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Thursday, 2 May, 2024
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बीसीसीआई अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभालने के लिए इतनी आसानी से नहीं माने सौरव गांगुली

सौरव ने करीब दो दशक पहले टीम इंडिया की कमान भी मुश्किल वक्त में संभाली थी. भारतीय क्रिकेट में फिक्सिंग का भूचाल आया हुआ था.

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सौरव गांगुली का बीसीसीआई अध्यक्ष बनना तय हो गया है. इसका औपचारिक एलान 23 अक्टूबर को भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड की सालाना बैठक यानी एजीएम के बाद कर दिया जाएगा. उनके साथ गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन के जय शाह बतौर सचिव रहेंगे. मुंबई में रविवार को आधी रात इन सारी बातों पर सहमति बन गई. शुरुआत में ब्रजेश पटेल के अध्यक्ष बनने पर सहमति बनती दिख रही थी. लेकिन बीसीसीआई में राजनीतिक करवटें लेने वालों ने कहानी में ट्विस्ट ला दिया. माना जा रहा है कि अब ब्रजेश पटेल को आईपीएल के चेयरमैन की जिम्मेदारी दी जाएगी.

दरअसल, सौरव गांगुली को लेकर चर्चा तो थी ही लेकिन उन्हें उपाध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी जाने को लेकर बात चल रही थी. सौरव इस जिम्मेदारी को उठाने के लिए हामी नहीं भर रहे थे. इसके बाद उन्हें अध्यक्ष का रोल सौंपने पर चर्चा हुई. खबर है कि भारत सरकार के एक बड़े मंत्री और बीजेपी के कद्दावर नेता ने भी अपनी पार्टी के एक क्रिकेट अधिकारी के जरिए सौरव गांगुली तक ये इच्छा पहुंचाई कि वो अध्यक्ष पर का ऑफर स्वीकार करें.

सौरव गांगुली पिछले काफी समय से बंगाल क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष के तौर पर प्रशासनिक कामकाज कर ही रहे हैं इसलिए उनके पास अध्यक्ष पद के लिए मना करने का कोई ठोस आधार नहीं था. हालांकि उनका कार्यकाल 10 महीने के करीब ही होगा क्योंकि क्रिकेट में सुधार के लिए बनाई गई लोढ़ा समिति की सिफारिशों के चलते उन्हें दस महीने के बाद ‘कूलिंग पीरियड’ के लिए जाना होगा.

मुश्किलों से जूझना दादा की आदत है

सौरव गांगुली की बात करनी भी जरूरी है. ये दिलचस्प बात है कि सौरव ने करीब दो दशक पहले टीम इंडिया की कमान भी मुश्किल वक्त में संभाली थी. भारतीय क्रिकेट में फिक्सिंग का भूचाल आया हुआ था. कई खिलाड़ियों के नाम इसमें शामिल थे. कुछ को बैन किया गया था. ऐसे वक्त में उन्हें टीम की कप्तानी सौंपी गई. अपनी ‘फाइटिंग स्पिरिट’ से सौरव ने टीम में वो जान फूंकी कि 2003 में भारतीय टीम ने विश्व कप के फाइनल का सफर तय किया.

ऑस्ट्रेलिया को उसी के घर में कड़ी टक्कर दी और अगले ही साल पाकिस्तान को उसी के घर में टेस्ट और वनडे सीरीज में हराया. क्रिकेट के बड़े से बड़े जानकार और सौरव गांगुली के बड़े से बड़े आलोचक भी ये मानने को मजबूर हो जाते हैं कि भारतीय क्रिकेट आज जिस बुलंदी पर है उसमें सौरव गांगुली का बड़ा रोल है. युवराज सिंह, जहीर खान, वीरेंद्र सहवाग और हरभजन सिंह जैसे खिलाड़ी सौरव गांगुली की ही देन थे. खैर, अब लगभग वैसी ही स्थिति एक बार फिर सौरव गांगुली के सामने है.

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इस बार कहानी और उलझी हुई इसलिए है क्योंकि अब टीम को नहीं बल्कि पूरे के पूरे खेल को ही पटरी पर लाना है. आपको याद दिला दें कि बीते करीब ढाई साल से भारत में क्रिकेट के संचालन का जिम्मा सीओए यानी क्रिकेट एडमिनिस्ट्रेशन कमेटी के जिम्मे था.

सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाई गई इस कमेटी की जिम्मेदारी विनोद राय संभाल रहे थे. ये कमेटी क्रिकेट में सुधार के लिए बनाई गई थी लेकिन कमेटी के तमाम फैसलों को अव्यवहारिक माना गया. विनोद राय को क्रिकेट की समझ नहीं थी इसलिए घरेलू क्रिकेट के संरचनात्मक ढांचे के कमजोर होने की बात भी सामने आई. सौरव को अब इन्हीं चुनौतियों से दो दो हाथ करना है.

रविवार से पहले का ड्रामा

13 तारीख को हुए फैसलों से पहले का समय भी नाटकीय रहा. कई स्टेट एसोसिएशन को एजीएम में शामिल करने से रोक दिया गया था. इसमें तमिलनाडु, हरियाणा और महाराष्ट्र सहित आठ राज्य एसोसिएशन शामिल थे. एजीएम और बीसीसीआई चुनावों से बाहर किए गए राज्य संघ लगातार कह रहे थे कि सीओए ने अपने एजेंडे के तहत ये फैसला किया है. सीओए का तर्क था कि इन सभी एसोसिएशन ने अदालती आदेश के बाद भी अपने संविधान में जरूरी बदलाव नहीं किए. इसलिए ये फैसला लेना पड़ा.

सीओए ने एजीएम में बीसीसीआई के कार्यवाहक अध्यक्ष सीके खन्ना, कार्यवाहक सचिव अमिताभ चौधरी और कोषाध्यक्ष अनिरुद्ध चौधरी को भी नहीं बुलाया था. इन सभी घटनाक्रम के बीच 100 से ज्यादा सदस्य रविवार रात मुंबई में मौजूद थे. जहां सौरव गांगुली के नाम पर सहमति बनी. कहानी में और मसाला ये भी है कि अभी से ये चर्चा भी शुरू हो गई है कि सौरव गांगुली का इस्तेमाल पश्चिम बंगाल में होने वाले चुनावों में भी किया जाएगा.

(शिवेंद्र कुमार सिंह खेल पत्रकार हैं. पिछले करीब दो दशक में उन्होंने विश्व कप से लेकर ओलंपिक तक कवर किया है. फिलहाल स्वतंत्र लेखन करते हैं.)

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