गुरेज़ (बांदीपोरा): भारत-पाकिस्तान नियंत्रण रेखा के पास करीब 10,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित गांव इज़मर्ग और बजरंग पास-पास स्थित हैं. पर बीते सप्ताह मानो दोनों अलग-अलग दुनिया में थे.
बजरंग के लोग पाकिस्तानी गोलाबारी में तबाह अपने मकानों के पुनर्निर्माण में लगे थे. कड़ाके की ठंड का मौसम करीब होने के कारण घरों की मरम्मत के काम की तात्कालिकता और बढ़ गई है.
उधर एक ही दिन होने वाली दो भाइयों की शादियों की तैयारी में जुटे इज़मर्ग के लोग मौजूदा मुश्किल घड़ी में सामान्य ज़िंदगी की तलाश कर रहे थे.
दिप्रिंट को भी इज़मर्ग में नाच-गान एवं उत्सव के माहौल और बजरंग में ईंट-गारे से जुड़ी व्यस्तता जैसे विरोधाभास का सामना करना पड़ा जब हमने अनुच्छेद-370 को निरस्त किए जाने के बारे में लोगों की राय जाननी चाही.
बेरोज़गारों के लिए राज्य को विशेष दर्जे का कोई मतलब नहीं था, खास कर जब हर साल सर्दियों में उन्हें शेष दुनिया से कट कर रहना पड़ता हो. पिछले कुछ दशकों के दौरान उनकी स्थिति जस की तस रही है, और उनका मानना है कि आगे भी कोई बदलाव नहीं होने को है.
‘समय से होड़’
इस रिपोर्टर ने जिस समय बजरंग निवासी फ़ारूक़ अहमद चौपान से संपर्क किया, वह अपने जले घर के मलबे की सफाई में व्यस्त थे. सिर्फ एक महीने पहले तक ये घर चौपान की रिहाइश होती थी.
बांदीपोरा के गुरेज़ इलाके के उनके गांव में कुल 32 घर हैं. चौपान का घर 27 अगस्त को पाकिस्तानी गोले की चपेट में आने के बाद आग की भेंट चढ़ गया था. पाकिस्तानी गोलाबारी में कुल 13 घर तबाह हो गए और एक ग्रामीण घायल हो गया था.
गुरेज़ की कंजलवन सुरक्षा चौकी पर तैनात एक सैनिक ने बताया कि पिछले डेढ़ महीनों के दौरान पाकिस्तानी गोलाबारी तेज़ हो गई है. उसके अनुसार पाकिस्तानी गोलाबारी की जद में होने के कारण इलाके के आम लोगों को नुकसान सहना पड़ रहा है.
फ़ारूक़ और अन्य ग्रामीण सुबह से शाम तक अपने घरों को दोबारा खड़ा करने के प्रयास में जुटे रहते हैं, क्योंकि कड़ाके की ठंड वाला मौसम सिर पर है जब पूरा इलाका बर्फ की चादर में ढंक जाता है, सड़कें बंद हो जाती हैं और आवागमन मुश्किल हो जाता है.
फ़ारूक़ ने कहा, ‘हमारी समय से होड़ है. मुझे नहीं लगता मैं एक महीने में ये काम पूरा कर पाऊंगा. पता नहीं इस बार सर्दियों के मौसम में अपने छह-सदस्यीय परिवार के साथ मुझे कहां रहना पड़ेगा.’
‘हमारा यही हाल रहेगा’
बजरंग गांव में लगभग 250 लोग रहते हैं, जिनमें से ज़्यादातार खेतों में मजदूरी करते हैं. यहां मुख्यत: आलू और राजमा उगाए जाते हैं.
घर तबाह हो जाने के बाद फ़ारूक़ और उसके परिजनों को एक बंकर में ठौर मिली है. पाकिस्तान के साथ तनाव की स्थिति में नियमित रूप से गोलाबारी का सामना करने वाले गांवों में ऐसे बंकरों की मौजूदगी आम है. जिन 12 अन्य परिवारों के घर 27 अगस्त की गोलाबारी में तबाह हो गए थे, वे उन पड़ोसियों के यहां आश्रय लिए हुए हैं जिनके घर सौभाग्य से सुरक्षित बच गए हैं.
