नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को केंद्र सरकार से पूछा कि जिन निजी अस्पतालों को मुफ्त में जमीन मिली हुई है वो कोविड-19 मरीजों का इलाज मुफ्त में क्यों नहीं कर सकते.
मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे, न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और हृषिकेश रॉय ने केंद्र को उन अस्पतालों की पहचान करने का आदेश दिया, जहां कोविड-19 मरीजों का इलाज मुफ्त या न्यूनतम लागत पर किया जा सकता है.
सरकार को एक सप्ताह के भीतर याचिका का जवाब देने के लिए कहा गया है.
वकील सचिन जैन की याचिका पर अदालत सुनवाई कर रही थी जिसमें निजी/कॉर्पोरेट अस्पतालों में कोविड-19 मरीजों के इलाज के लिए ‘लागत संबंधी नियमों’ की मांग की गई थी.
जैन न्यूज रिपोर्ट्स का हवाला देकर निजी अस्पतालों पर भारी-भरकम बिल वसूलने का आरोप लगाते हैं और कहते हैं कि ‘जब देश महामारी के खिलाफ लड़ रहा है तब ऐसे निजी अस्पताल जो सार्वजनिक जमीन पर चल रहे हैं (रियायती दरों पर आवंटित) और धर्मार्थ संस्थानों की श्रेणी में है, उन्हें कोविड-19 मरीजों को मुफ्त में सार्वजनिक/गैर-लाभकारी आधार पर अस्पताल में भर्ती और उपचार प्रदान करने के लिए कहा जाना चाहिए.’
याचिका में आगे कहा गया है कि अन्य निजी अस्पतालों के टैरिफ को भी सरकार द्वारा ‘निश्चित लागत के आधार’ पर विनियमित किया जाना चाहिए.
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2007 के एक फैसले का हवाला दिया जाता है जिसमें दिल्ली उच्च न्यायालय ने सरकार से लाभ प्राप्त करने के बावजूद अपनी सामाजिक प्रतिबद्धताओं का पालन नहीं करने के लिए राजधानी में विभिन्न अस्पतालों के संचालन की निंदा की थी. यह तब था जब उच्च न्यायालय ने दिल्ली के 20 से अधिक बड़े अस्पतालों को भूमि के रियायती आवंटन पर ध्यान दिया और गरीबों को मुफ्त इलाज प्रदान करने की उनकी प्रतिबद्धता में विफलता देखी.
याचिका में यह भी कहा गया है कि सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र वर्तमान बोझ को संभालने में सक्षम नहीं हो सकता है, कहा गया, ‘… सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र की संसाधन बाधाओं को देखते हुए, यह स्पष्ट हो जाता है कि अकेले सरकार/सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र इसका प्रबंधन करने में सक्षम नहीं हो सकते हैं और इसलिए, निजी स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र की व्यापक भागीदारी विशेष रूप से कोविड-19 के मध्यम और गंभीर मामलों को अस्पताल में भर्ती करने में होगी.’
इसलिए जैन कोविड-19 मरीजों का इलाज करने वाले निजी अस्पतालों को सस्ता बनाने के लिए टैरिफ संरचना पर नियमों की मांग करते हैं.
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