परांदूर: तमिलनाडु के कांचीपुरम जिले स्थित नागपट्टू गांव के लोगों में हरे-भरे वातावरण को लेकर खासा उत्साह नजर आता है. स्थानीय निवासी मैथिली और वसंती ने अपने घर के पिछवाड़े में तमाम तरह की वनस्पतियां उगा रखी हैं और दिप्रिंट को अपना यह कलेक्शन दिखाने में वे कोई कसर नहीं छोड़ना चाहतीं.
मैथिली का आम का पेड़ 10 साल पुराना हो गया है, और सहजन का पेड़ लगाए तो 20 साल बीत चुके हैं और उसकी पिछली दीवार पर पर लगी हरे-भरे पान की बेल औसतन पांच साल पुरानी है. उसका सवाल है, ‘क्या वहां ये सब होगा जहां हमें जाने को कहा जा रहा है?’
नागापट्टू 80 घरों वाला एक छोटा-सा गांव है जो एक नए ग्रीनफील्ड एयरपोर्ट के लिए निर्धारित 12 गांवों में से एक है. यह एयरपोर्ट चेन्नई से 70 किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में परांदूर में 4,791 एकड़ भूमि पर बनाया जाना है.
करीब 20,000 करोड़ रुपये की लागत वाला यह प्रोजेक्ट एक ‘महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचा’ माना जा रहा, जो मीनांबक्कम स्थित चेन्नई इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर भीड़भाड़ तो घटाएगा ही, द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) के नेतृत्व वाली राज्य सरकार के लिए 2030 तक 1 ट्रिलियन डॉलर वाली अर्थव्यवस्था का महत्वाकांक्षी लक्ष्य पूरा करने में मददगार भी होगा.
तमिलनाडु सरकार का कहना है कि मौजूदा एयरपोर्ट के अलावा एक नए एयरपोर्ट की आवश्यकता है क्योंकि 2030 से 2035 के बीच यात्रियों की संख्या मौजूदा 2.2 करोड़ की तुलना में बढ़कर 10 करोड़ तक पहुंचने के आसार हैं. 2028 तक, यानी जब तक दूसरा एयरपोर्ट बनकर तैयार होने और उसके चालू होने की उम्मीद है, यह संख्या बढ़कर 3.5 करोड़ हो जाने का अनुमान है.
बहरहाल, केंद्रीय नागरिक उड्डयन राज्य मंत्री विजय कुमार सिंह की तरफ से इसी साल 1 अगस्त को चेन्नई के दूसरे एयरपोर्ट के लिए जगह की घोषणा किए जाने के बाद से यहां ग्रामीणों ने लगातार आंदोलन छेड़ रखा है. स्थानीय किसान अपनी जमीन छोड़ने को तैयार नहीं है, जहां मुख्य रूप से चावल की खेती होती है.
राज्य सरकार कई बार उनकी चिंताएं दूर करने का प्रयास कर चुकी है और जमीन के बाजार मूल्य से 3.5 गुना अधिक मुआवजा देने का वादा कर रही है. लेकिन परियोजना के खिलाफ आवाज उठा रहे किसानों के इस आंदोलन ने 3 नवंबर को सौ दिन पूरे कर लिए.
यह आंदोलन उन विरोध-प्रदर्शनों की याद दिलाता है जो बेंगलुरु और हैदराबाद में नए इंटरनेशनल एयरपोर्ट की योजना बनाए जाते समय सुर्खियों में रहे थे, बाद में इन्हें कुछ सालों की देरी के बाद 2008 में खोला जा सका. आज, इन दोनों एयरपोर्ट ने पैसेंजर ट्रैफिक के मामले में चेन्नई को तीसरी से पांचवीं रैंक पर धकेल दिया है.
चेन्नई के ताज कोनेमारा होटल में 2 नवंबर को आयोजित एक कांफ्रेंस—जिसमें दिप्रिंट मौजूद था—में राज्य सरकार के प्रतिनिधियों ने नए एयरपोर्ट पर अपना पक्ष रखने के साथ-साथ प्रोजेक्ट को लेकर तमाम शंकाओं-आशंकाओं के समाधान की कोशिश भी की.
