मैसूरु: सुप्रीम कोर्ट के एक तकरीबन 10 साल पुराने आदेश के तहत चलाये गये अतिक्रमण विरोधी अभियान के दौरान मैसूरु जिले के एक दूरदराज के हिस्से में स्थित एक छोटे से मंदिर को आधी रात में गिराए जाने की घटना ने अब एक राजनीतिक तूफान का रूप अख्तियार का लिया है और एक और जहां हिंदू समूहों ने राज्य की भाजपा शासित सरकार के खिलाफ आक्रमक रुख़ दिखाया हैं वहीं कांग्रेस ने कहा है कि सरकार ‘हिंदू भावनाओं को आहत’ कर रही है.
इस घटना के प्रति आक्रोश कुछ इस हद तक रहा कि मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई, जो अभी भी जुलाई में सत्ता संभालने के बाद से अपनी ही पार्टी के भीतर लड़ाई लड़ रहे हैं, ने मंगलवार शाम को जिला प्रशासन से अपना अतिक्रमण विरोधी अभियान रोकने के लिए कहा.
मुख्यमंत्री बोम्मई ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘हमने मैसूरु प्रशासन को कारण बताओ नोटिस जारी किया है कि मंदिर के विध्वंस से पहले स्थानीय लोगों को विश्वास में क्यों नहीं लिया गया. हमने उच्चतम न्यायालय के आदेश का और अध्ययन करने के लिए इस अभियान को कुछ दिनों के लिए स्थगित करने के लिए कहा है.‘
उस दिन हुआ क्या था?
मैसूरु में इस घटना वाली जगह पर अभी भी 8 सितंबर के तड़के सुबह किए गए इस विध्वंस की गूंज बाकी है.
नंजनगुड के हुचचागनी गांव में प्रसिद्ध आदिशक्ति महादेवम्मा मंदिर के नाम से ख्यात मंदिर के मलबे के बीचो-बीच एक पेड़ के नीचे बैठे नरसिम्हेगौड़ा ने दिप्रिंट को बताया कि दरअसल उस दिन हुआ क्या था?
उन्होने बताया कि ‘उस रात तहसीलदार कार्यालय के कुछ अधिकारी मंदिर में आए और उन्होने बिना किसी सूचना के इसे तोड़ना शुरू कर दिया. उस समय सुबह के 3 बज रहे होंगे. हम सभी ग्रामीण नींद से जाग गए और हमने मौके पर पहुंच कर अपना विरोध जताया. लेकिन हमें बताया गया कि यह मंदिर एक अनधिकृत ढांचा है और इसे सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार तोड़ा जाना है.‘ जब सुबह हुई तो ग्रामीणों ने जिला प्रशासन द्वारा पीछे छोड़े गए मलबे को ढेर एकत्र करने के लिए एक अर्थमूवर की व्यवस्था की.
लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि तोड़फोड़ की इस घटना के कुछ ही घंटे बाद हिंदू जागरण वेदिके के सदस्य गांव में पहुंचे. नरसिम्हेगौड़ा कहते हैं, ‘उन्होंने हमसे कहा कि हमें इस विध्वंस के खिलाफ कानूनी रूप से लड़ना चाहिए. हमने मंदिर को एक पास वाली जगह पर स्थानांतरित करने का फैसला किया था और देवताओं की मूर्तियों को वहां स्थानांतरित कर रहे थे जब उन्होंने इस बात पर जोर देते हुए कहा कि मूर्तियों को फिर से उसी स्थान पर स्थापित किया जाना चाहिए, जहां वे मूल रूप में थे.
इसके बाद ग्रामीणों और हिंदू समर्थक संगठन के कार्यकर्ताओं ने उसी स्थान पर एक अस्थायी टिन शेड वाले मंदिर का निर्माण किया जहां पुराना मंदिर था. इसमें किया गया एकमात्र बदलाव – वेदिके सदस्यों द्वारा लगाए गए भगवा झंडे और बैनर – अब इस मंदिर का हिस्सा बन चुके हैं.
अब हचचगनी के निवासियों ने एक ट्रस्ट बनाने, मिलकर पैसे इकट्ठा करने और एक नये मंदिर के निर्माण का फैसला किया है. स्थानीय निवासियों में से एक ने इस मंदिर के निर्माण के लिए अपने खेत में से पांच गुंठा (1.25 एकड़) ज़मीन दान में देने पर सहमति व्यक्त कर दी है.
