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Friday, 22 November, 2024
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कोचर दंपति को मिली जमानत, गिरफ्तार करने के लिए पुलिस नहीं मानती SC की अर्नेश गाइडलाइंस

सीआरपीसी की धारा 41 के तहत गिरफ्तारी करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के अर्नेश दिशानिर्देशों का उल्लंघन करने के लिए देश भर के न्यायालयों को बार-बार पुलिस को निर्देश देना पड़ता है.

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नई दिल्ली: बॉम्बे हाई कोर्ट ने पिछले हफ्ते चंदा कोचर और दीपक कोचर को यह कहते हुए रिहा कर दिया था कि गिरफ्तारी ‘काल्पनिक’ और ‘सनक’ के आधार पर नहीं हो सकती.

अदालत ने कहा कि गिरफ्तारी सुप्रीम कोर्ट के अर्नेश कुमार के ऐतिहासिक फैसले का उल्लंघन है, जिसमें गिरफ्तारी के लिए पुलिस की शक्ति पर जांच की मांग की गई थी.

2015 के फैसले में, शीर्ष अदालत ने कहा था कि गिरफ्तारी में आपत्ति जताने की भी जगह होनी चाहिए और पुलिस अधिकारियों को पहले यह सुनिश्चित करना चाहिए कि क्या गिरफ्तारी आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी), 1973 की धारा 41 के तहत हुई है या नहीं.

अदालत ने कहा था कि ‘इस फैसले में हमारा प्रयास यह सुनिश्चित करना है कि पुलिस अधिकारी अनावश्यक रूप से आरोपी को गिरफ्तार न करें और मजिस्ट्रेट किसी की भी आकस्मिक रूप में डिटेनशन में न डाले.’

धारा 41 सीआरपीसी पुलिस को असंज्ञेय मामलों में वारंट के बिना व्यक्तियों को गिरफ्तार करने का अधिकार देती है.

सीबीआई द्वारा 2018 में दायर एक एफआईआर में कोचर दंपति को आईसीआईसीआई बैंक मामले में आरोपी के रूप में नामित किया गया था. दोनों कई बार एजेंसी के सामने पेश भी हुए. हालांकि, 23 दिसंबर 2022 को, सीबीआई ने दंपति को गिरफ्तार कर लिया क्योंकि एफआईआर के मुताबिक वे जांच में ‘सहयोग नहीं’ कर रहे थे.

कोचर दंपति को ट्रायल कोर्ट ने पुलिस हिरासत और फिर न्यायिक हिरासत में भेज दिया था. हालांकि, इन आदेशों को तब बॉम्बे हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी गई थी जिसमे अब माना गया है कि अर्नेश कुमार के दिशानिर्देशों को देखते हुए ऐसी गिरफ्तारी अनावश्यक थी.

कोचर दंपति का मामला, दुर्भाग्य से, अकेला नहीं है. राज्यों में अदालती आदेश अर्नेश कुमार दिशानिर्देशों के उल्लंघन में पुलिस द्वारा नियमित रूप से व्यक्तियों को गिरफ्तार करने का एक पैटर्न सा बन गया है, और अदालतें नियमित रूप से ऐसी गिरफ्तारियों को खारिज कर रही है.

रिहाई का कारण

उदाहरण के लिए, स्टैंड-अप कॉमेडियन मुनव्वर फारुकी की गिरफ्तारी को ही ले लीजिये, जिन्हें जनवरी 2021 में ‘धार्मिक भावनाओं को आहत करने’ के आरोप में गिरफ्तार किया गया था.

मध्य प्रदेश एचसी ने जमानत के लिए उनकी अर्जी खारिज कर दी थी. हालांकि, फरवरी 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने अर्नेश कुमार के फैसले का उल्लंघन करते हुए फारुकी की गिरफ्तारी की अनुमति दे दी थी.

जस्टिस नरीमन ने कहा था कि गिरफ्तारी के दौरान अर्नेश कुमार के दिशा-निर्देशों का पालन न करना कॉमेडियन की रिहाई का कारण भी बन सकता है.


