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Friday, 26 April, 2024
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धारा 144 लगाकर लोगों के लोकतांत्रिक अधिकारों को छीनना और धरना-प्रदर्शन हटाना कितना जायज है

सरकार विभिन्न धरना प्रदर्शनों पर शांति भंग का हवाला देकर धारा 144 लगाती रही है. अभी उत्तर-पूर्वी दिल्ली की बेकाबू होती हिंसा को रोकने के लिए भी इस धारा का इस्तेमाल किया गया.

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नई दिल्ली: शाहीन बाग में दो महीने से ज्यादा समय से चल रहे नागरिकता संंशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ हो रहे प्रदर्शन को लेकर रविवार को इस पूरे क्षेत्र में धारा 144 लगा दी गई. ऐसा कई बार देखा गया है कि प्रदर्शन या संभावित प्रदर्शन की जगह पर प्रशासन पहले ही धारा 144 लगा देती है. अब सवाल यह उठता कि क्या सरकार प्रदर्शन कर रहे लोगों के लोकतांत्रिक हक को इस तरह छीन सकती है. ऐसा करना कितना जायज है?

सीआरपीसी की धारा 144 शांति कायम करने के लिए उस स्थिति में लगाई जाती है जब किसी तरह के सुरक्षा संबंधी खतरे या दंगे की आशंका होती है.

कानूनी विशेषज्ञों और विश्लेषकों की इस पर अपनी अलग-अलग राय है.

क्या सरकार दो महीने से ज्यादा चल रहे इस धरने को धारा 144 लगाकर खत्म कर सकती है इसपर पूर्व लोकसभा महासचिव व संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप ने दिप्रिंट को बताया कि, ‘यह लॉ एंड ऑर्डर का मामला है, सरकार जनता के फ्री एक्सेस (बिना किसी दिक्कत की आवाजाही) के मूलभूत अधिकार के लिए ऐसा कर सकती है. लोग ढाई महीन से सड़क जाम किए हुए हैं जिससे बाकि जनता के आधिकार प्रभावित हो रहे हैं, इसलिए प्रशासन धारा 144 लगा सकता है. यही नहीं सरकार सड़क को क्लीन यानि खाली भी करा सकती है.’

इस सवाल पर कि अगर धरना शांति से चल रहा है और किसी हिंसा की संभावना नहीं है तो भी धारा 144 लगाना सही है तो उन्होंने कहा, ‘अगर प्रशासन के लिए शांति भंग होने का सवाल है और उन्होंने (प्रदर्शनकारी) रोड ही बंद किए हुए हैं, दूसरे नागरिकों के फंडामेंटल (मूल) अधिकार का सवाल है, फ्री मूवमेंट को वे रोक रहे हैं तो अथॉरिटीज ऐसा कर सकती हैं.

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उन्होंने कहा, ‘दो महीने हो गये सरकार क्यों टॉलरेट कर रही है, सड़क क्लीर करानी चाहिए. सरकार अपनी ड्यूटी नहीं निभा रही है. हजारों नागरिकों को जिन्हें आधे घंटे के सफर में 3-3 घंटे लग रहे हैं. इसके लिए तो धारा 144 लगाना ही नहीं बल्कि सचमुच रोड भी खाली कराना सही है.’

सरकार विभिन्न धरना प्रदर्शनों पर शांति भंग का हवाला देकर धारा 144 लगाती रही है. अभी उत्तर-पूर्वी दिल्ली की बेकाबू होती हिंसा को रोकने के लिए भी इस धारा का इस्तेमाल किया गया.


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इससे पहले प्रशासन ने जामिया हिंसा को लेकर छात्रों के मंडी हाउस से जंतर मंतर तक मार्च पर शांति भंग होने की बात कहकर पिछले साल 24 दिसंबर को धारा 144 लगाई थी और मार्च की अनुमति नहीं दी थी.

जब जंतर मंतर पर प्रदर्शन करने के अधिकार को सुप्रीम कोर्ट ने सही ठहराया

वहीं जंतर-मंतर पर धरना-प्रदर्शनों को रोकने के लिए एनजीटी की ओर से धारा 144 के जरिए पूर्ण प्रतिबंध को सुप्रीम कोर्ट ने 23 जलाई 2018 में हटा दिया था और केंद्र को ऐसे प्रदर्शनों के लिए दिशा निर्देश तय करने को कहा था.

जस्टिस एके सीकरी और जस्टिस अशोक भूषण की पीठ ने नागरिकों के प्रदर्शन और शांत जीवन दोनों परस्पर विरोधी अधिकारों के बीच संतुलन बनाने की जरूरत पर बल दिया था.

पीठ ने कहा था, ‘जंतर मंतर और बोट क्लब (इंडिया गेट) जैसी जगहों पर प्रदर्शन पर पूर्ण प्रतिबंध नहीं हो सकता.’

पीठ ने जंतर मंतर और बोट क्लब पर होने वाले सभी प्रदर्शनों पर राष्ट्रीय हरित अधिग्रहण (एनजीटी) के प्रतिबंधों को चुनौती देने वाली यचिकाओं पर सुनवाई में यह फैसला दिया था.

वही एनजीटी ने 5 अक्टूबर 2017 को ऐतिहासिक जंतर मंतर के आसपास सभी तरह के प्रदर्शन और धरने पर रोक लगा दी थी और कहा था कि ऐसी गतिविधियां पर्यावरणीय नियमों का उल्लंघन करती हैं.

