scorecardresearch
Sunday, 3 November, 2024
होमदेशसैटेलाइट इमेज से पता चलता है कि चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर एक कमजोर लिंक है

सैटेलाइट इमेज से पता चलता है कि चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर एक कमजोर लिंक है

पीओके वाले जम्मू-कश्मीर के गोजल घाटी के गिलगिट-बाल्टिस्तान क्षेत्र से जाने वाली सड़क सीपीईसी (सीपेक) पर यातायात के लिए एक समस्या बनी हुई है.

Text Size:

नई दिल्ली: जब से चीन ने भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर (सीपीईसी) की फंडिंग में कटौती की है, तब से चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के ट्रिलियन डॉलर ड्रीम प्रोजेक्ट ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ पर काम धीमा पड़ गया है.

भारत ने कई बार इस परियोजना पर आपत्ति जताई है, क्योंकि यह कॉरिडोर पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से होकर गुजरता है.

लेकिन अब सैटेलाइट इमेज से पता चला है कि काराकोरम पहाड़ों के गिलगित-बाल्टिस्तान में गोजल घाटी की सड़क सीपीईसी की एक कमजोर कड़ी है. दिप्रिंट ने इस बात पर गौर किया कि क्यों यह चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर (सीपीईसी) का कमजोर बिंदु हो सकता है.

बड़े पैमाने पर भूस्खलन

4 जनवरी 2010 को अट्टाबाद के पास बड़े पैमाने पर भूस्खलन हुआ. जिसने, हुंजा नदी और काराकोरम राजमार्ग (केकेएच) को अवरुद्ध कर दिया. भूस्खलन की अधिकता को मार्च 2010 की इस घटना से समझा जा सकता है. जब काराकोरम राजमार्ग (केकेएच) का लगभग 30 किलोमीटर हिस्सा पानी के नीचे चला गया था और कई गांव ऊपर की ओर बह गए थे.

फ्रंटियर वर्क्स ऑर्गेनाइजेशन (एफडब्ल्यूओ) के तहत 142 रोड मेंटिनेंस बटालियन (आरएमबी) को चीनी इंजीनियरों की मदद से सेवा में लाया गया था, जिन्हें 2.5 बिलियन क्यूबिक फीट मलबे के जरिए हुंजा नदी पर एक ऐसे रास्ते (स्पिलवे) का निर्माण करना था जहां से भारी मात्रा में पानी डैम में स्टोर हो सके.

स्रोत : कर्नल विनायक भट

सैटेलाइट इमेज में आपदा के बारे में संकेत 2006 से ही मिलने शुरू हो गए थे, जब अट्टाबाद में भूस्खलन सक्रिय हुआ था. चित्र में स्पष्ट रूप से यह पता चलता है कि नदी पर एक बांध का निर्माण भूस्खलन से बोल्डर के साथ लगभग मानव निर्मित ट्रेंड में हुआ था.

मार्च 2010 में भूस्खलन को साफ करने का कठिन काम शुरू हुआ था, लेकिन 130 मीटर से 200 मीटर ऊंचे प्राकृतिक बांध में शायद ही कोई सेंध लगा पाता.

स्रोत : कर्नल विनायक भट

पाकिस्तान की सरकार द्वारा दिखाई गई उदासीनता के कारण गोजल के लोग निराश हो गए और उन्होंने इस प्रक्रिया में कीमती जान गंवाकर स्पिलवे पर काम करना शुरू कर दिया.

हुंजा नदी के डैमिंग ने एक बड़ी झील का निर्माण किया, जो कि पासु शहर से परे, भूस्खलन क्षेत्र के पीछे 30 किमी तक फैला हुआ था. निवासियों ने फिर नाव से यात्रा करने के लिए झील का उपयोग करना शुरू कर दिया. आज हुंजा झील या अट्टाबाद झील, अट्टाबाद के पास स्पिलवे से 9 किमी पर स्थिर हो गई है.

सड़क संपर्क खोलने के बड़े पैमाने पर प्रयास असफल रहे, इसलिए पाकिस्तान ने चीन और विश्व बैंक की मदद मांगी.

स्रोत : कर्नल विनायक भट

2016 में लगभग 8 किमी की दूरी तय करने वाली पांच सुरंगों को खोद दिया गया और केकेएच को आखिरकार साढ़े छह साल बाद यातायात के लिए फिर से खोला गया. इस सड़क पर भेजा गया पहला बड़ा काफिला बीजिंग से मस्कट से ओमान तक एक कार रैली थी.

पुराना शिशकट पुल, जो चार साल तक पानी के नीचे रहने के बाद धुल गया था और साथ ही एक नया पुल जिसके घाट को 2010 से पहले पूरा किया गया था अब उसका निर्माण आखिरकार कर लिया गया है.

विभिन्न मौसमों में स्थिति

हालांकि, केकेएच अब लगभग तीन साल से खुला है, लेकिन सुरंगों के मार्ग के आकार में छोटा होने के कारण यातायात को रोकना पड़ता है और निरंतर दोतरफा यातायात नहीं हो पाता है.

स्रोत : कर्नल विनायक भट

गर्मियों में, पिछले कुछ महीनों की चित्रों में फ़िरोजी-रंग की झील दिखाती हैं, जिसमें पानी वाले खेल होते हैं. सड़क पर देखे गए वाहनों से संकेत मिलता है सड़क यातायात के लिए खुली है.

स्रोत : कर्नल विनायक भट

हालांकि, सर्दियों के महीनों में (अक्टूबर और मार्च के बीच) सड़क सीपीईसी के लिए एक कमजोर कड़ी बन जाती है, क्योंकि यह भारी बर्फबारी के कारण ब्लॉक हो जाती है और यातायात के लिए बंद रहती है.

स्रोत : कर्नल विनायक भट

सैटेलाइट इमेज से पता चलता है कि जिन दिनों में मौसम साफ़ रहता है एक झील बर्फ की परत के साथ जमी होती है. गोजल में और बाहर जाने के इच्छुक लोगों को अपने सामान के साथ झील पर लगभग 8-10 किमी की ट्रैकिंग करनी होती है.

संभवत: भारत और अन्य देशों के दबाव सहित अन्य कारणों के संयोजन के कारण चीन ने अभी तक इस क्षेत्र में निवेश करने का फैसला नहीं किया है, लेकिन सीपीईसी में इस तरह की कमजोरी उसके संकोच का कारण हो सकती है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

share & View comments