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Monday, 21 July, 2025
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धर्मस्थल में मुर्दे बोलते हैं: मंदिरों के शहर में मिली सामूहिक कब्रों के पीछे की खौफनाक कहानी

दशकों तक बलात्कार, हत्या और नेत्रावती नदी किनारे लाशें मिलने की फुसफुसाहटों के बाद, कर्नाटक सरकार ने अब जांच के लिए एक एसआईटी गठित की है.

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धर्मस्थल, कर्नाटक: ग्यारह जुलाई को एक दलित व्यक्ति, जो सिर से पांव तक काले कपड़ों में लिपटा हुआ था, कड़ी सुरक्षा और वकीलों की टीम के साथ बेल्थांगडी कोर्ट पहुंचा. वह कभी धर्मस्थल मंदिर में सफाईकर्मी के तौर पर काम करता था. कोर्ट में दिए गए अपने बयान में उसने दावा किया कि उसे “सैकड़ों शवों को दफनाने, जलाने और ठिकाने लगाने” के लिए मजबूर किया गया. इन शवों में कई 12 साल तक की बच्चियां भी थीं, जिनके शरीर पर कथित तौर पर यौन शोषण और अत्याचार के निशान थे.

उसके एक वकील के पास एक काला बैग था, जिसे देखकर लोगों ने सोचा कि उसमें केस के दस्तावेज होंगे, लेकिन असल में उस बैग में एक महिला की हड्डियां थीं. इस मामले से जुड़ी जानकारी रखने वाले एक व्यक्ति, ने कहा, “ये उसी महिला के अवशेष थे, जो उसे सालों तक डराते रहे. उसने खुद ही कब्र खोदकर उन्हें बाहर निकाला.”

इससे कुछ दिन पहले, 3 जुलाई को, उस व्यक्ति ने अपने वकीलों के जरिए एक बयान जारी किया था. इसमें कहा गया था कि मंदिर से जुड़े कुछ प्रभावशाली लोगों ने उसे लाशों को ठिकाने लगाने के लिए मजबूर किया. कर्नाटक के दक्षिण कन्नड़ जिले में स्थित धर्मस्थल मंदिर भारत के सबसे पवित्र और प्रसिद्ध हिंदू तीर्थस्थलों में से एक है.

धर्मस्थल मंदिर के एक प्रवेश द्वार की तस्वीर | फोटो: शरण पूवन्ना
धर्मस्थल मंदिर के एक प्रवेश द्वार की तस्वीर | फोटो: शरण पूवन्ना

तब से अब तक पुलिस ने जांच शुरू न करने के पीछे कई कारण बताए हैं — जैसे शिकायतकर्ता की मंशा पर सवाल उठाना, नार्को और ब्रेन मैपिंग टेस्ट की ज़रूरत बताना.

जांच में हो रही देरी ने इस मामले और उसमें कथित रूप से शामिल लोगों को लेकर रहस्य और बढ़ा दिया है.

पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “पूरी जांच शुरू करने से पहले हमें सभी तथ्यों की पुष्टि करनी होगी.” उन्होंने यह भी बताया कि पुलिस कुछ खास जानकारी की पुष्टि कर रही है, तभी आगे बढ़ेगी.

दिप्रिंट को जानकारी मिली है कि कोर्ट में पूर्व सफाईकर्मी द्वारा लाए गए कंकालों को अभी तक फॉरेंसिक साइंस लैब नहीं भेजा गया है. वह फिलहाल “मेडिकल ओपिनियन” के लिए एक अस्पताल में रखे गए हैं.

पूर्व सफाईकर्मी ने पुलिस को उन कब्र स्थलों तक ले जाने की पेशकश भी की थी, लेकिन उसका कोई नतीजा नहीं निकला. 16 जुलाई की दोपहर, वह एक कार में बैठा रहा जबकि उसके वकील नेत्रावती नदी किनारे सड़क पर पुलिस का इंतज़ार करते रहे. पुल के उस पार मीडियाकर्मी और स्थानीय लोग भी यह सब देख रहे थे, लेकिन पुलिस वहां नहीं पहुंची. शिकायतकर्ता ने 30 मिनट तक इंतज़ार किया और फिर वहां से चला गया.

