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Saturday, 21 December, 2024
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टेक्सटाइल उद्योग पर मंदी के बादल, खतरे में हज़ारों लोगों की नौकरियां

भारत से लगातार आर्थिक संकट की खबरों के बीच टेक्सटाइल उद्योग के संगठन के एक अखबारी विज्ञापन ने इस क्षेत्र पर छाए संकट की ओर सबका ध्यान खींचा. कृषि के बाद ये उद्योग सबसे ज्यादा नौकरियां देता है.

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नई दिल्ली : भारत का टेक्सटाइल उद्योग प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर करीब 10 करोड़ लोगों को रोज़गार देता है जो कृषि क्षेत्र के बाद रोज़गार देने वाला सबसे बड़ा क्षेत्र है. लेकिन 20 अगस्त को इंडियन एक्सप्रेस के पेज़ 3 पर उत्तर भारत टेक्सटाइल मिल्स एसोसिएशन (निटमा) ने एक विज्ञापन छपवाया जिसमें उन्होंने टेक्सटाइल इंडस्ट्री की बदहाल स्थिति के बारे में बताया. विज्ञापन का शीर्षक था- ‘भारत का स्पिनिंग उद्योग बड़े संकट से गुज़र रहा है जिसकी वजह से काफी संख्या में लोग बेरोज़गार हो रहे हैं.’

उत्तर भारत टेक्सटाइल मिल्स एसोसिएशन (निटमा) के अनुसार स्पिनिंग उद्योग भारी संकट से गुज़र रहा है. ऐसा ही संकट इससे पहले 2010-11 के समय आया था. तब भी निर्यात में भारी गिरावट आई थी.

निटमा ने मौजूदा संकट के कारणों का ज़िक्र अपने विज्ञापन में किया है 

उत्तर भारत टेक्सटाइल मिल्स एसोसिएशन (निटमा) के वाइस प्रेसिडेंट मुकेश त्यागी ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा, ‘सरकार से हमारी तीन मांगें हैं जिसे हमारी संस्था ने अखबार के विज्ञापन में भी छपवाया है. हमारी मांग है कि सरकार कच्चे माल की कीमतों में कमी लाए और निर्यात पर लगने वाले कर में कटौती करे. सरकार डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर के ज़रिए किसानों को उसकी फसल का भुगतान करे और बांग्लादेश, श्रीलंका और इंडोनेशिया से आने वाले कच्चे माल के आयात पर रोक लगाए.’

कपड़ा मिल | फोटो : प्रतीकात्मक तस्वीर/ब्लूमबर्ग

मुकेश त्यागी ने दिप्रिंट को बताया, ‘हमारी संस्था इस मसले को लेकर सरकार से भी लगातार संपर्क में है. अखबार में विज्ञापन देने के पीछे यह कारण है कि हम सरकार का विशेष तौर पर इस संकट की ओर ध्यान आकर्षित कराना चाहते हैं.’

निटमा का कहना है कि 2018 के अप्रैल-जून के मुकाबले 2019 के अप्रैल-जून में सिर्फ सूती यार्न के निर्यात में 34 फीसदी की गिरावट आई है. जिसके कारण 350 करोड़ अमेरिकी डॉलर का नुकसान हुआ है. वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने वित्तीय वर्ष 2019-20 में टेक्सटाइल सेक्टर के बजट में कटौती की है. 2018-19 में इस सेक्टर का बजट 6,943.26 करोड़ रुपए था जिसे घटाकर 5831.48 करोड़ रुपए कर दिया गया है.

एक रिपोर्ट के अनुसार 2018 में भारत ने बांग्लादेश से 21 लाख कॉटन बेल्स आयात किए थे जिसके बाद वो भारत को कॉटन आयात करने वाला सबसे बड़ा देश बन गया था. टेक्सटाइल उद्योग का भारत की जीडीपी में 2 फीसदी हिस्सा है और यह भारत से होने वाले निर्यात में 15 फीसदी का योगदान रखता है. भारतीय टेक्सटाइल उद्योग ने वित्त वर्ष 2017-18 में 39.2 अरब अमेरिकी डॉलर का निर्यात किया था.


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एक रिपोर्ट के अनुसार भारत को अपने कपड़ा उद्योग को बढ़ावा देने के लिए अपने श्रम कानूनों में सुधार की ज़रूरत है. कठोर श्रम कानूनों की वजह से भारत का बाज़ार दूसरे देशों से मुकाबला नहीं कर पा रहा है.

भारत के स्पिनिंग सेक्टर पर प्रभाव

निटमा के अनुसार एक तिहाई स्पिनिंग उद्योग बंद होने की कगार पर है. 80 हज़ार करोड़ के मूल्य वाली कॉटन की फसल का इस साल भारतीय बाज़ारों में कोई खरीदार नहीं है. निटमा ने भारत सरकार से मांग की है कि वो इस उद्योग को संकट से उबारे जिससे लोगों की नौकरियां न जाएं और ये उद्योग एनपीए न बनें.

