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Saturday, 21 December, 2024
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Subscriber Writes: सार्क की राह पर आगे बढ़ता हुआ एससीओ

अपनी स्थापना से ही इस संगठन को नाटो के प्रतिकार के तौर पर देखा जाता रहा है, लेकिन इसके बावजदू भारत 2005 से ही इस संगठन में बतौर पर्यवक्षेक राष्ट्र जुड़ा रहा.

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भौगोलिक दायरे और जनसंख्या की दृष्टि से दुनिया के सबसे बड़े क्षेत्रीय संगठन, शंघाई सहयोग संगठन, जिसकी स्थापना का उद्देश्य राजनीतिक आर्थिक एवं रक्षा सहयोग को नया आयाम प्रदान करना रहा है, भारत के लिए महत्व खोने की स्थिति में है. भारत के लिए जहां यह मंच चीन एवं पाकिस्तान दोनों के साथ चर्चा करने का एक अवसर था, तथा जिसमें भारत आतंकवाद विश्व शांति जैसे मुद्दों पर खुल कर बात रख सकता था.

लेकिन वर्तमान में ये विषय ही भारत के लिए इस संगठन में अपनी स्थिति संतुलित करने एवं योगदान देने में कठिनाई उत्पन्न कर रहे हैं.

अपनी स्थापना से ही इस संगठन को नाटो के प्रतिकार के तौर पर देखा जाता रहा है, लेकिन इसके बावजदू भारत 2005 से ही इस संगठन में बतौर पर्यवक्षेक राष्ट्र जुड़ा रहा. भारत के लिए एससीओ का महत्व ग्लोबल साउथ में भारतीय आर्थिक एवं कूटनीतिक उपस्थिति को मजबतू करने से था.

2017 में भारत पाकिस्तान के इस संगठन के सदस्य बनने के उपरांत, दोनों देशों के द्विपक्षीय मुद्दों में धीरे-धीरे इसके सांगठनिक गतिविधियों में प्रभावी होने लगे हैं जबकि उस समय दोनों देशों ने सामूहिक बयान में द्विपक्षीय मुद्दों को एससीओ के मंच पर न उठाने की बात कही थी. डोकलाम तथा उसके बाद गलवान में हुए सैन्य गतिरोध ने भारत एवं चीन के मध्य भी असीम अविश्वास उत्पन्न करने का कार्य कि या है. 2022, समरकंद में आयोजित एससीओ शिखर सम्मलेन में भारत के प्रधानमंत्री मोदी ने चीन के राष्ट्रपति से मिलने में परहेज़ किया, तथा एक संदेश भी दिया कि यह युग अब युद्ध का नहीं है. भारत के प्रधानमंत्री ने अपनी पूरी यात्रा मात्र 24 घंटे में खत्म कर दी.

2023 की अपनी मेजबानी में भारत ने वर्चुअल आधार पर शिखर सम्मलेन का आयोजन किया, जो भारत की इस संगठन के प्रति वास्तविक अभिरुचि को प्रस्ततु करती है. तथा यह भारत की इस संगठन में बढ़ते अविश्वास एवं पश्चिम की तरफ आकर्षित भारतीय विदेश एवं कूटनीतिक अभिलाषा को भी प्रदर्शित करती है. जबकि यह भारत के लिए सदस्य देशों के प्रतिनिधियों को भारत में बुलाने और विभिन्न विषयों पर परिचर्चा का एक सुनहरा अवसर था.

इस वर्ष इस्लामाबाद में आयोजित शिखर सम्मलेन भारत के लिए केवल सांकेतिक उपस्थिति मात्र था, जैसे कि भारत के विदेश मंत्री ने कहा भी कि -मैं वहां गया, मेरा स्वागत हुआ, मैं कार्यक्रम में शामिल हुआ, और चला आया. विदेश मंत्री ने अपनी यात्रा के शुरुवात में कहा था कि वे एससीओ सम्मिट में शामिल होने जा रहे हैं, पाकिस्तान के साथ कि सी द्विपक्षीय विषय पर बात करने नहीं. लेकिन विदेश मंत्री ने इस्लामाबाद में आतंकवाद एवं विस्तारवाद पर अपनी चिंता जाहिर की. जिसमें वह मेजबान देश पाकिस्तान एवं संगठन के अगुवा देश चीन पर एक साथ निशाना साधते नज़र आए. उन्होंने किसी भी प्रकार के सहयोग एवं साहचर्य को बढ़ावा देने से पहले, इन दो बिंदुओं पर आगे बढ़ने की भारत की पुरानी मंशा व्यक्त की. जैसे कि भारत वर्षों से कहता आ रहा है, कि आतंकवाद एवं सहयोग एक साथ संभव नहीं है.

भारत के लिए पाकिस्तान के साथ किसी भी मंच पर आतंकवाद पर परिचर्चा के बिना बने रहना अभी के लिए मुश्किल प्रतीत होता है, क्योंकि पाकिस्तान इस विषय पर बात करना नहीं चाहता और वह अपनी इन गतिविधियों पर रोकथाम की दिशा में भी कोई कार्य नहीं करना चाहता. ऐसी स्थिति में निकट भविष्य में एससीओ, सार्क की तरह ही भारतीय कूटनीत में अपनी महत्ता कमजोर करता दिखेगा. भारत पाकिस्तान के अपने द्विपक्षीय मुद्दों के कारण ही सार्क वर्तमान में लगभग मृतप्राय संगठन बन चुका है. एससीओ में भारत का पाकिस्तान के साथ चीन के सभी हित टकराव की स्थिति बनी हुई है.

भारत यह जानता है कि चीन पाकिस्तान के साथ हर मुद्दे पर खड़ा है, चाहे वह आतंकवाद के विरुद्ध यूएनओ में प्रस्ताव हो, या फिर पाक अधिकृत कश्मीर में चीन के अपने बढ़ते प्रभाव को न्याय संगत साबित करना हो. एससीओ में भारत की चिंता ईरान को लेकर भी है, क्योंकि ईरान अब एससीओ का सदस्य देश है और भारत के दो बड़े सहयोगी देश अमेरिका एवं इजराइल ईरान से किसी भी प्रकार का रिश्ता न स्वयं रख रहे हैं, और दूसरे देशों पर भी दबाव बनाते रहे हैं, कि वे भी ईरान से कोई भी राजनयिक एवं कूटनीतिक सम्बन्ध न रखें. हालांकि ईरान के मसले पर भारत अपने राष्ट्रीय हित के अनुसार आगे बढ़ता आया है और आवश्यकता पड़ने पर भारत ने दुनिया को नसीहत भी दी है.

वास्तव में हम कह सकते हैं कि एससीओ का भविष्य सदस्य देशों पाकिस्तान एवं चीन की अपनी गतिविधि पर अधिक निर्भ करेगा .यदि ये दोनों देश आने वाले दिनों में भारत लक्षित अपनी नीतियों का पुनः सार्थक मूल्यांकन करते हैं तो निश्चित तौर पर भारत एससीओ मेंअपनी भागीदारी सशक्त करता दिखाई देगा. अन्यथा एससीओ एक और क्षेत्रीय संगठन सार्क की तरह अपने औचित्य को खोने की दिशा में अग्रसर है. क्योंकि भारत की अपनी नीति बिल्कुल स्पष्ट है.

(इस लेख को ज्यों का त्यों प्रकाशित किया गया है. इसे दिप्रिंट द्वारा संपादित/फैक्ट-चैक नहीं किया गया है.)

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