scorecardresearch
Friday, 20 December, 2024
होमदेशगुलाबी साड़ी पहन-नर्सरी की कविताएं गाती महाराष्ट्र की नानी-दादियों ने कुछ यूं तय किया स्कूल का सफर

गुलाबी साड़ी पहन-नर्सरी की कविताएं गाती महाराष्ट्र की नानी-दादियों ने कुछ यूं तय किया स्कूल का सफर

ठाणे जिले में आजीबाईची शाला में केवल एक कमरा है जिसमें 35 बुजुर्ग महिलाएं पढ़ना और लिखना चाहती हैं.

Text Size:

महाराष्ट्र के फगने गांव की रहने वाली 70 वर्षीय दादी पढ़ना चाहती थीं. ‘मेरी इच्छा थी कि कम से कम में धार्मिक किताबें पढ़ पाती.’ उन्होंने गांव में शिवाजी जयंती उत्सव के मौके पर छत्रपति शिवाजी की जीवनी को पढ़ने का संघर्ष करते हुए योगेंद्र बांगर को बताया. ठाणे जिले में स्थानीय जिला परिषद शिक्षक और कार्यकर्ता, बांगर ने दादियों की शिक्षा के लिए आजीबाईची शाला नाम के एक स्कूल की शुरुआत की. इसका उद्घाटन 2016 में महिला दिवस पर किया गया था.

Aajibaichi Shala was started on International Women’s Day, 2016 in Phagane village, Thane, Maharashtra | Jayati Saha
महाराष्ट्र के ठाणे में आजीबाईची शाला की शुरुआत फागने गांव में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस, 2016 में हुई थी | जयति सहाय
The grandmothers walk to the school in a disciplined single file led by 70-yr-old Kanta Bai Laxman More | Jayati Saha
70 वर्षीय कांता बाई लक्ष्मण मोरे के नेतृत्व में स्कूल जाती नानी-दादी | जयति सहाय

मोतीराम दलाल ट्रस्ट की फंडिंग की मदद से बांगर ने एक रूम की क्लास का स्कूल बनाया. इस ट्रस्ट की शुरुआत दिलीप दलाल ने वंचितों और बुजुर्गों के लिए काम करने के लिए की थी.

The slippers left outside the classroom talk about the imprint of hope and dignity left by these grandmothers | Jayati Saha
कक्षा के बाहर छोड़ी गई चप्पलें जो दादी-नानी की आशा और गरिमा की दास्तां बयान करती हैं | जयति सहाय

बांगर ने कहा, ‘जीवन में ज्ञान का सबसे ज्यादा महत्व है. हमने इस स्कूल की शुरुआत बुजुर्ग महलाओं में कॉन्फिडेंस और उद्देश्य की भावना बनाने के लिए की है.’


यह भी पढ़ें: ई पलानीस्वामी बने AIADMK के महासचिव, पार्टी में दोहरे नेतृत्व को खत्म करने का प्रस्ताव हुआ पास


Yogendra Bangar, the founder of the school Aajibaichi Shala, interacts with the students on a regular basis to oversee their progress. Bangar lives in a village close to Phagane village | Jayati Saha
स्कूल आजीबाईची शाला के संस्थापक योगेंद्र बांगर छात्रों की प्रगति के लिए नियमित रूप से उनसे बातचीत करते हैं. फागने गांव के पास ही रहते हैं बांगर | जयति सहाय

आजीबाईची शाला में छात्रों की उम्र 60 से 90 वर्ष के बीच है. जहां 35 छात्र पढ़ते हैं और इसका समय लचीला है – कभी क्लास सुबह 10 से दोपहर 12 बजे तक होती है तो कभी दोपहर दो बजे से चार बजे तक.

Every student takes great care in writing and learning the alphabet so that they can sign their names | Jayati Saha
छात्र वर्णमाला लिखने और सीखने में बहुत सावधानी बरतते हुए ताकि वे अपना नाम लिख सकें | जयति सहाय
A student shows the teacher if she has been able to write correctly | Jayati Saha
छात्रा शिक्षक को अपने लिखा हुआ चेक कराते हुए | जयति सहाय

30 वर्षीय शीतल मोरे 10वीं कक्षा पास हैं और स्कूल में एकमात्र शिक्षक हैं. वह महिलाओं को मराठी में अंक, अक्षर  लिखना सिखाती हैं. सोमवार से शनिवार तक छात्राएं गुलाबी रंग की साड़ी पहनकर आती हैं.

The sole teacher Shital More starts the class by drawing rangoli at the entrance of the school. She teaches the students how to sign their names, read in Marathi and multiply | Jayati Saha
एकमात्र शिक्षिका शीतल मोरे स्कूल के प्रवेश द्वार पर रंगोली बनाकर कक्षा शुरू करती हैं. वह छात्रों को उनका नाम लिखना, मराठी में पढ़ना और गुणा करना सिखाती है | जयति सहाय
Shital More begins the class with a prayer | Jayati Saha
शीतल मोरे प्रार्थना के साथ कक्षा शुरुआत करती हैं | जयति सहाय

स्कूल के आस-पास के बगीचे में हर छात्र के लिए एक पेड़ भी लगा है और महिलाएं अपने पेड़ों के पोषण के लिए जिम्मेदार होती हैं.

