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Friday, 22 November, 2024
होमदेशपंजाब में चल रहा कांग्रेस बनाम कांग्रेस का खेल, ‘टीम राहुल’ के निशाने पर अमरिंदर

पंजाब में चल रहा कांग्रेस बनाम कांग्रेस का खेल, ‘टीम राहुल’ के निशाने पर अमरिंदर

अवैध शराब त्रासदी पर सीएम अमरिंदर सिंह की सबसे तीखी आलोचना, विपक्षी अकाली दल से नहीं, बल्कि कांग्रेस के भीतर उनके अपने सहोगियों से रही है.

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चंडीगढ़: गांधी परिवार की दख़लअंदाज़ी ने कांग्रेस-शासित राजस्थान में सचिन पायलट को कांग्रेस की नाव डुबाने से रोक लिया, लेकिन ये मूक बना देख रहा है और राहुल गांधी के विश्वासपात्र सेनापतियों ने पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह पर मिल जुलकर हमला बोला हुआ है, जिससे उन्हें और उनकी सरकार को भारी शर्मिंदगी का सामना करना पड़ रहा है.

हालिया अवैध शराब त्रासदी को लेकर, कांग्रेस सरकार पर हमले की अगुवाई कांग्रेस सांसद प्रताप सिंह बाजवा कर रहे हैं, जिन्हें मुख्यमंत्री के आलोचक के तौर पर जाना जाता है. दो और पूर्व युवा कांग्रेस नेता बाजवा का समर्थन कर रहे हैं, जिन्हें पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष के क़रीबी माना जाता है- लुधियाना सांसद रवनीत सिंह बिट्टू और गिदर्भा से विधायक अमरिंदर सिंह राजा वॉरिंग.

एक और लीडर जो सरकार पर हमला करने में बाजवा के साथ शामिल हो गए हैं, वो हैं सांसद शमशेर सिंह दुल्लो.

बाजवा और दुल्लो 2016 में कांग्रेस आलाकमान के समर्थन से राज्यसभा के लिए नामांकित हुए थे, जिसने उन्हें तत्कालीन पंजाब कांग्रेस प्रमुख अमरिंदर के उम्मीदवारों पर तरजीह दी थी.

नक़ली शराब के सेवन से इस महीने के शुरू में पंजाब के तीन ज़िलों में 121 लोगों की मौत हो गई थी. शिरोमणि अकाली दल (एसएडी) ने तो पंजाब सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल ही लिया. लेकिन जो चीज़ ज़्यादा सुर्ख़ियां बटोर रही है वो ये, कि इस काम में विपक्षी दल को कांग्रेस के भीतर सिंह के आलोचकों से समर्थन मिल रहा है.

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इस पूरी दास्तान को, 2022 विधान सभा चुनावों के संदर्भ में देखा जाना चाहिए, और गांधी परिवार की ख़ामोशी में भी कोई संदेश हो सकता है.

राहुल बनाम अमरिंदर

3 अगस्त को बाजवा और दुल्लो ने राज्यपाल वीपी सिंह बदनोर से मुलाक़ात की और राज्य में ‘शराब माफिया की मौजूदगी’ की, सीबीआई और ईडी द्वारा जांच की मांग की. राज्यपाल को लिए अपने पत्र में, उन्होंने राज्यपाल का ध्यान दो अवैध भट्टियों की ओर आकर्षित किया जिनका राजपुरा और घनगौर में पता चला था. ये दोनों जगहें मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के गृह ज़िले और उकी पत्नी की संसदीय सीट पटियाला में आते हैं.

दोनों ने लिखा, ‘मुख्यमंत्री के गृह ज़िले में अवैध भट्टियों का चलना, अराजकता और सरकार की प्रशासनिक नाकामी को दर्शाता है.’

उससे एक दिन पहले रवनीत सिंह बिट्टू ने अपने एक ट्वीट में लिखा, कि ‘ये मिली-भगत कुछ मुठ्ठी भर अफसरों तक ही सीमित नहीं है.’ उन्होंने आगे लिखा, ‘इस समस्या की अस्ली जड़ कुछ सियासी लोग हैं, जो इस अवैध गतिविधि में शामिल हैं.’

कांग्रेस विधायक अमरिंदर सिंह राजा वॉरियर ने दोषी अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की.

हालांकि, पंजाब पार्टी प्रमुख सुनील जाखड़, कांग्रेस की प्रदेश सरकार के बचाव में उतरे हैं, लेकिन राहुल गांधी ने अपने सहयोगियों को सीएम पर हमला न करने का निर्देश नहीं दिया है, जो 2022 के विधान सभा चुनावों के लिए पार्टी का सबसे मज़बूत दांव हैं.

