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Wednesday, 20 November, 2024
होमदेशअफ़ग़ानी दूतावास में तालिबानी अधिकारी का वीजा समाप्त, आगे बढ़ाने को लेकर असमंजस में भारत सरकार

अफ़ग़ानी दूतावास में तालिबानी अधिकारी का वीजा समाप्त, आगे बढ़ाने को लेकर असमंजस में भारत सरकार

प्राप्त जानकारी के मुताबिक कादिर शाह का वीजा 12 मई को समाप्त हो गया था. हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि भारत सरकार उन्हें वीजा विस्तार देगी या नहीं.

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नई दिल्ली: नई दिल्ली स्थित अफ़ग़ान दूतावास चलाने के लिए तालिबान द्वारा “नियुक्त” कादिर शाह का वीजा दो सप्ताह पहले समाप्त हो गया है, और यह स्पष्ट नहीं है कि भारत सरकार उनके वीजा को आगे बढ़ेगी या नहीं. इसकी जानकारी दिप्रिंट को मिली है.

यह पिछली लोकतांत्रिक सरकार और तालिबान शासन द्वारा नियुक्त किए गए लोगों के बीच अफगान दूतावास में चल रहे शक्ति संघर्ष को और मुश्किल बनाता है. दोनों इसमें भारतीय विदेश मंत्रालय (MEA) के हस्तक्षेप के लिए उत्सुक दिखाई देते हैं. पिछले हफ्ते द टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक दोहा में तालिबान के राजनीतिक कार्यालय के प्रमुख सुहैल शाहीन ने शाह की “नियुक्ति” को एक तर्कसंगत कदम बताया था.

शाह ने 2020 से दूतावास के लिए काम किया है और व्यापार पार्षद के रूप में भी काम किया है, लेकिन इस महीने की शुरुआत में उनकी नियुक्ति पर विवाद उठने के बाद से उन्हें मिशन में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी गई है.

दिप्रिंट द्वारा विशेष रूप से देखे गए एक डॉक्यूमेंट के अनुसार, शाह को 13 मई 2022 को भारत सरकार द्वारा वीजा विस्तार दिया गया था, जो 12 मई 2023 को समाप्त हो गया था.

दिप्रिंट ने शाह से फोन पर संपर्क किया, लेकिन उन्होंने वीजा की अवधि समाप्त होने की पुष्टि या बढ़ोतरी से संबंधित किसी भी प्रकार की टिप्पणी से इनकार कर दिया. 

दिप्रिंट ने विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता से भी संपर्क किया लेकिन उन्होंने इसको लेकर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. विवाद शुरू होने के बाद से, MEA ने कथित तौर पर पक्ष नहीं लेने का फैसला किया है और “आंतरिक मामले” बढ़ाया जा रहा है. 

विदेश मंत्रालय के कॉन्सुलर, पासपोर्ट और वीजा डिवीजन (सीपीवी) द्वारा अपनाई जाने वाली प्रक्रिया के अनुसार, डिप्लोमैटिक वीजा के विस्तार के लिए दूतावास से एक नोट वर्बेल (राजनयिक नोट) की आवश्यकता होती है जिससे आवेदक जुड़ा हुआ है.

राजनयिक सूत्रों ने पुष्टि की कि दिल्ली में अफगान दूतावास ने इस महीने की शुरुआत में विदेश मंत्रालय को एक पत्र भेजा था जिसमें बताया गया था कि शाह की सेवाएं समाप्त कर दी गई हैं.


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भारतीय विदेश नीति में लहर

भारत सरकार ने अभी तक तालिबान शासन को औपचारिक रूप से मान्यता नहीं दी है, लेकिन काबुल में एक “तकनीकी” टीम को बनाए रखा है. इस बीच, तालिबान ने कथित तौर पर अपने अधिकारियों को चीन और संयुक्त अरब अमीरात सहित दुनिया भर में 14 देशों में रखा है.

जनवरी की शुरुआत में, दिप्रिंट ने बताया कि तालिबान ने नई दिल्ली में एक प्रतिनिधि को तैनात करने की अनुमति देने के लिए भारत पर दबाव बनाना शुरू कर दिया था और विवादित व्यक्ति अब्दुल बल्खी का नाम उन लोगों में शामिल था. बाल्खी को महिलाओं के अधिकारों पर उनके विचारों के लिए आलोचना का सामना करना पड़ा और उन पर काबुल में निर्वाचित अशरफ गनी के नेतृत्व वाली सरकार के पतन के बाद तालिबान के प्रति शत्रुतापूर्ण रिपोर्टिंग के लिए एक ऑस्ट्रेलियाई पत्रकार को मारने की धमकी देने का आरोप लगाया गया था.

दिप्रिंट ने विशेषज्ञों से यह पता लगाने के लिए संपर्क किया कि क्या शाह के वीजा से जुड़े मुद्दे का अफगानिस्तान के प्रति भारत की विदेश नीति को प्रभावित करने की क्षमता है.

इसपर मिश्रित प्रतिक्रियाएं मिली.

पूर्व अफगान राजनयिक जर्दाश्त शम्स के अनुसार, शाह को वीजा विस्तार देने का मतलब काबुल में तालिबान शासन को “अर्ध-मान्यता” देना माना जाएगा. 

उन्होंने कहा, “वीजा का विस्तार नहीं करने का मतलब यह होगा कि तालिबान के प्रति भारत सरकार की नीति में कोई बड़ा बदलाव नहीं है, कम से कम उनकी मान्यता को लेकर. हालांकि, अगर अनुमति दी जाती है, तो इसका मतलब होगा कि पृष्ठभूमि में तालिबान के साथ किसी तरह की समझ बनाई जा रही है.”

हालांकि, अफगानिस्तान में एक पूर्व भारतीय राजदूत, जो अपना नाम नहीं बताना चाहते थे, ने इसके विपरीत तर्क दिया,  और कहा कि राजनयिकों के लिए वीजा का विस्तार एक “नियमित” प्रक्रिया है.

उन्होंने कहा, “जब अफगान नागरिकों की बात आती है, तो भारत में उनके वीजा को बढ़ाना या नवीनीकृत करना नियमित कार्य माना जाता है, विशेष रूप से राजनयिकों के लिए. यदि विदेश मंत्रालय ने शाह का वीजा बढ़ाया है, तो इसे सामान्य प्रक्रिया के हिस्से के रूप में देखा जा सकता है, जबकि वीजा का विस्तार नहीं करने से तालिबान को एक स्पष्ट संदेश जाएगा.”

दोनों ने आगे बताया कि विदेश मंत्रालय ने अब तक जिस तरह से अफगान दूतावास में स्थिति को संभाला है, वह भारत की वर्तमान विदेश नीति के “सामरिक” और “अवसरवादी” होने के अनुरूप है. खासकर जब यह पड़ोस और उसके बाहर शासन परिवर्तन की बात आती हो तो.

(संपादनः ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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