2016 में कपड़ा उद्योग को सरकार ने स्पेशल पैकेज दिया था

2016 में केंद्र सरकार ने टेक्सटाइल उद्योग को बढ़ावा देने के लिए 60 हज़ार करोड़ का पैकेज दिया था. तब सरकार का दावा था कि विदेशी निवेश के ज़रिए इस सेक्टर को मज़बूत किया जाएगा और 3 सालों के भीतर 1 करोड़ रोज़गार का सृजन होगा. एक रिपोर्ट के अनुसार 2016 में सरकार के स्पेशल पैकेज देने की योजना पूरी तरह सफल होती नहीं दिख रही है. एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार नोटबंदी और जीएसटी के बाद कपड़ा उद्योग की स्थिति काफी खराब हुई है. कपड़ा उद्योग निवेशकों को आकर्षित नहीं कर पा रहा है. टेक्सटाइल सेक्टर में बिक्री में 30-35 प्रतिशत की कमी आई है.

टेक्सटाइल उद्योग में घोर संकट

टेक्सटाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया (टीएआई) के पूर्व नेशनल प्रेसिडेंट अरविंद सिन्हा ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा कि, ‘टेक्सटाइल उद्योग में घोर संकट बना हुआ है. कच्चा माल काफी महंगा है. बंग्लादेश, चीन से आने वाला सामान भारत के मुकाबले काफी सस्ता है जिससे भारत के उद्योगों को काफी मुश्किल हो रही है.’

अरविंद सिन्हा हालांकि निटमा के अखबार में विज्ञापन देने को सही नहीं मानते. वे कहते हैं, ‘इंडस्ट्री के भीतर खुद के पैदा किए हुए संकट हैं जिसे उसे ही ठीक करना होगा. सरकार पर निर्भर रहकर इससे नहीं निपटा जा सकता है. हमारे माल की क्वालिटी में कमियां हैं जिन्हें हमें दूर करना चाहिए.

बनारस में कपड़े के व्यापारी और बुनकर उद्योग से जुड़े जुबेर ने दिप्रिंट से बातचीत में बताया कि, ‘टेक्सटाइल उद्योग में संकट इतना गहरा है कि कारीगरों को समय से पैसा नहीं मिल पा रहा है.’

टेक्सटाइल फैक्ट्री | फोटो : विशेष प्रबंध पर मंगाई गई तस्वीर

जुबेर बुनकर उद्योग फाउंडेशन बनारस के महासचिव भी हैं उन्होंने कहा, ‘कुछ साल पहले उत्तर प्रदेश सरकार (सपा सरकार) एक शहर एक उत्पाद योजना लेकर आई थी जिसमें हर शहर से एक प्रसिद्ध उत्पाद को बढ़ावा देने की योजना थी. लेकिन प्रदेश में नई सरकार आने के बाद पुरानी सभी योजनाओं को बंद कर दिया गया.’

जुबेर बताते हैं कि, ‘सूरत और बेंगलुरू से लोग काम छोड़ कर वापस बनारस आ रहे हैं. काम न मिल पाने के कारण लोग ऑटो रिक्शा और दिहाड़ी पर काम करने को मज़बूर हैं.’

तमिलनाडु के तिरुपुर में चलने वाली सुलोचना कॉटन स्पिनिंग मिल्स प्राइवेट लिमिटेड के यार्न मार्केटिंग से जुड़े रंगराज दिप्रिंट से बातचीत में बताते हैं कि, ‘दक्षिण भारत में भी पिछले 5 महीने से टेक्सटाइल सेक्टर की स्थिति काफी खराब है. स्थानीय दुकानदार यार्न खरीद नहीं रहे हैं.’ उन्होंने बताया कि सरकार इस सेक्टर की कोई भी मदद नहीं कर रही है.

इस संबंध में दिप्रिंट ने कपड़ा मंत्रालय से कई बार संपर्क करने की कोशिश की. लेकिन अभी तक उनकी तरफ से कोई जानकारी नहीं मिली है. मंत्रालय से जवाब आते ही इस रिपोर्ट को अपडेट किया जाएगा.


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यहां भी मंदी की मार

वहीं पिछले कुछ महीनों से ऑटोमोबाइल सेक्टर भी भारी मंदी से जूझ रहा है. गाड़ियों की बिक्री में लगातार कमी आ रही है. इस उद्योग से जुड़े हज़ारों लोगों की नौकरियां जा रही हैं.

इस सबके उलट नरेंद्र मोदी सरकार 2024 तक भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने की बात कह रही है. अगर देश के बड़े उद्योग इन दिनों भारी आर्थिक मंदी से गुज़र रहे हैं तो फिर भारत 2024 तक कैसे 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बन पाएगा. संकट गहरा है.

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