नई दिल्ली: युवा भारतीय खूब घूमना चाहते हैं, वे सभी घरेलू पर्यटन स्थलों पर घूमने-फिरने के प्रति इच्छुक हैं, और वे ये सब एकदम सस्ते में करना चाहते हैं. और ये सारी चीजें ट्रैवेलिंग के क्षेत्र में एक काम कर रहे एक स्टार्ट-अप के लिए भारत के नवजात ‘बैकपैकर कल्चर’ – काफी कम बजट और डोरमेट्रीज़ में ठहरने की अपनी विशेषता के साथ छुट्टियों में किया जाने वाला सफर – पर अपना दांव खेलने हेतु पर्याप्त उत्साहजनक संकेत दे रहे हैं.
बैकपैकर हॉस्टल ब्रांड ‘गोस्टॉप्स’, जो 2014 के आसपास से अस्तित्व में है, वर्तमान में इसके पास मौजूदा क्षमता, 32 होस्टल्स में उपलब्ध 2,500 बेड्स (बिस्तरों), को अगले साल जून तक 100 होस्टल्स में 10,000 बेड्स तक विस्तृत करने के लिए अपनी कमर कस रहा है, इसके तहत इसकी निगाहें जेनेरेशन-जेड के पर्यटकों- यानी कि 18 से 30 साल की उम्र तक – पर टिकीं हैं.
इन हॉस्टल्स में उपलब्ध बेड्स की कीमतें लगभग 500 रुपये प्रति रात से शुरू होती हैं, और रंगीन सजावट के साथ अच्छी तरह से देखभाल की गई इमारतों में बने इन डॉर्म के साथ ये हॉस्टल ‘बैकपैकर’ की तुलना में ‘फ्लैशपैकर’अधिक लगते हैं. आमतौर पर उनके पास अपने ग्राहकों को पेश करने के लिए निजी कमरे भी होते हैं.
इस ब्रांड की परिसंपत्तियां जयपुर में बने एक स्मार्ट टाउनहाउस से लेकर एलेप्पी में स्थित एक आलीशान सी लगने वाली पुरानी इमारत और लेह में बने एक पहाड़ी कॉटेज के अलावा कई अन्य जगहों तक फ़ैली हुई हैं.
गोस्टॉप्स की सह-संस्थापक और सीईओ पल्लवी अग्रवाल के अनुसार, हालांकि कोविड लॉकडाउन ने इन हॉस्टल्स सहित पूरे हॉस्पिटैलिटी इंडस्ट्री (अतिथि सत्कार उद्योग) को एक बड़ा झटका दिया था, लेकिन अब इसका भविष्य उज्ज्वल दिखता है.
अग्रवाल ने दिप्रिंट के साथ हुई उनकी एक बातचीत में कहा, ‘भारत में महामारी से पहले हमारे पास लगभग 700 हॉस्टल्स थे और अब यह संख्या अब घटकर 400 हो गई है. लेकिन भारत में 370 मिलियन (37 करोड़) युवा हैं – और बैकपैकर हॉस्टल्स विकसित करने के लिए उपलब्ध अवसर बहुत बड़ा है.’
कंपनी का कहना है कि वह इसकी स्थापना के बाद से माइक्रो फंड और एंजेल इन्वेस्टर्स से लगभग $4 मिलियन की राशि जुटाने में कामयाब रही है.
कुछ सर्वेक्षणों ने भी भारतीयों की घूमने फिरने की इच्छा के साथ-साथ आसान और किफायती यात्राओं के प्रति उनकी प्राथमिकताओं की ओर सबका ध्यान आकर्षित किया है.
उदाहरण के तौर पर अक्टूबर 2021 में लॉकस्क्रीन कंटेंट फर्म ‘ग्लांस’ द्वारा 1,400 स्मार्टफोन उपयोगकर्ताओं के एक सर्वेक्षण में पाया गया था कि 18-30 आयु वर्ग के भारतीय सफर करने के मामले में सबसे अधिक उत्सुक होते हैं. इस सर्वेक्षण के दौरान संपर्क किये उत्तरदाताओं में से 56 प्रतिशत किसी न किसी यात्रा की योजना बना रहे थे.
इन लोगों की यात्रा करने की विश लिस्ट (इच्छित स्थानों की सूची) में घरेलू गंतव्य अधिक संख्या में थे और कथित तौर पर होम स्टे (घरो में रुकने) और अनूठी जगहों पर रुकने की चाहत रखने वाले लोगों (32 प्रतिशत) की हिस्सेदारी में अचानक बढ़ोत्तरी सी आई दिख रही थी.
इसके अलावा, बुकिंग.कॉम के नए ‘एपैक ट्रैवल कॉन्फिडेंस इंडेक्स’, जिसमें इस साल की शुरुआत में 11 देशों के 11,000 लोगों को शामिल किया गया था, ने पाया कि भारतीय लोग एशिया-प्रशांत क्षेत्र में सबसे अधिक आश्वस्त दिख रहे यात्रियों में से थे, लेकिन उनकी प्राथमिकता घरेलू यात्राओं के लिए थी.
इनका उत्साह कम करने वाली चीजों की सूची में कोविड का डर कोई खास नहीं था, लेकिन सीमा सम्बन्धी नियमों में बदलाव, सफर की ज्यादा लागत और क्वारंटाइन जैसी चीजें इन्हें जरूर परेशान कर रहीं थीं.
