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Friday, 20 December, 2024
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सिख धर्म के तीन ग्रंथ तथा सरबलो ग्रंथ और दशम ग्रंथ के आसपास छिड़ी बहस

पावन गुरु ग्रंथ साहिब की वंदना करने के अलावा निहंग सरबलो ग्रंथ और दशम ग्रंथ में भी आस्था रखते हैं. दिप्रिंट ने तीन ग्रंथों के बीच के अंतर को स्पष्ट करने एक प्रयास किया है.

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चंडीगढ़: निहंगों के एक समूह द्वारा पिछले हफ्ते दिल्ली के सिंघू बॉर्डर पर कथित तौर पर अपनी पवित्र पुस्तक – सरबलो ग्रंथ – को अपवित्र करने की कोशिश करने की ‘सजा’ के रूप में 35 वर्षीय लखबीर सिंह की निर्मम हत्या किये जाने के वाकये के बाद से सिख धर्मग्रंथों और उनके साहित्य के आसपास घूमती एक नई बहस छिड़ गई है.

सरबलो ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब, जिसे सभी सिखों का एक जीवित गुरु माना जाता है, से अलग एक धर्मग्रन्थ है.

परन्तु, गुरु ग्रंथ साहिब की वंदना करने के अलावा, निहंग सरबलो ग्रंथ और दशम ग्रंथ में भी आस्था रखते हैं. दिप्रिंट इन तीन ग्रंथों तथा दसम ग्रंथ और सरबलो ग्रंथ के आसपास घूमते इस विवाद के बीच के अंतर को स्पष्ट करने का प्रयास करता है.

तीन ग्रंथ

ऐसा कहा जाता है कि सिखों का एक और पवित्र ग्रंथ दसम ग्रंथ, उनके दसवें गुरु- गुरु गोबिंद सिंह जी – द्वारा लिखे गए विभिन्न लेखों का संकलन है, पर इन दावों पर विवाद खड़ा किया जाता रहा है.

हालांकि, इसके कुछ हिस्से जैसे कि जाप साहिब सिखों की दैनिक प्रार्थनाओं – नितनेम – का हिस्सा रहे हैं

साल 2010 में, कनाडा के एक गुरुद्वारे में दशम ग्रंथ की प्रामाणिकता को लेकर सिखों के दो समूह आपस में भिड़ गए थे.

पिछले साल, दशम ग्रंथ के ऊपर एक प्रवचन को लेकर नई दिल्ली स्थित गुरुद्वारा बंगला साहिब में भी विरोध प्रदर्शन किया गया था.

वहीं, सरबलो ग्रंथ में प्रसिद्ध खालसा महिमा या खालसा की स्तुति शामिल है, जो दसवें गुरु के साथ जोड़ी जाने वाली एक रचना है.

सरबलो ग्रंथ को पहली बार 19वीं शताब्दी के मध्य में बुड्ढा दल वाले निहंग सम्प्रदाय के जत्थेदार बाबा संता सिंह द्वारा प्रकाशित किया गया था और तब से यह उनका श्रद्धेय पाठ बना हुआ है.

हालांकि, पारंपरिक सिख गुरुद्वारों में केवल गुरु ग्रंथ साहिब को रखा जाता है, निहंग सिख अपने गुरुद्वारों में इन तीनों ग्रंथों को रखते हैं.

सरबलो ग्रंथ के महत्व को समझाते हुए, यूनिवर्सिटी कॉलेज, ढिलवां के सहायक प्रोफेसर, डॉ. जसवंत सिंह ने कहा कि सरबलो ग्रंथ की खोज गुरुओं के काल की बाद की अवधि में हुई थी, लेकिन यह लगभग उसी शैली में लिखा गया है जैसे कि दशम ग्रंथ..

वे कहते हैं, ‘यह एक कहानी का वर्णन है, अच्छी और बुरी ताकतों के बीच एक लड़ाई की कहानी है जो सरबलो अवतार के प्रकट होने के साथ समाप्त होती है.’

डाक्टर जसवंत आगे कहते हैं, ‘हालांकि इसमें दी गई विषय सामग्री पौराणिक परंपरा को दर्शाती है, फिर भी यह उनका एक रूपांतरित संस्करण है. इसकी सबसे महत्वपूर्ण सामग्री खालसा महिमा या खालसा की प्रशंसा जिसे गुरु गोबिंद सिंह से जोड़ कर देखा जाता है. एक अक्सर सुना और उद्धृत किये जाने वाला शबद ‘खालसा मेरे रूप है खास … खालसा में ही हो करो निवास’, सरबलो ग्रंथ से लिया गया है.’

डाक्टर जसवंत ने यह भी बताया कि निहंग गुरुद्वारों, जहां गुरु ग्रंथ साहिब के साथ दशम ग्रंथ और सरबलो ग्रंथ भी रखे जाते हैं, के अलावा सरबलो ग्रंथ को नांदेड़ साहिब (महाराष्ट्र में) स्थित माई भागो गुरुद्वारा में भी रखा गया है. दिप्रिंट से बात करते हुए, सिख विद्वान डॉ. धरम सिंह, जो सिख धर्म के विश्वकोश (इनसाइक्लोपीडिया ऑफ़ सिखिस्म) के प्रधान संपादक भी थे, ने कहा कि गुरु ग्रंथ साहिब सिख गुरुओं के ‘शब्दों ‘ का संकलन है. वे कहते हैं, ‘गुरु गोबिंद सिंह ने यह फ़रमाया था कि गुरु ग्रंथ साहिब को सभी सिखों द्वारा एक जीवित गुरु माना जाना चाहिए. इसी कारण सभी सिख गुरुद्वारों में गुरु ग्रंथ साहिब को बहुत सम्मान के साथ रखा जाता है, इसके आगे नमन किया जाता है और इसकी प्रार्थना की जाती है.’

