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Saturday, 20 April, 2024
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आईआईटी-गुवाहाटी के छात्रों का आरोप- उन्हें आत्महत्या की तरफ धकेला जा रहा

संसद में शिक्षा मंत्री पोखरियाल द्वारा पेश किए गए आंकड़ों के मुताबिक पिछले पांच सालों में आईआईटी-गुवाहाटी में सबसे ज़्यादा 14 मौतें हुई हैं.

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नई दिल्ली: पिछले पांच सालों में आईआईटी-गुवाहाटी में 14 छात्रों की मौत हुई है जिनमें आत्महत्याएं भी शामिल हैं. मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने 2 दिसंबर को संसद में ये जानकारी दी थी. छात्रों की ये मौत देशभर में मौजूद 23 आईआईटी में सबसे बड़ी संख्या है. इन तमाम संस्थानों में पिछले पांच सालों में 50 छात्रों की मौत हुई है.

हालांकि, संस्थान का कहना है कि इन मौतों में आत्महत्या करने वालों की संख्या ज़्यादा नहीं है, लेकिन दिप्रिंट ने जिन छात्रों से फ़ोन पर बातचीत की उन्होंने अलग ही तस्वीर पेश की और कहा कि संस्थान के साथ कुछ समस्याएं हैं जिनकी वजह से बच्चों को ऐसा कदम उठाना पड़ रहा है. उन्होंने जिन चीज़ों में गंभीर खामियां होने की बात कही उनमें शिक्षकों में सहानुभूति की कमी और पेशेवर परामर्शदाताओं के संस्थान में न होने जैसी बातें शामिल हैं.

जब मीडिया के तमाम हिस्सों में इस तरह की ख़बरें आईं कि आईआईटी-गुवाहाटी में सबसे ज़्यादा आत्महत्याएं हुई हैं तो संस्थान में एक सर्कुलर जारी किया गया जिसमें बताया गया कि सभी 14 मौंतें आत्महत्या नहीं हैं.


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छात्रों से ये अपील भी की गई कि वो आत्महत्या से जुड़ी ख़बरें ना शेयर करें और ऐसी ख़बरों को ‘फे़क’ करार दिया गया. छात्र कल्याण बोर्ड के महासचिव आदित्य सनवाल द्वारा 4 दिसंबर को आईआईटी छात्र समुदाय को भेजे गए सर्कुलर में लिखा है, ‘मेरा आप सब से अनुरोध है कि आईआईटी में आत्महत्याओं से जुड़ी संख्या वाली ख़बरों को शेयर मत करें. आईआईटी-गुवाहाटी के मामले में जो 14 मौतें बताई जा रही हैं उनमें प्राकृतिक, दुर्घटनावश और अप्राकृतिक मौतें भी शामिल हैं.’

इसमें आगे लिखा है, ‘जब आत्महत्या की बात होती है तो एक भी बहुत बड़ी संख्या है, लेकिन ऐसी ख़बरों की वजह से संस्थान से जुड़ा जो संदेश जाता है और जैसी बदनामी होती है उसकी भरपाई नहीं की जा सकती है. हम इसे स्वीकार करते हैं कि मामला बेहद गंभीर है और हमें साथ मिलकर इसका हल निकालना चाहिए लेकिन इसे अन्य मुद्दों से जोड़ना, तथ्यों को तोड़ना-मरोड़ना और जानकारी को ग़लत तरीके से पेश करना भी सही नहीं है.’

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संस्थान की भीतरी स्थिति का जायज़ा लेने के लिए दिप्रिंट ने यहां के दो प्रोफेसरों और छात्रों से फ़ोन पर बात की और उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि यहां पेशेवर सलाहकार की कमी है और शिक्षकों में बच्चों के गंभीर मामलों के प्रति संवेदनशीलता की कमी है.

