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Monday, 23 December, 2024
होमदेशस्टडी में दावा— इंटरनेट अब अधिक किफायती, लेकिन स्पीड के लिए भारत में अभी भी हो रहा अधिक भुगतान

स्टडी में दावा— इंटरनेट अब अधिक किफायती, लेकिन स्पीड के लिए भारत में अभी भी हो रहा अधिक भुगतान

नीदरलैंड स्थित फर्म सर्फशार्क की तरफ से ‘इंटरनेट मूल्यों में असमानता का पता लगाने वाली’ स्टडी में भारत को 117 देशों में से 44वें स्थान पर रखा गया है, जो पाकिस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका जैसे पड़ोसी देशों से ऊपर है.

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नई दिल्ली: जयपुर के एक उद्यमी अजय दाता 21वीं सदी की शुरुआत तक एक इंटरनेट कनेक्शन लीज पर लेने के लिए करोड़ों खर्च करते थे, जिसका उपयोग वे खुदरा उपभोक्ताओं को सेवाएं प्रदान करने के लिए करते थे. हाल में की गई एक स्टडी में पाया गया है कि आज, इसे वहन करने की स्थितियों में काफी बदलाव हुआ है लेकिन भारतीय अभी भी इंटरनेट की स्पीड के लिए अधिक खर्च कर रहे हैं.

नीदरलैंड स्थित साइबर सिक्योरिटी सर्विसेस और वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क (वीपीएन) कंपनी, सर्फशार्क ने ‘‘इंटरनेट के दामों में असमानता का पता लगाने’’ वाली एक स्टडी में भारत को 44वें स्थान पर रखा है. हालांकि, भारत अपने पड़ोसी देशों पाकिस्तान (102वें स्थान पर), बांग्लादेश (83), नेपाल (77), और श्रीलंका (96) की तुलना में काफी ऊपर है. फर्म की तरफ से अपनी स्टडी का विस्तृत निष्कर्ष 20 जनवरी को एक ब्लॉग पर जारी किया गया.

ग्लोबल डिजिटल डिवाइड को स्पष्ट करने के लिए सर्फशार्क ने इंटरनेट वैल्यू इंडेक्स (आईवीआई) बनाया है, जो फिक्स्ड ब्रॉडबैंड और मोबाइल इंटरनेट की गति को वहन करने की क्षमता के आधार के बांटकर यह पता लगाने की कोशिश करता है कि विश्व स्तर पर कितने लोग अपने कनेक्शन के लिए अधिक खर्च करते हैं.

कंपनी के मुताबिक, सूचकांक 0 से 1 के बीच है, और 0.0729 के वैश्विक औसत से ऊपर वैल्यू वाले देशों और क्षेत्रों को ‘उचित इंटरनेट मूल्य’ की कैटेगरी में रखा गया है, जबकि इससे कम वैल्यू का मतलब है कि अधिक खर्च करना पड़ रहा है.

कंपनी की तरफ से जारी प्रेस नोट में बताया गया है कि अगर भारत की बात करें तो इंटरनेट वैल्यू इंडेक्स 0.0542 है. यह इसे वैश्विक औसत से लगभग 26 प्रतिशत कम है, लेकिन ‘दक्षिणी एशिया में पहले स्थान पर’ है.


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सूचकांक: भारत और उसके पड़ोसी

31 जनवरी को साझा किए गए प्रेस नोट में सर्फशार्क के प्रमुख शोधकर्ता एग्नेस्का सब्लोव्स्काजा के हवाले से कहा गया है, ‘‘इंटरनेट वैल्यू इंडेक्स इंटरनेट कनेक्शन को एक व्यावहारिक नजरिये से देखने की कोशिश करता है—क्या हमें वह मिल रहा जिसके लिए हम पैसे दे रहे हैं. बहुत संभव है अपेक्षाकृत तेज इंटरनेट वाले आर्थिक रूप से संपन्न देश भी दुनियाभर के अन्य देशों की तुलना में अधिक खर्च कर रहे हों. दूसरी तरफ, कुछ देशों में इंटरनेट की स्पीड धीमी हो सकती है लेकिन उसके लिए काफी कम कीमत का भुगतान किए जाने को देखते हुए, इसे उचित माना जा सकता है.’’