बुधवार को जारी बयान में दक्षिण कन्नड़ के एसपी ने कहा कि गुप्त जानकारी मिली थी कि कब्रें खोदने के बाद गवाह फरार हो सकता है. उन्होंने यह भी बताया कि पुलिस ने शिकायतकर्ता का ब्रेन मैपिंग, फिंगरप्रिंट स्कैन और नार्को टेस्ट कराने की अनुमति मांगी है.

कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने शुक्रवार को कहा, “वह (शिकायतकर्ता) 10 साल से फरार था. उसने पुलिस के सामने 164 पन्नों का बयान दिया है. उसने कहा है कि उसने शवों को दफनाया और सामूहिक कब्रों की जगह दिखाने की भी पेशकश की.”

मुख्यमंत्री ने आगे कहा कि पुलिस अपनी जांच के आधार पर अगला कदम तय करेगी. साथ ही उन्होंने साफ किया कि उनकी सरकार पर इस मामले को दबाने का कोई दबाव नहीं है.

आरोप सामने आने के दो हफ्ते बाद, कर्नाटक सरकार ने धर्मस्थल मामले की जांच के लिए एक विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन कर दिया है.

नेत्रावती नदी के किनारे और पश्चिमी घाट की घनी पहाड़ियों के बीच अब एक रहस्य करवट ले रहा है, जो सुने जाने की गुहार लगा रहा है. ये ताज़ा आरोप उन दशकों पुरानी फुसफुसाहटों में फिर से जान डाल रहे हैं, जिनमें अक्सर नेत्रावती किनारे या उसके आस-पास के जंगलों में लाशें बहकर आने की बातें की जाती थीं.

नेत्रावती नदी जिसके किनारे बहकर आई थीं कई लाशें | फोटो: शरण पूवन्ना
नेत्रावती नदी जिसके किनारे बहकर आई थीं कई लाशें | फोटो: शरण पूवन्ना

इन मामलों में वेदावल्ली (1979), अनन्या भट्ट (2003), और नारायण सापले व उनकी बहन यमुना (2012) जैसे केस शामिल हैं.

इनमें सबसे चर्चित मामला 2012 में एक 17 साल की लड़की के साथ हुए कथित बलात्कार और हत्या का है. उसके परिवार और इंसाफ की मांग कर रहे लोगों ने सार्वजनिक रूप से ताकतवर हेगड़े परिवार के कुछ सदस्यों के नाम लिए हैं.

राज्यसभा सांसद वीरेन्द्र हेगड़े और उनका परिवार आमतौर पर ‘डोड्डवरु’ (बड़े लोग) और ‘धनिगलु’ (जमींदार) जैसे शब्दों से पुकारा जाता है — ये शब्द जितने सम्मान में बोले जाते हैं, उतने ही डर और सावधानी के साथ भी.

दिप्रिंट ने वीरेन्द्र हेगड़े से ईमेल के जरिए प्रतिक्रिया मांगी है. उनकी ओर से जवाब मिलने पर इस रिपोर्ट को अपडेट कर दिया जाएगा.

फरवरी 2017 में सिटी सिविल सेशंस कोर्ट के एक आदेश में दर्ज है कि उस 17 साल की लड़की के पिता को मल्लिक जैन, उदय जैन और धीरज जैन — जो धर्मस्थल मंदिर प्रबंधन से जुड़े हुए थे — की संलिप्तता पर शक था. इन तीनों को घटना स्थल के पास देखा गया था. अदालत यह याचिका सुन रही थी कि यह केस केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को सौंपा जाए.

मल्लिक, उदय और धीरज से कई जांच एजेंसियों ने पूछताछ की, लेकिन सबूतों की कमी के चलते उन्हें क्लीन चिट दे दी गई.

लड़की की मां ने अगस्त 2023 में एक सार्वजनिक कार्यक्रम में आरोप लगाया कि धीरज, मल्लिक, उदय और वीरेन्द्र हेगड़े के भतीजे निश्चल जैन ने उनकी बेटी का बलात्कार किया था. हालांकि, निश्चल का नाम न तो किसी पुलिस केस में आया और न ही किसी अदालती कार्यवाही में.


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‘डोड्डवरु से लड़ना मुमकिन नहीं’

सुझाता भट्ट अकेली बैठी हैं, बेहद थकी हुई नज़र आ रही हैं. उनकी गोद में एक बिल्ली आकर बैठी है, जो शायद उजीरे (धर्मस्थल से करीब 8 किमी दूर एक छोटा-सा कस्बा) में दो दिन से हो रही लगातार बारिश की नमी से बचने के लिए गर्मी तलाश रही थी.