आरोपों के मामले में संस्थान का पक्ष जाने के लिए दिप्रिंट ने एक विस्तृत मेल लिखा था लेकिन इस ख़बर के पब्लिश होने तक वहां से कोई जवाब नहीं आया है.

डीन स्टूडेंट अफेयर्स प्रोफेसर वेंकटा दासु ने दिप्रिंट से कहा कि वो ‘इन आरोपों के बारे में कोई बात नहीं करना चाहते,’ उन्होंने ये भी कहा कि आत्महत्या को लेकर जो संख्या बताई गई है वो सही नहीं है और इससे जुड़ा एक सर्कुलर जारी किया गया है.

नाम ना बताने की शर्त पर एक पीएचडी छात्र ने कहा, ‘मैं यहां पांच सालों से हूं और मेरी नज़रों के सामने बहुत कुछ हुआ है…पिछले साल एक लड़की आई जिसने पहले सेमेस्टर में ही आत्महत्या कर ली. हालांकि, जहां तक मुझे पता है, उसने अपनी जान निजी कारण से दी थी. इसका संस्थान से कोई लेना-देना नहीं था.’

छात्र ने आगे कहा, ‘हालांकि, अगर संस्थान में अच्छे काउंसिलर होते तो उस लड़की को बचाया जा सकता था.’

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अरिंदम मुखर्जी का चित्रण | दिप्रिंट

‘आईआईटी-गुवाहाटी में सब कुछ असामान्य है.’

छात्र ने आगे आरोप लगाया कि आईआईटी-गुवाहाटी के नए निदेशक टीजी सीताराम ने अपना पद संभालने के बाद से एक भी टाउनहॉल मीटिंग नहीं की है. छात्रों और निदेशक के बीच विचारों के आदान-प्रदान समेत कई कारणों से टाउनहॉल मीटिंग को बेहद अहम माना जाता है. छात्र ने कहा कि इन वजहों से प्रशासन और उनके बीच एक खाई जैसी स्थिति बन गई है.

एक और पीएचडी छात्र ने नाम नहीं बताने की शर्त पर कहा, ‘आईआईटी-गुवाहाटी में सब कुछ असामान्य है.’ बातचीत के दौरान रो पड़े इस छात्र ने बताया कि उसने आत्महत्या तक करने की कोशिश की है. उसने कहा, ‘इस संस्थान ने मुझे आत्महत्या के प्रयास को मजबूर किया. मुझे यहां कई तरह की यातनाएं दी गईं, वो भी बस इतने के लिए कि मैं अपने रिसर्च सुपरवाइज़र को बदलवाना चाहता था. जब ऐसा नहीं हो सका तो इस बारे में मैंने शिक्षकों और सीनियर छात्रों से बात करने की कोशिश की लेकिन ये भी मेरे ख़िलाफ़ गया.’ छात्र ने ये भी बताया कि वो एक क्लासिकल डांसर है और इसके लिए भी उसके सुपरवाइज़र ने उसका उपहास किया और कहा कि ये ‘लड़कियों वाला गुण’ है.

छात्र ने ये भी कहा कि मानसिक दबाव झेल रहे छात्रों की मदद के लिए संस्थान के पास ना तो पर्याप्त संसाधन हैं और ना ही अच्छे काउंसिलर. इस छात्र ने हेमंत कुमार नाम के एक छात्र का उदाहरण दिया. हेमंत यहां एमटेक की पढ़ाई कर रहे थे और उन्हें ऐसा डर सताने लगा जैसे उनके पीठ में कोई चाकू मार देगा. छात्र ने कहा, ‘हेमंत के साथ ऐसा होने के बाद यहां के छात्र उसका मज़ाक उड़ाने लगे. उसके डर की वजह से जब उसका मज़ाक बनने लगा तो वो और गुस्सैला होता चला गया. अगर संस्थान चाहता तो उसके मामले को बेहतर तरीके से संभाल सकता था लेकिन उसे अंत में निकाल दिया गया.’

