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Friday, 22 November, 2024
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जेएनयू में केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह को झेलना पड़ा कश्मीरी छात्रों और बापसा का विरोध

केंद्रीय जितेंद्र सिंह ने जेएनयू में एक कार्यक्रम के दौरान नेहरू को महान नेता बताते हुए कश्मीर समस्या के लिए उन्हें ज़िम्मेदार भी ठहराया.

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नई दिल्ली : राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली स्थित जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) में छात्रों के बीच आपसी झड़प का मामला सामने आया है. जेएनयू में जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को रद्द करने के विषय पर केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह के एक व्याख्यान कार्यक्रम के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया गया. कश्मीरी छात्रों और बापसा की तरफ से इस प्रदर्शन का आयोजन किया था.

गुरूवार को इस कार्यक्रम के दौरान झड़प हुई. जिसमें मोदी सरकार के केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह अनुच्छेद 370 के हटाए जाने पर चर्चा करने पहुंचे थे. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की छात्र इकाई अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) जेएनयू के सचिव मनीष जांगिड की मानें तो लेफ्ट छात्र संगठन के छात्रों ने कार्यक्रम के दौरान प्रवेश द्वार को घेर लिया था और केंद्रीय मंत्री को सुनने आए लोगों को नहीं जाने दे रहे थे.

मनीष ने कहा, ‘जब वो रास्ता देने को तैयार नहीं हुए, तो हमने उन्हें मनाने की कोशिश की. लेकिन उन्होंने हिंसा शुरू कर दी. सबूत के तौर पर हमारे पास तस्वीर और वीडियो हैं.’ हालांकि, जेएनयूएसयू (जवाहर लाल यूनिवर्सिटी छात्र संघ) के पिछले अध्यक्ष ने एन साईं बालाजी ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा कि उनका छात्र संगठन ऑल इंडिया स्टूडेंट यूनियन (आइसा) इसमें शामिल नहीं था क्योंकि वो जंतर-मंतर पर इसी कार्यक्रम के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे.

आइसा ने केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह को बुलाए जाने के विरोध बयान जारी कर कहा कि जेएनयू के कंवेंशन सेंटर में सिंह को ‘कश्मीर में विकास, शांति और स्थिरता’ जैसे विषय पर बोलने के लिए बुलाना दिखाता है कि जिस जेएनयू प्रशासन ने कैंपस की शांति बर्बाद कर दी वो देश की शांति बर्बाद करने वालों के साथ है.

जम्मू के डोगरा परिवार से ताल्लुक रखने वाले मंत्री जितेंद्र सिंह ने कार्यक्रम के दौरान अनुच्छेद 370 हटाए जाने पर बोलते हुए कहा, ‘अगर भारत-पाक बंटवारा नहीं हुआ होता तो इतिहास कुछ और होता.’ उन्होंने नेहरू को महान नेता बताते हुए कश्मीर समस्या के लिए उन्हें ज़िम्मेदार ठहराया और कहा कि अगर नेहरू ने अपने गृहमंत्री सरदार पटेल को कश्मीर के साथ अन्य रियासतों की तरह निपटने दिया होता तो मुझे इस विषय पर बोलने की ज़रूरत नहीं पड़ती.

कुछ अन्य छात्रों से बातचीत में दिप्रिंट को पता चला कि ये कुछ कश्मीरी छात्रों ने सिंह के ख़िलाफ़ प्रदर्शन का आयोजन किया था. एक कश्मीरी छात्र ने नाम नहीं लिखने की शर्त पर कहा, ‘हमने जेएनयूएसयू और तमाम छात्र संगठनों से अपील की थी कि वो कश्मीर के बारे में केंद्रीय मंत्री सिंह द्वारा बोले जा रहे झूठ के खिलाफ हमारा साथ दें, लेकिन बिरसा फुले अंबेडकर स्टूडेंट एसोसिएशन (बापसा) के छात्रों के अलावा कोई नहीं आया.’

प्रदर्शन में शामिल एक छात्र ने इसे ‘आइडिया ऑफ़ जेएनयू’ पर हमला बताया. उसके मुताबिक उनके साथ हुई हाथापाई के बाद उन्होंने कैंपस के तमाम व्हाट्सएप ग्रुपों में इमरजेंसी संदेश भेजे फिर भी जेएनयूएसयू और लेफ्ट छात्र संगठन उनकी मदद करने नहीं आए और प्रदर्शन नहीं हुई.

राजनीति शास्त्र में पीएचडी कर रहे बापसा के छात्र नेता निर्बान रे के मुताबिक वो लोग शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे थे. लेकिन, एबीवीपी वालों ने नॉर्थ-ईस्ट से आने वाले निर्बान को कश्मीरियों का साथ देने की वजह से वहां से जाने को कहा. ऐसी तीखी नोक-झोंक के बीच छात्रों में हाथा-पाई हो गई. निर्बान कहते हैं, ‘कश्मीर पर जो बाबा साहेब का पक्ष था वही हमारा पक्ष है, वहां जनमत संग्रह होना चाहिए.’

वहीं, खुद का पक्ष रखते हुए एबीवीपी ने जाधवपुर का उदाहरण दिया. पिछले महीने जाधवपुर विश्वविद्यालय में भाजपा नेता बाबुल सुप्रियो के पहुंचने के बाद बवाल हो गया था. एबीवीपी द्वारा दिप्रिंट को दिए गए वीडियो में प्रदर्शन कर रहे छात्रों ने ‘कश्मीर है कश्मीरियों का, भारतीयों की जागीर नहीं’ जैसे नारे भी लगाए.

एक छात्र ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा, ’60 दिन से कश्मीर बंद है. क़ैद कश्मीर के लिए कैंपस से आवाज़ उठाने की दरकार है.’

आपको बता दें कि पांच अगस्त को कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाया गया था. इसके बाद जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया था.

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