नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ 2025 में 100 वर्ष का होने जा रहा है. ऐसे में अगले चार सालों की योजना का एक खाका इस बार की अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल की बैठक में उभर कर सामने आया है.
इससे पता चलता है कि आने वाले चार सालों में अपना शताब्दी वर्ष मनाने तक संघ के रोडमैप के केंद्र में ये प्रमुख बिंदु होंगे— बड़े पैमाने पर संगठनात्मक विस्तार, भारत के स्वतंत्रता आंदोलन को नए परिप्रेक्ष्य में सामने रखना और कट्टरपंथी इस्लाम से उत्पन्न खतरों पर एक वैश्विक विमर्श का निर्माण करना. इन सब बिंदुओं पर अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल की बैठक में विस्तार से चर्चा हुई.
कार्यकारी मंडल संघ के लिए सभी प्रमुख निर्णय लेने वाली दूसरी सर्वोच्च संस्था है. पहली संस्था अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा है जिसकी बैठक सामान्य तौर पर हर साल मार्च में होती है. इसके बाद कार्यकारी मंडल की बैठक अक्सर अक्टूबर—नवंबर में होती है. इसमें साल भर की योजना की अर्धवार्षिक समीक्षा भी की जाती है और भविष्य की योजनाओं पर भी चर्चा होती है. इस बार इसकी बैठक 28 से 30 अक्टूबर तक कर्नाटक के धारवाड़ में आयोजित की गई थी जिसमें आरएसएस के लगभग 350 शीर्ष पदाधिकारियों शामिल हुए थे. स्वयं सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत और सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसाबले भी इसमें मौजूद रहे.
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बड़े पैमाने पर संगठनात्मक विस्तार
इस बैठक में हुई चर्चा से यह साफ़ संकेत सामने आया है कि भले ही पिछले एक दशक में संघ ने संगठनात्मक रूप से देश भर में अपनी उपस्थिति को लगभग दोगुने से भी अधिक कर लिया है लेकिन वह इससे संतुष्ट नहीं है. उसे अब भी लगता है कि उसे अभी लंबा सफर तय करना है. वर्तमान में आरएसएस की दैनिक शाखाएं देश के 6483 ब्लॉकों में से 5683 ब्लॉकों में आयोजित की जाती हैं. कुल मिलाकर आरएसएस की शाखाएं 55000 जगहों पर आयोजित की जाती हैं जिनमें 34000 स्थानों पर दैनिक शाखा, 12780 स्थानों पर साप्ताहिक शाखा और 7900 स्थानों पर मासिक मिलन शामिल हैं. इस बड़े पैमाने पर पहुंच के बावजूद संघ में अपने संगठन के विस्तार करने की इच्छा पहले से कहीं ज्यादा मज़बूत दिखाई देती है. संगठन शास्त्र का अध्ययन करने वालों के लिए यह अपने आप में एक दिलचस्प केस स्टडी हो सकती है.
संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसाबले ने कहा कि ‘वर्ष 2025 संघ का शताब्दी वर्ष होने जा रहा है. आम तौर पर, हम हर तीन साल में संगठन के विस्तार के लिए एक योजना तैयार करते हैं. इस दृष्टि से हमारे काम को मंडल स्तर तक ले जाने का फैसला लिया गया है. वर्तमान में देश के 6483 प्रखंडों में से 5683 में संघ का कार्य चल रहा है. 32687 मंडलों में काम है. 910 जिलों में से 900 जिलों में संघ का कार्य है, 560 जिलों में जिला मुख्यालय पर 5 शाखाएं हैं, 84 जिलों में सभी मंडलों में शाखाएं हैं. हमने सोचा है कि आने वाले तीन सालों में संघ का कार्य सभी मंडलों तक पहुंचना चाहिए.’
संघ द्वारा लिया गया एक और अहम फैसला पूर्णकालिक कार्यकर्ताओं की संख्या में वृद्धि करना है. संघ में एक पूर्णकालिक कार्यकर्ता को ‘प्रचारक’ के रूप में जाना जाता है. ‘प्रचारक’ अपने परिवारों के साथ नहीं रहते हैं और अपना सारा समय संगठनात्मक कामों के लिए समर्पित करते हैं.
आने वाले चार सालों में आरएसएस अपने कार्यकर्ताओं को अपने जीवन के कम से कम दो साल ‘प्रचारक’ के रूप में देने के लिए प्रेरित करके उनकी संख्या को कई गुना बढ़ाने की योजना बना रहा हैं. इससे संगठन को काफी मजबूती मिलने की उम्मीद है. पिछली बार, संघ ने 1989 में इसी तरह की पहल की थी जब वह अपने संस्थापक डॉ केशव बलिराम हेडगेवार की जयंती मना रहा था. इस तरह लगभग तीन दशकों के बाद संगठनात्मक विस्तार के एक बड़े चरण की फिर से तैयारी की जा रही है.
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स्वतंत्रता आंदोलन को लेकर नया विमर्श
जब स्वतंत्रता आंदोलन पर विमर्श की बात आती है तो संघ मुख्य रूप से दो चीजों पर ध्यान केंद्रित करने जा रहा है. होसाबले ने कहा कि, ‘देश स्वतंत्रता के 75वें साल में अमृत महोत्सव मना रहा है. इस मौके पर संघ के स्वयंसेवक विभिन्न संगठनों और समाज के सहयोग और स्वतंत्र रूप से रानी अब्बक्का, वेलु नचियार, रानी गांइदिल्यू जैसे अज्ञात स्वतंत्रता सेनानियों को समाज के सामने लाने के लिए कार्यक्रम आयोजित करेंगे.’ इस तरह अगले कुछ सालों में कई नए राष्ट्रीय प्रतीक सामने आएंगे और स्थापित होंगे.
