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Monday, 9 December, 2024
होमदेशकांवड़ के दौरान होटल मालिकों के नाम लिखने के यूपी, उत्तराखंड के विवादास्पद आदेश पर SC की अंतरिम रोक

कांवड़ के दौरान होटल मालिकों के नाम लिखने के यूपी, उत्तराखंड के विवादास्पद आदेश पर SC की अंतरिम रोक

न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय और एस.वी.एन. भट्टी की पीठ ने कहा कि दुकानदारों को दुकान के बाहर परोसा जाने वाला भोजन के नाम लिखने होंगे, लेकिन उन्हें अपना नाम, जाति या अपने कर्मचारियों का नाम लिखने की कोई ज़रूरत नहीं है.

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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकारों के विवादास्पद आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें दुकानदारों को कांवड़ यात्रा के दौरान अपने प्रतिष्ठानों के बाहर अपना नाम लिखने के लिए कहा गया था.

न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय और एस.वी.एन. भट्टी की पीठ ने अपने अंतरिम आदेश में कहा कि दुकानदारों को उनके यहां परोसे जाने वाले भोजन की जानकारी देनी होगी, लेकिन उन्हें अपना नाम, जाति या अपने कर्मचारियों का नाम लिखने की कोई ज़रूरत नहीं है.

अंतरिम आदेश उस समय आया, जब सुप्रीम कोर्ट उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकार के उस आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें कांवड़ यात्रा मार्ग पर स्थित भोजनालयों को मालिकों के नाम लिखने का निर्देश दिया गया था.

शीर्ष अदालत ने राज्यों से जवाब मांगा और मामले की सुनवाई 26 जुलाई के लिए सूचीबद्ध की है. न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय ने कहा, “यह भी देखा गया है कि निर्देशों का प्रभाव कई राज्यों में फैला हुआ है.”

रविवार को डीयू के प्रोफेसर अपूर्वानंद और कॉलमनिस्ट आकार पटेल ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकार के उस आदेश को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत में याचिका दायर की थी, जिसमें भोजनालयों के मालिकों को दुकानों के बाहर नाम लिखने को कहा गया था.

तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने भी उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकार के निर्देशों के खिलाफ अलग से शीर्ष अदालत का रुख किया था.

याचिका में अपूर्वानंद और पटेल ने तर्क दिया कि ये निर्देश असंगत हस्तक्षेप करते हैं और संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता), 15 (धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध) और 17 (अस्पृश्यता का उन्मूलन) के तहत नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं.

रविवार को बागेश्वर धाम के प्रमुख धीरेंद्र शास्त्री ने भी बागेश्वर धाम के बाहर दुकानदारों को अपना नाम लिखने की चेतावनी दी.

इससे पहले, दिप्रिंट ने रिपोर्ट की थी कि मुस्लिम मालिकों और फल विक्रेताओं ने दावा किया था कि उत्तर प्रदेश पुलिस ने उन पर अपना नाम लिखने और अपनी दुकानों पर बोर्ड के बाहर जानकारियों देने का दबाव डाला था.

सोमवार से शुरू हुई इस यात्रा से पहले ही मांसाहारी भोजन बेचने वाली दुकानें बंद हो गई थीं. कई ढाबा मालिकों ने अपने मुस्लिम कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया, क्योंकि उन्हें डर था कि ऐसा करने से उन्हें नुकसान होगा.


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‘निर्देश का विचार पहचान के आधार पर बहिष्कार’

मोइत्रा का प्रतिनिधित्व करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने तर्क दिया कि निर्देश का विचार पहचान के आधार पर बहिष्कार है और निर्देशों के पीछे तर्कसंगत संबंध पर सवाल उठाया.

उन्होंने कहा, “यह वह गणतंत्र नहीं है जिसकी हमने संविधान में कल्पना की थी. ऐसा पहले कभी नहीं किया गया. इसका कोई वैधानिक समर्थन नहीं है. कोई भी कानून पुलिस आयुक्त को ऐसा करने का अधिकार नहीं देता. निर्देश हर हाथगाड़ी, रेड़ी, चाय की दुकान के लिए है, कर्मचारियों और मालिकों के नाम बताने से कोई उद्देश्य पूरा नहीं होता.”

अगर, इरादा कांवड़ियों को केवल शाकाहारी भोजन उपलब्ध कराने का है, तो न्यायमूर्ति रॉय ने कहा कि निर्देश देश में प्रचलित संवैधानिक और कानूनी मानदंडों के विपरीत है.

रॉय ने कहा, “सभी मालिकों को अपना नाम और पता और अपने कर्मचारियों का नाम और पता लिखने के लिए बाध्य करने से शायद ही इच्छित उद्देश्य प्राप्त होगा.”

उन्होंने कहा, “यह गणतंत्र के धर्मनिरपेक्ष चरित्र का उल्लंघन करेगा…इससे संविधान के अनुच्छेद 15(1), 17 के तहत अधिकारों का उल्लंघन भी होगा.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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