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Saturday, 27 July, 2024
होमदेशSC ने जोशीमठ संकट को राष्ट्रीय प्राकृतिक आपदा घोषित करने वाली याचिका पर विचार करने से किया इंकार

SC ने जोशीमठ संकट को राष्ट्रीय प्राकृतिक आपदा घोषित करने वाली याचिका पर विचार करने से किया इंकार

भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जेबी पारदीवाला की बेंच ने याचिकाकर्ता को याचिका के साथ उत्तराखंड हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाने की अनुमति दी.

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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड के जोशीमठ में भू-धंसाव संकट को राष्ट्रीय आपदा घोषित करने के लिए अदालती हस्तक्षेप के अनुरोध वाली याचिका पर सुनवाई करने से सोमवार को इनकार कर दिया.

भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जेबी पारदीवाला की बेंच ने याचिकाकर्ता को याचिका के साथ उत्तराखंड हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाने की अनुमति दी.

सुप्रीम कोर्ट उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें शीर्ष अदालत से तत्काल हस्तक्षेप करने की मांग की गई थी ताकि केंद्र को उत्तराखंड के जोशीमठ के लोगों को राहत कार्य में मदद करने और तत्काल राहत प्रदान करने का निर्देश दिया जा सके.

शीर्ष अदालत ने एक धार्मिक नेता स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती को हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाने की अनुमति देते हुए कहा, ‘हाई कोर्ट प्रभावित लोगों के पुनर्वास सहित शिकायतों का उपयुक्त निवारण कर सकता है.’

शीर्ष अदालत का यह आदेश इस बात पर ध्यान देने के बाद आया कि इसी मुद्दे पर एक याचिका उत्तराखंड हाई कोर्ट के पास भी आई है.

शीर्ष अदालत के समक्ष याचिका में तपोवन परियोजना के विकास और धार्मिक स्थलों की सुरक्षा को रोकने की मांग भी की गई है.

शीर्ष अदालत ने कहा कि हाई कोर्ट के सामने ये याचिका आने के बाद तपोवन जलविद्युत परियोजना के निर्माण पर प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली लागू होने तक कार्य पर रोक लगाने की मांग की गई है.

स्वामी द्वारा दायर याचिका में भूस्खलन, जमीन फटने और जमीन में दरारें आने की घटनाओं को राष्ट्रीय आपदा के रूप में घोषित करने के लिए निर्देश देने की मांग की गई है तथा इस समय जोशीमठ के निवासियों की सहायता के लिए राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण को निर्देशित करने की भी मांग की गयी.

याचिका में उत्तराखंड के उन लोगों को तत्काल वित्तीय सहायता और मुआवजा प्रदान करने की मांग की गई है, जिन्होंने अपना घर जमीन में दरारें पड़ने की वजह से खो दी है.

इसमें कहा गया कि ‘मानव जीवन की कीमत पर किसी भी विकास की आवश्यकता नहीं है और अगर ऐसा कुछ हो भी रहा है तो यह राज्य और केंद्र सरकार का कर्तव्य है कि इसे तुरंत रोका जाए.’


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