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Wednesday, 18 December, 2024
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गोली लगने से मृत 6 साल की बच्ची ने अंगदान से बचाई पांच जानें, मगर नोएडा स्थित परिवार गर्व की बजाए डर महसूस कर रहा है

छह साल की रोली प्रजापति को उस समय गोली लगी थी जब वह अपने घर में सो रही थी. अब एक महीने बाद, उसके माता-पिता इस बात से खुश तो हैं कि उसके अंगों ने कई अन्य बच्चों की जानें बचाई हैं, लेकिन उन्हें यह डर भी सता रहा है कि अपराधी फिर वापस आ सकते हैं.

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नई दिल्ली: रोली प्रजापति दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में सबसे कम उम्र की अंग दाता – जिसने कम से कम पांच बीमार बच्चों के जीवन को नयी लौ प्रदान की – बनने के लिए सोशल मीडिया पर एक ‘स्टार’ बन गयी हैं. लेकिन उसके परिवार के लिए अपने ही घर में सो रही अपनी छह साल की बेटी की सिर में गोली लगने से हुई मौत का गम और सदमा एक रिसते हुए ज़ख्म जैसा है.

इस कड़वे-मीठे अहसास के बीच कि उनकी बेटी ने कई लोगों की जान बचाने में मदद तो की, पर एक कठिन सच्चाई यह भी कि वह अब इस दुनिया में नहीं रही; रोली के माता-पिता अपने और अपने बचे हुए पांच बच्चों के लिए मौजूद गहरे डर में जी रहे हैं. रोली की मौत के बाद से सात लोगों का यह परिवार एक तंग कमरे में सो रहा है, जो बिना रोशनी वाली तंग से उस जगह में एकमात्र बंद स्थान है जिसे वे नोएडा के सेक्टर 121 में ओम साई सिटी कॉलोनी स्थित अपना घर कहते हैं.

यह कॉलोनी, जो मूल रूप से जमीन के छोटे-छोटे टुकड़ों और धूल भरी, वाहनों के बमुश्किल से चलने लायक सड़कों के बीच अधूरे बने घरों की एक पंक्ति है, जो आलीशान गगनचुम्बी इमारतों से घिरी हुई है. यहां बिजली की आपूर्ति नहीं है, इसलिए यहां के निवासी गलत और अवैध कनेक्शन के साथ काम चलाते हैं, जिसके लिए वे प्रति माह 1,000 रुपये भी खर्च करते हैं.

नोएडा सेक्टर 121 में ओम साई सिटी कॉलोनी में प्रजापति परिवार के घर का प्रवेश द्वार | मोहना बसु /दिप्रिंट

नोएडा पुलिस अभी तक इस बारे में कोई ठोस सुराग नहीं लगा पाई है कि गोली मारने की इस घटना के पीछे कौन हो सकता है. इसी वजह से रोली की मां, 30 वर्षीय पूनम देवी, अपने बचे हुए बच्चों- दीपक (15), खुशबू (13), खुशी (8) करमवीर (7) और प्रीति (4) – को घर पर अकेले छोड़ एक स्थानीय फूड आउटलेट, जहां वह खाना बनाने का काम करती हैं, में काम करने जाते समय काफी डर महसूस करती हैं

वहीँ, रोली के पिता हरनारायण ने दिप्रिंट को बताया कि उसे गोली लगने के बाद, उन्होंने यादव उपनाम वाले एक परिवार के सदस्यों के खिलाफ शिकायत दर्ज करने की कोशिश की, जिनके साथ प्रजापति परिवार का उत्तर प्रदेश के कासगंज जिले में अपने पैतृक गांव में एक भूमि विवाद को लेकर झगड़ा चल रहा है.

मगर, उनका दावा है कि रोली की मौत के दो दिन बाद, 29 अप्रैल, को नोएडा के फेज 3 पुलिस स्टेशन में एक प्राथमिकी दर्ज की गई, जिसमें केवल ‘अज्ञात हमलावरों’ का उल्लेख किया गया था .

