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Friday, 22 November, 2024
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शिवसेना बागी से शासक बनी और ठाकरे चमक रहे हैं, लेकिन पार्टी को कोई भी राजनीतिक लाभ नहीं हुआ

सत्ता में होने के बावजूद शिवसेना को कोई राजनीतिक लाभ नहीं हुआ क्योंकि केवल ठाकरे दिखाई दे रहे हैं, जबकि अन्य शिव मंत्री और कैडर उनकी छाया में है.

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नई दिल्ली: पिछले साल जब शिवसेना और भारतीय जनता पार्टी के बीच गठबंधन के सत्ता में लौटने पर मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर टकराव हुआ था, तब शिवसेना के 53वें स्थापना दिवस पर पार्टी के मुखपत्र सामना ने एक संपादकीय में कहा था कि अगले साल शिवसेना का सीएम होगा.

एक साल बाद जैसा कि पार्टी 19 जून को 54 साल की हो गई है, सामना के शब्द रिंग प्रोपेटिक हैं. शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे राज्य के शीर्ष पर हैं और शिवसेना, कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) का गठबंधन है.

लेकिन, पार्टी बागी से शासक के रूप में बदल गयी है और भाजपा के साथ टकराव से लेकर त्रिपक्षीय गठबंधन का नेतृत्व करने तक, इस प्रक्रिया ने शिवसेना को कोई ठोस राजनीतिक लाभ नहीं दिया है.

पार्टी के नेताओं का कहना है कि शिवसेना को वास्तव में अभी तक सरकार का नेतृत्व करने का मौका नहीं मिला है, क्योंकि राज्य में सरकार आते ही कोविड-19 संकट आ गया. हालांकि, राजनीतिक नजर रखने वालों का कहना है कि सरकार के भीतर ठाकरे परिवार का वर्चस्व है. संकट के समय में पार्टी कार्यकर्ताओं की अनुपस्थिति और तीन-पार्टी गठबंधन में शुरुआती झड़पों ने पार्टी की सत्ता में होने से लाभ प्राप्त करने की पार्टी की क्षमता को सीमित कर दिया है.

पिता-पुत्र चमक रहे हैं, लेकिन पार्टी छाया में है

56 सीटों के साथ 2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी शिवसेना ने भाजपा के साथ अपना चुनाव पूर्व गठबंधन तोड़ और ठाकरे के नेतृत्व वाले महा विकास अघाड़ी सरकार को बनाने के लिए विपक्षी कांग्रेस और राकांपा से हाथ मिला लिया,

ठाकरे ने एनसीपी के अजीत पवार को अपने डिप्टी सीएम के रूप में शपथ दिलाई. हालांकि, उन्हें पवार या यहां तक ​​कि शिवसेना के किसी अन्य मंत्री की तुलना में सरकारी आयोजनों में बेटे आदित्य ठाकरे के साथ ज्यादा देखे जाते हैं.

राजनीतिक विश्लेषक हेमंत देसाई ने कहा, ‘शिवसेना हमेशा भाजपा के साथ सरकार में होने के बावजूद हमेशा सत्ता
विरोधी थी और जबकि सभी को उम्मीद थी कि यह कहानी अंततः शिवसेना को चोट पहुंचाएगी. लेकिन यह 2019 के चुनाव परिणामों के बाद पार्टी के लिए फायदेमंद साबित हुई.’

उन्होंने कहा, ‘शिवसेना की अगुवाई वाली सरकार होने के बावजूद पार्टी के रूप में शिवसेना कमजोर होती जा रही है, हालांकि, सीएम उद्धव ठाकरे और उनके बेटे आदित्य ठाकरे ने एक मजबूत छवि विकसित की है.’

तीस वर्षीय आदित्य उद्धव के मंत्रिमंडल में मंत्री हैं, जो पर्यटन और पर्यावरण जैसे विभागों को संभालते हैं. 43 सदस्यीय मंत्रिमंडल में पहली बार विधायक और सबसे कम उम्र के मंत्री होने के बावजूद आदित्य राज्य विधानसभा में अपने पिता के ठीक पीछे बैठते हैं और कई महत्वपूर्ण बैठकों और आधिकारिक यात्राओं में भाग लेते हैं.

उदाहरण के लिए, इस महीने की शुरुआत में आदित्य अपने पिता के साथ साइक्लोन निसर्ग की क्षति के आकलन के लिए रायगढ़ जिले में गए थे.

