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Thursday, 19 December, 2024
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वैज्ञानिकों ने ‘मक्खियों’ में सुपरपावर खोजा- खाने में pH level का पता लगाने में होती हैं माहिर

‘फ्रूट फ्लाइज’ में एक अनोखा स्वाद रिसेप्टर होता है जो उन्हें क्षारीय खाद्य पदार्थों का पता लगाने और हानिकारक पदार्थों को चकमा देने में मदद करता है. पिछले सप्ताह नेचर मेटाबॉलिज्म में प्रकाशित अमेरिकी अध्ययन में इसकी जानकारी दी गई.

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नई दिल्ली: फलों पर बैठने वाली मक्खियों यानी फ्रूट फ्लाइज के पास एक अनोखा स्वाद रिसेप्टर होता है जो उन्हें टॉक्सिक फलों को खाने से रोकता है. वो फलों के पीएच लेवल का पता लगाने में माहिर होती हैं. नए शोध से यह जानकारी सामने आई है.

संयुक्त राज्य अमेरिका के फिलाडेल्फिया में मोनेल केमिकल सेंस सेंटर के वैज्ञानिकों ने पाया कि फ्रूट फ्लाइज (ड्रोसोफिला मेलानोगास्टर) न्यूट्रल और अल्कलाइन खाद्य पदार्थों- जिनका पीएच लेवल 7 से अधिक है- के बीच अंतर कर सकती हैं.

जीवों की खाने की पसंद उनके स्वाद पहचानने की क्षमता से प्रभावित होती है. फूड में कई तरह के अम्ल और क्षार पाए जाते हैं. और पीएच एक मीट्रिक है जो किसी पदार्थ की एसिडिटी या अल्कलाइनिटी के बारे में बताता है.

अध्ययन के बारे में एक ब्लॉग पोस्ट में ‘मोनेल केमिकल सेंस सेंटर’ के प्रमुख रिसर्चर और लेखकों में से एक याली झांग ने समझाया कि ‘कई महत्वपूर्ण जैविक प्रक्रियाएं सिर्फ खास पीएच स्तर पर होती हैं’. नतीजतन, पीएच पर्सेप्शन जानवरों को पौष्टिक और संभावित हानिकारक खाद्य पदार्थों के बीच अंतर करने में मदद करती है.


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‘नेचर मेटाबॉलिज्म’ में 20 मार्च को प्रकाशित अध्ययन में पाया गया कि फ्रूट फ्लाइज को पीएच 7 वाले न्यूट्रल फूड- जो न तो एसिडिक हैं और न ही बेसिक और पीएच 12 वाले अल्कलाइन फूड के बीच एक विकल्प दिया गया था. फलों पर बैठने वाली मक्खी ने न्यूट्रल फूड को चुना और अल्कलाइन को खाने से परहेज किया.

यह अध्ययन एक महत्वपूर्ण सफलता है क्योंकि उच्च पीएच लेवल वाले फूड मक्खियों के विकास, अस्तित्व और जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं.

शोधकर्ताओं ने इन मक्खियों में अल्कलीफिल (अल्का) नामक एक जीन की भी खोजा है, जो क्षारीय पदार्थों का पता लगाने के लिए जिम्मेदार होता है. अध्ययन के अनुसार, बेसिक फूड के प्रतिकूल स्वाद प्रतिक्रियाओं के लिए अल्कलीफिल जरूरी और पर्याप्त होता है.

जीन एक क्लोराइड चैनल को एनकोड करता है जो एक क्षारीय पीएच द्वारा सक्रिय होता है और न्यूरॉन्स में व्यक्त किया जाता है जिसे गस्टरी रिसेप्टर कहा जाता है, जो स्वादों की पहचान करने में मदद करता है.

लेखकों का सुझाव है कि फलों पर बैठने वाली मक्खियों में अनुकूलन तकनीकों को समझने के लिए शोध फायदेमंद होगा. क्योंकि क्षारीय पदार्थों को समझने से उन्हें हानिकारक पदार्थों से बचने में मदद मिलती है. इसके अलावा, यह अन्य जानवरों में अल्कलाइन टेस्ट को लेकर भविष्य के शोध की नींव के रूप में भी काम कर सकता है.

क्या अन्य जानवरों को भी अल्कलाइन स्वाद के बारे में पता होता है?

भोजन की बेसिकिटी या उच्च पीएच लेवल को समझने के लिए जानवरों के पास टेस्ट मैकेनिज्म है या नहीं, यह लंबे समय से बहस का एक खुला विषय रहा है. हालांकि, ज्यादातर लोगों का मानना यही है कि अगर फूड का स्वाद खट्टा है तो वह एसिडिक है. इसलिए हम कह सकते हैं कि एसिड स्वाद रिसेप्टर्स की पहचान तो कर ली गई है लेकिन बेस स्वाद रिसेप्टर्स की पहचान को लेकर अभी कुछ नहीं कहा गया है.

