अमृतसर/कुरुक्षेत्र: एक बेहतर ज़िंदगी की तलाश में घने जंगलों, पहाड़ों और खतरनाक नदियों से होकर महीनों तक यात्रा करने वाले इन लोगों का अमेरिका जाने का सपना 5 फरवरी को उस वक्त अचानक टूट गया, जब अमेरिका से निकाले गए जंजीरों में जकड़े 104 अवैध भारतीय प्रवासियों को लेकर सैन्य विमान 36 घंटे की उड़ान के बाद अमृतसर में उतरा.
उन्होंने तथाकथित अवैध “डंकी रूट” — पर महीनों बिताए थे — जो उन्हें कोलंबिया और पनामा से कोस्टा रिका, निकारागुआ, ग्वाटेमाला और मैक्सिको के रास्ते से कैलिफोर्निया बॉर्डर पर पहुंचने से पहले महाद्वीपों में ले गया, जहां वह सभी लगभग तुरंत पकड़े गए.
यह एक खतरनाक यात्रा थी — न केवल उन्हें कठोर इलाकों से गुज़रना पड़ा, बल्कि उन्हें माफियाओं द्वारा जबरन वसूली का भी सामना करना पड़ा जिसने उनके पैसे और सामान चुरा लिए. अमेज़न वर्षावन में घूमते समय जंगली जानवरों का खतरा मंडराता रहा और कई बार उन्हें आधे सड़े गले शव और बिखरे हुए कंकाल मिले, जो आगे आने वाले खतरों की याद दिला रहे थे.
कुरुक्षेत्र के इस्माइलाबाद निवासी रॉबिन हांडा ने कहा, “हमें बस अमेरिका पहुंचना था और हर देश को पार करते हुए, हम अमेरिका के करीब महसूस करते थे, जो हमें आगे बढ़ने की ताकत दे रहा था.” उन्होंने अमेरिका में एक नई ज़िंदगी पाने की उम्मीद में यह लंबी और कष्टदायक यात्रा की.
जिस तरह से अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा अवैध प्रवासियों पर कार्रवाई के तहत भारतीयों को निर्वासित किया गया, उसने संसद में बहस छेड़ दी है.
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा कि नई दिल्ली यह सुनिश्चित करने के लिए वाशिंगटन के साथ बातचीत कर रही है कि अमेरिका से निर्वासित भारतीयों के साथ किसी भी तरह का दुर्व्यवहार न हो.
लेकिन 5 फरवरी को उतरे सैन्य विमान में सवार 104 भारतीयों के लिए यह आश्वासन बहुत कम राहत देने वाला था.
निर्वासित लोग — जिनमें से ज्यादातर पंजाब, हरियाणा और गुजरात से हैं — अपनी कष्टदायक यात्रा की यादों से घिरे हुए हैं: उन्हें सुनसान सड़कों पर घंटों चलना, समुद्र पार करने के लिए जहाजों पर चढ़ना और अक्सर घने जंगलों में सिर्फ जंगली फलों के साथ कई दिनों तक ज़िंदा रहना याद है.
दिप्रिंट आपको उन सबसे कष्टदायक “डंकी रूट्स” से परिचित करवा रहा है, जिन्हें इन प्रवासियों ने झेला जिन्हें जंजीरों में जकड़कर और अपमानित करके वापस भेज दिया गया.
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ब्राजील से पेरू
जब रॉबिन हांडा ने पिछले साल जुलाई में मुंबई से उड़ान भरी, तो उन्हें बिल्कुल भी अंदाज़ा नहीं था कि आगे क्या होने वाला है.
जिन एजेंटों ने उनकी यात्रा की व्यवस्था की थी, उन्हें सबसे पहले गुयाना में उतारा गया, जो दक्षिण अमेरिका के उत्तरी अटलांटिक तट पर एक छोटा सा देश है, जो अपने घने वर्षावनों के लिए जाना जाता है.