डॉ. धरम सिंह आगे बताते हैं, ‘जहां गुरु ग्रंथ साहिब एक ज्ञान प्रदान करने वाला (रेवेलटोरी) ग्रंथ है वहीं दशम ग्रंथ और सरबलो ग्रंथ सिख साहित्य का हिस्सा हैं. जैसा कि नाम से पता चलता है, दशम ग्रंथ की रचना का श्रेय दसवें गुरु को दिया जाता है, लेकिन इस पर बहुत बड़ी बहस होती रही है. कुछ विद्वान इस बात से सहमत हैं कि इसके कुछ अंश दसवें गुरु द्वारा लिखे गए होंगे, लेकिन अन्य लोग इस दावे को पूरी तरह से खारिज करते हैं. दशम ग्रंथ के कुछ हिस्सों को जाप साहिब और सेवई जैसे नितनेम (सिख दैनिक प्रार्थना) में शामिल किया गया है.‘


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डॉ. धरम सिंह कहते हैं, ‘दशम ग्रंथ में बछितर नाटक, चंडी दी वार भी शामिल है, जो सुनने में पौराणिक साहित्य जैसे लगते हैं. एकमात्र गुरुद्वारा जहां दशम ग्रंथ को गुरु ग्रंथ साहिब की तरह रखा गया है, वह नांदेड़ साहिब में है. ‘

‘सरबलोह पोथी कोई पवित्र ग्रंथ नहीं है’

हालांकि सिख धर्मग्रंथों पर बहस बद्स्तृर जारी है पर सोमवार को दिए गए एक प्रवचन में सिख उपदेशक रंजीत सिंह धाद्रियांवाले ने कहा कि लखबीर को बिना किसी कारण के मारा गया था. धाद्रियांवाले ने कहा ‘इस बात के क्या सबूत हैं कि उसने कोई बेअदबी की थी? उन्होंने (निहंगों ने) यह कहते हुए उसे मार डाला कि वह उनके सरबलो ग्रंथ को अपवित्र करना चाहता है. सरबलो ग्रंथ पोथी कोई पवित्र ग्रंथ नहीं है.’

2015 में बरगारी में गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी के खिलाफ हुए विरोध प्रदर्शन में सबसे आगे रहने वालों में से एक धाद्रियांवाले ने आगे कहा, ‘जब हम गुरु ग्रंथ साहिब के शबद का उच्चारण (पाठ) करते हैं तो हमारे दिल की धड़कन बढ़ जाती है. इसके लिए हमारा इतना सम्मान है. वही हमारे सच्चे गुरु हैं जिन्हें हम मानते और पूजते हैं. लेकिन इस मामले में जिसे अपवित्र करने का प्रयास किया गया था वह सरबलो ग्रंथ की एक पोथी (पुस्तक) थी, जिसे आधे से अधिक सिख पवित्र पोथी के रूप में मानते भी नहीं हैं. अपने पिता को नुकसान पहुंचाने वाले किसी व्यक्ति पर गुस्से में आह-बबूला होने से पहले, आपको स्पष्ट रूप से पता होना चाहिए कि आपके पिता गुरु ग्रंथ साहिब हैं, सरबलो ग्रंथ नहीं.’

उनकी यह टिप्पणी निहंगों द्वारा लखबीर लखबीर हत्या को सही ठहराने के उस प्रयास बाद आई है जिसमें कहा गया था कि गुरु ग्रंथ साहिब की तरह, सरबलो ग्रंथ भी उनके ‘पिता’ की तरह है और अगर कोई उनके पिता को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करता है, तो ‘उनका बचाव करना उनका कर्तव्य है’.

निहंगों ने क्या दावा किया है?

इस बीच, निहंग नेताओं ने दावा किया कि लखबीर कुछ दिन पहले उनके ‘डेरे’ में आया था और कथित तौर पर उस बस में घुस गया था जहां ग्रंथ रखे गए थे और इसके बाद उसने उस कपड़े को हटा दिया जिसमें सरबलो ग्रंथ को लपेट कर रखा गया था.

सिंघू बॉर्डर पर डेरा डाले हुए निहंगों ने तीनों ग्रंथों को अपने रहने वाले इलाके के पास एक बस में रखा हुआ था.

निहंग नेता बाबा राजा राज सिंह ने रविवार को सिंघू बार्डर पर आयोजित एक प्रेस कांफ्रेंस के दौरान कहा था ‘वह (लखबीर) सरबलो ग्रंथ लेकर भागा और फिर हमने उसे पकड़ लिया. वहां माचिस की तीलियों के डिब्बे पड़े थे और हमें संदेह है कि वह कुछ बड़ा करने आया था.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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