पिछले शोध में पाया गया है कि बिल्लियों में स्वाद तंत्रिकाएं होती हैं जो उच्च पीएच लेवल पर सक्रिय हो जाती हैं, और बीटल जैसे कीट सक्रिय रूप से अल्कलाइन एनवायरमेंट से दूरी बनाए रखते हुए पाए गए हैं.

पिछले शोध से पता चला था कि नेमाटोड, इन्सेक्ट, मछली और स्तनधारियों सहित कई प्रजातियों में अल्कलाइन पीएच के लिए अच्छी तरह से परिभाषित व्यावहारिक प्रतिक्रियाएं हैं.

लेखकों ने सुझाव दिया कि आम तौर पर मक्खियों में ‘स्वाद के जरिए पदार्थों की एक विस्तृत श्रृंखला का पता लगाने की उल्लेखनीय क्षमता’ होती है. इसी वजह से वो भोजन की क्षारीयता का स्वाद लेने में भी सक्षम होती हैं.

स्तनधारियों की तरह, फ्रूट फ्लाइज के पास भी शर्करा, लवण, अम्ल और कड़वे पदार्थों का पता लगाने के लिए स्वाद रिसेप्टर्स होते हैं.

यह कैसे मदद करता है?

शोधकर्ताओं ने समझाया, ‘हालांकि ज्यादातर जीवों की आदर्श शारीरिक गतिविधियां और एंजाइमेटिक प्रतिक्रियाएं केवल एक छोटी पीएच रेंज (लगभग 7.4) के भीतर ही हो सकती हैं. ज्यादा उच्च पीएच एसिड-बेस बैलेंस को बाधित कर सकता है और अल्कलॉसिस का कारण बन सकता है, जो संभावित रूप से घातक स्थिति है.

अपनी इकोलॉजी में जीवों को कई स्थितियों में उच्च पीएच मान का अनुभव हो सकता है.

अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं ने भोजन के पीएच को बदलने के लिए NaOH (सोडियम हाइड्रॉक्साइड) का इस्तेमाल किया क्योंकि यह एक बार घुलने के बाद पूरी तरह से अलग हो जाता है और मक्खियों पर कम दुष्प्रभाव भी डालता है.

शोधकर्ताओं ने पाया कि फलों पर बैठने वाली मक्खियां ‘बेसिक फूड से दूर भागती हैं’. इससे पता चलता है कि वह अपने विशिष्ट स्वाद रिसेप्टर्स के जरिए फूड की बेसिसिटी का पता लगा लेती हैं. यह शायद ट्रांस मेंब्रेन रिसेप्टर्स होने की बहुत संभावना के कारण है. निष्कर्ष बताते हैं कि अल्का जीन संभवतः उच्च पीएच के लिए एक प्रत्यक्ष संवेदक(सेंसर) था.

अध्ययन में कहा गया है कि मक्खियों के शरीर क्रिया विज्ञान पर अल्कलाइन पीएच के प्रभाव को कई शोधों में अच्छी तरह से जिक्र किया गया है. यह बताया गया है कि मक्खी के शरीर का पीएच लार्वा से प्यूपा और वयस्क चरणों के विकास के दौरान एक गतिशील परिवर्तन से गुजरता है.

अल्कलाइन पीएच सेंस मक्खियों की सेहत और उनकी उम्र के साथ नजदीकी से जुड़ा है. अध्ययन के अनुसार, अगर मक्खियों को मॉडरेट अल्कलाइन फूड खिलाया जाए तो उनका जीवनकाल और सर्वाइवल 80 प्रतिशत तक कम हो जाता है.

इसके अलावा, काफी ज्यादा अल्कलाइन फूड के लगातार संपर्क में रहने से विकास बाधित होता है, उम्र कम हो जाती है और उनकी मौत हो जाती है. इसलिए, अंडे देने की जगह तय करते समय मादा मक्खियां अल्कलाइन सबस्ट्रेट्स से बचती हैं.

अल्कलाइन पीएच सेंस एक महत्वपूर्ण सेल्फ-डिफेंस मैकेनिज्म है जो मक्खियों और अन्य जानवरों को खाने की तलाश और रहने के लिए जगह के चयन के दौरान उन्हें नुकसान पहुंचाने वाले परिवेश से दूर बने रहने या बचने में सक्षम बनाता है.

अध्ययन से पता चलता है कि अल्कलाइन स्वाद मक्खियों के अस्तित्व, विकास और प्रजनन को बढ़ावा देकर उनकी एवोल्यूशनरी फिटनेस में काफी सुधार करता है.

(अनुवाद- संघप्रिया मौर्या | संपादन- इन्द्रजीत)

(इस ख़बरों को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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