Draupada Panduram Kedar,60, stands next to her tree with pride and confidence | Jayati Saha
60 वर्षीय द्रौपदी पांडुरम केदार, गर्व और आत्मविश्वास के साथ अपने पेड़ के पास खड़ी हैं | जयति सहाय

70 वर्षीय कांताबाई मोरे का कहना है कि वह बचपन में कभी स्कूल नहीं जाती थीं. उसके चार भाई-बहन थे – तीन बहनें और दो भाई. उसके पिता इतने गरीब थे कि वह सिर्फ उसके भाइयों को ही स्कूल भेज सकते थे. उसके माता-पिता खेतों में काम करने जाते थे और कांताबाई समेत तीनों लड़कियां घर का काम करती थीं.


यह भी पढ़ें: एनर्जी, बुनियादी ढांचे, संचार- श्रीलंका की मदद करने और संबंधों को मजबूत बनाने के लिए भारत की बड़ी योजनाएं


Students come up one by one and draw on the board | Jayati Saha
छात्र एक-एक करके आते हैं और बोर्ड पर चित्र बनाते हैं | जयति सहाय
Kantabai More is engrossed in the poem being recited by her classmate | Jayati Saha
कांताबाई मोरे अपनी सहपाठी द्वारा सुनाई जा रही कविता में तल्लीन हैं | जयति सहाय

कांताबाई और उनके सहपाठियों के लिए घरेलू कामकाज छोड़कर से नर्सरी राइम और अक्षरों से रिश्ता बनाने का यह सफर उतना भी आसान नहीं रहा है. इसलिए, कांताबाई के पोते नितेश ने उनकी पढ़ाई में मदद की. किरदारों का उलटते हुए, नितेश अपनी दादी को स्कूल छोड़ने आता है.

Grandchildren come to pick them up from the school | Jayati Saha | Jayati Saha
नाती-पोते उन्हें स्कूल लेने आते हैं | जयति सहाय
कांताबाई अपने घरेलू काम को लेकर बहुत गंभीर हैं और घर लौटने के ठीक बाद उनके पोते इसमें उनकी मदद करते हैं | जयति सहाय

कांताबाई ने कहा, ‘पहले, जब मुझे अपनी पेंशन वापस लेने के लिए बैंक जाना पड़ता था तो कर्मचारी मुझे देखते थे. मेरा अंगूठा पकड़ते थे और दस्तावेजों पर फिंगरप्रिंट के लिए स्याही पैड पर जोर देते थे. मुझे अपने आप पर बहुत शर्म आ रही थी – मुझे कम से कम अपना नाम लिखना आना चाहिए.’

Parvatibai Shivaji Kedar relaxes with her granddaughter and tells her what she learnt at school | Jayati Saha
पार्वतीबाई शिवाजी केदार अपनी पोती के साथ आराम करते हुए और बताती हैं कि उन्होंने स्कूल में क्या कुछ सीखा | जयति सहाय

उन्होंने आगे कहा, ‘अब, जब मैं बैंक जाती हूं तो वे हाथ जोड़कर मेरा स्वागत करते हैं और हस्ताक्षर करने के लिए मुझे कलम देते हैं. मैं गर्व महसूस कर रही हूं.’

दादी-नानी इस बात से सहमत हैं कि शिक्षा ने उनके जीवन को बदल दिया है और उनके परिवारों को उन पर गर्व है. कई लोगों के लिए बुजुर्ग महत्वहीन हो जाते हैं, शायद इसलिए वे एक पीढ़ी को पालने के बाद प्रोडक्टिव नहीं रहते हैं. आजीबाईची शाला का मिशन इन महिलाओं को ‘निरक्षरता’ के सामाजिक कलंक से मुक्त करना, उन्हें गर्व की भावना देना और यह संदेश देना है कि हमारे समाज में बुजुर्गों को प्यार और सम्मान की जरूरत है.

Parvatibai Shivaji Kedar cracks a joke and all the students have a good laugh. She is the life of the class | Jayati Saha
पार्वतीबाई शिवाजी केदार ने एक जोक सुनाया और सभी छात्रों को हंसी आने लगी. वह कक्षा की जान हैं | जयति सहाय
All women get up and perform a rhythmic dance in a circle while singing and clapping their hands. Sitabai Bandhu Deshmukh, 85, is unable to dance because of arthritis and so she sits at the centre of the circle | Jayati Saha
सभी महिलाएं उठती हैं. गाते और ताली बजाते हुए नाचने लगती हैं. 85 वर्षीय सीताबाई बंधु देशमुख गठिया के कारण नाचने में असमर्थ हैं और इसलिए वह बैठी हैं | जयति सहाय
Classes are over, now it’s time to head home. Yashodabai holds Sitabai’s hand and takes her home | Jayati Saha
कक्षा खत्म हो गई है, अब घर जाने का समय है. यशोदाबाई सीताबाई का हाथ पकड़कर अपने घर जा रही हैं | जयति सहाय

जयती साहा एक स्वतंत्र फोटोग्राफर हैं. विचार निजी हैं.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: क्यों उत्तराखंड 20 हाइड्रो इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट को पुनर्जीवित करना और 24 अन्य से निजात पाना चाहता है


share & View comments