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Friday, 21 March, 2025
होमदेशस्टालिन की डिलिमिटेशन बैठक से पहले, RSS ने 'उत्तर-दक्षिण विभाजन पैदा करने वाली ताकतों' पर साधा निशाना

स्टालिन की डिलिमिटेशन बैठक से पहले, RSS ने ‘उत्तर-दक्षिण विभाजन पैदा करने वाली ताकतों’ पर साधा निशाना

बेंगलुरु में अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में बोलते हुए सह सरकार्यवाह सीआर मुकुंद ने कहा कि भाषा, डिलिमिटेशन और अन्य मुद्दों का विरोध 'राजनीति से प्रेरित' है.

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बेंगलुरु: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने शुक्रवार को कहा कि कुछ ताकतें “राष्ट्रीय एकता को चुनौती” दे रही हैं, जो उत्तर-दक्षिण विभाजन पैदा कर रही हैं और डिलिमिटेशन एक्सरसाइज के खिलाफ विरोध को बढ़ावा दे रही हैं.

बेंगलुरु में अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में बोलते हुए, सह सरकार्यवाह सीआर मुकुंद ने कहा कि यह विभाजन संगठन के सदस्यों के लिए चिंता का विषय है.

“हमारे संगठन और यहां उपस्थित सभी प्रतिनिधियों के लिए एक और चिंता की बात यह है कि कुछ ताकतें राष्ट्रीय एकता को चुनौती दे रही हैं, खासतौर पर बढ़ती उत्तर-दक्षिण बहस, चाहे वह परिसीमन को लेकर हो या भाषाओं को लेकर.”

मुकुंद ने कहा, “तो, हमारे स्वयंसेवक और हमारे विचार परिवार से जुड़े विभिन्न संगठनों के पदाधिकारी, हम विशेष रूप से दक्षिणी राज्यों में समरसता लाने के लिए पूरी कोशिश कर रहे हैं.”

यह बयान तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके. स्टालिन द्वारा चेन्नई में बुलाई गई बैठक से एक दिन पहले आया है, जिसमें कई राज्यों के नेता और पार्टियां परिसीमन पर चर्चा करने के लिए एकत्रित हो रहे हैं. उनका मानना है कि परिसीमन से विशेष रूप से दक्षिणी राज्यों की लोकसभा में प्रतिनिधित्व क्षमता कम हो जाएगी.

स्टालिन और उनके गैर-भाजपा शासित समकक्ष केंद्र की उन नीतियों के खिलाफ समर्थन जुटा रहे हैं, जिन्हें वे अपने राज्यों के लिए हानिकारक मानते हैं. इनमें कथित रूप से हिंदी थोपना, केंद्रीय करों में घटता हिस्सा, और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शासन में उपेक्षा की धारणा शामिल है.

भाजपा की विचारधारा के मूल संगठन आरएसएस ने कहा कि भाषा, परिसीमन और अन्य मुद्दों का विरोध “राजनीतिक रूप से प्रेरित” है.

मुकुंद ने पिछले महीने कोयंबटूर में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा दिए गए आश्वासन को दोहराया.

“हालांकि, केंद्र के निर्णयों पर बोलना आरएसएस का काम नहीं है, लेकिन हमें विश्वास है कि हमारे केंद्रीय गृह मंत्री पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि सांसद सीटों का अनुपात बरकरार रखा जाएगा.”

‘भाषा पर कोई समाधान नहीं’

उन्होंने कहा कि भाषा से जुड़े अन्य मुद्दे भी उठाए जा रहे हैं ताकि आपसी मतभेद पैदा किए जा सकें.

“उदाहरण के लिए… रुपये के प्रतीक को किसी स्थानीय भाषा में रखना… ये ऐसे मुद्दे हैं जिन्हें राजनीतिक नेताओं के बजाय समाज के नेताओं द्वारा हल किया जाना चाहिए. मैं कहूंगा कि समाज के विभिन्न समूहों को एक साथ आना चाहिए. देश के लिए यह ठीक नहीं है कि हम आपस में झगड़ें.”

उन्होंने आगे कहा, “हां, सभी को न्याय मिलना चाहिए, संघ इसके पक्ष में है… लेकिन इसे सौहार्दपूर्ण तरीके से सुलझाया जाना चाहिए.”

तमिलनाडु सरकार को राज्य के बजट में तमिल भाषा में ‘रुपये’ का प्रतीक इस्तेमाल करने के लिए आलोचना झेलनी पड़ी, खासकर हिंदी थोपने के विवाद के बीच. केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इसे “क्षेत्रीय संकीर्णता” करार दिया और कहा कि यह “राष्ट्रीय एकता को कमजोर करता है.”

शनिवार को स्टालिन की बैठक में स्कूलों में राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के तहत विवादास्पद “तीन-भाषा फॉर्मूला” पर भी चर्चा होने की संभावना है.

मुकुंद ने कहा कि संघ ने इस पर कोई प्रस्ताव पारित नहीं किया है कि दो-भाषा नीति होनी चाहिए या तीन-भाषा नीति।

उन्होंने कहा कि संघ का मानना है कि सभी दैनिक कार्य “मातृभाषा” में होने चाहिए। साथ ही, उन्होंने यह भी जोड़ा कि दैनिक लेन-देन के लिए एक क्षेत्रीय बाजार भाषा होनी चाहिए.

“यह एक दैनिक बाजार भाषा है. अगर मैं तमिलनाडु में रहता हूं, तो मुझे तमिल सीखनी होगी. अगर मैं दिल्ली में रहता हूं, तो मुझे हिंदी सीखनी चाहिए क्योंकि मुझे स्थानीय लोगों या बाजार से बातचीत करनी होगी,” उन्होंने कहा. तीसरी भाषा के रूप में उन्होंने “कैरियर भाषा” का उल्लेख किया, जो अंग्रेजी हो सकती है.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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