गुलाम हसन चौपान का घर भी नष्ट हो गया है. उन्होंने कहा, ‘नवंबर से मार्च तक बर्फ के कारण हम कोई काम करने की स्थिति में नहीं होंगे. पुनर्निर्माण का काम सर्दियों के बाद दोबारा आरंभ करना होगा.’
बजरंग और साथ लगे गांव तारबल के निवासियों का कहना है कि अनुच्छेद-370 का उनके लिए कोई मतलब नहीं है क्योंकि इससे उनकी ज़िंदगियों पर कोई असर नहीं पड़ने वाला है.
फ़ारूक़ ने कहा, ‘हमारे सिर पर छत नहीं है. अनुच्छेद-370 के नहीं होने से भला मेरी स्थिति में कोई सुधार होगा? मैं नहीं समझता. हमारी हालत ऐसी ही रहेगी. अधिकारी बीच-बीच में आश्वासन देते रहेंगे.’
गुलाम ने उनकी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘हमारे पास अब अपना घर नहीं है. पर हर सर्दियों में ऐसी ही स्थिति रहती है. सड़क से संपर्क पांच-छह महीने तक टूटा रहता है. हमें खुद ही अपनी हिफाज़त करनी होती है. पिछले कुछ वर्षों में कई सरकारें आईं और गईं, पर हमें अभी तक सालों भर खुली रहने वाली सड़क नहीं मिली है.’
गोलाबारी की 27 अगस्त की घटना के बाद, ज़िला प्रशासन ने परिवारों को मुआवज़ा देने की घोषणा की, जबकि सेना ने खाद्य पदार्थ, किरोसिन, बर्तन, कुकिंग गैस और अन्य ज़रूरी वस्तुओं से मदद की.
ग्रामीणों ने स्वीकार किया कि सेना द्वारा दिया जाने वाले राशन से उन्हें बहुत मदद मिली है, पर उन्हें चिंता है कि सर्दियो के लिए ये पर्याप्त नहीं होगा.
‘हमें लगा लड़ाई छिड़ गई है’
हर साल सर्दियों में दुनिया से कट जाने के आदी ग्रामीणों ने बताया कि वे महीनों पहले से सर्दियों के लिए राशन इकट्ठा करने लगते हैं. इस साल भी उन्होंने ऐसा ही किया था, पर पाकिस्तानी गोलाबारी ने सबकुछ तबाह कर दिया.
बजरंग गांव के बेघर हुए परिवारों में से एक की सदस्य 65 वर्षीय बकटी बेगम ने कहा, ‘हमारा सारा राशन आग की भेंट चढ़ गया. नए सिरे से पांच महीने का स्टॉक जुटाना संभव नहीं है. इसमें समय लगता है. विपरीत मौसमी परिस्थितियों के कारण नवंबर से हमारे लिए आवागमन सीमित हो जाता है. मुझे नहीं पता मैं क्या करूंगी.’
पश्चिम बंगाल के हावड़ा ज़िले की ताहिरा बेगम चार साल पहले शादी के बाद बजरंग आई थीं. उन्होंने कहा कि 27 अगस्त की सुबह की गोलाबारी के बाद पहली बार उन्हें लगा कि बंगाल लौट जाना ही बेहतर होगा.
उन्होंने उस दिन की अफरातफरी को याद करते हुए कहा, ‘मुझे ऐसी परिस्थिति का पहले कभी सामना नहीं करना पड़ा था. दिन में साढ़े दस बजे के आसपास जब हमें गोलाबारी की आवाज़ सुनाई पड़ी तो हम बंकरों की तरफ भागे. हमें लगा लड़ाई छिड़ गई है.’
एक छोटे से बंकर में गुलाम हसन समेत 30 ग्रामीणों को शरण लेनी पड़ी थी. हसन ने कहा, ‘कुछ समय बाद, हमें अहसास हो गया था कि बाहर आग लगी हुई है. धुआं बंकर तक आ रहा था. मैं हालत के मुआयने के लिए बाहर निकला, और मुझे कई घरों में आग लगी दिखी.’
