नई दिल्लीः लोकसभा में मंगलवार को द डीएनए प्रौद्योगिकी (उपयोग और आवेदन) विनियमन विधेयक 2019 मामूली चर्चा के बाद ध्वनि मत से पारित कर दिया गया. यह विधेयक पीड़ितों, अपराधियों, संदिग्धों, लंबित आरोपियों, लापता और अज्ञात मृतकों की पहचान के लिए डिऑक्सीरिबोन्यूक्लिक एसिड (डीएनए) प्रौद्योगिकी के उपयोग और आवेदन का कानून मुहैया कराता है.
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री हर्षवर्धन ने विधेयक पेश करते हुए कहा कि कानून में निजता, गोपनीयता और डाटा संरक्षण का सूक्ष्म विवेचना के साथ उल्लेख किया गया है.
उन्होंने कहा, ‘यह बहु-प्रतीक्षित विधेयक है. आपराधिक न्याय वितरण प्रणाली में डीएनए टेक्नॉलॉजी विधेयक लाने के लिए 2003 में कुछ प्रमुख न्यायाधीशों और अधिवक्ताओं के बीच चर्चा हुई थी. तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने डीएनए रूपरेखा सलाहकार समिति का गठन किया था.’
उन्होंने कहा, ‘2004 में सरकार बदल गई, लेकिन अगली सरकारों ने इस पर कुछ काम किया. आखिरकार अगस्त 2018 में हम यह विधेयक लाए और सदन में चर्चा के लिए यह 2019 में आया.’
विधेयक को समझाते हुए उन्होंने कहा कि देश में सिर्फ 30-40 डीएनए प्रोफाइलिंग विशेषज्ञ और 15-18 प्रयोगशालाएं हैं, लेकिन देश में अब तक कोई डीएनए डाटा बैंक नहीं है.
उन्होंने कहा, ‘सरकारी आंकड़ों के अनुसार, पिछले साल लगभग 40,000 लावारिस शव पाए गए और लगभग एक लाख बच्चे लापता हो गए. इसलिए उनकी पहचान के लिए विधेयक की जरूरत है. इसके बावजूद, डीएनए प्रोफाइलिंग के माध्यम से आदतन अपराधियों को पकड़ने की जरूरत है.’
हर्षवर्धन ने कहा कि विधेयक के कानून बनते ही इसका उपयोग आपराधिक न्याय प्रणाली तंत्र में, लापता बच्चों को उनके परिजनों से मिलाने तथा अन्य उद्देश्यों में किया जा सकेगा.
उन्होंने कहा कि विधेयक को पिछले 15 सालों में विभिन्न विशेषज्ञों की जांच से गुजारा गया.
इससे पहले कांग्रेस नेता शशि थरूर आरएसपी के एनके प्रेमचंद्रन ने विधेयक का विरोध किया और इसे स्थाई समिति के पास भेजने की मांग की.
थरूर ने कहा, ‘डीएनए प्रोफाइलिंग का दुरुपयोग हो सकता है. इससे सरकार और जनता के बीच शक्ति असंतुलन की स्थिति बन सकती है. सरकार हमारे लोगों पर बहुत गंभीर खतरा थोप रही है.’
विधेयक का विरोध करते हुए प्रेमचंद्रन ने कहा, ‘बेशक इससे आपराधिक मामलों में सहायता मिलेगी, क्योंकि यह आधुनिक प्रौद्योगिकी है, लेकिन मुझे निजता के अधिकार से संबंधित चिंताएं हैं.’