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Monday, 24 June, 2024
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सुप्रीम कोर्ट ने साइरस मिस्त्री के टाटा संस का चेयरमैन बनने पर लगाई रोक

टाटा संस प्राइवेट लिमिटेड (टीएसपीएल) ने साइरस मिस्त्री को टीएसपीएल के कार्यकारी चेयरमैन पद पर बहाल करने के एनसीएलएटी आदेश के खिलाफ की थी अपील.

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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने रतन टाटा की याचिका पर सुनवाई करते हुए साइरस मिस्त्री को बड़ झटका दिया है. सर्वोच्च अदालत ने साइरस मिस्त्री को टाटा समूह के कार्यकारी चेयरमैन पद पर बहाल करने के एनसीएलएटी के आदेश पर शुक्रवार को रोक लगा दी है.

मूख्य न्यायाधीश एस.ए. बोबडे, न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ ने राष्ट्रीय कंपनी विधि अपीली न्यायाधिकरण (एनसीएलएटी) के आदेश को चुनौती देने वाली टाटा संस की याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति जताई है. साथ ही मिस्त्री समेत अन्य को नोटिस जारी किया है.

टाटा संस प्राइवेट लिमिटेड (टीएसपीएल) ने साइरस मिस्त्री को टीएसपीएल के कार्यकारी चेयरमैन पद पर बहाल करने के एनसीएलएटी के 18 दिसंबर के आदेश के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में अपील की थी.

एनसीएलएटी ने अपने आदेश में कार्यकारी चेयरमैन पद पर पर बैठाये गये एन. चंद्रशेखरन की नियुक्ति को ‘अवैध’ ठहराया था.

रतन टाटा की सुप्रीम कोर्ट में याचिका- मिस्त्री ने सत्ता का केंद्रीकरण और टाटा समूह का नाम खराब किया

वहीं इससे पहले टाटा संस के मानद चेयरमैन रतन टाटा ने साइरस मिस्त्री मामले में खुद उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर की थी और कहा था कि मिस्त्री ने अपने समय में निदेशक मंडल के सदस्यों की शक्तियां अपने हाथों में ले ली थीं तथा ‘टाटा ब्रांड’ की छवि खराब कर रहे थे.

रतन टाटा का कहना है कि मिस्त्री के ‘नेतृत्व में कमी थी’ क्योंकि टाटा संस का चेयरमैन बन जाने के बाद भी खुद को समय से अपने परिवार के कारोबार से दूर करने को लेकर अनिच्छुक थे, जबकि उनके चयन के साथ यह शर्त लगी हुई थी.

रतन टाटा ने कहा था, ‘मिस्त्री के नेतृत्व में खामियां थीं. वह टाटा संस का चेयरमैन बन जाने के बाद भी समय से खुद को अपने पारिवारिक कारोबार से अलग करने तथा पारिवारिक कारोबार से संबंधित हितों के संभावित टकराव की स्थितियों को दूर करने को तैयार नहीं थे जबकि यह इस पद पर उनकी नियुक्ति की पूर्व शर्त थी.’

उन्होंने कहा, ‘मिस्त्री ने सारी शक्तियां व अधिकार अपने हाथों में ले लिया था. इसके कारण निदेशक मंडल के सदस्य टाटा समूह की ऐसी कंपनियों के परिचालन के मामलों में अलग-थलग महसूस कर रहे थे, जहां टाटा संस का ठीक-ठाक पैसा लगा हुआ था. टाटा संस के निदेशक मंडल ने ऐसे मामलों में लिये गये निर्णयों का विरोध भी किया था.’

 

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