सुजाथा की बेटी अनन्या (20), मणिपाल कॉलेज की एमबीबीएस की पहली वर्ष की छात्रा थी. साल 2003 में वह दोस्तों के साथ धर्मस्थल गई थीं और फिर कभी वापस नहीं आई. सुजाथा, जो उस समय कोलकाता में सीबीआई में स्टेनोग्राफर थीं, उनको ट्रेन से धर्मस्थल पहुंचने में दो दिन लग गए.

दिप्रिंट से बात करते हुए सुजाथा ने बताया कि उन्होंने बार-बार शिकायत दर्ज करवाने की कोशिश की, लेकिन पुलिस ने हर बार मना कर दिया और कह दिया कि अनन्या शायद भाग गई होगी. सुजाथा ने बताया, “मैं फिर धर्माधिकारी (हेगड़े) के पास गई और उनसे मदद मांगी. उन्होंने भी यही कहा कि हर दिन हज़ारों लोग आते हैं, वो सब पर नज़र नहीं रख सकते. उन्होंने भी कहा कि मेरी बेटी शायद भाग गई हो.”

बेबस होकर सुजाथा एक इमारत के पास बैठ गईं. तभी तीन लोग उनके पास आए और कहा कि वो जानते हैं कि अनन्या कहां है. सुजाथा ने बताया कि वो लोग उन्हें अपने साथ ले गए और फिर उन्हें बांधकर बंद कर दिया. अगली सुबह करीब साढ़े पांच बजे उन्हें चेतावनी दी गई कि अगर ज़िंदा रहना है तो वह जगह छोड़ दो. उन्होंने जब मना किया, तो सिर पर ज़ोर से मारा गया — यही आखिरी बात है जो उन्हें याद है.

सुजाथा ने कहा कि वह तीन महीने बाद कोमा से बाहर आईं. जब वे अपने मंगलुरु स्थित घर लौटीं, तो पाया कि वहां ताला टूटा हुआ था, सारे दस्तावेज़ और फोटो गायब थे और घर जला हुआ था.

अब, जब पूर्व सफाईकर्मी ने खुलकर आरोप लगाए हैं, तो सुजाथा को भी थोड़ी हिम्मत मिली है. वह अब अपनी बेटी के अवशेष खोजकर उनका ठीक से अंतिम संस्कार देना चाहती हैं. उनका केस आधिकारिक तौर पर इस हफ्ते ही दर्ज किया गया है.

सुजाथा ने बताया कि उन्होंने अनन्या की बची हुई सारी तस्वीरें नष्ट कर दीं, क्योंकि उन्हें देखना उनके लिए असहनीय था. उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “अगर मेरी बेटी ज़िंदा होती, तो आज मैं अपने नाती-पोतों के साथ खेल रही होती.” इस दौरान उनकी आंखें भर आईं.

अनन्या अकेली नहीं है. इस क्षेत्र में सालों से कई महिलाएं या तो लापता हुई हैं या रहस्यमयी हालात में मरी हुई पाई गई हैं.

महिलाओं की सुरक्षा पर 2016 में बनी एक सरकारी रिपोर्ट, जिसकी अध्यक्षता वी.एस. उग्रप्पा ने की थी, में बताया गया कि बेल्थांगडी क्षेत्र में हर साल करीब 100 असामान्य मौतें दर्ज होती हैं. इनमें से बड़ी संख्या धर्मस्थल से जुड़ी होती है.

लोगों में यह धारणा बन चुकी थी कि यह जगह धार्मिक है और यहां जो कुछ होता है वह ‘भाग्य’ या ‘कर्म’ से जुड़ा है. पूर्व सफाईकर्मी के पर्यवेक्षक ने भी यहां लाशें मिलने की घटनाओं को इसी आधार पर सही ठहराया.

हालांकि, आसपास के दूसरे धार्मिक स्थलों — जैसे सुब्रमण्या या कोल्लूर मूकाम्बिका — जो घने जंगलों और नदियों से घिरे हैं, वहां इस तरह की रहस्यमयी मौतों की कोई खबर नहीं मिलती.

ताकतवर लोगों से टकराने की सज़ा — मौत?

