scorecardresearch
Wednesday, 20 November, 2024
होमदेशअगर सुप्रीम कोर्ट का कॉलेजियम चाहेगा तो कर्नाटक की यह न्यायाधीश भारत की पहली महिला सीजेआई बन सकती हैं

अगर सुप्रीम कोर्ट का कॉलेजियम चाहेगा तो कर्नाटक की यह न्यायाधीश भारत की पहली महिला सीजेआई बन सकती हैं

न्यायमूर्ति बी वी नागरत्न की वरिष्ठता और कर्नाटक उच्च न्यायालय के 3 प्रतिनिधि का सर्वोच्च न्यायालय में होना उनके खिलाफ जा सकता है.

Text Size:

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम शीर्ष अदालत में मौजूदा रिक्तियों को भरने के लिए के लिए दो नामों की सिफारिश करने की योजना बना रहा है. लेकिन, इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि कॉलेजियम के पास इस समय भेदभाव ख़त्म करने का मौका है. सुप्रीम कोर्ट कर्नाटक उच्च न्यायालय की वरिष्ठ न्यायाधीश बीवी नागरत्न के नाम की सिफारिश करती है और प्रमोशन कर दिया जाता है तो वह भारत की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश बनने की कतार में शामिल होंगी.

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि जस्टिस नागरत्न का नाम सीजेआई बोबडे और कॉलेजियम के अन्य सदस्यों के बीच प्रारंभिक चर्चा में आया था तभी उनकी उम्मीदवारी का ‘कुछ विरोध’ हुआ था.

2 फरवरी 2008 को नागरत्न को कर्नाटक उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त किया गया था. अगर उच्च न्यायालय की न्यायाधीश नागरत्न का नाम आगे बढ़ाया जाता है तो वह न्यायमूर्ति सूर्यकांत के बाद फरवरी 2027 से 29 अक्टूबर 2027 तक मुख्य न्यायाधीश के पद पर रह सकती हैं.

न्यायमूर्ति नागरत्न के पिता, न्यायमूर्ति ईएस वेंकटरामैया 1989 में कुछ महीनों के लिए सीजेआई थे.

सुप्रीम कोर्ट के एक सूत्र ने कहा, ‘उनके नाम पर चर्चा की गई है, लेकिन कई कारणों से उनकी संभावनाएं बहुत ज्यादा नहीं है.’

कर्नाटक का पहले से ही सर्वोच्च न्यायालय में पर्याप्त प्रतिनिधित्व है और अन्य अदालतों को भी प्रतिनिधित्व दिए जाने की आवश्यकता है. लेकिन, वह एक अच्छी जज हैं और इस पर अंतिम निर्णय कॉलेजियम द्वारा लिया जाएगा.’

सुप्रीम कोर्ट में वर्तमान में दो रिक्तियां हैं, जबकि दो और अगले कुछ महीनों में न्यायमूर्ति आर. भानुमति (19 जुलाई) और न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा (2 सितंबर) की सेवानिवृत्ति से होने वाले हैं.

सूत्र ने कहा, ‘इस बात की भी संभावना है कि अगर जस्टिस नागरत्न के नाम को अभी मंजूरी नहीं मिलती है, तो इस साल के अंत में दो और रिक्तियां जब निकलेंगी, यह तब हो सकती है.’

सुप्रीम कोर्ट में वर्तमान में तीन महिला न्यायाधीश हैं – जस्टिस भानुमति, इंदु मल्होत्रा ​​और इंदिरा बनर्जी.

न्यायमूर्ति नागरत्न के खिलाफ तथ्य

न्यायमूर्ति नागरत्न की भविष्य में सर्वोच्च न्यायालय में पदोन्नति की संभावनाओं के पक्ष में काम न करने वाले मुख्य कारण है कर्नाटक उच्च न्यायालय. जिसमें न्यायाधीशों की अनुमोदित संख्या 62 है. इसमें पहले से ही सुप्रीम कोर्ट में तीन नामांकित व्यक्ति हैं. जस्टिस एम.एम. शांतनगौदर, एस अब्दुल नज़ीर और एएस बोपन्ना, इनमें से कोई भी जनवरी 2023 से पहले सेवानिवृत्त होने वाला नहीं है.

न्यायमूर्ति नागरत्न को 29 अक्टूबर 2024 को सेवानिवृत्त होना है, जब तक कि वह सर्वोच्च न्यायालय में पदोन्नत नहीं हो जाती- सभी सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों को तीन साल का विस्तार मिलता है.

न्यायमूर्ति नागरत्न उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की अखिल भारतीय वरिष्ठता में क्रम संख्या 46 पर हैं. मूल रूप से कर्नाटक हाई कोर्ट के न्यायाधीशों में उनके साथ वरिष्ठ दो न्यायाधीश हैं- हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एलएन स्वामी और उत्तराखंड उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति रवि विजयकुमार मलीमथ.

