प्रयागराज: फरवरी 2019 के उस दिन से ज्योति मेहतर के लिए बहुत कुछ बेहतर नहीं हुआ है. कोरबा की 30-वर्षीय सफाई कर्मचारी कहती हैं, “देश के सबसे शक्तिशाली नेता ने हमारे पैर धोए, फिर भी हमारे साथ भेदभाव किया जाता है.”
यह भावना तीन अन्य सफाई कर्मचारियों की भी थी, जो ज्योति के साथ प्रयागराज में 2019 के कुंभ मेले में एक कमरे में एक साथ थे, जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके पैर धोए थे. इस कदम को राजनीतिक चश्मे से भी देखा गया क्योंकि सभी पांच सफाई कर्मचारी दलित थे और आम चुनाव तीन महीने से भी कम समय में होने वाले थे.
पांच सफाई कर्मचारियों में से प्यारे लाल, नरेश कुमार और चौबी उत्तर प्रदेश के बांदा से थे, होरी लाल संभल से और ज्योति मेहतर छत्तीसगढ़ के कोरबा से थीं.
प्रयागराज में महाकुंभ शुरू होने के साथ ही पांच में से तीन वापस ड्यूटी पर आ गए हैं. बाकी दो में से होरी लाल अपने गांव लौट गए और चौबी की मृत्यु हो गई; निकटतम रिश्तेदार के रूप में, उनकी नौकरी उनके पति को सौंप दी गई. संविदा कर्मचारियों प्यारे लाल, नरेश कुमार और ज्योति मेहतर को डर है कि फरवरी में महाकुंभ समाप्त होने के बाद उनका भविष्य अंधकारमय हो जाएगा.
यह भी पढ़ें: भारत का सबसे बड़ा सफाई घोटाला — सरकारी नौकरी लेती हैं अगड़ी जातियां, लेकिन काम करते हैं वाल्मीकि लोग
‘आखिरकार, जाति मायने रखती है’
56-वर्षीय प्यारे लाल ने पूछा, “अब, यह भव्य महाकुंभ आयोजित किया जा रहा है, ‘शानदार कुंभ’ के इतने सारे विज्ञापन हैं, लेकिन क्या हम सफाई कर्मचारियों के लिए कुछ बदला है. हम टेंट सिटी के विज्ञापन देख रहे हैं, लेकिन हमारे टेंट में कुछ भी नहीं बदला है”
उन्होंने आगे कहा कि वे अपने परिवार के साथ महाकुंभ के एक कोने में एक अस्थायी घर में रहते हैं.
लाल ने कहा, “यहां बिजली या पानी की उचित आपूर्ति नहीं है. अगर भारी बारिश हुई, तो यहां रहना मुश्किल हो जाएगा, लेकिन कोई भी इसे नहीं देखेगा. हम अभी भी जाति और सुविधाओं से अछूत हैं. ये होर्डिंग बड़े लोगों के लिए हैं, हमारे लिए नहीं.”
साथी सफाई कर्मचारी 34-वर्षीय नरेश कुमार का दावा है कि जातिगत भेदभाव अभी भी एक मुद्दा है, यहां तक कि महाकुंभ में भी. उन्होंने कहा, “मैं वाल्मीकि समुदाय से हूं. मुझे याद नहीं है कि किसी उच्च जाति के व्यक्ति ने हमारे साथ खाना खाया हो.”
उन्होंने आगे कहा, “हमें किसी अखाड़े या कुंभ से जुड़ी किसी अन्य धार्मिक गतिविधि में शामिल होने के लिए आमंत्रित नहीं किया गया है. आखिरकार, जाति मायने रखती है.”
अच्छा वेतन, स्थायी नौकरी
ज्योति ने आठवीं कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़ दी थी. उनके पति का कहना है कि उन्होंने “बेहतर ज़िंदगी की उम्मीद” में 2019 में कोरबा से प्रयागराज आने का फैसला किया था. उन्होंने कहा कि उन्होंने प्रधानमंत्री आवास योजना (पीएमएवाई) के तहत एक घर के लिए आवेदन किया था, लेकिन अभी तक कोई जवाब नहीं मिला है. “हम एक झुग्गी में रहते हैं. हमें कहीं और घर नहीं मिल सका क्योंकि हम सफाई कर्मचारियों के समुदाय से हैं.”
