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Friday, 22 November, 2024
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SC ने ज़ूम वीडियो-कॉलिंग ऐप के इस्तेमाल पर रोक की मांग वाली PIL बंद की

जस्टिस संजीव खन्ना और एमएम सुंदरेश की पीठ ने याचिका को यह कहने के बाद बंद कर दिया कि केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MEITY) ने भी इस एप्लीकेशन के इस्तेमाल में कुछ भी गलत नहीं पाया है.

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नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को ‘ज़ूम’ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग ऐप को बैन करने की मांगी जनहित याचिका को बंद कर दिया, जिसमें दावा किया गया था कि यह निजता का उल्लंघन करता है.

जस्टिस संजीव खन्ना और एमएम सुंदरेश की पीठ ने याचिका को यह कहने के बाद बंद कर दिया कि केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MEITY) ने भी इस एप्लीकेशन के इस्तेमाल में कुछ भी गलत नहीं पाया है.

ज़ूम की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद दातार ने कहा, ‘यह टिक नहीं पाती. यहां तक ​​कि अदालतें भी जूम का इस्तेमाल करती हैं… एमईआईटीवाई ने जूम को लेकर कुछ भी गलत नहीं पाया है. और केवल हमें ही निशाना क्यों बनाया जाए, वेबएक्स आदि को क्यों नहीं?’

पीठ ने इसके बाद मामले को बंद कर दिया.

शीर्ष अदालत एक हर्ष चुघ द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें भारतीय नागरिकों द्वारा वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग एप्लिकेशन ज़ूम के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने की मांग की गई है, जब तक कि उचित कानून तैयार नहीं किया जाता है, ऐप का दावा है कि इससे गोपनीयता भंग होती है.

2020 में दायर याचिका में तर्क दिया गया था कि सॉफ्टवेयर एप्लिकेशन इसका इस्तेमाल करने वाले व्यक्तियों की गोपनीयता के लिए खतरा पैदा करता है और साइबर सुरक्षा को भी भंग करता है.

इसमें कहा गया है कि ज़ूम ऐप सुरक्षित नहीं है और इसमें एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन नहीं है और यह सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 और सूचना प्रौद्योगिकी (सूचना को रोकने, निगरानी और डिक्रिप्शन के लिए प्रक्रिया और सुरक्षा उपाय) नियम, 2009 का उल्लंघन कर रहा है.

याचिका में कहा गया है कि जूमवीडियो कम्युनिकेशंस के सीईओ ने पहले ही सार्वजनिक रूप से माफी मांगी है और डिजिटल रूप से सुरक्षित वातावरण प्रदान करने के मामले में ऐप को दोषपूर्ण माना है जो साइबर सुरक्षा के मानदंडों के खिलाफ है.

चुघ ने अपनी याचिका में कहा कि एक होममेकर और दूर-दराज के कर्मचारी होने के नाते वह हैकिंग और साइबर उल्लंघनों के मामलों को लेकर चिंतित हैं, जो लगातार सामने आ रहे हैं.

दलील में कहा गया है कि नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए एक मानक रेग्युलेशन को प्रभावी बनाने को लेकर कानून बनाने की जरूरत है, जैसा कि दुनिया भर के कई नेताओं ने प्रकाश में लाया है.


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