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Saturday, 28 December, 2024
होमदेशमुंबई के पास गुलाबी हुआ सागर-1.3 लाख प्रवासी फ्लेमिंगो ठाणे क्रीक पहुंचे, अब तक की सबसे बड़ी संख्या

मुंबई के पास गुलाबी हुआ सागर-1.3 लाख प्रवासी फ्लेमिंगो ठाणे क्रीक पहुंचे, अब तक की सबसे बड़ी संख्या

शोधकर्ताओं का कहना है कि इतनी बड़ी संख्या में इन पक्षियों के आने के पीछे का सटीक कारण बता पाना मुश्किल है, लेकिन तेजी से बढ़ता शहरीकरण और प्रदूषण इसकी एक वजह हो सकती है.

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मुंबई: मुंबई महानगर क्षेत्र (एमएमआर) इस साल रिकॉर्ड संख्या में फ्लेमिंगो के पहुंचने से ‘गुलाबी’ रंग में रंगता नजर आया.

इस साल मई तक ठाणे क्रीक फ्लेमिंगो अभयारण्य, सेवरी और आस-पास के इलाकों में 1.33 लाख से ज्यादा फ्लेमिंगो देखे गए हैं. अखिल भारतीय वन्यजीव अनुसंधान संगठन बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (बीएनएचएस) के उप निदेशक राहुल खोत के मुताबिक, इस क्षेत्र में अब तक देखे गए प्रवासी पक्षियों की यह सबसे अधिक संख्या है.

पिछले साल यह संख्या महज सैकड़ों में थी. महाराष्ट्र वन विभाग, मैंग्रोव फाउंडेशन विभाग के मैंग्रोव सेल के तहत संचालित एक पंजीकृत सोसायटी और बीएनएचएस द्वारा जारी एक संयुक्त बयान में बताया गया कि ‘यह पिछले कुछ वर्षों खासकर पिछले साल (2020-21) के बाद से इन प्रवासी पक्षियों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है जबकि पिछले साल बड़े फ्लेमिंगों की संख्या तीनों क्षेत्रों (ठाणे, सेवरी और उरण) में सबसे कम (324-569) थी. पिछले दो वर्षों में इनकी 2 प्रतिशत से भी कम जनसंख्या दर्ज की गई थी.’

दुनिया भर में पाए जाने वाले फ्लेमिंगों की छह प्रजातियों में से दो को भारत में देखा जा सकता है – ग्रेटर फ्लेमिंगो (बड़ा राजहंस) और लेसर फ्लेमिंगो (छोटा राजहंस).

Lesser flamingos at Thane Creek | Credit: BNHS
ठाणे में फ्लेमिंगो देखे गए | Credit: BNHS

बीएनएचएस ने 2018 में एमएमआर क्षेत्र में आने वाले राजहंसों की संख्या की निगरानी और रिकॉर्डिंग शुरू की. अनुसंधान निकाय के अनुसार, 1994 में वन विभाग ने इस क्षेत्र में 8,000 से ज्यादा फ्लेमिंगों को संख्या को दर्ज किया था.

खोत ने दिप्रिंट को बताया कि इस साल राजहंस रिकॉर्ड संख्या में क्यों आए, इसका कारण बता पाना मुश्किल है लेकिन शहरीकरण का इससे कुछ न कुछ संबंध जरूर है.

उन्होंने कहा, ‘पिछले दो दशकों से इन प्रवासी पक्षियों की संख्या में बदलाव आ रहा है. पहले वो संख्या में कम थे क्योंकि उनके आवास के लिए यह क्षेत्र उपयुक्त नहीं था लेकिन तेजी से शहरीकरण और मैंग्रोव के बढ़ने के कारण परिस्थितियां बदल गईं. उनके लिए आवास उपयुक्त हो गया है.’


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प्रदूषण कैसे बना एक कारण

फ्लेमिंगो नवंबर और मई के बीच एमएमआर क्षेत्र में आते हैं. उनके लिए आर्द्रभूमि एक आदर्श आहार स्थल है. इसलिए, ठाणे क्रीक, सेवरी और उरण कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जहां प्रवासी पक्षी अपने सफर के दौरान झुंड में यहां आते हैं.

खोत ने कहा, ‘इनमें से अधिकांश राजहंस गुजरात से आते हैं लेकिन उनमें से कुछ की ईरान और अफ्रीका से भी इस ओर रुख करने की संभावना है. ग्रेटर फ्लेमिंगो मीठे पानी और नदी के मुहाने वाले वातावरण को पसंद करते हैं. मुंबई अपनी खाड़ियों और अंतर्देशीय आर्द्रभूमि (इनलैंड-वेटलैंड) की वजह से इन पक्षियों के लिए पसंदीदा जगह बन गया है. यहां उन्हें जिस प्रकार का भोजन मिल रहा है, वह इस पारिस्थितिकी तंत्र को उनके लिए अधिक आकर्षक बना सकता है. ये पक्षी फिल्टर फीडर हैं जो मुख्य रूप से शैवाल और छोटे क्रस्टेशियंस को खाते हैं और उनके गुलाबी रंग की वजह भी यही है.’

एक गैर-सरकारी संगठन, कंजर्वेशन एक्शन ट्रस्ट के कार्यकारी ट्रस्टी देबी गोयनका के मुताबिक, प्रदूषण के कारण ठाणे क्रीक की परिस्थिति फ्लेमिंगो के लिए अनुकूल है.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘ठाणे क्रीक में काफी प्रदूषण है, जो सूक्ष्मजीवों के विकास के लिए अनुकूल है. ये पक्षी नीले हरे शैवाल जैसे सूक्ष्मजीवों को खाते हैं. इसके अलावा अन्य आर्द्रभूमि (वेटलैंड) और आवास सिकुड़ रहे हैं. यही वजह है कि ठाणे क्रीक में बड़ी संख्या में राजहंस आ रहे हैं’

बीएनएचएस ने पक्षियों का अध्ययन करने और यह पता लगाने के लिए कि वे कहां जाते हैं, कहां प्रजनन करते हैं और कैसे यात्रा करते हैं, रेडियो ट्रांसमीटरों के साथ छह राजहंस को टैग किया है. खोत ने कहा, ‘अगले साल हम और जानकारी दे पाएंगे.’

अत्यधिक निर्माण और कम होते मैंग्रोव एक खतरा

विशेषज्ञों ने हालांकि चेतावनी दी कि मैंग्रोव और आर्द्रभूमि (वेटलैंड) का अत्यधिक निर्माण और विनाश भविष्य में इन पक्षियों के लिए खतरा हो सकता है.

इस साल फरवरी में  मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने केंद्र को रामसर कन्वेंशन के अनुसार जैव विविधता से भरपूर ठाणे क्रीक फ्लेमिंगो अभयारण्य को ‘रामसर साइट’ के रूप में नामित करने के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी.

रामेश्वर वेटलैंड्स कन्वेंशन एक अंतर सरकारी संधि है जो वेटलैंड्स और उनके संसाधनों के संरक्षण और बुद्धिमत्तापूर्ण उपयोग के लिए राष्ट्रीय कार्य और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को ढांचा उपलब्ध कराती है इस संधि पर 1971 में हस्ताक्षर किए गए थे.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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