बेंगलुरू: नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) ने एक अंतरिक्ष मिशन लॉन्च किया है जो कि 2.9 बिलियन किलोमीटर दूर बृहस्पति के एक उपग्रह की यात्रा पर जा रहा है. सोमवार को लॉन्च किए गए यूरोपा क्लिपर मिशन ने सौर मंडल के सबसे बड़े ग्रह की अपनी 5.5 साल लंबी यात्रा शुरू कर दी है. यह बर्फीले, सफेद उपग्रह-यूरोपा का अध्ययन करेगा, जिसमें ठोस बर्फ की परत के नीचे तरल अवस्था में पानी का एक महासागर मौजूद है और इस बात की संभावना है कि वहां जीवन के लिए आवश्यक परिस्थितियां मौजूद हों.
अंतरिक्ष यान अगले साल मंगल ग्रह के पास से उड़ान भरेगा, और 2026 में फिर से पृथ्वी के पास से गुजरेगा, इसके बाद बढ़ी हुई गति के साथ घूमते हुए सीधे बृहस्पति की ओर उड़ान भरेगा. उम्मीद है कि यूरोपा क्लिपर अप्रैल 2030 तक अपने अंतिम गंतव्य – बृहस्पति की कक्षा – तक पहुंच जाएगा. वहां, यह बृहस्पति के चारों ओर की कक्षा में उसके बहुत करीब से घूमते हुए यूरोपा के पास से उड़ान भरेगा.
मिशन को स्पेस एक्स के फाल्कन हेवी रॉकेट के जरिए फ्लोरिडा में नासा के कैनेडी स्पेस सेंटर से लॉन्च किया गया है.
यूरोपा क्यों?
किसी ग्रहीय पिंड या प्लेनेटरी बॉडी पर तरल अवस्था में जल का उपलब्ध होना खगोल वैज्ञानिकों के लिए काफी उत्साहित करने वाली बात होती है क्योंकि यह जीवन के पनपने लिए आवश्यक प्रमुख तत्वों में से एक है. पानी तापमान को नियंत्रित करने और पोषक तत्वों को अपने अंदर घुलाकर फैलाने में मदद करता है, जिसने पृथ्वी पर जीवन के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और इसे बनाए रखना जारी रखा.
पृथ्वी के अलावा, सौर मंडल में अन्य खगोलीय पिंड भी हैं जिनमें तरल पानी है, जिन्हें अक्सर महासागरीय दुनिया कहा जाता है. ये गैसीय ग्रहों के उपग्रह हैं, जैसे कि बृहस्पति ग्रह के उपग्रह यूरोपा, कैलिस्टो और गैनमीड; शनि के एन्सेलेडस, टाइटन और मीमास; यूरेनस के ओबेरॉन, अम्ब्रिएल और टाइटेनिया; नेपच्यून के ट्राइटन; बौने ग्रह सेरेस और प्लूटो; प्लूटो का उपग्रह चारोन, इत्यादि.
इनमें से, शनि का एन्सेलेडस और बृहस्पति का यूरोपा, जो हमारे करीब है, विशेष रूप से दिलचस्प हैं. ये दोनों उपग्रह पूरी तरह से बर्फीले आवरण से घिर हैं, जिसकी वजह से वे सफेद रंग के दिखते हैं. माना जाता है कि उनके नीचे एक गर्म, तरल पानी वाला महासागर है जो संभावित रूप से जीवन पनपने के लिए महत्त्वपूर्ण साबित हो सकता है.
यूरोपा पृथ्वी के उपग्रह चंद्रमा के बराबर आकार का है और संभावना है कि इसके नीचे मौजूद पानी पृथ्वी पर मौजूद पानी से ज्यादा हो. खगोल वैज्ञानिकों के अनुसार, इस उपग्रह पर जीवन के लिए ज़रूरी तत्व मौजूद हैं, जिनमें कार्बन, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, सल्फर, फॉस्फोरस और हाइड्रोजन शामिल हैं. इसका केंद्र भी गर्म है, क्योंकि इस पर अन्य उपग्रहों के साथ-साथ लगातार दूसरे उपग्रहों का भी खिंचाव पड़ता है, जो परिक्रमा करने वाले पिंडों को तोड़ते-मरोड़ते हैं. इस प्रकार, बर्फीले आवरण के अंदर का पानी भी संभवतः चंद्रमा की सतह से ज़्यादा गर्म है.