तमिलनाडु औद्योगिक विकास निगम लिमिटेड (टीआईडीसीओ) और मद्रास चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज (एमसीसीआई) की तरफ से आयोजित कांफ्रेस में राज्य के उद्योग मंत्री थंगम थेनारासु ने कहा, ‘मौजूदा एयरपोर्ट पूरी तरह सुविधा सम्पन्न नहीं है. इसलिए हमें निश्चित तौर पर एक नए ग्रीनफील्ड एयरपोर्ट की जरूरत है, जो भविष्य में बढ़ने वाली डिमांड के अनुरूप होगा’.
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तमिलनाडु के योजना आयोग की सदस्य मल्लिका श्रीनिवासन ने कहा, ‘हम तेजी से ग्रो करते बेंगलुरु और हैदराबाद (एयरपोर्ट) से पिछड़ गए हैं. इसलिए, क्षमताएं तत्काल बढ़ाने की आवश्यकता है.’
हालांकि, विस्थापित किए जाने वाले लोगों से जमीन खरीदना किसी चुनौती से कम नहीं है. दिप्रिंट ने जिन गांवों का दौरा किया, वहां के लोगों में इस बात को लेकर नाराजगी साफ नजर आई कि उन्हें परामर्श प्रक्रिया का हिस्सा नहीं बनाया गया. वहीं, तमाम लोगों को यह आशंका भी सता रही है वे आजीविका के एकमात्र साधन अपने खेतों को गंवा देंगे. वैसे तो यहां के गांव जाति के आधार पर काफी बंटे नजर आते थे थे, लेकिन प्रोजेक्ट के खिलाफ ये एकजुट हो गए हैं.
तमाम पर्यावरण कार्यकर्ता भी ग्रामीणों के सुर में सुर मिलाते नजर आ रहे हैं, जिन्होंने आगाह किया है कि एयरपोर्ट प्रोजेक्ट बड़े पैमाने पर बाढ़ का कारण बन सकता है और इस क्षेत्र में वेटलैंड में किसी तरह का निर्माण पारिस्थितिकी आपदा को ही निमंत्रित करने वाला साबित होगा.
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काफी हरी-भरी कृषि भूमि से घिरा एकनापुरम गांव चेन्नई से करीब दो घंटे की ड्राइव पर है. दिप्रिंट ने विरोध प्रदर्शन के 79वें दिन 13 अक्टूबर को जब यहां का दौरा किया तो ग्रामीणों ने बताया कि उनकी पूरी दिनचर्या क्या होती है.
उन्होंने बताया कि दिनभर के कामकाज निपटाकर रात का खाना खाने के बाद वो लोग स्थानीय मंदिर के बाहर जुटते हैं और फिर इस पर चर्चा करते हैं कि ‘यहां का नक्शा बदल जाने’ को कैसे रोकें. स्थानीय ग्रामीणों का दावा है कि सरकार ने उनके साथ किसी तरह का परामर्श नहीं किया है और उन्हें प्रोजेक्ट के बारे में सारी जानकारी न्यूज चैनलों के जरिये ही मिली है.
अति पिछड़ा वर्ग में शुमार वन्नियार समुदाय से आने वाली गांव की एक बुजुर्ग चेल्लम्मा ने कहा, ‘हम यह एयरपोर्ट नहीं चाहते हैं, हम रत्तीभर भी जमीन नहीं देंगे. हम किसी भी कीमत पर एकनापुरम नहीं छोड़ेंगे.’
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वैसे तो वन्नियार और दलित समुदाय के लोग गांव के अलग-अलग इलाकों में रहते हैं, लेकिन अब दोनों समुदायों के लोग विरोध जताने के लिए एक साथ बैठते हैं. कुछ समय पहले तक, यहां बी.आर. अम्बेडकर की प्रतिमा को कथित तौर पर लोहों की जालियों के बीच रखा जाता था ताकि अगड़ी जाति वाले उसे तोड़ न दें. लेकिन अब, हर शाम सभी समुदायों के लोग साथ बैठते हैं और अपने अगले कदम की रणनीति बनाते हैं.
एक 33 वर्षीय खेतिहर मजदूर मेनका एस. का कहना है, ‘मंत्री सार्वजनिक तौर पर कह रहे हैं कि उन्होंने परामर्श किया लेकिन उन्होंने आखिर किससे पूछा? हम अभी पुलिस सुरक्षा के घेरे में अपने ही गांव में शरणार्थियों की तरह रह रहे हैं. वे हमसे पूछते रहते हैं कि हम कहां जा रहे हैं, हमें अपना आधार कार्ड दिखाने को कहा जाता है. हमने कौन-सा अपराध कर दिया है?’