1979 में वेदावल्ली, जो धर्मस्थल प्रशासन द्वारा संचालित एक कॉलेज में टीचर थीं, उन्होंने प्रिंसिपल पद के लिए खुद को नज़रअंदाज़ किए जाने को लेकर प्रबंधन के खिलाफ आवाज़ उठाई. उन्होंने कोर्ट में केस किया और जीत हासिल की. उनके परिवार का कहना है कि इस जीत को “उस ताकतवर परिवार” की सत्ता के खिलाफ चुनौती के रूप में देखा गया.

इसके कुछ समय बाद, जब उनके पति शहर से बाहर थे, वेदावल्ली को ज़िंदा जला दिए जाने का आरोप है.

सात साल बाद, 1986 में, धर्मस्थल के ही एक और कॉलेज की दूसरी वर्ष की एक छात्रा का अपहरण कर लिया गया. बाद में उनकी नग्न लाश नेत्रावती नदी के किनारे मिली. दिप्रिंट से बातचीत में उनके रिश्तेदारों ने बताया कि उन्हें इसलिए मारा गया क्योंकि उनके पिता, जो एक कम्युनिस्ट नेता थे, उन्होंने “परिवार” की अनुमति के बिना पंचायत चुनाव लड़ा था.

छात्रा की मां | फोटो: शरण पूवन्ना
छात्रा की मां | फोटो: शरण पूवन्ना

पहले छात्रा की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज की गई, फिर एक एफआईआर “अस्वाभाविक मौत” के तहत लिखी गई, लेकिन किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई.

17 साल की एक लड़की के केस से ठीक 20 दिन पहले, पूरजेबैलू गांव में नारायण सापल्या (62) और उनकी बहन यमुना (45) अपने ही घर में खून से लथपथ पाए गए. नारायण का सिर पत्थर से कुचला गया था और यमुना को सिलबट्टे से पीट-पीटकर मारा गया.

चार पीढ़ियों से सापल्या का परिवार धर्मस्थल मंदिर में महावत (हाथी पालक) का काम करता रहा है. सापल्या के बेटे गणेश का मानना है कि उनके पिता और बुआ को इसलिए मारा गया क्योंकि उन्होंने अपने 400 साल पुराने घर की ज़मीन देने से इनकार कर दिया था. गणेश का कहना है, “अगर पुलिस ने तब कार्रवाई की होती, तो वो 17 साल की लड़की आज ज़िंदा होती.”

बाद में पुलिस को दी गई एक शिकायत में सापल्या की पत्नी ने आरोप लगाया कि वीरेन्द्र हेगड़े के भाई हर्षेन्द्र पहले उनके घर आए थे और उसी ज़मीन को लेकर धमकी दी थी. इसके बाद इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं हुई.

‘जंगल सूअर और गोह खाते थे लाशें’

76-वर्षीय बाबू गौड़ा, जो पिछले 40 सालों से नेत्रावती नदी किनारे एक किराने की दुकान चलाते थे, धर्मस्थल के आसपास सामूहिक कब्रों से जुड़ी चर्चाओं और दावों को आज भी साफ-साफ याद करते हैं.

पीड़ित परिवारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और गांववालों का कहना है कि पुलिस हमेशा ‘अज्ञात लोगों’ के खिलाफ केस दर्ज करती है और किसी तरह की असली जांच नहीं होती.

सुपारी और नारियल के पेड़ों से घिरे अपने घर में बैठे गौड़ा बताते हैं कि धर्मस्थल के सफाईकर्मी अक्सर उनकी दुकान पर आते थे और बताते थे कि उन्हें किस तरह लाशों को ठिकाने लगाने का काम दिया जाता है. वो यह भी याद करते हैं कि किस तरह गांववाले जब जंगल में शौच के लिए जाते थे, तब वहां लाशें पड़ी मिलती थीं.

उन्होंने कहा, “हम जब जंगल में जाते थे, तब देखा है कि जंगली सूअर और गोह (जिसे कन्नड़ में ‘ऊडा’ कहते हैं) लाशों के टुकड़े खा रहे होते थे.”

गौड़ा बताते हैं कि ये शव बहुत ही लापरवाही से दफनाए जाते थे—बहुत गहराई में नहीं और बस ऊपर थोड़ी-सी मिट्टी डाल दी जाती थी. हल्की बारिश में ही वो डरावनी सच्चाई बाहर आ जाती थी.

