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Thursday, 19 December, 2024
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‘लापता लोगों के परिजनों को मुआवजा दें’बॉम्बे दंगों पर SC का महाराष्ट्र सरकार को निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने 1992-93 के दंगों के मामले में यह निर्देश इस ऑब्जर्वेशन के बाद दिया कि राज्य सरकार कानून-व्यवस्था बनाए रखने और लोगों के सम्मान के साथ जीने के अधिकारों की रक्षा करने में विफल रही है.

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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक अहम फैसले में महाराष्ट्र सरकार को निर्देश दिया कि 1992-93 के बॉम्बे दंगों के पीड़ितों के परिजनों का पता लगाकर मुआवजा दें और जो आपराधिक मामले आरोपियों का पता न लग पाने के कारण ठप पड़े हैं, उन्हें फिर से खोलें. कोर्ट ने इसके साथ ही माना कि राज्य सरकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत लोगों को मिले गारंटीशुदा अधिकारों की रक्षा करने और कानून-व्यवस्था बनाए रखने नाकाम रही थी.

जस्टिस संजय किशन कौल के नेतृत्व वाली तीन सदस्यीय पीठ ने यह निर्देश 21 साल पुरानी एक याचिका पर सुनवाई के दौरान दिए, जिसमें याचिकाकर्ता शकील अहमद ने जस्टिस श्रीकृष्ण आयोग की सिफारिशें लागू करने की मांग की थी. दंगों के बाद राज्य सरकार ने हिंसा की जांच के लिए यह आयोग गठित किया था.

साथ ही अदालत ने यह भी कहा कि वह नहीं चाहती कि पीड़ित सिर्फ इसलिए परेशान होते रहें क्योंकि ‘रिट याचिका के निपटारे में देरी हुई.’

पीठ ने कहा, ‘भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रत्येक नागरिक को मानवीय गरिमा के साथ जीने का अधिकार है. अनुच्छेद 21 सीधे तौर पर एक सार्थक और सम्मानजनक जीवन जीने से जुड़ा है. यदि नागरिकों को सांप्रदायिक तनाव के माहौल में रहने को बाध्य होना पड़ता है तो यह अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त गारंटीशुदा ससम्मान जीवन जीने के उनके अधिकार को प्रभावित करता है.

कोर्ट ने आगे कहा कि लगातार सांप्रदायिक तनाव का माहौल बना रहना देश के नागरिकों को मिले गारंटीशुदा संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन है. पीठ ने दंगे रोकने में नाकाम रहने को लेकर राज्य सरकार की खिंचाई भी की. जैसा कि अदालती आदेश में बताया गया है, इन दंगों में 900 लोग मारे गए थे और 2,000 से अधिक घायल हुए थे.

अदालत ने कहा, चूंकि ‘उनके पीड़ित होने का मूल कारण यह था कि राज्य सरकार कानून-व्यवस्था बनाए रखने में विफल रही थी’ इसलिए इससे प्रभावित लोग और उनके परिवार राज्य की तरफ से मुआवजा पाने के हकदार हैं.

राज्य को क्या दिशा-निर्देश दिए

अदालत ने अपने फैसले राज्य सरकार को यह निर्देश भी दिया कि ‘108 लापता लोगों के कानूनी वारिसों का पता लगाने के हरसंभव प्रयास किए जाएं, जिनका पता न लग पाने के कारण मुआवजा नहीं दिया जा सका था.’

राज्य की तरफ से अदालत को दी गई जानकारी के मुताबिक, तत्कालीन सरकार ने पीड़ितों को 2 लाख रुपये मुआवजा देने का फैसला किया था और 900 मृतकों और 60 लापता लोगों के परिजनों को इसका भुगतान किया गया था. हालांकि, दंगों बाद 168 लोगों के लापता होने की सूचना मिली थी, लेकिन राज्य केवल 60 लोगों के परिवारों का पता लगा सका और उन्हें मुआवजे का भुगतान किया गया. राज्य सरकार का कहना है कि बाकी 108 लापता लोगों के परिवारों का या तो पता नहीं लग पाया, या फिर वे औपचारिकताएं पूरी करने में नाकाम रहे.

हालांकि, शीर्ष अदालत ने शुक्रवार को अपने फैसले में कहा कि राज्य सरकार लापता लोगों के ‘कानूनी उत्तराधिकारियों का पता लगाने’ के लिए हरसंभव प्रयास करें और उन्हें दंगा पीड़ितों और उनके परिवारों के लिए निर्धारित मुआवजा राशि का भुगतान करे.

ऐसे परिवारों का पता लगाने और उन्हें मुआवजा मिलना सुनिश्चित करने के उद्देश्य से कोर्ट ने तीन सदस्यीय निगरानी समिति गठित करने को भी कहा है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश में कहा गया है कि महाराष्ट्र राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण के सदस्य सचिव (जो एक न्यायिक अधिकारी हैं) की अध्यक्षता वाली समिति को 10 महीने बाद शीर्ष कोर्ट को अनुपालन रिपोर्ट सौंपनी होगी. इसके दो अन्य सदस्यों में एक राजस्व अधिकारी—जो डिप्टी कलेक्टर से नीचे पद का नहीं होगा—और एक पुलिस अधिकारी शामिल होगा, जो सहायक पुलिस आयुक्त के स्तर से नीचे का नहीं होगा.

जो आपराधिक मामले आरोपियों के गायब होने के कारण बंद पड़े हैं, उनके संबंध में शीर्ष अदालत ने राज्य को निर्देश दिया कि लापता आरोपियों का पता लगाने के लिए तुरंत एक विशेष प्रकोष्ठ गठित करे ताकि उन पर मुकदमा चलाया जा सके.

राज्य की तरफ से कोर्ट को सौंपे गए हलफनामे में बताया गया है कि 253 आपराधिक मामलों में से 97 इसी कारण से आगे नहीं बढ़ पाए हैं.

राज्य का डेटा दर्शाता है कि जिन मामलों में सुनवाई हुई, उनमें 114 में आरोपियों को बरी कर दिया गया और केवल छह मामलों में दोषसिद्धि हो पाई. एक मामले खत्म कर दिया और 34 अन्य को दंगों से जुड़ा नहीं पाया गया.

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले ने हाई कोर्ट से भी कहा कि वो प्रशासनिक पहलुओं पर उन संबंधित अदालतों को उचित दिशा-निर्देश थे जिनमें 97 निष्क्रिय केस लंबित हैं. फैसले में कहा गया है कि हाई कोर्ट को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि संबंधित अदालतें आरोपियों का पता लगाने के लिए उचित कदम उठाएं.

शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार से पुलिस सुधारों और आधुनिकीकरण पर जस्टिस श्रीकृष्ण आयोग की सिफारिशों को लागू करने का निर्देश देने के साथ यह भी कहा, ‘हमें पूरी उम्मीद और भरोसा है कि आजादी के 75 वर्षों के बाद अब दंगों जैसी कोई स्थिति नहीं आएगी.’

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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