रैंक जितनी अधिक होगी, इंटरनेट सेवा ग्राहकों को उनकी तरफ से किए गए भुगतान के लिहाज़ से उतनी ही बेहतर मिल रही होगी.

कंपनी ने अपने प्रेस नोट में कहा है कि स्टडी में पाया गया है कि विश्व स्तर पर केवल 40 प्रतिशत लोग ही अपनी इंटरनेट सेवाओं के लिए उचित दर पर भुगतान कर रहे हैं, जबकि बाकी लोग ‘‘जो सेवाएं ले रहे हैं, उसकी तुलना में अधिक भुगतान करते हैं और यह संख्या लगभग 5 अरब हैं.’’

कंपनी ने स्टडी के निष्कर्ष जारी करने वाले ब्लॉग में कहा, ‘‘0.0729 के वैश्विक औसत से ऊपर इंटरनेट वैल्यू इंडेक्स वाले देशों में रहने वाले लोगों को इंटरनेट सेवाओं के लिए उचित भुगतान करने वालों की कैटेगरी में रखा गया है. इसके विपरीत, औसत से नीचे के देशों को इंटरनेट के लिए अधिक कीमत चुकाने वाला माना गया है.’’

स्टडी में पाया गया है कि इजरायल का उच्चतम समग्र इंटरनेट मूल्य सूचकांक (0.6630) था जो को वैश्विक औसत से नौ गुना अधिक है. सिंगापुर (0.6186) और डेनमार्क (0.4816) क्रमशः दूसरे और तीसरे स्थान पर रहे. वहीं, युद्धग्रस्त यमन 0.0004 के सूचकांक मूल्य के साथ सबसे निचले स्थान पर रहा.

रैंकिंग किसी देश में इंटरनेट की गुणवत्ता और वहन करने की क्षमता को प्रभावित करने वाले अन्य कई फैक्टर पर भी ध्यान देती है, जैसे किसी व्यक्ति को निश्चित ब्रॉडबैंड और मोबाइल इंटरनेट का खर्च वहन करने के लिए कितने घंटे काम करना चाहिए, साथ ही दोनों प्रकार के कनेक्शनों में औसत डाउनलोड स्पीड कितनी है.

स्टडी के मुताबिक, भारत का औसत प्रति घंटा वेतन 3.60 डॉलर (295.48 रुपये) है, जबकि फिक्स्ड और मोबाइल इंटरनेट के लिए औसत गति क्रमशः 47.8 एमबीपीएस और 13.9 एमबीपीएस है. भारत में फिक्स्ड ब्रॉडबैंड पैकेज के लिए औसत मासिक बिल 15.60 डॉलर आता है, जबकि 1 जीबी मोबाइल ब्रॉडबैंड के लिए 0.20 डॉलर का भुगतान करना होता है.


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भारत की इंटरनेट अफोर्डबिलिटी

जयपुर स्थित डेटा ग्रुप ऑफ इंडस्ट्रीज के प्रबंध निदेशक दाता जैसे लोगों—जो कभी बेहद धीमी गति वाली 2 एमबीपीएस लाइन के लिए करोड़ों का भुगतान करते थे—के लिए देश में चीजें काफी बदली हैं. वह एक स्टार्टअप उद्योग निकाय, एलायंस ऑफ डिजिटल इंडिया फाउंडेशन के कार्यकारी परिषद सदस्य भी हैं.

उन्होंने बताया, ‘‘1999 में, जब मैं एक इंटरनेट सर्वस प्रोवाइडर बनना चाहता था, तो मुझे पहले भारत की एकमात्र गेटवे इंटरनेट एक्सेस सेवा प्रदाता विदेश संचार निगम लिमिटेड (वीएसएनएल) से एक इंटरनेट लाइन लीज़ पर लेनी पड़ी. अनुमान लगाइए मुझे कितना खर्च करना पड़ा होगा? 2 एमबीपीएस स्पीड वाले इंटरनेट कनेक्शन के लिए मुझे 1.18 करोड़ रुपये खर्च करने पड़े. आज मुझे यह 70,000 रुपये में मिल सकता है.’’