उन्हें वो घटनाएं भी याद हैं जब लड़कियों को दिनदहाड़े कारों में खींच लिया जाता था, लेकिन कोई कुछ कहने की हिम्मत नहीं करता था. “लोग अपनी जान से डरते थे, इसलिए कभी आवाज़ नहीं उठाई.”

गांववालों, कार्यकर्ताओं और अन्य लोगों से बातचीत में यह बात सामने आई कि लाशें अक्सर एक जैसे कुछ खास इलाकों में ही मिलती थीं. उनके मुताबिक, महिलाओं की लाशें या तो बिना कपड़ों के मिलती थीं या सिर्फ अंडरवियर में.

न्याय की लड़ाई अब भी जारी

2012 के मामले में 17 साल की यह लड़की श्री धर्मस्थल मंजुनाथेश्वर कॉलेज में प्री-यूनिवर्सिटी की दूसरी वर्ष की छात्रा थी, जब वह लापता हो गई.

उनकी मां आज भी 9 अक्टूबर 2012 का हर एक पल याद कर सकती हैं — वो दिन जब उन्होंने अपनी बेटी को आखिरी बार ज़िंदा देखा था. पांच बच्चों में दूसरी संतान, वह लड़की उस दिन बिना कुछ खाए जल्दी-जल्दी कॉलेज के लिए निकल गई थी क्योंकि उसे देर हो रही थी.

उस दिन ‘होसा-अक्की’ त्योहार था — एक खास दिन जब नई फसल से चावल, नारियल के दूध और गुड़ से व्यंजन बनाकर उत्सव मनाया जाता है. मां ने कहा, “उसने अपने दोस्तों से भी कहा था कि वह बाहर कुछ नहीं खाएगी, घर आकर ही खाएगी.”

घर में उनकी कई तस्वीरें आज भी टंगी हैं. मां हर कुछ पलों में रुकती हैं, गला भर आता है और आंखें भीग जाती हैं, जब वे उस पल को याद करती हैं जब अगले दिन उनकी बेटी की लाश मिली थी.

लड़की की लाश एक पेड़ से बंधी हुई मिली — उसी के दुपट्टे और पहचान-पत्र की रस्सी से. ऊपरी शरीर पर कोई कपड़ा नहीं था, पसलियां टूटी हुई थीं और शरीर पर कई कट के निशान थे.

पिता ने आरोप लगाया कि मल्लिक, उदय और धीरज को उसी जगह के पास देखा गया था, जहां से उनकी बेटी आखिरी बार देखी गई थी, लेकिन पुलिस ने कभी उनकी भूमिका की जांच नहीं की. पुलिस ने एक अन्य व्यक्ति, संतोष राव को मुख्य आरोपी बताया.

इस केस की जांच पहले बेल्थांगडी पुलिस ने की, फिर इसे सीआईडी और फिर सीबीआई को सौंपा गया, जैसा कि 2017 के कोर्ट दस्तावेजों में लिखा गया है. सीबीआई ने राव के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की थी.

लेकिन बाद में ट्रायल कोर्ट ने सबूतों के अभाव में राव को बरी कर दिया. पिछले साल सितंबर में, कर्नाटक हाईकोर्ट ने इस केस की दोबारा जांच की याचिका को खारिज कर दिया.

मां को उम्मीद है कि अब जो नए आरोप सामने आए हैं, वे क्षेत्र की उन कई लड़कियों के लिए न्याय की राह खोलेंगे, जिनके साथ बलात्कार और हत्या हुई, लेकिन कभी इंसाफ नहीं मिला.

उनकी बेटी के लिए अब भी इंसाफ की मुहिम चल रही है. केस को लेकर ऐसा दबाव है कि लोग उनके घर का पता तक बताने से डरते हैं. इसी वजह से परिवार ने खुद ही साइनबोर्ड लगा दिए हैं, ताकि जो भी इंसाफ की इस लड़ाई से जुड़ना चाहे, वह उनके घर तक पहुंच सके.

उन्होंने कहा, “इन 13 सालों में कोई भी हत्या का मामला सामने नहीं आया. मेरी बेटी का केस आखिरी था. अगर कुछ हुआ होता तो आज के मोबाइल के ज़माने में बात ज़रूर फैलती. मेरी बेटी आखिरी थी — वो देवी बन गई है, जिसने इन अत्याचारों को रोक दिया.”

अगर वह बेटी ज़िंदा होती, तो आज 30 साल की होती.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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