श्रीनगर,कश्मीर: डल झील पर बने हाउसबोट के अपने घर से आठ साल की जन्नत पर्यटकों को शिकारा से सैर करते हुए देख रही है. जैसे ही पर्यटकों में से एक पर्यटक ने खाली चिप्स का एक खाली पैकेट पानी मे गिराया, जन्नत अपना लाउडस्पीकर लेने के लिए दौड़ी औेर बोली ‘पानी मे प्लास्टिक मत फेंको.’ उसने दोहराया, ‘कृपया प्लास्टिक की थैलियां या कोई भी कचरा यहां डल झील मे ना फेंके, यह हमारा घर है.’
कुछ घंटो बाद ,वह अपने शिकारे पर बैठ जाती है और पानी से बोतलें, प्लास्टिक के पैकेट और कागज इकठा कर और उन सभी को एक बैग में भरना शुरू करती है. औेर जैसे -जैसे वह झील के चारों ओर चक्कर लगाती है, वह पर्यटकों से अनुरोध करती रहती है कि ‘कृपया झील मे प्लास्टिक की थैलियां या कोइ भी कचरा ना फेंके’. उसे यह करने मे एक घंटे से अधिक समय लगता है.
तारिक अहमद पतलू जो जन्नत के पिता है . वह हाउसबोट के बाहर अपने एम्बुलेंस शिकारा की मरम्मत करने में व्यस्त हैं, जिसका उपयोग वह झील में रहने वाले मरीजों को लाने ले जाने के लिए करते हैं.
ट्रस्ट की मदद से पतलू ने पिछले साल अगस्त में कोविड -19 के दौरान इस एम्बुलेंस का निर्माण किया गया था. कोरोनावायरस के डर से कोई भी शिकारा झील के उस पार ले जाने के लिए तैयार नहीं था.
पतलू को डल झील को पार कर अस्पताल पहुंचने में बहुत सी दिक्कतों का सामना करना पड़ा था. तभी उन्होंने फैसला किया था की झील में रहने वाले लोगों के लिए वह एम्बुलेंस का निर्माण करेंगे.
उस एम्बुलेंस में आपातकाली स्थिति से निपटने की सारी व्यवस्था मौजूद है जैसे की स्ट्रेचर, ऑक्सीजन कंसंट्रेटर, सिलेंडर और मेडिकल बॉक्स. अब ये झील के उस पार आपातकालीन स्थिति में लोगों को ले जा सकते हैं.
पिछले महीनें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी मन की बात कार्यक्रम में पतलू का उल्लेख किया था और उनके काम को लेकर सराहना भी की थी.
हालांकि, अब पतलू को लगता है कि मीडिया कवरेज के साथ उन्हें लोगों का ध्यान भी उनकी तरफ गया लेकिन कोई भी इसे चालू रखने के लिए किसी ने भी मदद का हाथ आगे नहीं बढ़ाया.
पतलू, जो लगातार अलग- अलग सरकारी मंचों पर बोटिंग कम्यूनिटी की चिंताओं को सामने रखने का प्रयास किया है और उनकी बेटी जन्नत , जो झील की सफाई के लिए अभियान चला रही है का मन की बात में उल्लेख किया जाना उत्साह बढ़ाने के लिए तो ठीक है लेकिन काफ़ी नही है.