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इस सबमें हॉस्टल कहां फिट होते हैं?
अग्रवाल का मानना है कि युवा आबादी की यात्रा करने में रुचि भारत में ट्रैवेल इंडस्ट्री को बदलने का एक बड़ा अवसर प्रस्तुत करती है.
वाराणसी में अपना पहला हॉस्टल खोलने के बाद से गोस्टॉप्स ने भारत में 30 से अधिक गंतव्यों पर हॉस्टल स्थापित किए हैं और अब तक 500,000 से अधिक यात्रियों की मेजबानी करने का दावा करती है
किसी पारंपरिक होटल के विपरीत, एक बैकपैकर हॉस्टल लोगों के सामुदायिक रूप से रहने (कम्युनिटी लिविंग) पर ध्यान केंद्रित करता है, जिसमें डॉर्मिटरी और हर एक के लिए उपलब्ध ऐसे सुलभ कॉमन स्पेसेस (सामान्य स्थल) होते हैं जहां लोग गंतव्य और मौसम के अनुसार बोर्डगेम, बोनफायर और इसी तरह की दूसरी गतिविधियों के साथ एक-दूसरे के साथ बातचीत कर सकते हैं.
साल 2011 में की गई यूरोप की एक यात्रा ने अग्रवाल को भारत में हॉस्टल कल्चर को बढ़ावा देने का विचार दिया था.
वे कहती है, ‘हम जो कर रहे हैं वह कोई नई बात नहीं है, यह कुछ ऐसा है जो पहले से ही विश्व स्तर पर किया जा रहा है. फर्क बस इतना ही है कि भारत में यह कभी उतना विकसित नहीं हो सका है और हम इसी पर अपना ध्यान केंद्रित कर रहे हैं.’
यह कंपनी होटलों और घरों का अधिग्रहण करती है और फिर उन्हें डोर्मिटोरिज और कॉमन स्पेसेस के साथ होस्टल्स में बदल ऐसे देती है, जिनमें आमतौर पर एक टीवी एरिया, एक कैफे, गेमिंग ज़ोन (खेलने की जगह) और वर्किंग स्पेस (काम करने की जगह) शामिल होता है.
कई सारी अन्य पर्यटन कंपनियों के विपरीत, जो एग्रीगेटर के रूप में काम करती हैं और मालिकों को अपने हॉस्टल या होमस्टे स्वयं चलाने देती हैं, गोस्टॉप्स स्थानीय कर्मचारियों की मदद से अपनी संपत्तियों के प्रबंधन की देखरेख खुद करता है.
एक अनूठी अवधारणा के रूप में हॉस्टल कई सारे युवाओं को अपनी तरफ आकर्षित करता है जो न केवल पैसे बचाना चाहते हैं बल्कि सफर करने के दौरान नए दोस्त भी बनाना चाहते हैं.
बेंगलुरु में काम करने वाले 24 साल के सिद्धार्थ भारद्वाज ने कहा कि वे कई सालों से इन होस्टल्स में रहना पसंद करते हैं. उन्होंने कहा, ‘मैं ज्यादातर अकेले या अपने दोस्तों के साथ सफर करता हूं, और हॉस्टल हमारे रहने के लिए सबसे अच्छा है. इस तरह मैं बहुत सारा पैसा बचाता हूं और एक साल में अधिक यात्राएं कर पाता हूं.’
कुछ महिलाएं भी अकेले सफर करते समय सामुदायिक स्थानों में ठहरना सुरक्षित महसूस करती हैं. 23 वर्षीय शिवानी सिंह, जो मुंबई में काम करती हैं, ने कहा, ‘एक अकेली महिला यात्री के रूप में, मुझे लगता है कि मेरे लिए हॉस्टल्स में ठहरना सबसे अच्छा है. वे सुरक्षा की भावना प्रदान करते है.‘
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‘मुफ्त में ठहरने’ के अवसर
अग्रवाल ने कहा कि इन हॉस्टल्स में रुकने वाली बात को लोगों के बीच लोकप्रिय बनाने के लिए उनकी कंपनी ने एक पहल शुरू की है, जहां युवा ‘स्वयंसेवक’ उनके काम के बदले किसी भी हॉस्टल में एक महीने तक मुफ्त में रहने का आनंद ले सकते हैं.
अग्रवाल ने बताया, ‘यूरोप में एक ब्रेक ईयर की अवधारणा है, जहां युवा पूरे एक साल के लिए सफर करते हैं. चूंकि भारत में अभी ऐसी कोई चीज नहीं है, इसलिए हमने ‘ब्रेक मंथ’ शुरू करने का फैसला किया. यह युवाओं को हमारे छात्रावासों में मुफ्त में रहने का अवसर प्रदान करता है.’
इसके बावजूद, इन मेहमानों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे स्वेच्छा से अपने रहने लिए कमाई उसी तरीके से अर्जित करें जिससे वे कर सकते हैं – चाहे वह गेम नाइट्स जैसे आइस-ब्रेकिंग सत्र की मेजबानी करना हो, या योग की कक्षाएं लेना हो, या साथी मेहमानों के लिए ट्रेकिंग के दौरान पथ प्रदर्शक की भूमिका निभाना हो.
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