कांग्रेस हल्क़ों में ये एक खुली हुई बात है कि गांधी और अमरिंदर एक दूसरे को बिल्कुल पसंद नहीं करते. आलाकमान के मन में सीएम के स्वतंत्र रूप से काम करने के अंदाज़ को लेकर दुराव है.

सूत्रों के मुताबिक़, एक बार जब एक कांग्रेस नेता ने अमरिंदर को सुझाव दिया कि उन्हें पार्टी के पूर्व अध्यक्ष को ‘राहुलजी’ के नाम से संबोधित करना चाहिए, तो अमरिंदर ने चुटकी लेते हुए कहा, ‘लेकिन, क्यों? मैं दून स्कूल में उनके पिता (स्वर्गीय राजीव गांधी) से सीनियर था. बल्कि उन्हें मुझे ‘अंकल’ कहना चाहिए.

जब कांग्रेस नेताओं ने अपनी ही सरकार पर हमला करना शुरू कर दिया, तो प्रदेश इकाई के प्रमुख ने कहा कि वो अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखकर, बाजवा और दुल्लो की ‘खुली अनुशासनहीनता’ के खिलाफ कार्रवाई करने का आग्रह करेंगे.

पिछले हफ्ते जाखड़ ने एक प्रेस वार्ता में कहा, ‘अब समय है कि पार्टी में पैदा हो रही सड़न को रोकने के लिए, कांग्रेस को बाजवा और दुल्लो जैसे लोगों की तुच्छ साज़िशों से बचाया जाए, जिन्हें उस हाथ को काटने में ज़रा भी लाज नहीं आई, जो उन्हें खिलाता है’. उन्होंने आगे कहा कि इन दोनों सांसदों का हमला हू-बहू वही था, जो जनवरी में राजस्थान में हुआ था, जब कोटा अस्पताल में 107 शिशुओं की मौत हो गई थी.

उस समय सचिन पायलट ने, जो उस समय राजस्थान के उप-मुख्यमंत्री थे, त्रासदी के प्रति पर्याप्त सहानुभूति न दिखाने के लिए अपनी ही सरकार को आड़े हाथों लिया था. पिछले महीने की पायलट की बग़ावत का हवाला देते हुए, जो अब ख़त्म हो गई है, उन्होंने कहा, ‘अगर पायलट के खिलाफ उसी समय एक्शन ले लिया गया होता, तो राजस्थान में आज जो हो रहा है, उससे बचा जा सकता था.’

बाजवा ने लिखा, ‘दुल्लो और मेरा कोई निजी एजेण्डा नहीं था, लेकिन अगर हम इस मुद्दे को उठाने का साहस न दिखाते, तो भारत की संसद में हम पंजाब के लोगों के नुमाइंदे के तौर पर अपने फर्ज़ को अंजाम देने में नाकाम हो जाते. मैंने पूर्व महाराजा के दरबार में एक सीट पाने के लिए, अपने ज़मीर का सौदा नहीं किया था.’

‘मैं समझता था कि पंजाब के हितों को नुक़सान पहुंचाने के लिए, कैप्टन अमरिंदर सिंह अकेले ही काफी थे, अफसोस ये है कि अब उन्हें श्री जाखड़ की सहायता और समर्थन भी मिल गया है.’

कुछ कैबिनेट मंत्रियों ने बृहस्पतिवार (6 अगस्त) को आवाज़ उठाई, कि इन सांसदों को ‘बिना किसी नरमी या देरी के…बर्ख़ास्त कर दिया जाना चाहिए.’ एक साझा प्रेस विज्ञप्ति में उन्होंने कहा, ‘अनुशासनहीनता किसी भी समय सहन नहीं की जा सकती, कम से कम ऐसे समय में जब राज्य में विधान सभा चुनावों को दो साल से भी कम रह गए हैं.’

सुरक्षा वापस

अवैध शराब त्रासदी से सामने आईं दरारें अब दूसरे मोर्चों पर भी नज़र आने लगी हैं.

शनिवार को, सरकार ने बाजवा को राज्य पुलिस की ओर से दी जा रही सुरक्षा को वापस ले लिया. बाजवा के पास ये कवर इसलिए था कि उनका परिवार सिख उग्रवादियों की हिट-लिस्ट पर था.

