नई दिल्ली: इस महीने की शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट ने ‘कमजोर/असुरक्षित गवाह’ की परिभाषा को और व्यापक बनाया है. इसके साथ ही पहली बार उन गवाहों को भी इस श्रेणी में लाया गया है जो पारिवारिक मामलों जैसे सिविल केस में साक्ष्य दर्ज कराते हैं या फिर किशोर न्याय बोर्ड (जेजेबी) में भगोड़े और अपराधी किशोरों के खिलाफ गवाही देते हैं.
यह साल में दूसरी बार है जब शीर्ष अदालत ने ‘कमजोर गवाह’ की परिभाषा के दायरे को बढ़ाते हुए आदेश जारी किए हैं.
न्यायधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने जनवरी में हर उच्च न्यायालय में एक कमजोर गवाह साक्ष्य केंद्र (वीडब्ल्यूडीसी) योजना के कार्यान्वयन का निर्देश देते हुए विस्तृत दिशानिर्देश जारी किए थे. केंद्रों के प्रबंधन और प्रक्रिया की निगरानी के लिए पीठ ने जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय की पूर्व मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल की देखरेख में एक समिति भी गठित की थी.
जनवरी में अपने उस आदेश में कोर्ट ने ‘कमजोर गवाह’ की परिभाषा का विस्तार किया था. उस वक्त उसने देश के सभी उच्च न्यायालयों को कमजोर गवाह के संदर्भ में दिल्ली उच्च न्यायालय के दिशानिर्देशों को अपनाने के लिए कहा था.
आदेश में कहा गया था कि इस श्रेणी में पहले 18 साल से कम उम्र के व्यक्ति शामिल थे. लेकिन इसे व्यापक बनाते हुए इसमें उम्र और लिंग से परे यौन उत्पीड़न के शिकार और मानसिक बीमारी से पीड़ित गवाहों के अलावा, सुनने में असमर्थ व्यक्ति अन्य दिव्यांगता से पीड़ित व्यक्ति या अन्य गवाह जिसे सक्षम अदालत कमजोर मानता है, को शामिल किया जा रहा है.
8 अप्रैल को जारी अपने नए आदेश में शीर्ष अदालत ने निर्देश दिया कि अन्य न्यायालयों के लिए भी वीडब्ल्यूडीसी के उपयोग की अनुमति दी जानी चाहिए. वर्तमान परिभाषा में केवल एक आपराधिक मामले में गवाही देने वाले गवाह को ‘कमजोर गवाह’ के रूप में माना जाता है, जो शीर्ष अदालत के जनवरी के फैसले द्वारा निर्धारित मानदंडों को पूरा करता है.
इस महीने दिए गए कोर्ट के आदेश के बाद सिविल मामलों में गवाही देने वाले भी वीडब्ल्यूडीसी योजना के तहत अपना बयान दर्ज करा सकते हैं.
अदालत ने आदेश दिया, ‘सभी अधिकार क्षेत्र के मामलों में कमजोर गवाहों के साक्ष्य दर्ज करने की अनुमति दी जानी चाहिए.’ इसका मतलब यह है कि वीडब्ल्यूडीसी के दायरे को बढ़ा दिया गया है. इसमें अब सिविल, फैमिली कोर्ट, किशोर न्याय बोर्ड के साथ-साथ अदालतों के समक्ष चल रहे अन्य मामलों में भी बयान दर्ज करने की अनुमति दी जाएगी.
वीडब्ल्यूडीसी योजना में अन्य क्षेत्राधिकारों को शामिल करने का अदालत का आदेश न्यायमूर्ति मित्तल की इस महीने पीठ के समक्ष रखी गई नई रिपोर्ट पर आधारित है. इसमें उन्होंने आपराधिक क्षेत्राधिकार से परे वीडब्ल्यूडीसी योजना का विस्तार करने की बात कही थी और इसके लिए स्वास्थ्य विशेषज्ञों की राय का हवाला दिया था.
न्यायाधीश मित्तल की रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है, ‘यह स्वीकार करना महत्वपूर्ण है कि कमजोर गवाहों को कई अदालती मामलों में कोर्ट का सामना करना पड़ता है’. इसमें आगे कहा गया है: ‘स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि कमजोर गवाहों के अदालत में पेश होने की वजह से उन पर गंभीर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. भले ही इस तरह का गवाह किसी भी तरह के मामले में गवाही दे रहा हो.’