वह बंकर में वापस लौटने के लिए मुड़े ही थे कि मोर्टार गोले का एक टुकड़ा उनके दाहिने पैर में आकर लगा.
गांव तक सहायता दल के पहुंचने तक 13 घर जलकर खाक हो चुके थे.
उस दिन 15 वर्षीय सुराश चौपान इतना डर गए कि अभी तक दोबारा स्कूल नहीं गए हैं. उन्होंने कहा, ‘मुझे गोलाबारी की चपेट में आने का डर लगता है.’
जबकि ताहिरा ने इस बारे में कहा, ‘ये सब एक दु:स्वप्न की तरह है. हम हमेशा सशंकित रहते हैं. मैं अपने साल भर के बेटे को अक्सर बंकर में ही रखती हूं. हम गोलाबारी की चपेट में आ जाते हैं क्योंकि हमारी स्थिति भारतीय और पाकिस्तानी चौकियों के बीच की है.’
मुसीबत के वक्त संगीत-नृत्य
इज़मर्ग में अहमद के घर में परिवार के युवा सदस्य सजावट का काम करते हुए मंगलवार को लगातार बातें कर रहे थे. बीच-बीच में वे अचानक नाचने-गाने लगते. पर रिश्तेदारों की खातिरदारी में जुटी परिवार की प्रमुख 50 वर्षीय खदीजा रशीद के चेहरे पर चिंता साफ दिख रही थी.
ये उनके दो सबसे छोटे बेटों तौसिफ़ और मुबारक की शादियों से एक दिन पहले की बात है. अनुच्छेद-370 को निरस्त करने तथा जम्मू-कश्मीर को दो केंद्रशासित प्रदेशों में बांटने के 5 अगस्त के फैसले के बाद गुरेज़ में हो रही ये पहली शादियां थीं.
उस फैसले के बाद घाटी और अन्य जगहों में पूर्ण लॉकडाउन लागू कर दिया गया और लोगों की आवाजाही एवं संचार नेटवर्कों पर पाबंदी लगा दी गई (जिसमें बाद में थोड़ी ढील दी जा चुकी है). उसके बाद से पाकिस्तान के साथ संबंधों में भी तनाव बढ़ गया है, और इज़मर्ग से कुछ ही किलोमीटर दूर बजरंग में जलकर खाक हुए 13 घर निरंतर याद दिलाते हैं कि मौजूदा वक्त किस कदर अनिश्चितताओं से भरा है.
खदीजा ने कहा, ‘हम लगातार इस भय में जी रहे हैं कि सीमा के उस पार से कभी भी गोलाबारी आरंभ हो सकती है.’
उन्होंने कहा, ‘बेटों को ब्याहने का ये आदर्श समय नहीं है. कुछ ही सप्ताह पूर्व, पास के गांव में गोलाबारी से करीब एक दर्जन घर तबाह हो गए थे. पर इसी साल के आरंभ में जब शादियों की तारीख पक्की हो रही थी तो हमें इस बात का भान नहीं था कि स्थिति इस तरह करवट लेगी.’
खदीजा ने कहा कि उनका समय ये दुआ करने में गुजरता है कि शादी समारोह संपन्न होने तक कोई अनहोनी नहीं घटे. उन्होंने कहा, ‘मैं इतनी चिंतित हूं कि इन दिनों मुश्किल से सो पाती हूं.’
दो भावी दूल्हों में से एक तौसिफ ने बताया कि उनके परिवार में विवाह समारोह को टालने के विषय पर भी चर्चा हुई थी. उन्होंने कहा, ‘हमारे जैसे निम्न मध्यवर्गीय परिवारों को शादी की तैयारी करने में समय लगता है. मेरे भाई और मैंने एक ही दिन शादी करने का फैसला किया ताकि खर्च कम करना पड़े.’
उन्होंने कहा, ‘ऐसा नहीं है कि हमने शादी स्थगित करने पर विचार नहीं किया. पर घर के बुज़ुर्गों को ये विचार पसंद नहीं आया क्योंकि सारी तैयारियां हो चुकी थीं. हमारे अधिकांश रिश्तेदार आ चुके हैं.’