नरसिम्हेगौड़ा ने कहा कि, ‘हम मंदिर को फिर से उसी स्थान पर बनाना नहीं चाहते क्योंकि इसे एक बार तोड़ दिया गया है. हम इसे पास की जगह पर स्थानांतरित करने के लिए तैयार हैं, लेकिन हम उन सभी संगठनों और पार्टियों के आभारी हैं जो हमारा समर्थन कर रहे हैं.’
ग्रामीणों का दावा है कि यह मंदिर सदियों पुराना है
इसी गांव के रहने वाले 67 वर्षीय येठे ने याद करते हुए बताया कि जब वह छोटे से थे तब यह मंदिर कैसा दिखता था. उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘यह एक छोटी सी संरचना थी जिसके तीन तरफ पत्थर और एक सपाट छत थी. हम पूजा करने के लिए झुक कर जाते थे. गोपुर (मंदिर गुंबद) सहित सीमेंट वाली संरचना लगभग 25 साल पहले बनाई गई थी. लेकिन, जैसा कि हमें हमारे दादा ने बताया था, महादेवम्मा और भैरवेश्वर की दो मूर्तियों के साथ यह मंदिर सदियों से यहीं पर है.’
ये ग्रामीण भी जिला प्रशासन की इस बात से सहमत हैं कि इसे मंदिर का दस्तावेज राजस्व विभाग, पुरातत्व विभाग अठाव बंदोबस्ती विभाग में से किसी के भी पास नहीं है. हालांकि, यह कर्नाटक सरकार द्वारा 2009 और 2010 के बीच चलाए गए अभियान में अनधिकृत और अवैध होने के रूप में पहचाने गए 6,395 संरचनाओं में से एक था.
मैसूरु जिला प्रशासन के एक अधिकारी ने अपना नाम गुप्त रखने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, ‘हम केवल उस सूची पर काम कर रहे हैं जो पहले से ही राज्य सरकार द्वारा तैयार की गई थी. यह उन सभी अनधिकृत संरचनाओं की पहचान करता है जो सार्वजनिक सड़कों, सार्वजनिक सुविधाओं पर अतिक्रमण के रूप में काबिज हैं. इसमें बिना किसी भेदभाव के सभी समुदायों से संबंधित धार्मिक संरचनाएं शामिल हैं. यह विध्वंस अभियान सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार ही चलाया गया था.‘
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जिले के अधिकारियों के अनुसार, महादेवम्मा मंदिर राज्य राजमार्ग 57 पर स्थित है. जिला प्रशासन द्वारा इस मामले को उठाने वाले राजनेताओं को भेजे गए एक संदेश में लिखा गया है कि ‘यह 7 दिसंबर 2009 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद फरवरी 2010 में तहसीलदार द्वारा अवैध और अनधिकृत ढांचे के रूप में इस तालुका में चिन्हित किए गए 15 मंदिरों में से एक था. इनमें से तीन मंदिरों को 2010 में पहले ही हटा कर दिया गया था और उनमें से कुछ को नियमित कर दिया गया था’. दिप्रिंट के पास भी यह संदेश उपलब्ध है.
तोड़फोड़ की इस घटना ने जिस तरह का राजनीतिक मोड़ ले लिया है, उसने अधिकारियों को, उनकी ही स्वीकारोक्ति के अनुसार, झकझोर कर रख दिया है. जिला प्रशासन के अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया कि अनधिकृत संरचनाओं की इस सूची में कई चर्च और दरगाह भी शामिल हैं.
हिंदू संरक्षण की राजनीति
इस घटना के एक दिन बाद भारतीय जनता पार्टी के मैसूरु-कोडगु से सांसद प्रताप सिम्हा द्वारा इस बारे में ट्वीट किए जाने के बाद से ही इस विध्वंस का वीडियो वायरल हो गया
उन्होंने वीडियो के साथ ट्वीट करते हुए लिखा था ‘इस मंदिर ने किसे कष्ट दिया?’
ಯಾರಿಗೆ ತೊಂದರೆ ಕೊಡುತಿತ್ತು ಈ ದೇವಸ್ಥಾನ? pic.twitter.com/lDYoCAH0Zm
— Pratap Simha (@mepratap) September 9, 2021
उनके ट्वीट को कुछ लोगों का समर्थन तो मिला, लेकिन जायदातर नागरिकों और विपक्षी नेताओं के इसकी काफी आलोचना की और उन्होने आश्चर्य व्यक्त किया कि एक भाजपा सांसद द्वारा इस मामले को उठाने के लिए सोशल मीडिया का सहारा लेने का क्या मतलब है जब उनकी पार्टी राज्य, केंद्र और स्थानीय तीनों ही स्तर पर सत्ता में है.
ಯಾರ ಸರ್ಕಾರ ಅಧಿಕಾರದಲ್ಲಿದೆ ಸ್ವಾಮಿ ?