13 अक्टूबर को दिप्रिंट इस क्षेत्र में कई चेकपोस्ट से होकर गुजरा. नागापट्टू गांव में सादी वर्दी में तैनात दो पुलिसकर्मियों ने हमें पहचानपत्र दिखाने को कहा.
पास के दलित बहुल गांव की दुर्गा देवी ने दावा किया, ‘जब उन्होंने हमारे गांव के पास एक बड़ी टायर कंपनी स्थापित की थी, तब दावा किया था कि लोगों को रोजगार के अवसर मिलेंगे, लेकिन हमारे गांव का एक भी व्यक्ति उस कारखाने में काम नहीं करता है. अब जब हम विरोध कर रहे हैं तब तो आप हमें गंभीरता से ले नहीं रहे. फिर भला हमारे यहां से चले जाने के बाद हमारी क्या परवाह करेंगे?’
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दिप्रिंट से बातचीत करने वाले कई ग्रामीणों ने यह भी बताया कि कैसे कई राजनेताओं ने 2021 के विधानसभा चुनावों से पहले उनके गांवों का दौरा किया था, और आश्वासन दिया था कि परांदूर में एयरपोर्ट नहीं बनेगा.
कुछ लोगों का अपना विरोध-प्रदर्शन बड़े पैमान पर उस आंदोलन के जैसा लगता है, जो 2018 में चेन्नई-सलेम एक्सप्रेसवे के समय हुआ था, जब डीएमके विपक्ष में थी. केंद्र सरकार की 10,000 करोड़ रुपये की यह परियोजना, आठ लेन में 277.3 किलोमीटर तक फैली है, जिसमें छह जिलों के लोगों को अपनी जमीन, घर और खेत गंवा देने की आशंका थी. उस समय द्रमुक ने इस परियोजना का कड़ा विरोध भी किया था.
लेकिन अब ऐसा लगता है कि उसने अपना रुख बदल दिया है. सितंबर 2022 में लोक निर्माण मंत्री ई.वी. वेलू ने कहा कि सरकार सभी संबद्ध लोगों से बात करके रोड प्रोजेक्ट पर नीतिगत फैसला लेगी. उन्होंने कहा कि द्रमुक ने सड़क के बुनियादी ढांचे पर आपत्ति नहीं है बल्कि मुद्दा यह था कि जब पूर्व में सत्तासीन रही अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (एआईएडीएमके) ने लोगों की चिंताओं का ध्यान नहीं रखा था.
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‘सरकार ने परांदूर को बस ऐसे ही नहीं चुन लिया’
तमिलनाडु सरकार का दावा है कि उसने विचार-विमर्श की एक लंबी प्रक्रिया और व्यापक स्तर पर कई उपयुक्त स्थान तलाशने के बाद ही परांदूर को चुना है. सरकारी अधिकारियों का कहना है कि वे राज्य में अधिक से अधिक यात्रियों के आने की व्यवस्था करने के लिए चेन्नई के दक्षिण में कोई जगह तलाश रहे थे लेकिन आखिरकार यह तलाश पश्चिम में स्थित परांदूर में आकर पूरी हुई.
तमिलनाडु की राजधानी में 2 नवंबर को आयोजित सम्मेलन में उद्योग मंत्री थेनारासु ने कहा कि उनसे अक्सर ही यह सवाल किया जाता था कि सरकार ने मौजूदा एयरपोर्ट का विस्तार क्यों नहीं किया.
उन्होंने कहा, ‘मौजूदा एयरपोर्ट के विस्तार के लिए 300-400 एकड़ और भूमि की जरूरत होती. एयरपोर्स के आसपास एक तरफ रक्षा प्रतिष्ठान हैं तो दूसरी तरफ एक नदी, पहाड़ी और बहुत सारी बस्तियां हैं. भविष्य में करीब 10 करोड़ लोगों की आवाजाही की संभावनाओं को देखते हुए हम मौजूदा एयरपोर्ट में बहुत ज्यादा अच्छी सुविधाएं मुहैया कराने की स्थिति में नहीं हैं.’
थेनारासु ने कहा कि सरकार कोई अचानक से ही परांदूर में नहीं आ ‘टपकी’ है, और भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण ने चार संभावित साइटों के विकल्पों पर विचार करने से पहले कम से कम 16 साइटों का सर्वेक्षण किया था.