वहां से वे सड़क मार्ग से लगभग 1,600 किलोमीटर की यात्रा करके ब्राजील पहुंचे, जहां वे अपनी यात्रा के अगले चरण की शुरुआत से पहले लगभग एक महीने तक रहे.
ब्राजील से उन्होंने 8,000 किलोमीटर की यात्रा की. कैलिफोर्निया बॉर्डर पर पहुंचने से पहले इस यात्रा में वे आधा दर्जन देशों से होकर गुज़रे — पेरू, इक्वाडोर, कोस्टा रिका, ग्वाटेमाला और निकारागुआ से लेकर मैक्सिको.
हांडा ने कहा कि यह एक लंबी और थकाने वाली यात्रा थी, लेकिन उन्होंने रास्ते में विपरीत परिस्थितियों से लड़ने की क्षमता विकसित की.
हांडा ने कहा, “कई हफ्ते बिना अपने परिवार से बात किए गुज़र जाते थे. मैं फैमिली से कभी इतने लंबे वक्त तक कभी दूर नहीं रहा था.”

अवैध प्रवासी अक्सर ब्राज़ील और पेरू के बीच बने मार्ग से जाते हैं जो उन्हें घने अमेज़न जंगल और अमेज़न नदी के किनारे ले जाता है, जो ब्राज़ील के मनौस और पेरू के प्यूर्टो माल्डोनाडो शहरों को जोड़ती है.
एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, यह जंगल एशिया और अफ्रीका के प्रवासियों के लिए एक महत्वपूर्ण कॉरिडोर बन रहा है, पिछले कुछ साल में उनकी संख्या में वृद्धि हुई है.
हांडा का कहना है कि उन्हें और उनके 30 साथियों को जंगल पार करने में तीन दिन से ज़्यादा का वक्त लगा. इसमें अमेज़न नदी पार करने के लिए लगभग 63 घंटे की यात्रा शामिल थी — 45 घंटे जहाज़ पर और फिर 18 घंटे छोटी नाव में.
उन्होंने कहा, “हम खाली पेट यात्रा कर रहे थे. खाने के लिए कुछ भी नहीं था. हमें रात में जंगल के बीच में रुकना पड़ा जहां खतरनाक जानवर भी रहते हैं और रास्ते में हमने कई कंकाल देखे, जिससे हम और भी ज़्यादा डर गए.”
उन्होंने आगे कहा, “मैंने कभी इतने घने जंगल नहीं देखे थे, न ही कभी नाव में इतना घूमा था. हर कोई डरा हुआ बैठा था और हमारी आंखें चौकन्नी थीं.”
उन्होंने आगे बताया कि अगर वे जंगल पार करते समय थक जाते तो एजेंट उन्हें आराम नहीं करने देते थे. वे उन्हें छोड़कर आगे बढ़ने की धमकी देते थे.
पेरू से होते हुए
पेरू में घने अमेज़न जंगल को पार करने के बाद, अवैध प्रवासियों की यात्रा इक्वाडोर की ओर जारी रहती है — अक्सर उन्हें बसों या लोकल टैक्सियों में घंटों तक ठूंस दिया जाता है.
पिछले कुछ सालों में, पेरू — दक्षिण अमेरिका का एक देश जो अमेज़न वर्षावन के एक हिस्से का घर है — अवैध प्रवासियों की बढ़ती समस्या का सामना कर रहा है.
एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, पेरू में रहने वाले 60 प्रतिशत विदेशी बिना उचित दस्तावेज़ के देश में घुस गए हैं या रह रहे हैं.
हर बॉर्डर को पार करने पर एजेंट बदल जाते हैं. हांडा का कहना है कि एजेंट रास्ते में तभी अच्छा व्यवहार करते थे जब लोग उन्हें पैसे देते थे. कभी-कभी, एजेंटों को पैसे देने के बाद भी, पुलिस प्रवासियों को ले जाने वाली सभी बसों से पैसे ले लेती थी.