इसके अलावा, बृहस्पति का चुंबकीय क्षेत्र यूरोपा जैसे उपग्रहों की सतह को उच्च मात्रा में विकिरण के संपर्क में लाता है, जो बदले में चंद्रमा की सतह पर कार्बनिक अणुओं और ऑक्सीजन के साथ प्रतिक्रिया कर सकता है, जिससे रासायनिक प्रतिक्रियाएं हो सकती हैं जो उपग्रह के अंदर तक पहुंच सकती हैं.
टाइमलाइन
मिशन को दो मुख्य चरणों में विभाजित किया गया है- यात्रा और फिर विज्ञान. अंतरिक्ष यान सौर पैनलों द्वारा संचालित है और यह मंगल और पृथ्वी दोनों के गुरुत्वाकर्षण खिंचाव का उपयोग करके यूरोपा तक तेज़ी से पहुंचने के लिए चक्कर लगाएगा और गति बढ़ाएगा. इस प्रक्रिया में पांच साल से ज़्यादा का समय लगेगा, यूरोपा 2030 में वहां तक पहुंचेगा.
यह बृहस्पति की परिक्रमा करेगा और उपग्रह पर उतरेगा नहीं. इसके बजाय यह यूरोपा का गहन अध्ययन करने और उसे समझने के लिए अपने नौ वैज्ञानिक पेलोड का उपयोग करेगा. यह आकार में नासा के सबसे बड़े मिशनों में से एक है, जिसमें 22 मीटर का सौर पैनल फैला हुआ है.
मिशन का वैज्ञानिक उद्देश्य वहां रह पाने या कॉलोनी बना पाने की क्षमता का अध्ययन करना और भविष्य के यूरोपा लैंडर मिशन के लिए लैंडिंग साइट का चयन करना है, जिसे 2027 में लॉन्च किए जाने की उम्मीद है. यह उपग्रह के तीन बुनियादी पहलुओं को समझने पर ध्यान केंद्रित करेगा- लिक्विड वॉटर डायनमिक्स, रासायनिक प्रक्रियाएं और उपग्रह के माध्यम से ऊर्जा हस्तांतरण.
इस प्रक्रिया में, यह बर्फीले खोल और उपसतह महासागर का अध्ययन करेगा ताकि इसे पूरी तरह से पहचाना जा सके. इसके अतिरिक्त, मिशन बर्फ और पानी की संरचना को समझेगा, और बर्फीले चंद्रमा पर भूविज्ञान और भूआकृति विज्ञान या सतही परिवर्तनों का अध्ययन करेगा.
इस प्रक्रिया में, यह बर्फीले आवरण और उपसतह महासागर का अध्ययन करेगा ताकि इसे पूरी तरह से पहचाना जा सके. इसके अतिरिक्त, मिशन बर्फ और पानी की संरचना को समझेगा, और बर्फीले चंद्रमा पर भूविज्ञान और भूआकृति विज्ञान या सतही परिवर्तनों का अध्ययन करेगा.
बृहस्पति से बहुत अधिक विकिरण के कारण, अंतरिक्ष यान को बृहस्पति के चारों ओर एक अत्यधिक अण्डाकार कक्षा में सुरक्षित माना जाता है, जो हर बार यूरोपा के करीब उड़ान भरता है, बजाय सीधे यूरोपा के चारों ओर की कक्षा में प्रवेश करने के. इसके उपकरण बृहस्पति के विकिरण से बचाने के लिए टाइटेनियम और एल्यूमीनियम की शील्ड में संलग्न हैं, और उम्मीद है कि वे ग्रह की कक्षा में प्रवेश करने के बाद चार साल तक काम करेंगे, इससे पहले कि वे विकिरण से क्षतिग्रस्त हो जाएं.
नासा के अलावा यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ईएसए) भी इन उपग्रहों का अध्ययन करने की योजना बना रही है. एजेंसी का बृहस्पति के बर्फीले चंद्रमा एक्सप्लोरर (JUICE) मिशन, जो गैनमीड और कैलिस्टो का अध्ययन करेगा, पहले से ही अपने रास्ते पर है.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)