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Sunday, 28 April, 2024
होमदेशभ्रूण के मस्तिष्क में गंभीर गड़बड़ी- दिल्ली HC ने 33 हफ्ते के गर्भ को गिराने की अनुमति दी

भ्रूण के मस्तिष्क में गंभीर गड़बड़ी- दिल्ली HC ने 33 हफ्ते के गर्भ को गिराने की अनुमति दी

अदालत ने जीवन की गुणवत्ता को देखते हुए और बच्चे के असामान्य बीमारी से पीड़ित होने पर याचिका पर सुनवाई के बाद इजाजत दी.

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नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को 33 सप्ताह के गर्भ को चिकित्सकीय रूप से समाप्त करने की अनुमति मांगने वाली एक याचिका को स्वीकार कर लिया, जिसमें कहा गया था कि भ्रूण मस्तिष्क विकार से ग्रसित है.

अदालत ने जीवन की गुणवत्ता को लेकर अनिश्चित होने और बच्चे के असामान्य बीमारी से पीड़ित होने पर जन्म देने या न देने के अधिकार के बारे में उलझन को देखते हुए याचिका की अनुमति दी. न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह ने याचिका को मेडिकल बोर्ड की राय के मद्देनजर अनुमति दी.

कोर्ट ने उस महिला को लोक नायक जय प्रकाश नारायण (एलएनजेपी) या गुरु तेग बहादुर अस्पताल, या फिर अपनी पसंद की किसी भी मान्यता प्राप्त अस्पताल में गर्भ को खत्म करने की इजाजत दी.

कोर्ट ने यह भी कहा कि मर्जी मां की है. उसने गर्भ को खत्म करने से संबंधित नतीजों का आकलन किया है.

हाईकोर्ट ने कहा कि मां की पसंद और गरिमापूर्ण और टिकाऊ जीवन की संभावनाओं को देखते हुए याचिका को अनुमति दी जाती है.

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याचिकाकर्ता की तरफ से पेश हुए एडवोकेट अन्वेष मधुकर ने कहा: ‘महिला के अधिकार और भविष्य की परेशानियों को देखते हुए यह प्रगतिशील फैसला है.’

याचिकाकर्ता की ओर से एडवोकेट ने कहा: ‘यह संभावना है कि बच्चा जिंदा रह जाए लेकिन जीवन की गुणवत्ता के बारे में क्या कहा जाए.

याचिकाकर्ता के वकील ने कहा, ‘इस बात की संभावना है कि बच्चा जीवित रहेगा. लेकिन जीवन की गुणवत्ता का क्या होगा. अदालत को मां की पीड़ा और दर्द पर विचार करना चाहिए. अगर बच्चा ठीक नहीं है, तो यह बाकी जीवन के लिए होगा.’

इस बीच, अदालत ने दिल्ली सरकार के वकील से एक न्यूरोलॉजिस्ट के साथ डॉक्टरों को कार्यवाही में शामिल होने के लिए कहा, जिसमें डॉ चंद्र शेखर ने एक वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से शामिल हुए, जिन्होंने कहा कि बच्चा जीवित रहेगा लेकिन जीवन की गुणवत्ता का अनुमान नहीं लगाया जा सकता है.

न्यूरोलॉजिस्ट ने कहा: प्रसव के बाद पर्याप्त समय के बाद बच्चे का ऑपरेशन किया जा सकता है. यह एक नॉर्मल सर्जरी होगी.

इसी बीच स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. रचना शर्मा भी वीडियो कॉल के जरिए शामिल हुईं और कहा कि दवा के जरिए बच्चे की नॉर्मल डिलीवरी होगी, अगर यह काम नहीं करता है तो सर्जरी होगी. यह गर्भपात नहीं है, यह प्रसव होगा, और बच्चे के जीवित रहने की संभावना है.

याचिकाकर्ता नोएडा की एक 26 वर्षीय विवाहित महिला है, जिसने अधिवक्ता प्राची निर्वान, प्रांजल शेखर और यासीन सिद्दीकी के माध्यम से उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है.

11 नवंबर को पहला बार पता चला कि भ्रूण के मस्तिष्क में गड़बड़ी है. 14 नवंबर को किए गए एक अन्य अल्ट्रासाउंड से भी इसकी पुष्टि हुई.

वह जीटीबी अस्पताल पहुंची. उसका अनुरोध इस आधार पर उसके गर्भ को खत्म करने की बात कही गई कि उक्त प्रक्रिया में कोर्ट के दखल की जरूरत होगी क्योंकि याचिकाकर्ता के वर्तमान गर्भ का समय 24.09.2021 से प्रभावी संशोधित अधिनियम के अनुसार अनुमति की सीमा से परे है अर्थात 24 सप्ताह है.

इस मामले में यह भी पेश किया गया कि उक्त अधिनियम के तहत प्रदान की गई सीमा यानी 20/24 सप्ताह याचिकाकर्ता के मामले में लागू नहीं होती है, जैसा कि धारा 3(2बी), एमटीपी अधिनियम, 1971 द्वारा जिम्मेदार ठहराया गया है क्योंकि याचिकाकर्ता के भ्रूण में पर्याप्त मस्तिष्क है. इसमें गड़बड़ियां, जिस वजह से याचिकाकर्ता को गंभीर मानसिक नुकसान हो रहा है.


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