हांडा ने कहा, “पेरू पहुंचने तक मेरे पास 550 डॉलर थे. पुलिस ने वह सब छीन लिया और जब मैंने मना किया तो मुझे पीटा गया. हमें लगा कि जंगल तक ही यात्रा मुश्किल होगी, लेकिन उसके बाद भी हमारी परेशानियां खत्म नहीं हो रही थीं.”
उन्होंने कहा कि पुलिस ने सिर्फ उनकी बस से ही 2,000-3,000 डॉलर की वसूली की.
हांडा ने कहा, “उनके पास बंदूकें थीं और अगर कोई पैसे देने से मना करता था, तो वो बंदूक दिखाकर डराते थे.”
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मेक्सिको: खाली जेबें, माफिया
पेरू से प्रवासियों को ग्वाटेमाला, निकारागुआ और पनामा के जंगलों से होते हुए मैक्सिकन बॉर्डर तक ले जाया जाता है.
जब कुरुक्षेत्र के चम्मू कलां गांव के 18-वर्षीय खुशप्रीत सिंह मैक्सिको के हर्मोसिलो पहुंचे, तो अमेरिका का सपना सिर्फ 1,000 किलोमीटर दूर था.
हर्मोसिलो, जिसे पहले पिटिक कहा जाता था, उत्तर-पश्चिमी मैक्सिकन राज्य सोनोरा में एक शहर है, जो अवैध प्रवासियों के लिए मैक्सिको-यूएस बॉर्डर तक पहुंचने का एक मेजर हब है.
ज़्यादातर प्रवासी मैक्सिको पहुंचने तक खाली हाथ होते हैं, उनसे पैसे से लेकर मोबाइल फोन तक सब कुछ लूट लिया जाता है.
लेकिन यह सिलसिला फिर भी जारी है.
जब खुशप्रीत सिंह निकारागुआ से हर्मोसिलो पहुंचे, तो उन्हें लोकल माफिया ने पकड़ लिया और कई दिनों तक एक कैंप में रखा.
सिंह ने कहा कि माफिया एजेंटों के माध्यम से जुड़े हुए हैं जो पैसे ऐंठने के लिए लोगों को छोटे-छोटे कैंप में बंद कर देते हैं.
सिंह ने बताया, “हमें कैंपों में बाथरूम साफ करने के लिए कहा गया और बिजली के झटके दिए गए. माफिया ने मुझसे 1,000 डॉलर छीन लिए.”
पनामा के जंगल
कई लोगों के लिए मेक्सिको में यह अनुभव और भी ज़्यादा कष्टदायक यात्रा के बाद आया.
37-वर्षीय दलेर सिंह दुबई के रास्ते ब्राजील पहुंचने के बाद, अपने एजेंट सतनाम को बार-बार फोन करके अमेरिका पहुंचने में मदद की गुहार लगाते रहे, लेकिन सतनाम के जवाब ने उन्हें चौंका दिया. उन्होंने कहा कि तस्करों द्वारा बताए गए “डंकी रूट” को अपनाने के अलावा कोई विकल्प नहीं था.
सिंह ने कहा, “मैंने उन्हें याद दिलाया कि उन्होंने मुझे अमेरिका पहुंचने के लिए वैधानिक रास्ता दिलाने का वादा किया था, लेकिन एजेंट ने जवाब दिया कि अगर मैं डंकी रूट से नहीं जाना चाहता, तो मुझे पंजाब लौट जाना चाहिए.”
अमृतसर के सलेमपुरा गांव में अपनी खाट पर बैठे हुए कांपते हुए सिंह ने घबराहट में अपने हाथ रगड़े, उस पल को याद करते हुए जब उन्हें एहसास हुआ कि उनके पास कोई और रास्ता नहीं है. उन्होंने पहले ही सतनाम को 30 लाख रुपये दे दिए थे.
तभी उन्होंने सब कुछ जोखिम में डालने और डंकी रूट से जाने का फैसला किया.
इसके बाद जो हुआ वह जानलेवा था.