वह कहते हैं, ‘‘अब आप 300 रुपये प्रति माह से कम दर में 4जी/5जी इंटरनेट, कॉलिंग, एसएमएस, सब कुछ पा सकते हैं. इसलिए, हम हमेशा यही चाहेंगे कि चीजें सस्ती हों, टेलीकॉम कंपनियां अपने व्यवसाय संचालन के लिहाज़ से कीमतें निर्धारित करेंगी. लेकिन, कोई यह नहीं कह सकता कि भारत में अब इंटरनेट सस्ता नहीं है, या स्पीड बहुत धीमी है.’’

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बुधवार को अपने बजट भाषण में कहा कि भारत की प्रति व्यक्ति आय बढ़कर 1.97 लाख रुपये हो गई है. दाता के मुताबिक, इससे पता चलता है कि इंटरनेट कनेक्शन सस्ते हो गए हैं और ‘कोई नहीं कह सकता कि स्पीड बहुत धीमी है.’

हालांकि, सर्फशार्क ने अपनी स्टडी में जिस प्रश्न की पड़ताल की, वह इंटरनेट वहन करने की सामर्थ्य का नहीं, बल्कि यह है कि क्या भारत में 4जी/5जी इंटरनेट सुविधा का सभी को समान रूप से लाभ मिलता है और क्या उनमें से तमाम लोगों को वादे के अनुरूप स्पीड हासिल होती है.

जनता के लिए प्रौद्योगिकी आसानी से सुलभ बनाने की दिशा में काम कर रही दिल्ली की गैर-लाभकारी संस्था डिजिटल एम्पावरमेंट फाउंडेशन के संस्थापक ओसामा मंजर इससे अलग नज़रिया रखते हैं.

ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, कौशल विकास और आजीविका के अवसरों तक पहुंच बढ़ाने की दिशा में काम कर रहे मंजर के लिए मुद्दा यह है कि इंटरनेट मौजूदा समय में सभी को ‘सार्थक’ अनुभव नहीं देता और इसमें सबसे बड़ी बाधा है इंटरनेट स्पीड.

वे कहते हैं, ‘‘दूरवर्ती और ग्रामीण इलाकों में लोगों को जो बैंडविड्थ देने का वादा किया जाता और जो ज़मीनी हकीकत होती है, उसमें बहुत अंतर है. हमेशा बफरिंग की समस्या या इंटरनेट सेवा निरंतर उपलब्ध न होना आम बात है.’’

उन्होंने आगे कहा, यह ‘सार्थक कनेक्टिविटी के गंभीर अभाव’ की ओर ले जाता है, जहां इंटरनेट होने के बावजूद भी बेकार है क्योंकि इसका शिक्षा, स्वास्थ्य और वित्तीय सेवाओं के लिहाज से उपयुक्त इस्तेमाल करना मुश्किल होता है.

लेकिन ऐसी तमाम कमियों के बावजूद, सर्फशार्क की रैंकिंग से संकेत मिलता है कि भारत में स्थिति में सुधार हो रहा है.

2021-2022 के बीच भारत ने विभिन्न संकेतकों पर काफी अच्छा प्रदर्शन किया. 2022 में यह वहन करने के लिहाज से 21वें स्थान पर था, जो कि 2021 में 47वें स्थान की तुलना में काफी सुधार है. इंटरनेट गुणवत्ता—मोबाइल और ब्रॉडबैंड इंटरनेट की गति और स्थिरता दोनों के संदर्भ में परिभाषित—के मामले में भारत की रैंकिंग 2021 में 67 से 2022 में सुधरकर 57 पर रही.

(अनुवादः रावी द्विवेदी | संपादनः फाल्गुनी शर्मा)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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