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ना बंदूक उठाओ, ना तलवार उठाओ, लाना हो परिवर्तन जब समाज में, किताब उठाओ. मुश्किलें आएंगी रास्ते में, आजमाइशों से मत घबराओ, अपना रास्ता स्वयं बनाओ.
शिक्षा एक ऐसा अस्त्र है जो जीवन के कठोर से कठोर फंदे को काटता है और रास्ते को सुगम बनाता है. एक साधारण शिक्षक से प्रारंभ हुआ, जीवन के बाद देश के दूसरे राष्ट्रपति के पद पर सुशोभित हुए ऐसे महान शिक्षक, युगपुरुष डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी के चरणों में वंदन करती हूं और आप सभी को शिक्षक दिवस की ढेर सारी शुभकामनाएं प्रेषित करती हूं.
हम सभी अपने गुरुओं का ही प्रतिबिंब हैं, उनके हथेलियों से सवेरे हुए हैं. शिक्षक सड़क के जैसा होता है, जो खुद तो स्थिर है, पर मुसाफिर को उसके मंजिल तक जरूर पहुंचा देता है. इसलिए हमारी नैतिक जिम्मेदारी है कि स्वयं शिक्षा को ग्रहण करें, औरों को प्रेरित करें और जहां भी खड़े रहें, एक बेहतर हिंदुस्तानी बनकर खड़े रहें, जिंदगी से भरे हुए, दायित्व को समझते हुए एक सफल व्यक्तित्व बने. हम सब की पहली गुरु हमारी मां हैं. कहते हैं कि मां और माली एक समान होते हैं, लेकिन नहीं, माली तब तक अपने पौधों को सींचता है जब तक उसके पास खाद और पानी होता है, लेकिन मां अपने बच्चों को तब भी सींचती है, चाहे उसके स्तन में दूध हो या न हो. इसलिए उनका सम्मान करें, जिनसे भी जीवन में सीखने को मिला, उन तमाम विभूतियों को याद करें और उनके प्रति निष्ठा का भाव रखें.
शिक्षा अपने आप में एक ऐसी जरूरत है, इसके बिना इंसान जीवन तो जीता है, लेकिन जिंदगी से वंचित रह जाता है. इसलिए एक मुकम्मल जीवन के लिए शिक्षा अनिवार्य तत्व है, यह जीवनपर्यंत मुनाफा देता है, जो हमारे गरिमापूर्ण व्यक्तित्व को उत्कृष्ट बनाता है. इसलिए आज का दिन डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी जैसे व्यक्ति से सीखने की जरूरत है और उनके छोड़े गए कदमों पर चलकर समाज में परिवर्तन लाने की जरूरत. अब हमें एक संकल्प लेना चाहिए कि हमारे समाज में हर व्यक्ति शिक्षित हो, हर व्यक्ति सुरक्षित हो, क्योंकि कोई भी समाज बिना नैतिक ज्ञान के आगे नहीं बढ़ सकता है और न ही आधी आबादी का गला घोटकर तरक्की कर सकता है. डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी ने कहा था, “शिक्षा का उद्देश्य केवल ज्ञान प्राप्त करना नहीं है, बल्कि व्यक्ति को समाज के लिए उपयोगी बनाना भी है.”
इसलिए शिक्षा के साथ-साथ व्यक्तित्व निर्माण पर निरंतर कोशिश करनी चाहिए, क्योंकि व्यक्ति मरता है, व्यक्तित्व जिंदा रहता है. हम रहे न रहें, समय की अदालत में जब भी हमारा जिक्र हो, हमारा व्यक्तित्व, हमारा काम, हमारी गवाही बनकर खड़ा रहे. इसलिए हमारे समाज की जिम्मेदारी है कि शिक्षक को यह एहसास कराए कि आप जो काम कर रहे हैं, वह दुनिया का सर्वोत्तम काम है. आपके हाथों में इस देश का भविष्य है. ईश्वर ने आपको सबसे खूबसूरत काम के लिए नियत किया है. क्योंकि किसी भी व्यक्ति के पूर्ण विकास में उसके शिक्षक का योगदान महत्वपूर्ण है.
जब सिकंदर भारत आया था, तो उसके साथ उसके गुरु का दिया हुआ ज्ञान भी था. इसलिए कहा जाता है, वह लड़ाई दो राजाओं के बीच नहीं थी, वह लड़ाई तो गुरुओं के बीच थी, एक पश्चिम का गुरु अरस्तु और भारत का गुरु कौटिल्य, जिसमें भारत का गुरु जीत गया. यह ताकत है गुरु की. गुरु उस मोमबत्ती की तरह होता है, जिससे हम जलते हैं औरों को प्रकाशित करते हैं और हमें इस लायक बनाते हैं कि हम दुनिया को प्रकाशित करें.
अंत में इतना ही कहना चाहूंगी, भारत के सबसे महान दार्शनिक, आधुनिक भारत के निर्माता डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी के चरणों में कोटि-कोटि वंदन.
(इस लेख को ज्यों का त्यों प्रकाशित किया गया है. इसे दिप्रिंट द्वारा संपादित/फैक्ट-चैक नहीं किया गया है.)