ಡಬಲ್ ಇಂಜಿನ್ ಸರ್ಕಾರ ಯಾರದ್ದು ?ದೇವಸ್ಥಾನ ಯಾರಿಗೂ ತೊಂದರೆ ಕೊಡುತ್ತಿಲ್ಲ ಎಂದರೆ ನಿಮ್ಮ ಸರ್ಕಾರ ಕೋರ್ಟ್ ಗೆ ಮನವಿ ಮಾಡಬೇಕಿತ್ತಲ್ಲವೆ ?
ಈ ನಾಟಕ ಏಕೆ? ಎಷ್ಟು ದಿನ ಮೊಸಳೆ ಕಣ್ಣೀರಿನ ಈ ನಾಟಕ? https://t.co/eR4PznRCrL
— RR ?? (@RakshaRamaiah) September 10, 2021
लेकिन इस मुद्दे ने वाकई में तूल तब पकड़ा जब कर्नाटक विधानसभा में विपक्ष के नेता और कांग्रेस नेता सिद्धारमैया द्वारा राज्य सरकार पर हिंदू भावनाओं को आहत करने का आरोप लगाया गया.
सिद्धारमैया ने 11 सितंबर को इस मुद्दे को तब उठाया जब उन्होंने इस विध्वंस का एक वीडियो साझा करते हुए भाजपा सरकार पर धार्मिक भावनाओं को आहत करने का आरोप लगाया.
I condemn the demolition of an ancient Hindu temple by @BJP4Karnataka govt in Nanjanagudu, Mysuru.
The demolition is done without the consultation of the people in the region & has hurt the religious sentiments.
1/2 pic.twitter.com/t1TrZy2s3t
— Siddaramaiah (@siddaramaiah) September 11, 2021
सिद्धारमैया के इस तरह के बयानों के बाद, कांग्रेस ने बोम्मई के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के खिलाफ उस पर हिंदू भावनाओं को आहत करने का आरोप लगाते हुए एक-के-बाद एक आक्रामक हमले करने शुरू कर दिए – यह एक ऐसी चाल है जिसे भाजपा और उसके सहयोगी संगठन अक्सर अपने विरोधियों के खिलाफ इस्तेमाल करते हैं.
सिद्धारमैया द्वारा इस मुद्दे को उठाए जाने के बाद, सिम्हा ने संवाददाता सम्मेलनों की एक श्रृंखला के साथ विध्वंस के प्रति अपने विरोध को फिर से जिंदा कर दिया. सिद्धारमैया द्वारा आक्रोश व्यक्त किए जाने के एक दिन बाद ही विश्व हिंदू परिषद भी शनिवार को इस बवाल में शामिल हो गई और उसने ‘हिंदू धार्मिक संरचनाओं को लक्षित करने’ के लिए जिला प्रशासन के खिलाफ मैसूरु में एक विरोध प्रदर्शन किया.
इसके बाद सिम्हा ने रविवार को एक और संवाददाता सम्मेलब किया जिसमें उन्होंने जिला प्रशासन पर मस्जिदों और चर्चों द्वारा किए गये अतिक्रमण को नजरअंदाज करते हुए सिर्फ़ हिंदू पूजा स्थलों को निशाना बनाने का आरोप लगाया. प्रेस को अपने संबोधन के दौरान उनके द्वारा चर्चों और मस्जिदों के खिलाफ दिए गये भड़काऊ बयान ने एक और विवाद खड़ा कर दिया.
मंदिर तोड़े जाने को लेकर जहां कांग्रेस और भाजपा में तकरार चल ही रही थी वहीं जद (एस) भी मंगलवार को इस विवाद में कूद पड़ा.
पूर्व मुख्यमंत्री और जद (एस) के विधायक दल के प्रमुख एच.डी. कुमारस्वामी ने व्यंग कसते हुए कहा कि ‘एक तरफ तो राज्य सरकार मंदिरों को गिराती है वहीं दूसरी तरफ उसके ही सहयोगी संगठन इसका विरोध करते हैं. सरकार चाहे तो धार्मिक ढांचों को गिराए जाने से रोक सकती है. आखिरकार, भाजपा जिसकी पूरी राजनीति हिंदुओं के संरक्षण पर एकाधिकार (पेटेंट) के इर्द-गिर्द ही घूमती है, इस वक्त राज्य में सत्ता में है’.