सरकार ने कहा कि ‘एक आंकलन से पता चला है’ कि बाजवा के जीवन को ‘कोई ख़तरा नहीं है’ और वैसे भी उन्हें, केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से केंद्रीय सुरक्षा मिल रही है.

बाजवा ने इस क़दम को बदले की कार्रवाई क़रार दिया है. 8 अगस्त को उन्होंने ट्विटर पर कहा, ‘मैंने राज्य में प्रशासन की नाकामी, और मुख्यमंत्री के अनुचित कामकाज पर खुलकर बात की थी.’ उन्होंने आगे लिखा, ‘ज़ाहिर है कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अपने सामान्य अंदाज़ में अनुचित ढंग से काम करते हुए, मेरी सुरक्षा हटाकर मेरे परिवार को ख़तरे में ला दिया है.’

मंगलवार को पंजाब पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) को लिखे एक पत्र में, जाखड़ ने कहा इस फैसले से उन्होंने ‘अपने कर्तव्यों को अंजाम देने में, पेशेवर ईमानदारी और निष्पक्षता को पूरी तरह त्याग दिया है.’

सोमवार को एक सरकारी विज्ञप्ति में अमरिंदर ने इस फैसले का बचाव करते हुए कहा कि समझ में नहीं आता कि बाजवा इस समीक्षा को, राज्य सरकार के साथ अपने टकराव से क्यों जोड़ रहे हैं. उन्होंने आगे कहा कि बाजवा ने ‘बिना किसी आधार के’ इस टकराव को ‘ख़ुद शुरू किया है.’

दोस्त बने दुश्मन

बाजवा और अमरिंदर 2012 में उस समय अलग हो गए थे, जब कांग्रेस लगातार दूसरी बार विधान सभा चुनाव हार गई थी और बाजवा ने पार्टी की हार के लिए कैप्टन को ज़िम्मेदार ठहराया था. 2013 में अमरिंदर की जगह बाजवा को, पंजाब कांग्रेस का अध्यक्ष बना दिया गया. कहा जाता है कि इस कदम से अमरिंदर बहुत परेशान हुए थे.

प्रदेश में पार्टी की अगुवाई के लिए दो साल तक खींचतान चलती रही, और आख़िरकार 2015 में अमरिंदर को चीफ बना दिया गया. ऐसा माना जाता है कि इसके एवज़ में, बाजवा को राज्यसभा सीट दी गई थी. उस साल राज्य सभा की दूसरी सीट के लिए चुनाव में अमरिंदर, गायक से नेता बने हंस राज हंस को लाना चाहते थे, लेकिन दुल्लो ने विरोध कर दिया. पार्टी आलाकमान से बाजवा की निकटता की मदद से, दुल्लो ने इस सीट से अमरिंदर की पसंद को पछाड़ दिया.

अमरिंदर ने 2017 के विधानसभा चुनावों में पार्टी की अगुवाई की, जिसमें कांग्रेस की जीत हुई. उसके बाद से बाजवा खुले तौर पर, मुख्यमंत्री की आलोचना करते आ रहे हैं.

पिछले साल सितम्बर में, बाजवा ने अमरिंदर पर आरोप लगाया कि उन्होंने ये भरोसा दिलाकर लोगों की ‘आंखों में धूल झोंकी’ कि 2015 के अपिवित्रीकरण मामलों में कार्रवाई की जाएगी.

दिप्रिंट से बात करते हुए, डीएवी कॉलेज चंडीगढ़ की राजनीति विज्ञानी, डॉ कंवलप्रीत कौर ने कहा कि वो ‘इस झगड़े को एक ऐसे बदलाव की शुरूआत के रूप में देखती हैं, जो आने वाले दिनों में और ज़्यादा ज़ाहिर होगा.’

उन्होंने आगे कहा, ‘एक तो ये, कि पंजाब चुनावों में दो साल हैं और बाजवा राज्य की सियासत में एक बड़ी भूमिका तलाश रहे हैं. दूसरा ये कि हो सकता है कि बाजवा की हिमायत करके पार्टी आलाकमान कैप्टन अमरिंदर और बाजवा दोनों को एक मज़बूत संदेश देना चाहता हो कि उन्हें अब अपने में सुधार लाने की ज़रूरत है.’

तीसरा ये, कि इस तरह की घटनाएं पार्टी में अंदर ही अंदर उबल रहे असंतोष और कमज़ोर कड़ियों को सामने ले आती हैं. पार्टी आलाकमान के नज़रिए से ये एक अच्छी चीज़ है, अगर वो चुनाव से पहले पार्टी को मज़बूत करना चाहते हैं.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें )

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