अदालत ने नई दिल्ली नगरपालिका परिषद (एनडीएमसी) को तब कनॉट प्लेस के पास जंतर मंतर रोड से सभी अस्थायी ढांचों, लाउडस्पीकरों को हटाने के निर्देश दिए थे.

एनजीटी ने प्रदर्शनकारियों, आंदोलनकारियों और धरने पर बैठे लोगों को वैकल्पिक स्थल के रूप में रामलीला मैदान स्थानांतरित करने का अधिकारियों को निर्देश दिया था.

एनजीटी ने इसे लगातार इस्तेमाल वायु प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण अधिनियम, 1981 समेत पर्यावरणीय कानूनों का उल्लंघन बताया था और कहा था कि यहां के आसपास रहने वाले लोगों को शांतिपूर्ण और आराम से रहने का हक है और उनके लिए प्रदूषण मुक्त वातावरण जरूरी है.


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वहीं बाम्बे हाईकोर्ट समेत आए तमाम फैसलों के मुताबिक धारा 144 लॉ ऑर्डर का मामला है जो प्रशासन के जिम्मे हैं लेकिन इसका मकसद किसी आंदोलन का गला घोटना नहीं है.

धारा -144 है क्या

धारा 144 आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की एक धारा है जिसे सुरक्षा कारणों, दंगे जैसी स्थिति में लगाया जाता है. इसके लागू होते हीं जिस क्षेत्र में इसे लगाया गया है वहां पांच और इससे ज्यादा लोगों के इकट्ठा होने की मनाही हो जाती है. इसे जारी करने का आदेश जिला अधिकारी का होता है.

सुरक्षा कारणों से पिछले कुछ दिनों में ये भी देखा गया है कि धारा-144 लागू होने के साथ इंटरनेट सेवाओं पर भी रोक लगा दी जाती है. बता दें कि इस धारा के तहत प्रशासन के पास ये अधिकार है कि वो ऐसा कर सकते हैं.

जब प्रशासन को लगता है कि कोई ऐसी स्थिति उत्पन्न होने वाली है जिससे सामाजिक शांति और कानून का उल्लंघन होने जैसी स्थिति बन रही है तो इसे लागू किया जाता है.

सीआरपीसी के तहत धारा 144 लागू होते हीं सार्वजनिक जगहों पर लोगों द्वारा लाठी या किसी प्रकार का कोई हथियार लेकर चलने की मनाही हो जाती है. इस स्थिति में सिर्फ पुलिस और सुरक्षाकर्मियों को छूट है कि वो हथियार रख सकते हैं.

दो महीने से ज्यादा तक नहीं लग सकती धारा -144

जिस क्षेत्र में धारा 144 लगाई गई है वहां इस आदेश के जारी होने के दो महीने तक ही इसे लागू किया जा सकता है. लेकिन इस धारा के साथ एक उचित वर्गीकरण (रिज़नेबल क्लासिफिकेशन) भी है जिसके तहत अगर राज्य सरकार को लगता है कि उस क्षेत्र में जहां इसे लगाया गया है वहां कानून व्यव्यथा और शांति बहाल नहीं हो सकी है तो वो इसे अपने जारी आदेश की तारीख से अगले छह महीने तक बढ़ा सकते हैं.

इस धारा के उल्लंघन के खिलाफ क्या है सज़ा का प्रावधान

धारा-144 लगाए जाने वाले क्षेत्र में अगर पांच से ज्यादा लोग इकट्ठा होते हैं या इसका किसी भी प्रकार से उल्लंघन करते हैं तो इसके लिए सज़ा का भी प्रावधान है. इस धारा का उल्लंघन करने पर अधिकतम तीन साल की सज़ा का प्रावधान है. अगर कोई व्यक्ति पुलिस को उसके काम करने से रोकता है तो इसको लेकर भी सज़ा का प्रावधान है.

बता दें कि शाहीन बाग में सीएए के खिलाफ लगभग ढाई महीने से धरना प्रदर्शन चल रहा है. इस धरने में मुस्लिमों के काफी संख्या में शामिल होने के साथ इसे बाकि समुदायों का समर्थन भी मिल रहा है. दिल्ली चुनाव में बीजेपी ने इसे बड़ा मुद्दा बनाते हुए इसकी आलोचना की और प्रदर्शनकारियों के खिलाफ अभद्र टिप्पणियां की गईं. हालांकि चुनाव में हार के बाद अमित शाह ने एक इंटरव्यू में इन टिप्पणियों  को गलत माना था और पार्टी को बीजेपी नेताओं के अभद्र बयानों से अलग कर लिया था.


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साथ ही उन्होंने सीएए के खिलाफ शाहीन बाग के प्रदर्शनकारियों को बातचीत का न्यौता दिया था लेकिन बाद में गृह मंत्रालय ने बातचीत के लिए कोई समय तय नहीं किया.

वहीं इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने शाहीन बाग के प्रदर्शनकारियों से बातचीत कर रास्ता खोलने के लिए मध्यस्थ नियुक्त किए जिन्होंने कई बार बात की लेकिन प्रदर्शनकारी वहां से हटने को तैयार नहीं थे. वार्ताकार वजाहत हबीबुल्लाह ने रोड जाम के लिए पुलिस को जिम्मेदार ठहराया था.

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