उन्होंने कहा, ‘आप चेन्नई में चारो तरफ नजर दौड़ाकर देखिए, तो एक तरफ कलपक्कम परमाणु ऊर्जा संयंत्र है, दूसरी तरफ तांबरम एयरबेस है. वहीं नीचे दक्षिणी क्षेत्र में देखें वेदान्थंगल पक्षी अभयारण्य है और उत्तर की तरफ बढ़े तो पुलिकट झील है. हम पारिस्थितिकी के लिहाज से इन संवेदनशील क्षेत्रों को हाथ भी नहीं लगा सकते. इन सबको ध्यान में रखकर शहर के पश्चिम के तरफ की जगह बेहतर लगी, और इस तरह हमने परांदूर को चुना.
इसी कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उद्योग विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव एस. कृष्णन ने कहा कि सरकार स्थानीय समुदायों को ‘किसी भी तरह की परेशानी नहीं होने देना चाहती’ थी, लेकिन कहीं न कहीं कुछ हित तो प्रभावित होंगे ही.
उन्होंने कहा, ‘आखिरकार, जो भी बुनियादी ढांचा बनाया जाता है, उसमें कहीं न कहीं किसी न किसी का हित तो प्रभावित होता ही है. लेकिन हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि उनके (स्थानीय समुदायों के) हितों की रक्षा की जाए और जहां तक संभव हो उन्हें कोई परेशानी न होने दी जाए.’
थेनारासु ने यह भी कहा कि इस परियोजना पर इस तरह अमल किया जाना होगा जिससे अंततः स्थानीय समुदायों को लाभ मिले.
उन्होंने कहा, ‘एयरपोर्ट प्रोजेक्ट सिर्फ उद्योग की बेहतरी के लिए नहीं है बल्कि इसके जरिये वहां के लोगों के उत्थान का भी इरादा है. हमारा मकसद उनसे बात करना, उन्हें मनाना था. और हम इस बारे में लगातार चर्चा कर रहे हैं.’
बहरहाल, इनमें कुछ प्रयासों का असर होता दिख रहा है. बतौर उदाहरण, ग्रामीणों ने पिछले महीने दिप्रिंट से मुलाकात के दौरान 17 अक्टूबर को फोर्ट सेंट जॉर्ज में सचिवालय तक विरोध प्रदर्शन की योजना की जानकारी दी थी, जो विधानसभा सत्र के पहले दिन ही प्रस्तावित थी.
हालांकि, दो दिन बाद तमिलनाडु सरकार के तीन मंत्रियों—थेनारासु, लोक निर्माण मंत्री ई.वी. वेलु और ग्रामीण उद्योग मंत्री टी.एम. अनबरसन—ने ग्रामीणों के साथ बातचीत की जिसके बाद उन्होंने अपना प्रस्तावित मार्च स्थगित कर दिया. मंत्रियों ने ग्रामीणो से वादा किया कि उनकी जमीन के तीन गुना दाम मिलेंगे, साथ ही यह आश्वासन भी दिया कि उन्हें रोजगार के पर्याप्त अवसर मुहैया कराए जाएंगे.
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बाढ़ का खतरा बढ़ने को लेकर चेताया
कुछ पर्यावरणविद इस बात से चिंतित हैं कि एयरपोर्ट प्रोजेक्ट का पारिस्थितिक पर गंभीर प्रतिकूल असर पड़ सकता है और बाढ़ का खतरा बढ़ सकता है, लेकिन सरकार ने कहा है कि उसने इन सभी पहलुओं को ध्यान में रखा है.
पिछले माह के शुरू में चेन्नई स्थित पर्यावरण संरक्षण संगठन पूवुलागिन नानबर्गल की तरफ से जारी सात पेज की एक रिपोर्ट में सरकार को आगाह करते हुए कहा गया था कि एयरपोर्ट का निर्माण गंभीर ‘पारिस्थितिक आपदा’ को न्योता देगा.
इसने कहा गया कि परियोजना के लिए अधिग्रहित की जाने वाली 4,000 एकड़ से अधिक भूमि में से 1,317 एकड़ को पोराम्बोक्कू (बंजर भूमि) बताया गया है. हालांकि, रिपोर्ट में दावा किया गया है कि इस कथित ‘बंजर भूमि’ के 955 एकड़ इलाके में झीलें, तालाब और छोटे जलाशय हैं, जबकि बाकी भूमि चराई के काम आती है.