सिंह को कोलंबिया ले जाने के लिए ट्रॉली में ठूंस दिया गया और फिर पनामा के जंगलों तक पहुंचने के लिए उन्हें समुद्र से होकर गुज़रना पड़ा.
डेरियन गैप के रास्ते यात्रा — दुनिया के सबसे खतरनाक रास्तों में से एक में पनामा, कोस्टा रिका, अल साल्वाडोर और ग्वाटेमाला सहित कई मिडिल अमेरिकी देशों को पार करना शामिल था, मैक्सिको पहुंचने से पहले, जहां से अप्रवासी अमेरिकी बॉर्डर को पार करके कैलिफोर्निया में घुसने की कोशिश करते हैं.
डेरियन गैप अपनी खड़ी पहाड़ियों, घने वर्षावनों, अप्रत्याशित भूभाग और घातक बाढ़ के लिए कुख्यात है.
सिंह के लिए पनामा के जंगलों से बच निकलना किसी चमत्कार से कम नहीं था.
लेकिन उन्होंने जो देखा वह उन्हें हमेशा के लिए परेशान करेगा.
तीन दिनों तक, दलेर और उनका ग्रुप घने जंगल में घूमता रहा, अपने स्पेनिश “डंकी गाइड” से जुड़े रहने के लिए संघर्ष करता रहा.
दलेर याद करते हैं कि अगर वे तेज़ी से नहीं चलते या उन्हें फॉलो नहीं कर पाते तो गाइड उन्हें कैसे पीटता था.
दलेर ने कहा, “अगर आप गाइड को फॉलो नहीं करते, तो आप खो जाते और जंगल इतना घना था कि रास्ता खोजना मुश्किल था.”
दलेर के पास खाने के लिए कुछ नहीं था, इसलिए वह जंगली फलों पर ज़िंदा रहे और बहती धाराओं का पानी पीता रहे. रात में, वे पेड़ों के नीचे सोते थे क्योंकि टेंट इतने छोटे थे कि उनके साथ यात्रा करने वाले सभी 30 लोग उसमें नहीं रह सकते थे.
रास्ते में उन्होंने आधे खाए सड़े हुए शव देखे, जंगली जानवरों ने इन कंकालों को साफ किया था. कुछ की मौत दिल के दौरे से हुई थी, दूसरों की सांप के काटने से. उन्हें बस पीछे छोड़ दिया गया था — नामहीन, भुला दिए गए.
दलेर की तरह वो भी अमेरिकी ड्रीम को जीना चाहते थे.
उन्होंने अपने सिर को हाथों में थामा हुआ था, मानो यादों को दूर धकेलने की कोशिश कर रहे हों. उन्होंने कहा, “मैं उसके बाद कई दिनों तक सो नहीं सका. अभी भी, पंजाब में, जब मैं सोने की कोशिश करता हूं, तो यादें लौट आती हैं. यह दिल दहला देने वाला था और वहां इंटरनेट भी नहीं था.”
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कोस्टा रिका से ग्वाटेमाला से मैक्सिको
जब दलेर ने पनामा के जंगलों को पार किया, तो उन्होंने राहत की सांस ली, लेकिन खतरे से राहत ज़्यादा देर तक नहीं रही.
माफिया गिरोह, जो अवैध अप्रवासी मार्ग पर लोगों को अपना शिकार बनाते हैं, उसने जल्द ही उन्हें पकड़ लिया.
उन पर बंदूक तानकर माफिया ने सब कुछ लूट लिया — उनका फोन, कपड़ों का एक छोटा बैग और उनके पास मौजूद कुछ सौ डॉलर.
अगला हफ्ता संघर्ष भरा था — घंटों पैदल चलना, अगर किस्मत अच्छी रही, तो ट्रॉली में ठूंस कर चलना. वही शर्ट और पैंट पहने, थके हुए और आंसुओं में डूबे हुए वह आगे बढ़े, फैन्सिंग को कूद कर पार करने और पकड़े जाने से बचने के लिए मजबूर हुए. वे अपने एजेंट, सतनाम को फोन करते रहे और इस भयानक यात्रा के बारे में बताते रहे.