तौसिफ बातचीत कर ही रहा था कि उसके चचेरे भाई उसे खींचकर उस कमरे में ले गए जहां परिवार की महिलाएं शादी के गीत गा रही थीं. वह शर्माता हुआ बैठ गया, जबकि उसके रिश्तेदार उसे छेड़ते हुए नाच रहे थे और घर की बुजुर्ग महिलाएं खुशी जाहिर कर रही थीं.
‘नौकरी की अधिक चिंता’
हंसी-खुशी के इस माहौल के बीच कश्मीर की मौजूदा स्थिति का तब अहसास हुआ जब परिवार के एक रिश्तेदार ने दिप्रिंट को नाच-गाने की रिकॉर्डिंग नहीं करने की हिदायत दी.
ज़हीर अहमद लोन नामक इस व्यक्ति ने कहा, ‘कृपया वीडियो नहीं बनाएं. आप जाकर दुनिया को ये दिखाकर कहेंगी कि कश्मीर में हालात सामान्य हैं, और हमें यहां खामियाज़ा भुगतना पड़ेगा. बहुत पहले तय हुई शादी का समारोह आयोजित किए जाने का मतलब ये नहीं है कि हालात सामान्य हैं.’
बमिना के सरकारी डिग्री कॉलेज से पोस्टग्रेजुएट तौसिफ अपनी शिक्षा के अनुरूप नौकरी नहीं मिलने के कारण आजीविका के लिए टैक्सी चलाता है.
उनकी होने वाली दुल्हन भी बांदीपोरा की ही है. तौसिफ के परिवार के सदस्य ‘मेहंदी रात’ के लिए दुल्हन के घर जाएंगे. इस रस्म में दूल्हे के घर की लड़कियां दुल्हन के हाथों में मेहंदी लगाने के लिए उसके घर जाती हैं. इसके बाद दूल्हे का पूरा परिवार वहां निकाह के लिए पहुंचता है.
तौसिफ के चचेरे भाई 20 वर्षीय रोशन मुस्तफा ने कहा, ‘मुझे पता है कि माहौल निराशामय है. पर चार वर्षों के बाद परिवार में कोई शादी हो रही है… हम इस पर रोमांचित हुए बिना नहीं रह सकते.’
रोशन ने कहा कि अनुच्छेद 370 उसके लिए कोई मुद्दा नहीं है. गुरेज़ के कई गांवों में यही विचार सुनने को मिला जहां लोगों को रोज़गार और पूरे साल खुली रहने वाली सड़कों की अधिक चिंता है.
रोशन ने कहा, ‘आपको हर दूसरे घर में एक पोस्टग्रेजुएट मिल जाएगा जो नौकरी के बिना खाली बैठा है. तौसिफ ने अपना पोस्टग्रेजुएशन 2014 में पूरा किया था, पर नौकरी नहीं मिलने के कारण वह टैक्सी चलाने को विवश है.’
रोशन खुद इस समय बांदीपोरा में नर्सिंग की पढ़ाई कर रहा है. उसने कहा, ‘मुझे अनुच्छेद-370 के खात्मे की परवाह नहीं है. मुझे अगले साल अपना कोर्स पूरा करने के बाद नौकरी पाने की चिंता अधिक है.’
सीमा से सटे एक अन्य गांव ताराबल के निवासी जमशेद युसुफ ने हर साल सर्दियों में बनने वाली स्थिति पर निराशा का इजहार किया. उन्होंने कहा, ‘यहां की सड़कों पर अक्सर बड़े-बड़े गड्ढे बने होते हैं, जिससे आवागमन मुश्किल हो जाता है. सर्दियों में स्थिति और भी खराब हो जाती है. हर साल ऐसा ही होता है. ज़रा सोचिए कि अचानक मेडिकल इमर्जेंसी की स्थिति होने पर हमें किन मुश्किलों से गुजरना पड़ता होगा.’
इस बारे में सवाल किए जाने पर ज़िला प्रशासन के एक अधिकारी ने कहा कि हर साल गर्मियों में सड़कों की मरम्मत की जाती है, ‘पर सर्दियों में भारी बर्फबारी के कारण सड़कें फिर से टूट जाती हैं.’
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