देसाई ने कहा कि पहली शिवसेना सरकार में 1995-1999 तक पार्टी के वरिष्ठ नेता जैसे मनोहर जोशी और नारायण राणे (जो तब पार्टी के साथ थे) दिखाई देते थे. हालांकि, सरकार को पार्टी के संस्थापक बाल ठाकरे द्वारा नियंत्रित किया गया था.

अब एकनाथ शिंदे के अपवाद के साथ, जिन्हें अपने जिले ठाणे से संबंधित मुद्दों पर ज्यादातर देखा और सुना जाता है, केवल आदित्य और उद्धव दिखाई दे रहे हैं. उन्होंने कहा कि मंत्रिमंडल में शिवसेना के किसी अन्य मंत्री को बहुत ज्यादा देखा या सुना नहीं गया है.

शिवसेना के एक वरिष्ठ विधायक प्रताप सरनाईक ने आलोचना से इंकार किया. उन्होंने कहा ऐसा इसलिए लग रहा है कि पार्टी ऐसे बनी है. उद्धव साहब और आदित्य शिवसेना हैं. उद्धव साहेब पार्टी के सर्वेसर्वा हैं और वे अपने अंतिम निर्णय पर पार्टी के लोगों से बात करते हैं. अन्य दलों में, एक सीएम को अंतिम निर्णय लेने से पहले दस लोगों से पूछना पड़ता है.

सरकार ज्यादातर मातोश्री से चलती है

जब से उद्धव ने सीएम के रूप में पदभार संभाला है. उद्धव ज्यादातर अपने उपनगरीय मुंबई आवास मातोश्री से काम कर रहे हैं. उनके विश्वासपात्रों की छोटी सूची के साथ जिसमें पुत्र आदित्य, पत्नी रश्मि ठाकरे और कई बार व्यक्तिगत सहायक और पार्टी के सदस्य मिलिंद नार्वेकर और शिवसेना नेता अनिल परब होते हैं.

शिवसेना के एक वरिष्ठ नेता जो नाम नहीं बताना चाहते थे, ने कहा कि ‘पार्टी के सदस्यों को सरकार के बारे में सार्वजनिक रूप से बोलते हुए उनके शब्दों को देखना होगा. हम आलाकमान से परेशानी में नहीं पड़ना चाहते हैं.’

फडणवीस, जो अब विपक्ष के नेता हैं, ने कोविड-19 मामलों में बढ़ते मामलों के बीच सिविल सेवकों पर बहुत अधिक भरोसा करने के लिए उद्धव की आलोचना की है. 16 जून को 1,13,445 तक पहुंचने के साथ महाराष्ट्र में देश में सबसे अधिक पॉजिटिव मामले हैं.

इसके अलावा, सत्ता में रहने के कुछ ही महीनों बाद तीन-पैर वाले गठबंधन को दरार का भी सामना करना पड़ा है, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता, जो उद्धव के मंत्रिमंडल के सदस्य हैं, सरकार में निर्णय लेने में परामर्श नहीं लिए जाने के बारे में कहते हैं, ऐसा ही कुछ शिवसेना ने पिछले पांच वर्षों में भाजपा के कनिष्ठ प्रशासनिक साझेदार होने पर बहुत कुछ किया.

सामाना, जो इन्हीं कारणों से बीजेपी पर कटाक्ष करता था. अब कांग्रेस के कुनबे को ‘पुरानी खाट है जो बहुत पालती है कहकर बुलाता है.

सड़कों से नदारद शिवसेना

शिवसेना को सड़कों उतरने के लिए जाना जाता है, अपने व्यापक नेटवर्क का उपयोग करते हुए हर बार संकट का सामना करता है. इस महीने की शुरुआत में, उद्धव ने पार्टी कार्यकर्ताओं को निजी डॉक्टरों के सहयोग से चलाए जा रहे शाखा को क्लीनिक में बदलने का निर्देश दिया था.

हालांकि, राजनीतिक टिप्पणीकार प्रकाश बल को लगता है कि इस बार कोविड-19 संकट के रूप में लोगों की मदद करने के लिए सेना सबसे आगे देखी गई. व्यक्तिगत रूप से, शिवसेना के कई नेता अपने स्वयं के नामों पर राहत कार्य कर रहे हैं, लेकिन एक पार्टी के रूप में ठाकरे सरकार के साथ काम करने के लिए पार्टी मशीनरी को सक्रिय करने में विफल रहे.’

बल ने कहा, ‘सात महीने में अगर हम पूछें कि शिवसेना ने सरकार में होने से एक पार्टी के रूप में क्या हासिल किया है, तो इसका जवाब है शून्य.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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