तेलंगाना: भद्राद्री कोठागुडम जिले के एक गांव में तेलंगाना के वन रेंज अधिकारी श्रीनिवास राव की हत्या के कुछ दिनों बाद वन अधिकारियों ने गुथिकोया जनजाति से वन क्षेत्र छोड़ने के लिए कहा है. इनमें से दो सदस्यों को हत्या के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया था. आदिवासियों को सामाजिक बहिष्कार का भी सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि ग्राम पंचायत द्वारा उनके खिलाफ प्रस्ताव पारित किया गया है.
रविवार को तेलंगाना राज्य वन विभाग के अधिकारियों ने एर्राबोडु गांव में जनजाति के 40 परिवारों को नोटिस जारी कर वन क्षेत्र खाली करने को कहा था. कोठागुडम वन प्रभाग के वन प्रभाग अधिकारी ए. अप्पय्या ने दिप्रिंट को बताया कि वन क्षेत्र पर ‘अवैध रूप से’ कब्जा करने वालों को नोटिस जारी करना एक ‘नियमित अभ्यास’ का हिस्सा था.
उन्होंने कहा, ‘यह नोटिस एक ‘सामान्य अभ्यास’ का हिस्सा था. हमने पहले भी नोटिस जारी किए हैं. जब भी हम अतिक्रमण देखते हैं तो हम उन्हें नोटिस जारी करते हैं कि वन अधिनियम ऐसी किसी भी गतिविधि की अनुमति नहीं देता है. हम उनसे उस क्षेत्र में रहने के लिए 10 दिन के भीतर कोई कानूनी दस्तावेज जमा करने के लिए भी कहते हैं,’
दिप्रिंट से बातचीत करते हुए एर्राबोडू के निवासी 27 वर्षीय रव्वा राघव कहते हैं, ‘वन अधिकारी रविवार सुबह 10 बजे के आसपास गांव आए और कागज के एक टुकड़े पर हममें से कुछ लोगों के हस्ताक्षर और अंगूठे के निशान लिए. हमनें जब उनसे पूछा कि यह नोटिस किस बारे में है तो उन्होंने जवाब देने से इंकार कर दिया. हम डरे हुए थे कि इस कागज पर कुछ भी हो सकता है और हममें से कुछ लोगों ने उसपर हस्ताक्षर करने से इंकार कर दिया.’
श्रीनिवास राव जिन्हें 2021 में वनों के संरक्षण के लिए राज्य स्वर्ण पदक मिला था, उनपर पिछले हफ्ते गुथिकोया जनजाति के दो सदस्यों द्वारा कथित तौर पर क्रूरता से हमला किया गया. इस हमले के कारण राव की मौत हो गई थी. पुलिस ने इस मामले में दो संदिग्धों को गिरफ्तार किया है.
पुलिस के मुताबिक एर्राबोडु वन क्षेत्र में मवेशी चराने को लेकर वन अधिकारी और आदिवासी लोग आपस में भिड़ गए थे. राव ने इस दौरान जंगल को बचाने की कोशिश की थी.
अप्पय्या कहते हैं, ‘गुथिकोया जनजाति आमतौर पर छत्तीसगढ़ में प्रवास करती है और वे तेलंगाना की स्थायी जनजाति नहीं है. एर्राबोडु गांव में यह जनजाति 2013 या उसके बाद से रह रही है. ये जंगल के विभिन्न स्थानों पर प्रवास करते रहते हैं और जब भी वो किसी नए क्षेत्र में जाते हैं तो वहां रहने के लिए की एकड़ वन भूमि और वृक्षारोपण को नष्ट कर देते हैं.’
इससे पहले तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव भी कई मौकों पर गुथिकोया जनजाति के तेलंगाना में बसने और कथित रूप से जंगलों को नुकसान पहुंचाने की बात कह चुके हैं.
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‘हम यहां से नहीं हटेंगे’
गुथिकोया जनजाति को बेंदलापाडु ग्राम पंचायत से बहिष्कार का सामना करना पड़ रहा है. एराबोडू इसी ग्राम निकाय के अंदर आता है. ग्राम पंचायत ने यह कहते हुए कि हत्या से गांव में दहशत फैल गई थी और कई लोगों को अपनी सुरक्षा का डर था, पंचायत ने कथित तौर पर सामाजिक बहिष्कार का आह्वान करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया और जनजाति को छत्तीसगढ़ से बाहर निकालने की मांग की.
राघव कहते हैं, ‘हमारी ग्राम पंचायत ने हमारे खिलाफ एक प्रस्ताव पारित किया था. वे कहते हैं कि वे हमारे कबीले से डरते हैं. अगत दो गलती करते हैं या फिर झड़प में शामिल होते हैं तो हम में से सभी को दंडित क्यों किया जाना चाहिए.’ उन्होंने कहा, ‘हम सब्जियां या किराना सामान खरीदने के लिए गांव नहीं जा सकते. हम सब्जी खरीदने के लिए 20 किलोमीटर दूर इलाके में जा रहे हैं. उन्हें नोटिस या फिर कुछ भी देने दीजिए, हम यहां से नहीं हटेंगे.’
कोठागुडेम डिवीजन के एकीकृत जनजातीय विकास एजेंसी के परियोजना अधिकारी गौतम पोटुरु कहते हैं, ‘बहिष्कार का मुद्दा उनके संज्ञान में आया था लेकिन अभी तक कोई औपचारिक शिकायत नहीं की गई है. हालांकि विभाग ने मामले की जांच के आदेश दे दिए हैं.’
(अनुवाद: ऋषभ राज)
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