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Saturday, 15 June, 2024
होमदेशSC ने बिहार में जाति आधारित जनगणना के खिलाफ याचिकाएं की खारिज- नीतीश, तेजस्वी ने किया स्वागत

SC ने बिहार में जाति आधारित जनगणना के खिलाफ याचिकाएं की खारिज- नीतीश, तेजस्वी ने किया स्वागत

अदालत ने टिप्पणी की कि यह याचिका प्रचार पाने के लिए थी. यदि ऐसी याचिकाओं को अनुमति दी जाती है तो संबंधित अधिकार दिए जाने वाले आरक्षण की संख्या कैसे निर्धारित होगी.

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नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में नीतीश सरकार द्वारा कराए जा रहे जाति आधारित सर्वे के खिलाफ दायर की गई याचिकाओं पर सुनवाई से इनकार कर दिया है. इस पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने सुप्रीम कोर्ट की तारीफ की है, और फैसला अपनी सरकार के पक्ष में बताया है.

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट ने हमारे पक्ष फैसला सुनाया है, यह सबके हित में है. जाति-आधारित सर्वे केंद्र सरकार का काम है, हम इसे राज्य में कर रहे हैं. अगर हमें हर चीज के बारे में पता होगा, ते इससे लोगों के विकास के लिए काम करने में आसानी होगी.’

नीतीश सरकार ने राज्य में 7 जनवरी से जनगणना शुरू किया है. राज्य सरकार ने फैसला किया है कि इसमें केवल जातियों की गणना होगी, उपजातियों को सूचीबद्ध नहीं किया जाएगा. साथ ही आर्थिक स्थिति को भी सूचीबद्ध किया जाएगा.

वहीं उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने कहा, ‘याचिका केवल प्रचार के लिए थी. SC ने कहा है कि जब तक सर्वे नहीं होगा, यह कैसे पता चलेगा कि किसे आरक्षण दिया जाना चाहिए. यह बिहार सरकार की जीत है. हम इस आदेश का स्वागत करते हैं.’

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न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति विक्रम नाथ की पीठ ने हालांकि, याचिकाकर्ताओं को संबंधित उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने और कानून के अनुसार उचित उपाय करने की स्वतंत्रता दी है. अदालत ने टिप्पणी की कि यह याचिका प्रचार पाने के लिए थी. यह भी कहा गया कि यदि ऐसी याचिकाओं को अनुमति दी जाती है तो संबंधित अधिकार दिए जाने वाले आरक्षण की संख्या कैसे निर्धारित होगी.

सुप्रीम कोर्ट में इसी तरह के मुद्दों से संबंधित तीन अलग-अलग याचिकाएं दायर की गई थीं.

एक याचिका एक सोच एक प्रयास, दूसरी सामाजिक कार्यकर्ता अखिलेश कुमार और तीसरी याचिका हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने दायर की थी.

हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता द्वारा दायर याचिका में बिहार सरकार के उप सचिव द्वारा जारी 6 जून 2022 की अधिसूचना को रद्द करने की मांग की गई थी, जिसके तहत बिहार सरकार ने राज्य भर में जाति आधारित जनगणना करने के अपने निर्णय को अधिसूचित किया था.

याचिकाकर्ता ने कहा था कि बिहार राज्य की अधिसूचना और निर्णय ‘असंवैधानिक, अवैध, मनमाना, तर्कहीन, भेदभावपूर्ण, अनुचित और कानून के किसी भी अधिकार के बिना’ है.

याचिका में वर्ण व्यवस्था के बारे में उल्लेख किया गया है, जो याचिकाकर्ता के अनुसार वर्ण आधारित सामाजिक स्तरीकरण की बात करता है. इस प्रणाली के तहत चार मूल श्रेणियां परिभाषित की गई हैं – ब्राह्मण (पुजारी, शिक्षक, बुद्धिजीवी), क्षत्रिय (योद्धा, राजा, प्रशासक), वैश्य (कृषक, व्यापारी, किसान) और शूद्र (श्रमिक, मजदूर, कारीगर) और प्रत्येक वर्ण में कई जातियां शामिल हैं.

याचिकाकर्ता ने अंग्रेजों को दोषी ठहराया और कहा कि अंग्रेजों को भारत में अपना शासन सुचारू रूप से चलाने के मकसद से समाज को बांटे और इस संबंध में उन्होंने जाति के इस औपनिवेशिक निर्माण का तरीका खोजा.

शीर्ष अदालत में एक याचिका हाल ही में एक सामाजिक कार्यकर्ता अखिलेश कुमार ने अधिवक्ता बरुण कुमार सिन्हा और अभिषेक के माध्यम से दायर की थी. जिनके जरिए कहा था कि बिहार राज्य का निर्णय अवैध, मनमाना, तर्कहीन, असंवैधानिक और कानून के अधिकार के बिना है.

याचिकाकर्ता के प्रस्तुतीकरण के अनुसार, बिहार में 200 से अधिक जातियां हैं, जिन्हें सामान्य श्रेणी, ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग), ईबीसी (आर्थिक रूप से पिछड़ा वर्ग), अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के रूप में वर्गीकृत किया गया है.

दलील के अनुसार, बिहार राज्य में 113 जातियां हैं जो ओबीसी और ईबीसी के रूप में जानी जाती हैं, आठ जातियां उच्च जाति की श्रेणी में शामिल हैं, लगभग 22 उप-जातियां हैं जो अनुसूचित जाति श्रेणी में शामिल हैं और लगभग 29 उप जातियां हैं जो अनुसूचित श्रेणी में शामिल हैं.

याचिकाकर्ता अखिलेश कुमार ने शीर्ष अदालत से 6 जून की अधिसूचना को रद्द करने के लिए निर्देश जारी करने का आग्रह किया था और संबंधित प्राधिकरण को जातिगत जनगणना से परहेज करने का निर्देश देने के लिए कहा, यह कहते हुए कि यह भारत के संविधान की मूल संरचना के खिलाफ है.


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