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मंगलवार, 29 अप्रैल, 2025
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कोरोना का कहर, सरकार ने मिड-डे मील के लिए अनाज या नकद घर पर देने की योजना बनाई

मानव संसाधन विकास मंत्रालय राज्यों को यह कहने जा रहा है कि वे छात्रों को घरों में खाद्यान्न दें या पकाया हुआ भोजन प्रदान करें, या उनके माता-पिता को नकद पैसे भेजें.

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नई दिल्ली: केंद्र सरकार यह सुनिश्चित करने के लिए वैकल्पिक व्यवस्था कर रही है कि स्कूल जाने वाले बच्चों को मिड-डे मील के माध्यम से मिलने वाले मूल पोषण से वंचित न किया जाए, ऐसे समय में जब स्कूल कोविड-19 महामारी के कारण स्कूल बंद हैं. दिप्रिंट को यह जानकारी मिली है.

मानव संसाधन विकास मंत्रालय जब तक स्कूल बंद रहेंगे तब तक सभी राज्यों को लाभार्थियों के घरों में खाद्यान्न या पका हुआ भोजन पहुंचाने या उनके माता-पिता के खातों में धन जमा करने की व्यवस्था करने के लिए तैयार है.

सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले कक्षा 1 से 8 तक के 6 से 14 वर्ष की आयु के छात्र योजना के लाभार्थी हैं.

इस तरह का उपाय पहली बार

मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों ने कहा कि यह संभवत- पहली बार है जब सरकार को इस तरह के उपायों का सहारा लेना पड़ा है.

आरसी मीना मानव संसाधन विकास मंत्रालय में संयुक्त सचिव जो कि मिड डे मील योजना संभालती हैं ने कहा, अप्रत्याशित परिस्थितियों के कारण स्कूल बंद होने की स्थिति में मध्याह्न भोजन उपलब्ध कराने के लिए वैकल्पिक व्यवस्था करने के लिए नियमों में एक प्रावधान है और यह एक ऐसा ही परिदृश्य है. हमने यह सुनिश्चित करने के लिए वैकल्पिक व्यवस्था करने का फैसला किया है. ताकि बच्चों को उनका भोजन मिले. मीणा ने कहा कि यह जल्द ही सभी राज्यों को सूचित किया जाएगा.

सामान्य परिस्थितियों में, जब स्कूल गर्मियों की छुट्टियों के लिए बंद होते हैं, बच्चों को वैकल्पिक तरीके से भोजन नहीं दिया जाता है. चूंकि यह एक असामान्य स्थिति है, इसलिए हमें व्यवस्था करनी होगी.

मीणा ने कहा कि इन वैकल्पिक व्यवस्थाओं से सरकार को कुछ अतिरिक्त खर्च नहीं करना पड़ेगा.

मीना ने कहा, ‘इसे अलग-अलग राज्यों पर छोड़ दिया जाएगा. वे इन व्यवस्थाओं को कैसे करना चाहते हैं- चाहे वे अनाज या पकाया हुआ भोजन दें या माता-पिता को पैसे दें.’

कितने बच्चों को होगा फायदा?

मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अधिकारी बताते हैं कि 31 दिसंबर 2019 तक 11.60 करोड़ से अधिक बच्चे योजना के लाभार्थी हैं. वर्ष 2020-21 के लिए योजना का बजट 9,266.67 करोड़ रुपये है.

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को स्कूलों से कहा कि वे यह सुनिश्चित करें कि कि कोरोनोवायरस के कारण छात्रों को शटडाउन के दौरान मध्याह्न भोजन मिले. अदालत ने मामले का संज्ञान लिया और सभी राज्यों को नोटिस भेजकर उनकी योजनाओं के बारे में पूछताछ की.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें )

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