफ मुड़ जाते हैं.”

लेकिन जैसे-जैसे कोई हीरा व्यवसाय के हायरार्की में नीचे आता है, वैसे-वैसे आरामदेह व्यवहार आक्रामक रवैये में बदल जाता है. 40 श्रमिकों को रोजगार देने वाली एक छोटी हीरा इकाई के मालिक जतिन पटेल सीवीडी के प्रति काफी विरोध का भाव रखते हैं.

“प्राकृतिक प्राकृतिक है. कोई तुलना नहीं है, ”वह मुस्कुराते हुए कहते हैं.

इंजीनियर्ड हीरे की कीमतों में भारी गिरावट ने उन्हें और अधिक आशंकित कर दिया है. “यदि सीवीडी की कीमत 100 रुपये से कम हो जाती है, तो यह उद्योग जीवित नहीं रहेगा.”

बढ़ता असंतोष

लेकिन सीवीडी को लेकर विपरीत भाव पैदा होते हैं जब हम सीढ़ी के आखिरी पायदान – श्रमिकों – की ओर बढ़ते हैं.

सुनील राठौर एक ऊबड़-खाबड़ दिखने वाली इमारत के गंदे फर्श से थर्ड-पार्टी पॉलिश और कटिंग सेवाएं प्रदान करते हैं. यह ग्रीनलैब्स के वातानुकूलित और हाई-टेक वातावरण से बहुत दूर है, जहां, संकेत पटेल के अनुसार, श्रमिकों को $2,500- $45,00 प्रति माह के बीच कुछ भी भुगतान किया जाता है.

Workers planning the shape of a diamond using special software at Greenlab Diamonds in Surat | Photo: Monami Gogoi | ThePrint
सूरत में ग्रीनलैब डायमंड्स में विशेष सॉफ्टवेयर का उपयोग करके हीरे के आकार की योजना बना रहे श्रमिक फोटो: मोनामी गोगोई | दिप्रिंट

राठौड़ की वर्कशॉप में, कारीगरों ने पंखे के नीचे पसीना बहाया जो सूरत की चिलचिलाती गर्मी को शायद ही कम कर सके. एयर-कंडीशनिंग के आराम केवल मालिक और कंप्यूटर पर हीरे के आकार की योजना बनाने वालों के लिए ही रिज़र्व्ड हैं.

श्रम लागत में गिरावट की बात करते हुए वह कहते हैं कि डॉलर की जगह वह रुपए में कारोबार की बात करते हैं. असली हीरे को चमकाने के लिए मजदूरों को 50 रुपये मिलते हैं. प्रयोगशाला में बने हीरे को चमकाने के लिए, एक कर्मचारी को 35-40 रुपये मिलते हैं,”

राठौर कहते हैं कि मोदी सरकार द्वारा इस साल के बजट में सीमा शुल्क में ढील के साथ बड़ी सब्सिडी की घोषणा के बाद लैब में डेवलेप डायमंड सेक्टर को मिली खुशी से श्रमिक संतुष्ट नहीं हो सके.

“सरकार जो सब्सिडी देती है, वह बड़े व्यापारियों, सेठों (अमीर व्यापारियों) के लिए मददगार है जो [हीरे] निर्यात करते हैं. उनके विचार और हमारे विचार अलग-अलग हैं. हम वर्कर हैं. लैब में विकसित हीरा उद्योग में मजदूरों का कोई भविष्य नहीं है. जिस व्यापारी के लिए मैं ये हीरे बनाता हूं, उसने मुझे बताया कि एक कैरेट का लैब में बना हीरा जो पहले 20,000 रुपये में बेचा जाता था, वह घटकर 5,000 रुपये रह गया है.

हालांकि वर्कर्स के पास ज्यादा विकल्प नहीं हैं. जब तक इससे पैसे मिल रहे हैं, वे किसी भी कच्चे हीरे को चमकाएंगे.

लेकिन जब मंदी का असर हीरा उद्योग पर पड़ता है तो श्रमिक ही सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं. गुजरात डायमंड वर्कर्स यूनियन के उपाध्यक्ष भवेश टांक लैब में बने हीरों के सख्त खिलाफ हैं क्योंकि श्रमिकों को समान काम के लिए भी कम वेतन मिलता है.

“हम मानते हैं कि लैब डायमंड्स ने रोजगार दरों में थोड़ा सुधार किया है, लेकिन अगर हम पूरी तरह से हीरा उद्योग की बात करें, तो उनकी वजह से बहुत सारी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं. यदि उत्पादन में निरन्तर वृद्धि होती है, तो उस वस्तु का मूल्य क्या होगा? अगर दुनिया के हर देश के पास कोहिनूर हीरा हो, तो क्या उसकी कोई कीमत होगी?”

(संपादनः शिव पाण्डेय)
(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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