दलेर ने कहा, “सतनाम इन डंकी रूट गाइडों को बताता और वो मुझे पीटते. एक वक्त के बाद, मैंने गाइड द्वारा यातना दिए जाने के डर से एजेंट को फोन करना बंद कर दिया.”
खाने के लिए कुछ भी नहीं था. अगर किस्मत अच्छी रहती तो उन्हें मुट्ठी भर चावल पानी में मिला हुआ मिल जाता. वरना, वे दलेर द्वारा अपने लिए बचाई गई कुछ चॉकलेट पर ज़िंदा रहते, लेकिन जो चीज़ उन्हें आगे बढ़ने में मदद करती थी वह थी अमेरिका पहुंचने की उम्मीद.
मेक्सिको से कैलिफोर्निया बॉर्डर तक और फिर वापस जहां से शुरुआत की थी
जब दलेर आखिरकार मेक्सिको-कैलिफोर्निया बॉर्डर पर पहुंचे, तो वे खुशी के आंसू रोए. यह वह पल था जिसका उन्होंने महीनों से सपना देखा था.
लेकिन उनका सपना तुरंत ही टूट गया.
जैसे ही उन्हें लगा कि उनका बुरा वक्त आखिरकार खत्म हो गया है, उन्हें बॉर्डर पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया.
बॉर्डर पुलिस उन्हें डिटेंशन कैंप में ले गई, जहां भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश के हज़ारों अप्रवासियों को रखा गया था.
यह पिछले साल दिसंबर के आखिरी दिन की बात है. उसके बाद 30 दिन एक तंग कैंप में गुजारने पड़े, जिसमें सांस लेने, पैर फैलाने या ठीक से सोने के लिए भी जगह नहीं थी.
दलेर ने याद किया, “बॉर्डर पुलिस ने हमें सोने और खुद को ढकने के लिए एल्युमिनियम दिया था. वो एसी का तापमान इतना कम करके हमें मानसिक रूप से प्रताड़ित कर रहे थे कि बैरक जमने लगा और हम ठंड में कांपने लगे.”
कई दिनों तक वो चिप्स, चॉकलेट और किस्मत से जूस के एक कैन पर ज़िंदा रहे.
उन्होंने बताया, “हमें कभी ठीक से खाना नहीं मिला. उन्होंने हमें सिर्फ नाश्ता दिया, बस इतना कि हम ज़िंदा रहें.”
फिर, दो फरवरी की सुबह एक अमेरिकी अधिकारी यह घोषणा करने आया: उन्हें रिहा किया जा रहा है.
दलेर को उम्मीद की एक किरण दिखी. आखिरकार, आज़ादी, लेकिन रिहाई के बजाय, उन्हें हथकड़ी लगा दी गई, उनके पैरों को जंजीरों में जकड़ दिया गया.
उन्होंने कहा, “हमें एक बस में बिठाया गया और फिर एक सैन्य विमान में ले जाया गया. मुझे लगा कि वो हमें जाने देने से पहले निर्वासन के कागजात पर हस्ताक्षर करने के लिए दूसरे कैंप में ले जा रहे हैं.”
लेकिन जब विमान 10 घंटे से अधिक समय तक उड़ता रहा, तो उन्हें असलियत का एहसास हुआ. उन्हें डिपोर्ट किया जा रहा था.
कहां? उन्हें कुछ पता नहीं था.
जब तक विमान उतरा और उसने हवाई अड्डे का नाम नहीं देखा, तब तक उन्हें सच्चाई का एहसास नहीं हुआ.
उन्होंने कहा, “मैंने बाहर देखा और अमृतसर को देखा. मैं टूट गया. इतने सबके बाद — मुश्किल यात्रा, ज़िंदगी को खतरे में डालने वाले जोखिम और लाखों खर्च करने के बाद — मैं भारत वापस आ गया था.”
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