ಸುಪ್ರೀಂ ಕೋರ್ಟ್ ಆದೇಶದ ನೆಪದಲ್ಲಿ ಮೈಸೂರು ಜಿಲ್ಲೆಯ 93 ದೇವಾಲಯಗಳ ಧ್ವಂಸಕ್ಕೆ ರಾಜ್ಯ ಬಿಜೆಪಿ ಸರ್ಕಾರದ ದ್ವಂದ್ವ ನೀತಿಯೇ ಕಾರಣ. ಒಂದು ಸರ್ಕಾರಕ್ಕಿಂತ ಜಿಲ್ಲಾಡಳಿತ ದೊಡ್ಡದೇ? ಒಂದೆಡೆ ದೇಗುಲಗಳ ಧ್ವಂಸ ನಡೆಯುತ್ತಿದೆ. ಇನ್ನೊಂದೆಡೆ ಆಡಳಿತ ಪಕ್ಷದ ಮಿತ್ರಸಂಘಟನೆ ಹಿಂದೂ ಜಾಗರಣ ವೇದಿಕೆ ಹಾದಿಬೀದಿಯಲ್ಲಿ ಪ್ರತಿಭಟನೆ ಮಾಡುತ್ತಿದೆ! (1/4)
— H D Kumaraswamy (@hd_kumaraswamy) September 14, 2021
इस सब के बीच एक स्पष्ट रूप से दिखने वाली समस्या को अनदेखा करना मुश्किल है और वह है इस क्षेत्र की राजनीति.
मैसूरु पारंपरिक रूप से जद (एस) और कांग्रेस के बीच ही राजनैतिक जंग का मैदान रहा है, लेकिन पिछले एक दशक में भाजपा ने भी यहां अपनी पैठ बना ली है. इससे ही कांग्रेस और जद (एस) द्वारा मंदिर के मुद्दे पर भाजपा सरकार पर कटाक्ष करने की यह विडंबना सामने आई है.
इस तालुका के एक निवासी, जो तहसीलदार कार्यालय में काम करता है और जो अपनी पहचान जाहिर नहीं करना चाहता था, ने कहा, ‘सिद्धारमैया द्वारा इस बारे में खुलकर बोलने के बाद ही इस मुद्दे को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया. जिस क्षण उन्होंने भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार पर हिंदू विरोधी होने का आरोप लगाया, उसी पल से भाजपा नेताओं और हिंदू समर्थक संगठनों ने भी अपना मोर्चा संभाल लिया.’
सिद्धारमैया के एक करीबी सहयोगी माने जाने वाले एक कांग्रेस नेता ने उनका बचाव करते हुए कहा, ‘नंजनगुड उनका घरेलू क्षेत्र है और यह एक ऐसा मुद्दा है जो वहां के लोगों के लिए भावनात्मक महत्व का है. इसके अलावा, अगर यही सब कुछ कांग्रेस की सरकार के तहत हुआ होता, तो क्या भाजपा वैसे ही चुप रहती जैसे कि अभी है?’
वर्तमान स्थिति
सर्वोच्च न्यायालय के आदेश को लागू करने और इस विध्वंस अभियान को लेकर चल रही राजनीति के बीच दो पाटो के बीच फंसे जिला प्रशासकों ने इस बारे अपना सारा कामकाज रोक दिया है.
मैसूरु नगर निगम के एक वरिष्ठ अधिकारी, जो अपना नाम नहीं बताना चाहते थे, ने कहा ‘ यह सफाई अभियान (क्लीयरेंस ड्राइव) 2010 से चल रही एक सतत प्रक्रिया है, जिसके तहत कई ढांचों को ध्वस्त किया गया है. जब भी आवश्यकता होती है इस सूची को यह जांचने के लिए संशोधित किया जाता है कि क्या किसी ढ़ाँचे को पुन: आवंटन, नियमितीकरण द्वारा अधिनियमित किया जा सकता है. सिर्फ़ मैसूरु शहर में हमारे पास ऐसे 93 अनधिकृत संरचनाओं की सूची है. अब हम केस-टू-केस आधार पर इनमें से प्रत्येक की समीक्षा करेंगे.’
इस बीच सिद्धारमैया ने बुधवार को विधान सौध में मीडिया से बात करते हुए इस बात पर जोर देकर कहा कि अभियान को स्थगित करने का निर्णय काफ़ी बाद में लिया गया फ़ैसला है.
उन्होने कहा, ‘भाजपा लोगों को भगवान के नाम पर धोखा देती है लेकिन मंदिरों को तोड़ने की अनुमति भी देती है. क्या राज्य सरकार वास्तव में चाहती है कि लोग इस बात पर यकीन कर लें कि उसे जिला प्रशासन के क्रियाकलापों की जानकारी नहीं थी? जनता के द्वारा किए गये हंगामे के बाद ही उन्होंने इसे रोका है.’
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