रिपोर्ट के मुताबिक, ‘यदि प्रस्तावित हवाईअड्डा बना, तो यह 43 किलोमीटर लंबी कंबन नहर के प्रवाह को बाधित करेगा, जो श्रीपेरुम्बदूर झील के अलावा करीब 85 झीलों के लिए प्रमुख जल स्रोत है.’
सितंबर में इंडियन एक्सप्रेस को दिए एक इंटरव्यू में पूवुलागिन नानबर्गल के जी. सुंदरराजन ने कहा था कि प्रोजेक्ट का शुरुआती मैप दर्शाता है कि एयरपोर्ट का रनवे दो अन्य धाराओं के संगम से बनी एक तीसरी धारा और कई अन्य जल निकायों का प्रवाह बाधित कर देगा. और यह आगे चलकर एयरपोरट पर बाढ़ का कारण भी बन सकता है.
उनके मुताबिक, जल निकायों के ऊपर एयरपोर्ट बनाने के बारे में 1970 के दशक में भले सोचा जा सकता रहा हो, लेकिन ऐसे समय में तो कतई नहीं जब जलवायु परिवर्तन की स्थिति विकराल हो गई है. उन्होंने दावा किया कि यह एयरपोर्ट बाढ़ के लिहाज से संवेदनशील चेन्नई में स्थिति को और भी बिगाड़ा सकता है.
हालांकि, तमिलनाडु सरकार का कहना है कि उसने इस पर संज्ञान लिया है.
सम्मेलन में कृष्णन ने जोर देकर कहा कि सरकार को चेन्नई के आसपास के वाटरशेड क्षेत्र के बारे में अच्छी तरह पता है. उन्होंने कहा, ‘हमें यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि पानी के प्रवाह और उसके निकलने के रास्ते को कैसे संरक्षित किया जाए. हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हम इसके लिए उचित योजना बनाएं अन्यथा नए बुनियादी ढांचे में बाढ़ की समस्या आएगी.’
कृष्णन ने बताया कि सरकार ने एक प्रारंभिक अध्ययन कराया है और प्रोजेक्ट इस तरह डिजाइन किया जाएगा कि जल निकायों पर कम से कम प्रभाव पड़े और जल निकासी की पर्याप्त व्यवस्था रहे. भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), मद्रास और गिंडी स्थित इंजीनियरिंग कॉलेज के सदस्यों की एक एक्सपर्ट कमेटी भी बनाई गई है.
कृष्णन ने कहा, ‘बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को तैयार करते समय स्थानीय लोगों की चिंताओं के मद्देनजर कुछ लचीला रुख अपना महत्वपूर्ण होता है. हम चाहते हैं कि इसमें हर किसी की भागीदारी हो, यह प्रोजेक्ट हर किसी का हो, न कि सिर्फ कुछ लोगों का.’
खास तौर पर, दो प्रस्तावित रनवे में से एक के पास स्थित एकनापुरम गांव का उल्लेख करते हुए कृष्णन ने कहा कि सरकार आवाजाही के लिए वैकल्पिक मार्ग का पता लगाने के लिए तकनीकी व्यवहार्यता अध्ययन करा रही है.
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एक पुरानी जीवनशैली
गांवों में लोग हमेशा से एक पुरानी जीवनशैली के आदी रहे हैं और यह सब छूट जाने की आशंकाओं ने उन्हें व्याकुल कर दिया है.
नागपट्टू निवासी वसंती ने अपने घर के पिछवाड़े लगे नीलवेम्बु के मोटे पैच को दिखाया. और साथ ही बताया कि जब इसकी पत्तियों को पीसकर अलग-अलग तरह से इस्तेमाल किया जाता है, तो सर्दी से लेकर सांप के काटने तक का इलाज हो सकता है.
वसंती और उनकी पड़ोसी मैथिली ने कहा कि इन सारे पेड़-पौधे को हरा-भरा रखने में सालों लग गए. इसकी सेवा के बदले को फल-सब्जियां तो मिलती ही है, कड़ी धूप से भरपूर छाया भी मिलती है.
नागपट्टू के ही रहने वाले के. मुरुगन ने कहा कि कोविड-19 जैसी आपदा के दौरान भी गांव के लोग आत्मनिर्भर थे क्योंकि यह उनकी जमीन ही जिसने उनका पेट पाला.
उन्होंने कहा, ‘सोचिए कि अब हमें अपने घर-जमीन छोड़कर अचानक कहीं जाने को कहा कहा जा रहा है? क्या आपने कभी जमीन पर खेती की है? मिट्टी की तो महक ही कुछ और होती है.’
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