भारत के एक पूर्व मुख्य न्यायाधीश, जो नाम नहीं बताना चाहते थे, ने दिप्रिंट को बताया, ‘जब सर्वोच्च न्यायालय में आगे बढ़ने की बात आती है, तो वरिष्ठता और क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व प्रमुख मापदंड हैं. लेकिन, अतीत में ऐसे मामले सामने आए हैं जब सर्वोच्च न्यायालय में पदोन्नति करते हुए वरिष्ठता की अनदेखी की गई है.’

पूर्व सीजेआई ने आगे कहा कि ‘कोई लिखित नियम नहीं हैं और अंतिम विकल्प कॉलेजियम के भीतर आम सहमति पर निर्भर करता है. यदि कॉलेजियम के सदस्य यह निर्णय लेते हैं कि महिला न्यायाधीश की सिफारिश करने का समय आ गया है. ताकि वह पहली महिला सीजेआई बन सकें, तो वह सबसे उपयुक्त होंगी.’

अखिल भारतीय वरिष्ठता के संदर्भ में केवल दो न्यायाधीश हैं, जो न्यायमूर्ति नागारत्न के बाद सेवानिवृत्त होने वाले हैं- मेघालय उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश बिश्वनाथ सोमदादर, जो 14 दिसंबर 2025 को सेवानिवृत्त होने वाले हैं (साथ ही उच्चतम न्यायालय में पदोन्नति के तीन साल बाद) और बॉम्बे उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता, जो 8 फरवरी 2027 (2030, यदि बढ़ा) पर सेवानिवृत्त होने वाले हैं.’

सुप्रीम कोर्ट के एक सूत्र ने कहा, ‘भले ही वह बाद में सुप्रीम कोर्ट में उच्च पद पर आसीन हों, लेकिन जो लोग उनके बाद सेवानिवृत्त होंगे, उनके पास अभी भी भारतीय न्यायपालिका में शीर्ष पद पर पहुंचने के लिए एक मौका होगा. लेकिन, यह सब कॉलेजियम के दृष्टिकोण पर निर्भर करता है.’

विचाराधीन अन्य नाम

उच्चतम न्यायालय के सूत्रों ने कहा कि पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश रवि शंकर झा (जिनकी पैरेंट हाई कोर्ट मध्य प्रदेश है), इलाहाबाद हाई कोर्ट के सीजे गोविंद माथुर (राजस्थान), कलकत्ता एचसी सीजे, टीबी राधाकृष्णन (केरल), मद्रास एचसी सीजे, एपी साही (इलाहाबाद), गुजरात एचसी सीजे, विक्रम नाथ (इलाहाबाद), त्रिपुरा एचसी सीजे अकिल ए कुरैशी (गुजरात एचसी), दिल्ली एचसी सीजे डीएन पटेल (गुजरात) और जम्मू-कश्मीर एचसी सीजे गीता मित्तल ( दिल्ली) के नाम भी विचाराधीन हैं.

इन नामों में से जस्टिस झा का प्रमोशन लगभग निश्चित है, क्योंकि 2 सितंबर को जस्टिस अरुण मिश्रा के सेवानिवृत्त होने के बाद मप्र हाईकोर्ट का कोई प्रतिनिधित्व नहीं होगा.

पटना एचसी सीजे संजय करोल, जिनका पैरेंट हाईकोर्ट हिमाचल प्रदेश हैं, के नाम पर भी चर्चा की जा रही है, क्योंकि उस राज्य का अब जस्टिस दीपक गुप्ता की सेवानिवृत्ति के बाद प्रतिनिधित्व नहीं है. जस्टिस करोल अखिल भारतीय वरिष्ठता में जस्टिस नागरत्न से भी वरिष्ठ हैं.

वर्तमान में, सीजेआई बोबडे सहित सुप्रीम कोर्ट के चार न्यायाधीश हैं, जिनके मूल उच्च न्यायालय बॉम्बे हाई कोर्ट है, जबकि दिल्ली और इलाहाबाद (देश का सबसे बड़ा उच्च न्यायालय) के सुप्रीम कोर्ट में तीन न्यायाधीश हैं और मद्रास और कलकत्ता के दो-दो न्यायाधीश हैं.

गुजरात हाई कोर्ट के सिर्फ एक प्रतिनिधि है, जो दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश पटेल की संभावनाओं को बढ़ाता है.

सुप्रीम कोर्ट में आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के एक-एक प्रतिनिधि हैं, जबकि उड़ीसा, झारखंड और छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के कोई प्रतिनिधि नहीं हैं.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें )

share & View comments