प्यारे लाल ने भी कहा कि उन्होंने पीएम आवास योजना के तहत घर के लिए दो बार आवेदन किया है, लेकिन उनका आवेदन अभी भी विचाराधीन है. 90 के दशक के उत्तरार्ध से आयोजित कुंभ मेलों में सफाई कर्मचारी के रूप में काम करने के बाद, वे चाहते हैं कि प्रशासन “हर पांच साल में कम से कम एक बार वेतन में वृद्धि करे”.
उनके आठ बच्चों में से पांच बेटियों की अब शादी हो चुकी है और तीन बेटे दिहाड़ी मज़दूर के रूप में काम करते हैं.
नरेश का कहना है कि उन्होंने भी बांदा में अपने गांव में पीएम आवास योजना के तहत घर के लिए आवेदन किया था, लेकिन अभी तक कोई जवाब नहीं मिला है.
उन्होंने कहा, “मुझे 2019 में 8,000 रुपये मिल रहे थे; अब लगभग 10,000 रुपये मिल रहे हैं. मेरे घर में पांच बच्चे और एक पत्नी है. मैं इतने कम पैसे में कैसे गुज़ारा कर सकता हूं? जब भी हम अधिकारियों से वेतन बढ़ाने या हमें स्थायी करने के लिए कहते हैं, तो हमें सकारात्मक जवाब नहीं मिलता है.”
प्यारे लाल और नरेश कुमार को प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत घर आवंटित किए जाने के बारे में पूछे जाने पर बांदा के डीएम नागेंद्र प्रताप सिंह ने दिप्रिंट को फोन पर बताया, “मैंने उनके विवरण सीडीओ (मुख्य विकास अधिकारी) को भेज दिए हैं. अगर उन्होंने उचित दस्तावेज़ के साथ आवेदन किया है, तो उन्हें घर मिल जाएगा. वो हमसे सीधे संपर्क कर सकते हैं.”
महाकुंभ में संविदा सफाई कर्मचारियों की सुविधाओं के बारे में दावों पर प्रतिक्रिया के लिए दिप्रिंट द्वारा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री कार्यालय (सीएमओ) से संपर्क साधने के दौरान हमें मेला क्षेत्र के अधिकारियों से मिलने को कहा गया क्योंकि उन्हें महाकुंभ की अवधि के लिए एक डिवीजनल मजिस्ट्रेट की शक्तियां दी गई हैं.
मेला प्रभारी और जिला मजिस्ट्रेट विजय किरण आनंद ने दिप्रिंट को बताया, “यह कहना सही नहीं है कि मेला अधिकारियों ने छह साल में उनके लिए कुछ नहीं किया है. हमने उनका मानदेय बढ़ाया है, उन्हें मुफ्त भोजन, सर्दियों में मुफ्त जैकेट प्रदान किए हैं. हम उनके बच्चों को मुफ्त शिक्षा दे रहे हैं. मेला क्षेत्र में उनके रहने के लिए जगह है. हम और क्या कर सकते हैं? देखिए, सामाजिक मुद्दे हमारे नियंत्रण में नहीं हैं. हम हर पहलू पर नज़र नहीं रख सकते, लेकिन हमने उन्हें सभी सुविधाएं देने की कोशिश की है.”
आनंद ने यह भी कहा कि अगर पीएमओ उन्हें मोदी और सफाई कर्मचारियों के बीच एक और बातचीत की व्यवस्था करने का निर्देश देता है, तो “हम उन्हें मिलने के लिए ले जाएंगे; यह हमारे हाथ में नहीं है.”
अपर मेला अधिकारी विवेक चतुर्वेदी ने कहा, “हमारे पास सफाई कर्मचारियों के लिए एक कॉलोनी है और उनके बच्चों के लिए सरकारी स्कूल हैं. अगर वह दावा करते हैं कि हम उनकी देखभाल नहीं कर रहे हैं, तो यह गलत है. हम उनसे फिर से बात करेंगे कि वह नाराज़ क्यों हैं.”
इस बीच, प्यारे लाल, नरेश कुमार और ज्योति मेहतर को फिर से मोदी से मिलने की उम्मीद है.
उनका कहना है कि वह प्रधानमंत्री को उन चुनौतियों से अवगत कराएंगे जिनका वह रोज़ सामना करते हैं.
जैसा कि ज्योति कहती हैं, “सम्मान से पेट नहीं भरता; समाज भी तो अपनाए हमें.”
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: अयोध्या सांसद की सीट या अडाणी मुद्दे पर मतभेद? क्या अखिलेश बना रहे हैं कांग्रेस से दूरियां