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Sunday, 22 December, 2024
होमदेशराम मंदिर निर्माण को लेकर ट्रस्ट गठन में सुप्रीम कोर्ट के अनुच्छेद 142 के इस्तेमाल के मायने

राम मंदिर निर्माण को लेकर ट्रस्ट गठन में सुप्रीम कोर्ट के अनुच्छेद 142 के इस्तेमाल के मायने

सीजेआई रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच जजों की बेंच ने अयोध्या में विवादित भूमि को केंद्र सरकार द्वारा गठित एक ट्रस्ट को सौंपने का आदेश दिया है.

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नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले में शनिवार को सर्वसम्मति से फैसला सुनाया. बेंच ने अयोध्या में विवादित भूमि को केंद्र सरकार द्वारा गठित एक ट्रस्ट को तीन महीने के अंदर सौंपने का आदेश दिया है. पीठ ने 1993 के अयोध्या अधिनियम (निश्चित क्षेत्र के अधिग्रहण) जिसके तहत अगले तीन महीनों में केंद्र सरकार द्वारा एक ट्रस्ट को विवादित भूमि सौंपने के लिए संविधान के अनुच्छेद 142 को लागू किया.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत न्यायालय में निहित शक्तियों का प्रयोग करते हुए हम यह निर्देश देते हैं विशेष शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए मुस्लिम पक्ष को ज़मीन दे रहे हैं. सरकार ट्रस्ट में निर्मोही अखाड़ा को भी उपयुक्त प्रतिनिधित्व देने पर विचार करे.

इसने यह भी निर्देश दिया कि निर्मोही अखाड़ा को मंदिर निर्माण के लिए योजना तैयार करने में ‘उचित भूमिका’ सौंपी जाए. यह इस तथ्य के बावजूद था कि निर्मोही अखाड़ा की दायर याचिका को खारिज कर दिया गया था.

दि प्रिंट आपको अनुच्छेद 142 का अर्थ समझा रहा है और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इसके उपयोग के इतिहास की पड़ताल भी कर रहा है.


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अनुच्छेद 142 क्या कहता है?

अनुच्छेद 142 उच्चतम न्यायालय को किसी भी मामले में ‘पूर्ण न्याय’ करने के लिए आवश्यक किसी भी आदेश को पारित करने की अनुमति देता है.

आर्टिकल यह कहता है कि अपने अधिकार क्षेत्र में सर्वोच्च न्यायालय इस तरह के निर्णय को पारित कर सकता है या ऐसा आदेश दे सकता है जो किसी भी मामले में पूर्ण न्याय करने से पहले आवश्यक है.

हालांकि, यह पहला बड़ा मामला नहीं है, जहां सर्वोच्च न्यायालय ने इस संवैधानिक प्रावधान को लागू किया है – वास्तव में इसे बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में आपराधिक मुकदमे को रायबरेली से लखनऊ स्थानांतरित करने के लिए भाजपा के शीर्ष नेताओं जैसे लाल कृष्णा आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी के खिलाफ इस्तेमाल किया गया था.

अपने 2017 के फैसले में अदालत ने कहा कि यह मामला 25 साल से लंबित था और इसे ‘न्याय में देरी’ कहा था.

भोपाल गैस त्रासदी, कोयला आवंटन, शराब बंदी

सुप्रीम कोर्ट ने 1989 में भोपाल गैस त्रासदी से प्रभावित हजारों लोगों को राहत देने के लिए अनुच्छेद 142 का इस्तेमाल किया था. जिसे यूनियन कार्बाइड मामला कहा जाता है. पूर्ण रूप से न्याय के लिए अदालत ने पीड़ितों को 470 मिलियन डॉलर का मुआवजा दिया था.

2014 में इस प्रावधान का उपयोग 1993 के बाद किये गए कोयला ब्लॉकों के आवंटन को रद्द करने के लिए किया गया था.


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न्यायालय ने दिसंबर 2016 के फैसले में अनुच्छेद 142 का उपयोग किया था, जो देशभर में राष्ट्रीय और राज्य राजमार्गों पर 500 मीटर की दूरी के भीतर शराब की बिक्री पर प्रतिबंध लगाता है. यह प्रतिबंध 1 अप्रैल 2017 से लागू होना था. इसका प्रमुख उद्देश्य नशे में गाड़ी चलाने के कारण होने वाली दुर्घटनाओं पर रोक लगाना था.

अनुच्छेद 142 का उपयोग ताजमहल के सफेद संगमरमर को उसी रूप में लाने और 2013 के इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल ) स्पॉट फिक्सिंग घोटाले की जांच के लिए न्यायमूर्ति मुकुल मुद्गल समिति का गठन करने के लिए किया गया है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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