दूसरा पहलू जिस पर आरएसएस काम करेगा वह यह स्थापित करना है कि भारत का स्वतंत्रता आंदोलन औपनिवेशिक शासन का विरोध मात्र ही नहीं था. यह आजादी के बाद जबरन स्थापित किए गया इतिहास उस तथाकथित मुख्यधारा के लिए एक सीधी चुनौती है जिन्होंने इस पहलू को नजरअंदाज कर दिया है और भारत के स्वतंत्रता आंदोलन को पश्चिमी इतिहासलेखन के नज़रिए से देखा है. संघ के मुताबिक भारत का स्वतंत्रता आंदोलन ‘स्व’ की खोज था और यह भारत की उस समृद्ध सांस्कृतिक और सभ्यतागत विरासत से अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ था जिसके मूल में ‘सनातन धर्म’ या ‘हिंदुत्व’ है.
कार्यकारी मंडल में इस विषय पर हुई चर्चा के संदर्भ में होसाबले ने संघ की सोच को साफ़ करते हुए कहा, ‘भारत का स्वतंत्रता आंदोलन लंबे समय तक चलने वाला दुनिया का एक अद्वितीय आंदोलन रहा है. इस आंदोलन में देश की एकता सामने आई है. यह आंदोलन न सिर्फ़ अंग्रेजों के खिलाफ था बल्कि यह भारत के स्वाभिमान के लिए भी था. इसीलिए स्वदेशी आंदोलन स्व-भाषा, स्व-संस्कृति आदि के साथ स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ गया. स्वामी विवेकानंद समेत कई व्यक्तित्वों ने भारत की आत्मा को जगाने के लिए काम किया. इसलिए स्वतंत्रता के 75 साल के अवसर पर वर्तमान पीढ़ी को दुनिया के हर क्षेत्र में भारत को उत्कृष्ट बनाने का संकल्प लेना चाहिए.’
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कट्टरपंथी इस्लाम और अल्पसंख्यक हिंदू
इस बीच, कार्यकारी मंडल ने बांग्लादेश में हिंदुओं की दुर्दशा पर भी कड़ा रुख अपनाया है. इस बैठक में कड़े शब्दों में प्रस्ताव पारित कर बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हिंसा को नरसंहार करार दिया. संघ के सहसरकार्यवाह अरुण कुमार के मुताबिक, ‘बांग्लादेश में हिंदू समाज पर हमला अचानक नहीं हुआ है. फर्जी खबरों के आधार पर सांप्रदायिक उन्माद पैदा करने की कोशिश की गई है और यह हिंदू समाज को खत्म करने की सुनियोजित कोशिश थी.’
प्रस्ताव में हिंदुओं पर हिंसक हमलों पर दुख व्यक्त किया गया है. वहां हिंदू अल्पसंख्यकों पर जारी क्रूर हिंसा और बांग्लादेश के व्यापक इस्लामीकरण के लिए जिहादी संगठनों की साजिश की कड़ी निंदा की गई है.
प्रस्ताव में कहा गया है, ‘अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल तथाकथित मानवाधिकार प्रहरी, संयुक्त राष्ट्र से संबद्ध निकायों की चुप्पी की निंदा करता है, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से हिंसा की निंदा करने के लिए आगे आने, बांग्लादेश में हिंदुओं, बौद्धों और अन्य अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए अपनी आवाज उठाने का आह्वान करता है.’ प्रस्ताव में यह चेतावनी भी दी गई है कि कट्टरपंथी इस्लामी ताकतों का उदय चाहे बांग्लादेश में हो या दुनिया के किसी दूसरे हिस्सों में, दुनिया के शांतिप्रिय राष्ट्रों के लोगों के लोकतंत्र और मानवाधिकारों के लिए एक गंभीर खतरा होगा.
संघ के सहकार्यवाह अरुण कुमार ने कहा कि, ‘विभाजन के समय पूर्वी बंगाल में हिंदुओं की आबादी लगभग 28 प्रतिशत थी जो अब घटकर लगभग आठ प्रतिशत हो गई है. जमात-ए-इस्लामी (बांग्लादेश) जैसे कट्टरपंथी इस्लामी समूहों के अत्याचारों की वजह से विभाजन की अवधि के बाद से विशेष रूप से 1971 के युद्ध के दौरान बड़ी संख्या में हिंदुओं को भारत में पलायन करना पड़ा था.’
संघ ने अपने प्रस्ताव में भारत सरकार से आग्रह किया है कि बांग्लादेश में हमलों और मानवाधिकारों के उल्लंघन पर बांग्लादेश सरकार को वैश्विक हिंदू समुदाय और संगठनों की चिंताओं से अवगत करवाया जाए वहां हिंदुओं और बौद्धों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए ज़रूरी कदम उठाए जाने चाहिए.
(लेखक आरएसएस से जुड़े थिंक-टैंक विचार विनिमय केंद्र में शोध निदेशक हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)
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