पीएमओ को पत्र लिखा लेकिन कार्रवाई नहीं

सुनयन डेका नाम के एक और पीएचडी छात्र के साथ तो और बुरा हुआ. सुनयन भी अपना सुपरवाइज़र बदलवाना चाहते थे लेकिन उन्हें संस्थान से निकाल दिया गया. उनका आरोप है कि उनके मामले की तो ठीक से सुनवाई भी नहीं हुई. अपने मामले में सुनयन ने तमाम विकल्प अपनाए और प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) तक का दरवाज़ा खटखटाया, लेकिन उनकी कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई. पीएमओ को लिखी गई चिट्ठी में लिखा है, ‘मेरा सुपरवाईज़र मेरे काम में जबर्दस्ती दूसरों को क्रेडिट दिलवाते हैं, वो भी तब जबकि जिसके साथ क्रेडिट शेयर करना हो उसने कोई काम नहीं किया होता है. रैगिंग जैसे समस्या की शिकायत पर भी कोई ध्यान नहीं दिया जाता.’

डेका ने फोन पर कहा, ‘मैंने बस अपना सुपरवाइज़र बदलने की मांग की थी. उनके गैर पेशेवर रवैये की वजह से मैं उनके साथ काम नहीं कर पा रहा था. कई छात्रों ने अपना सुपरवाइज़र आसानी से बदलवाया है. लेकिन मेरे मामले में मुझसे माफ़ी मांगने को कहा गया और जब मैंने ऐसा नहीं किया तो मुझे वहां से निकाल दिया गया.’

एक और छात्र विक्रांत सिंह ने कहा कि ये सभी आरोप सही हैं. उन्होंने कहा, ‘श्रीजीब करमाकर नाम का एक छात्र अपना सुपरवाइज़र बदलवाना चाहता है लेकिन संस्थान ऐसा नहीं कर रहा जिसकी वजह से वो लंबे समय से कोई काम नहीं कर पा रहा. इसका डर है कि संस्थान उसके कुछ नहीं करने को उसे बाहर निकालने का आधार बना सकता है.’ विक्रांत ने ये भी कहा कि वंचित समुदाय से आने वाले लोगों के लिए विशेष व्यवस्था होनी चाहिए क्योंकि उन्हें संस्थान में काफी संघर्ष करना पड़ता है. उन्होंने ये भी कहा कि यहां सारे काउंसिलर बेहद औसत दर्जे के हैं.


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यहां पढ़ाने वाले प्रोफेसर वृजेश कुमार राय ने छात्रों की शिकायत से सहमति जताई. फ़ोन पर दिप्रिंट से हुई बातचीत में उन्होंने कहा, ‘संस्थान को बेहतर काउसिंलर की ज़रूरत है ताकि मानोवैज्ञानिक तौर पर संघर्ष कर रहे छात्रों की मदद की जा सके. संस्थान के साथ ये एक बड़ी समस्या है जिसे तुरंत ठीक किया जाना चाहिए. मुझे ये भी लगता है कि शिक्षकों में छात्रों के प्रति संवेदना की कमी है.’

आईआईटी- मद्रास में हाल ही में फातिमा लतीफ नाम की एक छात्रा ने आत्महत्या कर ली. छात्रा ने आत्महत्या के लिए शिक्षकों पर धार्मिक भेदभाव का आरोप लगाया. इसी के बाद से आईआईटी में छात्रों की आत्महत्या से जुड़ी बहस तेज़ हो गई. मामले को संसद में भी उठाया गया और लड़की के पिता को पीएम नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह द्वारा आश्वासन दिया गया कि इसकी सीबीआई जांच की जाएगी. उन्होंने परिवार को इस बात का भी भरोसा दिलाया कि आईआईटी-आईआईएम में हाल में हुई तमाम आत्महत्याओं की जांच कराई जाएगी.

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