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‘राज्य का अधिकार’, अदालत की अवमानना

सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड पुलिस को भी फटकार लगाई थी जब उसने जुलाई 2022 की आधी रात को एक स्थानीय हिंदी समाचार चैनल के पत्रकार को गिरफ्तार किया था. इस तरह के व्यवहार को ‘राज्य का अधिकार’ करार देते हुए अदालत ने पत्रकार को जमानत देने के झारखंड हाई कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा था.

हाई कोर्ट ने आरोपी को जमानत देते हुए कहा था कि प्रथम दृष्टया (पहली नजर में) ऐसा प्रतीत होता है कि अर्नेश कुमार के दिशा-निर्देशों का पालन नहीं किया गया था.

इसमें यह भी कहा गया था कि अदालत इस बात पर विचार करेगी कि दिशानिर्देशों के उल्लंघन के लिए वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के खिलाफ अदालती अवमानना की कार्रवाई शुरू की जाए या नहीं.

‘तथ्यों की जांच’

एक अन्य मामला जो पिछले साल फैक्ट-चेकिंग वेबसाइट AltNews के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर की गिरफ्तारी का था.

जुबैर को दिल्ली पुलिस ने एक अज्ञात उपयोगकर्ता द्वारा शिकायत दर्ज किए जाने के बाद चार साल पुराने दो ट्वीट के कारण गिरफ्तार किया था.

इसी तरह, मेडिकल छात्र निखिल भामरे को एनसीपी प्रमुख शरद पवार के बारे में एक ट्वीट के बाद गिरफ्तार किया गया था और पिछले साल एक महीने से अधिक समय तक जेल में रखा गया था.

बॉम्बे हाईकोर्ट ने भामरे की गिरफ्तारी के लिए महाराष्ट्र सरकार की खिंचाई करते हुए कहा था, ‘हर रोज हजारों और सैकड़ों ट्वीट पोस्ट किए जाते हैं, क्या इन सब चीज़ो का कोई आधार है?’


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‘सुनकर होगी हैरानी’

अभी पिछले महीने ही मद्रास हाई कोर्ट यह सुनकर ‘हैरान‘ हुआ कि अदालत के सामने एक सब-इंस्पेक्टर ने गिरफ्तारी के दिशा-निर्देशों को नहीं पढ़ा.

उस मामले में जहां अभियुक्त विकलांग व्यक्ति था, उसे राज्य मानवाधिकार आयोग के निष्कर्ष के बाद पता चला था कि गिरफ्तारी निर्धारित मानदंडों के उल्लंघन में की गई थी.

बेंच ने कहा था कि ‘जिस तरह से अधिकारी ने हमारे इस प्रश्न का उत्तर दिया कि क्या उन्होंने अर्नेश कुमार बनाम बिहार राज्य और अन्य फैसलों को पढ़ा था, उससे हमें झटका लगा. इस तरह के जवाब पूरे पुलिस बल को प्रतिबिंबित करते है.’

बेंच ने सुप्रीम कोर्ट के निष्कर्षों को दोहराया कि गिरफ्तारी की आवश्यकता है या नहीं, यह निर्धारित करने के लिए विवेक का प्रयोग किया जाना चाहिए, क्योंकि ऐसी गिरफ्तारियां ‘अपमानित करती है, स्वतंत्रता को कम करती है और हमेशा के लिए निशान छोड़ देता है.’

‘जानबूझकर किया गया’

इलाहाबाद हाई कोर्ट को भी इसी तरह के एक मामले से निपटना पड़ा था. हालांकि, इस बार अदालत ने गिरफ्तारी दिशानिर्देशों के ‘जानबूझकर’ उल्लंघन के लिए पुलिस अधिकारी की खिंचाई की, उसे चौदह दिनों के कारावास की सजा सुनाई.

बेंच ने कहा था कि ‘जीडी (पुलिस की सामान्य डायरी) में गलत एंट्री आरोपी को गिरफ्तार करने के लिए अर्नेश कुमार के जनादेश को दरकिनार करने के एकमात्र उद्देश्य से जानबूझकर की गई थी. अवमानना करने वाले ने इन परिस्थितियों में उस जनादेश का उल्लंघन किया है जो उसके लिए बाध्यकारी था.’

(संपादन: अलमिना खातून)

(इस ख़बर अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)


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