यह भी पढ़ें: रूसी ‘मोस्कोवा’ के नष्ट होने के बाद क्या भारत को बड़े युद्धपोतों पर जोर देना चाहिए
कमजोर गवाहों से जुड़ने के लिए दिशानिर्देश
न्यायमूर्ति मित्तल समिति ने अदालतों में वीडब्ल्यूडीसी के संचालन के लिए मॉडल दिशानिर्देश भी तैयार किए हैं और उन्हें सभी उच्च न्यायालयों में विचार-विमर्श और जांच के लिए भेजा गया है.
ये गाइडलाइंस कमजोर गवाहों के प्रति न्याय प्रणाली की संवेदनशील प्रतिक्रिया को बढ़ावा देने और शीर्ष अदालत के आदेशों का पालन करने के लिए जरूरी ‘रूपरेखा’ तैयार करती है.
ये दिशानिर्देश स्वतंत्र अनुसंधान संस्थान या प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थानों और विश्वविद्यालयों या इस उद्देश्य के लिए गठित बहु-अनुशासनात्मक समितियों द्वारा उनके कार्यान्वयन की आवधिक समीक्षा की अनुमति देते हैं. ये कमजोर गवाह को न्याय और समान अवसर देने के साथ-साथ, उन्हें एक बेहतर माहौल और गतिशील मंच भी मुहैया कराते हैं.
गाइडलाइंस में दिए गए अन्य प्रावधानों में कमजोर गवाहों के लिए इन-कैमरा कार्यवाही की अनुमति देना, ऐसे गवाहों को बेहतर माहौल देना, उनके लिए प्री-ट्रायल कोर्ट हाउस टूर आयोजित करना, उन्हें न्यायिक निर्णयों के मूल उद्देश्य और अदालत के अधिकारियों की भूमिकाओं से परिचित कराना शामिल है.
अदालत के सामने किसी गवाह को कमजोर घोषित करने से पहले किन निर्देशों का पालन करना जरूरी है, इसका जिक्र भी इन दिशानिर्देशों में किया गया है.
कुछ ऐसे संभावित कारण भी हैं जो एक गवाह को ‘तनाव’ की स्थिति में डाल सकते हैं और वह ठीक ढंग से गवाही देने में सक्षम नहीं रह पाता है. इन कारणों में, एक गवाह से बार-बार बयान लेना, सही भाषा का इस्तेमाल न करना, आरोपी द्वारा नुकसान पहुंचाने का डर, सबके सामने आने का डर, अदालती कार्यवाही की लंबी प्रक्रिया, जटिल कानूनी प्रक्रियाओं को न समझ पाना, परिवार के किसी सदस्य या रिश्तेदार के खिलाफ गवाही देने के बारे में भ्रम और अपराधबोध, अपने ऊपर चिल्लाये जाने की चिंता, गवाही देने से परेशानी या मजाक बनाए जाने का डर और कोर्ट रूम की अनुपलब्धता शामिल है.
दिशानिर्देशों में कहा गया है कि एक कमजोर गवाह को एक सहायक व्यक्ति की मदद भी दी जाएगी, विशेष रूप से बच्चों पर यौन हमले के मामलों में. सहायक व्यक्ति कमजोर गवाह की पसंद का होगा लेकिन उसे गवाह को संकेत देने, उकसाने, प्रभावित करने या सिखाने की अनुमति नहीं होगी. वह व्यक्ति गवाह को सिर्फ भावनात्मक समर्थन प्रदान करेगा.
एक कमजोर गवाह के साथ किस तरीके से बातचीत या पूछताछ करनी है इसे भी गाइडलाइंस में कवर किया गया है. दिशानिर्देशों के अनुसार, अदालत को यह सुनिश्चित करना होगा कि सच जानने के लिए गवाह से पूछे गए सवाल सीधे और सरल हों और कमजोर गवाह की समझ और विकास के स्तर के लिए उपयुक्त हों.
साथ ही सलाह दी गई कि अदालतों को ऐसे सवालों को अस्वीकार कर समय की बर्बादी से बचना चाहिए जिनका मामले से कोई लेना-देना न हो या बार-बार दोहराए जाते हों या ऐसी भाषा में तैयार किए गए हों जिन्हें गवाह को समझने में मुश्किल आए. बाल पीड़ितों के खिलाफ यौन अपराधों से जुड़े मामलों में दिशानिर्देशों में कहा गया है कि अदालत के जरिए ही पीड़ित बच्चे से सवाल किए जाने चाहिए.
संबंधित दिशानिर्देश में कहा गया है कि उच्च न्यायालय द्वारा बनाए गए नियमों के तहत कमजोर गवाह की वीडियो या ऑडियो रिकॉर्डिंग को नष्ट कर देना होगा.
(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: बोम्मई सरकार के लिए सिरदर्द बना ‘भ्रष्टाचार’, लिंगायत संत का दावा- ‘30% फंड्स’ घूस में जाता है