वे सवालिया लहजे में कहते हैं, ‘पुलिस ने तब से कोई गिरफ्तारी नहीं की है. दरअसल, उन्होंने यह कहकर हमें फंसाने की भी कोशिश की कि गोली घर के अंदर से ही चली है. क्या कोई अपनी ही बेटी के साथ ऐसा करेगा?’

हरनारायण के भाई प्रेमपाल ने कहा कि वे बस ऐसा कोई आश्वासन चाहते हैं कि अब उनपर और खतरा नहीं होगा.

उन्होंने कहा, ‘पुलिस कुछ दबाव में है, वरना वे प्राथमिकी में उनका (यादवों का) नाम क्यों नहीं लेते? अपनी बच्ची के अंगों को दान करने के लिए मिल रही इस सारी प्रशंसा का हम क्या करें? हम खुश हैं कि हमें पांच परिवारों की मदद करने का मौका मिला, लेकिन हमारा क्या होगा? हमने अपने बच्चे को खो दिया है और अब हमें डर है कि वे फिर से हम पर हमला करने के लिए वापस आएंगे.’

मध्य नोएडा के पुलिस उपायुक्त (डीसीपी- सेंट्रल नॉएडा) हरीश चंदर ने दिप्रिंट को बताया कि अभी इस मामले की जांच चल रही है: ‘शुरूआती फोरेंसिक रिपोर्ट से पता चलता है कि गोली घर के भीतर से चली थी, बाहर से नहीं. हम अभी भी जांच कर रहे हैं.’

डीसीपी ने भी इस बात की पुष्टि की कि अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई थी.


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27 अप्रैल को क्या हुआ था?

27 अप्रैल की रात करीब 9 बजे रोली अपने घर के बरामदे में बिछी चारपाई पर गहरी नींद में सो रही थी. उसकी मां, जो रात का खाना तैयार कर रही थी, और उसके पिता की पीठ घर के प्रवेश द्वार की तरफ थी. तभी एक जोरदार धमाका हुआ, जिसके बाद उन्हें एक चीख सुनाई दी – ‘मम्मी!’

उसके माता-पिता ने कहा कि वे रोली की ओर दौड़े, जिसने उठने की कोशिश तो की, लेकिन फिर गिर पड़ी. कुछ ही सेकंड बाद, जब उन्होंने अपनी बेटी के सिर से खून बहता देखा तो उन्हें कुछ समझ में नहीं आया कि हुआ क्या है.

हरनारायण और पूनम ने रोली को निठारी के एक अस्पताल में ले गए, जहां से उन्हें दिल्ली के एम्स ट्रॉमा सेंटर में रेफर कर दिया गया.

अगली सुबह इस अस्पताल में हुए सीटी स्कैन के बाद ही उन्हें पता चला कि रोली के सिर में गोली लगी है. इसी स्कैन के बाद उसे ब्रेन डेड (दिमागी तौर पर मृत) घोषित कर दिया गया था.

हरनारायण कहते हैं, ‘मैंने डॉक्टरों से कहा कि यह संभव नहीं है. वह घर पर ही थी, फिर उसे गोली कैसे लग सकती थी? फिर उन्होंने हमें उसके सिर में लगी गोली की तस्वीर दिखाई,’

एम्स के एक न्यूरोसर्जन डॉक्टर दीपक गुप्ता ने दिप्रिंट को बताया कि 28 अप्रैल की सुबह सीटी स्कैन से उन्हें पता चला कि रोली के सिर में गोली लगी थी.

डॉ गुप्ता ने आगे बताया, ‘गोली ऐसी लग रही थी जैसे यह किसी देसी कट्टे से चलाई गई हो. जब मुझे एहसास हुआ कि वह ब्रेन डेड हो गई है, तो फिर मैंने उसके पिता से अंगदान के बारे में सोच-विचार करने की बात की. शुरू में वे तैयार नहीं हो रहे थे. उन्हें अंगदान के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. लेकिन अगले दिन मैंने उनसे फिर बात की, और वे मान गए.‘

कैसे हुआ अंग दान?

इसके बाद, 30 अप्रैल को, हरनारायण और पूनम की सहमति से एम्स के डॉक्टरों ने अंगदान की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया.

गुप्ता ने कहा, ‘उसके जिगर, गुर्दे, हृदय के दो वाल्व और दो कॉर्निया निकाल लिए गए थे,’ साथ ही, उन्होंने कहा कि इन अंगों ने कम-से-कम पांच गंभीर रूप से बीमार बच्चों को जिंदगी के लिए लड़ने के मौका दिया है.

रोली की यह कहानी जल्द ही सोशल मीडिया पर वायरल हो गई, और कई सारे लोगों ने उसके माता-पिता के साहस की सराहना की.

हरनारायण ने दिप्रिंट को बताया, ‘डॉ गुप्ता ने हमें समझाया कि हम अपने बच्चे को वापस तो नहीं ला सकते, लेकिन वह कई अन्य बच्चों के माध्यम से जी सकती है. आखिरकार हम राजी हो गए. हमें खुशी है कि हमने ऐसा किया.’

‘उसे स्कूल जाना पसंद था’

नोएडा में अपने घर में बैठी पूनम ने आंखों से बहते आंसू पोछते हुए याद किया कि जब रोली ने पिछले साल स्कूल जाना शुरू किया था तो वह कितनी उत्साहित थी.

शोक से व्याकुल रोली की मां ने कहा, ‘वह अपनी बड़ी बहन के साथ खुद से स्कूल जाने लगी और जोर देते हुए कहा कि वह भी (स्कूल) जाना चाहती है. मैंने उसे एक स्थानीय स्कूल में दाखिला दिलाने के लिए 4,000 रुपये उधार लिए थे.’

रोली की तस्वीरें और स्कूल की किताबें | मोहना बसु /दिप्रिंट

हरनारायण और पूनम, जो साथ में मिलकर 25,000 रुपये प्रति माह कमा लेते हैं, ने एक-दूसरे से वादा किया था कि उनके बच्चे बड़े होकर ‘स्वतंत्र व्यक्ति’ बनेंगे, और उन्होंने यह व्ही सुनिश्चित किया कि उनमें से प्रत्येक को शिक्षा का अवसर मिले.

चूंकि पूनम पढ़ना नहीं जानतीं हैं इसलिए उन्होंने अपनी बेटी खुशबू से रोली का रिपोर्ट कार्ड ढूंढने में मदद करने के लिए कहा, जिसने इस साल उसके द्वारा प्राप्त अंकों में उल्लेखनीय बेहतरी दिखाई.

रोली का रिपोर्ट कार्ड | मोहना बसु /दिप्रिंट

वह यह बताते हुए रो पड़ीं कि कैसे रोली की शिक्षिका ने उनकी बेटी की मौत की खबर सुनकर उन्हें फोन किया था.

पूनम ने कहा, ‘वह रोली को बहुत पसंद करती थीं. उन्होंने बताया कि एक शिक्षार्थी (सिखने वाले) के रूप में रोली बहुत उत्साही बच्ची थी.’

इस दंपति को संदेह है कि रोली को गोली लगने वाली रात को यादव परिवार के सदस्यों का इरादा दरअसल हरनारायण को मारने का था.

हरनारायण को अब भी डर है कि रोली के साथ जो कुछ हुआ उसके बाद अब उनके दूसरे बच्चों की जान को भी खतरा हो सकता है. उन्होंने दावा किया कि जब उन्होंने यादव परिवार की जमीन से सटे एक खाली भूखंड में अपने भूसे को जमा करने की कोशिश की थी उस परिवार ने उन्हें धमकी दी थी.

उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि उन्होंने यादवों के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाने की कोशिश की, लेकिन पुलिस ने उन्हें भगा दिया था.

इन सब के बावजूद, इस दंपति ने आशा व्यक्त की कि उनकी बेटी की कहानी अधिक से अधिक लोगों को अपने अंगों का दान करने हेतु प्रेरित करेगी. पूनम कहती हैं, ‘मेरी बेटी अभी भी जिन्दा है. वह दूसरे बच्चों के जरिये खेल रही है, हंस रही है, और अपने माता-पिता के लिए खुशियां ला रही है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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